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EXCLUSIVE :  यूपी में जानलेवा बुखार का वैरिएंट ही नहीं समझ पा रहे डॉक्टर, तीन दिन में हो रहे मल्टी आर्गन फेल्योर!

डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया के मरीजों के आधे-अधूरे आंकड़े तो बताए जा रहे हैं, लेकिन स्क्रब टाइफस और लेप्टो स्पायरोसिस बुखार का कोई आंकड़ा यूपी सरकार के पास नहीं है। हैरानी की बात यह है कि इन बीमारियों के ख़तरे से ज़्यादातर डॉक्टर तक अनजान हैं।
UP fever

कानपुर स्थित जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज में भर्ती 66 साल के एक रोगी का प्लेटलेट्स काउंट 22 हजार है। लिवर खराब हैं और गुर्दे फेल हो गए हैं। पैंक्रियाटिक ग्रंथि भी ठीक से काम नहीं कर रही है। हेमरेजिक गैस्ट्राइटिस और फेफड़ों में संक्रमण है। मल्टी आर्गन फेल्योर की स्थिति है। रोगी की कोरोना, डेंगू, मलेरिया आदि सभी जांचें निगेटिव हैं। फिर भी सिर्फ तीन-चार दिनों के अंदर आखिर कैसे मरीजों के मल्टी आर्गन फेल्योर हो रहे हैं? यूपी में सरकारी अस्पतालों डॉक्टर भी हैरान हैं कि आखिर यह कौन सा वायरल संक्रमण है जिसके जानलेवा वैरिएंट को वह नहीं समझ पा रहे हैं?

मेडिसिन विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. संतोष कुमार कहते हैं, "अचंभित करने वाली वाली बात यह है कि बुखार आने के बाद रोगी बहुत तेजी से गंभीर होते हैं। सारे अंदरूनी अंग प्रभावित होने लगते हैं और देखते-देखते तीन-चार दिन में रोगी की मौत हो जा रही है। इस तरह के लक्षणों वाले अब तक आधा दर्जन मामलों को वह देख चुके हैं।"

बनारस के कबीरचौरा अस्पताल में इलाज के लिए पर्चा बनवाने के लिए लगती है लंबी लाइन।

जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर डॉ. जेएस कुशवाहा कहते हैं, "इमरजेंसी में बुखार के रोगी बहुत गंभीर हालत में आ रहे हैं। कुछ को तुरंत वेंटिलेटर पर शिफ्ट किया जा रहा है। जांच में कोरोना, डेंगू की रिपोर्ट निगेटिव आ रही है। यह सब असामान्य बातें हैं। वायरल फीवर के इस वैरिएंट के बारे में वायरोलॉजी जांच से ही पता चल सकेगा।"

गुत्थी सुलझाने में फंस गई सरकार

उत्तर प्रदेश में तूफानी रफ्तार से फैल रहे बुखार की गुत्थी सुलझाने में योगी सरकार बुरी तरह फंस गई है। सरकारी अस्पतालों के बाहर जुट रही रोगियों की भीड़ इस बात को तस्दीक कर रही है कि अबकी बुखार का प्रकोप बहुत ज्यादा है, जिस पर काबू पाने में स्वास्थ्य महकमा फेल होता नजर आ रहा है।

डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया के मरीजों के आधे-अधूरे आंकड़े तो बताए जा रहे हैं, लेकिन स्क्रब टाइफस और लेप्टो स्पायरोसिस बुखार का कोई आंकड़ा यूपी सरकार के पास नहीं है। हैरानी की बात यह है कि इन बीमारियों के खतरे से ज्यादातर डॉक्टर तक अनजान हैं।

गंभीर हालत में डेंगू का मरीज़

यूपी में मिस्ट्री फीवर से सबसे ज्यादा मौतें फिरोजाबाद में हुई हैं और सिलसिला अभी थमा नहीं है। केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण के निर्देश पर यूपी में दौरा करने आई टीम ने पाया है कि फिरोजाबाद और आगरा समेत कई जिलों में ज्यादातर मौतें डेंगू से हुई हैं। इस बीच नए रूप में स्क्रब टाइफस और लेप्टोस्पायरोसिस ने भी तेजी से दस्तक दी है। यूपी के सभी जिलों में दोनों बीमारियों के कई मामले भी सामने आए हैं।

फिरोजाबाद में डेंगू और वायरल बुखार अब तक 175 लोगों की जान ले चुका है। हालांकि सरकारी मशीनरी इनकी संख्या 62 से ज्यादा नहीं बता रही है।

अतिरिक्त निदेशक (स्वास्थ्य) डॉ एके सिंह कहते हैं, "फिरोजाबाद में अब तक 51 बच्चों और 11 वयस्कों सहित डेंगू से 62 लोगों की मौतें हो चुकी हैं।" फिरोजाबाद मेडिकल कॉलेज की प्राचार्य डॉ संगीता अनेजा के मुताबिक, "डेंगू बुखार के कारण पांच सौ से अधिक बच्चे अस्पताल में भर्ती हैं।"

पीएम नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस में भी स्थिति कम भयावह नहीं है। यहां शिवप्रसाद गुप्त मंडलीय चिकित्सालय में रोजाना तीन सौ से अधिक मरीज बुखार का इलाज कराने आ रहे हैं।

अस्पताल के सीनियर कंसल्टेंट डॉ ओपी तिवारी कहते हैं, "तेज बुखार से तप रहे मरीजों में डेंगू वाले सिर्फ आठ-दस रोगी ही होते हैं। स्क्रब टाइफस और लेप्टोस्पायरोसिस का कोई मरीज अभी तक चिन्हित नहीं हुआ है।"

बनारस में दवा की लाइन में महिलाएं

वाराणसी के जिला मलेरिया अधिकारी डॉ शरद चंद पांडेय बताते हैं, "बनारस में जुलाई से अब तक 50 हजार से अधिक बुखार के रोगियों का इलाज सरकारी अस्पतालों में किया गया, जिनमें डेंगू के रोगियों की संख्या सिर्फ 124 है। यहां डेंगू से किसी की जान नहीं गई।"

जिला मलेरिया अधिकारी के दावों से इतर देखें तो बनारस में बुखार की आंधी कई लोगों की जान ले चुकी है, इनमें चार-पांच लोग फुलवरिया इलाके के हैं। डेंगू से पीड़ित लखरांव (बजरडीहा) के विशाल मौर्य, काजी शहदुल्लाहपुर का शमशुल आफरीन, रामनगर के शहनाज समेत कई लोगों की हालत गंभीर बनी हुई है। बनारस के एक कोचिंग संस्थान में अध्ययन करने वाला भभुआ (बिहार) का स्टूडेंट आशीष राय (16) पिछले नौ दिनों से जीवन-मौत से जूझ रहा है।

क्यों न फैले बीमारियां: बारिश के बाद ताल-तलैया में बदल जाता है बनारस का सर सुंदरलाल अस्पताल (ऊपर), बनारस के रास्ते (नीचे)

बुखार से हालात भयावह

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद, आगरा और मथुरा में बुखार के जद मे आने वालों का हाल बुरा है। बहुत से लोग महिलाओं के गहने बेचकर परिजनों का इलाज करा रहे हैं। आगरा के सभी अस्पताल मरीजों से भरे हुए हैं। कोरोना की तरह ही यहां डेंगू भी लोगों को मौत की नींद सुला रहा है।

आगरा के महादेवीनगर में अपने दो छोटे बच्चों-परी (3) और अंशु (2) को खो चुकी रिंकी बघेल के आंसू नहीं थम रहे हैं। उनके तीन अन्य बच्चे शालू (8), राशि (6), और चिराग (7) का आगरा के दो अलग-अलग अस्पतालों में इलाज चल रहा है और वो अपने जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

रिंकी के पति विपिन बघेल कहते हैं, "मेरे दो बच्चों की मौत डेंगू से हुई है, लेकिन मौत का कारण बताने वाली रिपोर्ट उन्हें अभी तक नहीं मिली है।" रिंकी और विपिन, जो पहले ही अपने दो बच्चों को खो चुके हैं, उम्मीद कर रहे हैं कि उनके तीन अन्य बच्चे जीवित घर लौट आएंगे।

फ़िरोज़ाबाद के कौशल्यानगर मोहल्ले की 12 वर्षीया शिवानी की मौत हो चुकी है। यहीं संजय के छह साल के बेटे की भी बुख़ार से मौत हो गई थी। ऐसा शायद ही कोई घर हो जहां कोई बुख़ार से पीड़ित न हो।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में डेंगू बुखार के चलते बहुतों ने अपने बच्चों को खो दिया है। फिरोजाबाद में 'बुखार' से कम से कम 62 लोगों की मौत हो चुकी है, जिनमें ज्यादातर बच्चे हैं। स्थानीय लोगों का दावा है कि वास्तविक मरने वालों की संख्या कहीं अधिक होगी।

मथुरा में बुख़ार से अब तक 16 लोगों की जान जा चुकी है, जिनमें 13 बच्चे शामिल हैं। दस्तावेजों के मुताबिक आगरा में डेंगू के 52 मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें 20 बच्चों की उम्र 15 साल से कम है।

फिरोजाबाद में 'बुखार' से तप रहे कई मरीजों को इलाज के लिए आगरा रेफर किया गया है, जिनमें कुछ मरीज स्क्रब टाइफस और लेप्टोस्पायरोसिस बुखार के भी हैं।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बुख़ार से सिर्फ़ फ़िरोज़ाबाद और आगरा ही नहीं, मेरठ, गाजियाबाद, मथुरा, मैनपुरी, सहारनपुर, एटा, इटावा के अलावा कानपुर, फ़र्रुख़ाबाद में में भी बुखार तेज़ी से फैल रहा है। ऐसे मरीजों की संख्या बहुत अधिक है, जिनके ब्लड प्लेटलेट्स काउंट में गिरावट देखी जा रही है।

फ़िरोज़ाबाद में ज़िलाधिकारी चंद्रविजय सिंह ने लापरवाही बरतने के आरोप में तीन डॉक्टरों को निलंबित कर दिया है। वहीं, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद यानी आईसीएमआर का 11 सदस्यीय दल जानलेवा बुखार के कारणों की जांच-पड़ताल कर लौट चुका है।

जांच टीम के मुखिया संयुक्त निदेशक डॉक्टर अवधेश यादव कहते हैं, "यह बात लगभग स्पष्ट हो गई है कि बुख़ार की वजह डेंगू ही है। इसे रहस्यमयी बुख़ार कतई नहीं कहा जाना चाहिए। बुखार के ज़्यादातर मामले शहरी क्षेत्र की मलिन बस्तियों से सामने आ रहे थे, लेकिन अब ग्रामीण क्षेत्रों से भी आने लगे हैं। कुछ मरीजों में लेप्टोस्पायरोसिस और स्क्रब टाइफ़स बुखार की पुष्टि जरूर हुई है।"

सरकारी योजनाओं पर सवाल

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के जाने-माने चिकित्सक डॉ. ओम शंकर कहते हैं, "यूपी में बड़ी संख्या में बच्चों की जानें अगर सिर्फ डेंगू की वजह से गई हैं तो सरकार की मच्छर भगाने की योजना पर बड़ा सवाल खड़ा होगा। डेंगू बुख़ार सिर्फ़ बच्चों को ही नहीं, बल्कि बड़ों को भी प्रभावित कर रहा है। पूर्वांचल के इलाक़ों में होने वाली जापानी इंसेफ़ेलाइटिस या एक्यूट इंसेफ़ेलाइटिस सिंड्रोम जैसी बीमारियों का पुख्ता ब्योरा जुटाने की जरूरत है। आंकड़ों को छिपाने के बजाए सरकार खुद बताए कि डेंगू के अलावा लेप्टो स्पायरोसिस और स्क्रब टाइफ़स बुखार से कितने लोगों की जानें गईं और इन पर काबू पाने के लिए क्या इंतजाम किए गए हैं? " 

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिन जिलों में बुखार से ज्यादा मौतें हो रही हैं उनमें सिर्फ डेंगू, मलेरिया अथवा टाइफाइड ही नहीं है। मथुरा में बैक्टीरियाजनित बीमारी स्क्रब टाइफ़स के कई मामले सामने आए हैं। अकेले मेरठ मंडल में स्क्रब टाइफस के 40 और गाजियाबाद में 29 रोगियों की शिनाख्त हुई है।

मेरठ मंडल के अपर निदेशक (स्वास्थ्य) डॉ. राजकुमार कहते हैं, "गाजियाबाद और मेरठ ही नहीं, हापुड़ में दो,  गौतमबुद्धनगर में तीन और बागपत में स्क्रब टाइफस का एक मामला सामने आया है। एक अन्य केस बुलंदशहर का है। बुखार जैसी इस बीमारी से ज्यादा घबराने की जरूरत नहीं है।"

जानलेवा स्क्रब टाइफस के लक्षण ?

स्क्रब टाइफस के रोगियों को तेज बुखार (102-103 डिग्री फारेनहाइट), होता है। सिरदर्द, खांसी, मांसपेशियों में दर्द और शरीर में कमजोरी आने लगती है। आमतौर पर 40-50 फीसदी मरीजों में कीड़े के काटने का निशान दिखता है। यह निशान गोल और ब्लैक मार्क होता है।

टाइफस में मरीज के जोड़ों में दर्द होता है। बुखार के साथ शरीर पर निशान पड़ जाते हैं। बीमारी बढ़ने पर संक्रमित मरीज को भ्रम से लेकर कोमा तक की समस्या हो सकती है।

सीडीसी के अनुसार, गंभीर रूप से बीमार मरीजों में ऑर्गन फेलियर और ब्लीडिंग हो सकती है, जो घातक साबित हो सकती है। बरसात के मौसम में होने वाली इस बीमारी से पीड़ित मरीज सात-आठ दिनों में ठीक हो जाते हैं।

यूएस नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के अनुसार, "ग्रामीण और शहरी इलाकों में पाई जाने वाली झाड़ियों और छोटे पौधों में यह बैक्टीरिया पाया जाता है। जिसकी वजह से इस बीमारी का नाम 'स्क्रब' पड़ा है। वहीं, 'टाइफस' एक ग्रीक शब्द है, जिसका मतलब 'बेहोशी के साथ बुखार'  अथवा धूम्रपान होता है। दुनियाभर में 100 करोड़ से ज्यादा लोगों पर स्क्रब टाइफस का खतरा है और हर साल करीब 10 लाख मामले सामने आते हैं।"

सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) के मुताबिक, "स्क्रब टाइफस ओरिएंटिया त्सुत्सुगामुशी नामक बैक्टीरिया के कारण होने वाली गंभीर बीमारी है। स्क्रब टाइफस संक्रमित चिगर्स (लार्वा माइट्स) के काटने से इंसानों में फैलता है। इस रोग को बुश टाइफस के नाम से भी जाना जाता है। दक्षिण पूर्व एशिया, इंडोनेशिया, चीन, जापान, भारत और उत्तरी ऑस्ट्रेलिया के ग्रामीण इलाकों में इस बीमारी के ज्यादा मामले देखे जाते रहे हैं। जिन स्थानों में यह संक्रमण हो वहां रहने वाले या वहां की यात्रा करने वाले लोगों में खतरा हो सकता है। यदि समय पर इस रोग का इलाज न किया जाए तो यह जानलेवा भी हो सकता है।"

कीट, गिलहरी, चूहे से फैलती है बीमारी

स्क्रब टाइफस मुख्यरूप से माइट्स (घुन जैसे छोटे कीट) के काटने के कारण होने वाली बीमारी है। ओरिएंटिया त्सुत्सुगामुशी बैक्टीरिया के चलते बुखार आता है। स्क्रब टाइफस घुन जैसे छोटे कीट के अलावा गिलहरी और चूहे के काटने से फैलता है। समय पर इलाज न मिलने पर यह बीमारी बढ़ सकती है। पशुओं के मल-मूत्र और खराब भोज्य पदार्थों में लगे कीटों के कारण भी यह बीमारी तेजी से फैल सकती है। समय पर इसका उपचार न हो पाने पर संक्रमितों की मौत भी हो सकती है।

मेरठ के मंडलीय सर्विलांस अधिकारी डॉ अशोक तालियान के मुताबिक, "मेरठ में एक महिला ने स्क्रब टाइफस के लक्षण मिलने पर गाजियाबाद में इसकी जांच कराई तो बीमारी की मौजूदगी का पता चला।"

नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के अनुसार, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान दुनिया के कुछ हिस्सों में स्क्रब टाइफस ने महामारी का रूप ले लिया था। इस दौरान सुदूर पूर्व के सैनिकों के बीच स्क्रब टाइफस भयानक बीमारी के रूप में उभरा और भारत के असम व पश्चिम बंगाल में महामारी के रूप में फैल गया। धीरे-धीरे, यह बीमारी भारत के कई हिस्सों में फैल गई। इस बीमारी का जन्म फारस की खाड़ी, उत्तरी जापान और उत्तरी ऑस्ट्रेलिया के बीच एक काल्पनिक त्सुत्सुगामुशी त्रिकोण में हुआ था। विशेषज्ञों के मुताबिक यह बीमारी करीब 13 मिलियन वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैली हुई है। पूर्व में जापान, चीन, फिलीपींस, दक्षिण में ऑस्ट्रेलिया और पश्चिम में भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के ग्रामीण इलाकों तक इसका प्रभाव क्षेत्र है।

कैसे होती है टाइफस की पहचान ?

सीडीसी के अनुसार, स्क्रब टाइफस के लक्षण कई अन्य बीमारियों की तरह ही होते हैं, जिसकी वजह से इसकी पहचान मुश्किल हो जाती है। बैक्टीरिया की मौजूदगी का पता लगाने के लिए खून के साथ अन्य जांचें की जाती हैं। वहीं, गंभीर मामलों में मरीज को अस्पताल में भर्ती करना पड़ सकता है। सामान्य मामलों में बीमारी के लक्षण बिना इलाज के ही दो हफ्तों में गायब हो जाते हैं।

स्क्रब टाइफस से संक्रमित मरीज के इलाज में सामान्य तौर पर एंटीबायोटिक डॉक्सीसाइक्लिन दी जाती हैं। सीडीसी के अनुसार, डॉक्सीसाइक्लिन का इस्तेमाल किसी भी उम्र के व्यक्ति पर किया जा सकता है। लक्षणों के सामने आने के तुरंत बाद दिए जाने पर एंटीबायोटिक्स सबसे प्रभावी होते हैं। शुरूआत में ही डॉक्सीसाइक्लिन से इलाज कराने वाले मरीज आमतौर पर जल्दी ठीक हो जाते हैं।

हेल्थ एजेंसियों और विशेषज्ञों का मानना है कि जहां चिगर्स के पाए जाने की संभावना हो, लोगों को ऐसी झाड़ियों और छोटे पौधों वाली जगह पर जाने से बचना चाहिए। ऐसी जगहों पर बैक्टीरिया जनित इस बीमारी से संक्रमित कीट आपको काट सकते हैं। अगर आप बच्चों के साथ हैं, तो उन्हें ऐसे कपड़े पहनाएं, जो उनके हाथ-पैरों को पूरी तरह से ढंकें। छोटे बच्चों के पालने आदि को मच्छरदानी से ढककर रखें। बच्चों के चेहरे पर कीड़े भगाने वाली क्रीम लगाएं।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य पोर्टल के अनुसार, "उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में स्क्रब टाइफस फैल चुका है। इस बीमारी का प्रकोप जम्मू से लेकर नागालैंड तक, उप-हिमालयी बेल्ट के इलाकों में भी है। राजस्थान से भी इसके कई मामले सामने आए हैं। हिमाचल प्रदेश, सिक्किम और पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में स्क्रब टाइफस फैलने की खबरें आ रही हैं।" 

क्या है लेप्टो स्पायरोसिस?

स्क्रब टाइफस का जुडवां भाई है लेप्टो स्पायरोसिस। यह बीमारी भी बैक्टीरिया से फैलती है। जीन्स से संबंधित रोगजनक सर्पोकेट्स लेप्टोस्पाइरा जानवरों और मनुष्यों में संक्रामक बीमारी का कारण बनती है, जिसे लेप्टो स्पायरोसिस कहा जाता है। हल्के लेप्टो स्पायरोसिस के इलाज के लिए एंटीबायोटिक थेरेपी जरूरी नहीं होती। अगर ठंड के साथ अचानक बुखार आता है और सिर व  मांसपेशियों में तेज दर्द उठता है तो यह लेप्टो स्पाइरोसिस हो सकता है।

यूपी के फिरोजाबाद के कई मरीजों में लेप्टो स्पाइरोसिस बुखार की पुष्टि होने के बाद स्वास्थ्य महकमें की नींद उड़ गई है। जिस बीमारी को डॉक्टर मिस्ट्री फिवर बता रहे थे, वह बीमारी यही है।

लेप्टो स्पाइरोसिस भी एक बैक्टीरियल संक्रमण है जो जानवरों के मूत्र से फैलता है। खासकर कुत्तों, चूहों, खेत में रहने वाले जानवरों से यह बीमारी फैलती है। तेज बुखार, चकत्ते, सिरदर्द, दस्त, उल्टी, आंखें लाल होना, पीलिया जैसी समस्याएं मरीज को हो सकती हैं। बीमारी का पता लगाने के लिए सीरम टेस्ट, लिवर व किडनी फंक्शन टेस्ट कराए जाते हैं।

मथुरा में लेप्‍टो स्‍पाइरोसिस के 48 मरीज

डीजी हेल्‍थ डॉ वेदव्रत सिंह ने आशंका जताई है कि फिरोजाबाद, मथुरा समेत कई जिलों में फैला बुखार डेंगू की जगह लेप्‍टो स्‍पाइरोसिस हो सकता है। वह कहते हैं, "मथुरा में 48 मरीजों में लेप्‍टो स्‍पाइरोसिस के लक्षण मिले हैं। इसके लक्षण फ्लू सरीखे ही होते हैं। यह संक्रमित कुत्तों, चूहों और फार्म एनिमल्स के मूत्र से फैलती है।"

लखनऊ के केयर इंस्‍टिट्यूट ऑफ लाइफ साइंसेज में काय रोग विशेषज्ञ डॉ. सीमा यादव  कहती हैं, "लेप्टो स्पायरोसिस एक तरह का बैक्‍टीरियल इंफेक्‍शन है जो कुत्‍ते, चूहे या फॉर्म एन‍मिल्‍स से होती है। बारिश के दिनों में लेप्टो स्पायरोसिस की आशंका काफी बढ़ जाती है। पिछले कुछ सालों में लेप्टो स्पायरोसिस भारत के गुजरात, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक और अंडमान द्वीप जैसे तटीय हिस्सों में देखने को मिला है। इस बीमारी ने उत्तर प्रदेश में मजबूती के साथ दस्तक पहली बार दी है। लेप्टो स्पायरोसिस के करीबन पांच हजार मामले हर साल आते हैं, जिनमें मरने वालों का आंकड़ा 10-15 फीसदी है।"

दरअसल, लेप्टो स्पायरोसिस, लेप्टोस्पायर नामक जीवाणुओं से पैदा होता है जो संक्रमित जानवरों के मूत्र में पाया जाता है और मनुष्य पहुंच जाता है। आमतौर पर  यह चूहे, गिलहरी, भैंस, घोड़े, भेड़, बकरी, सूअर और कुत्ते से भी फैलता है। इसकी उपचार प्रक्रिया में डॉयलिसिस और मजबूत एंटीबायोटिक का इस्तेमाल प्रमुखता से शामिल है। गुर्दा, यकृत या दिल की भागीदारी के मामलों में विशेषज्ञों की देखभाल और उपचार जरूरी है।

लेप्टो स्पायरोसिस का खतरा उन लोगों को ज्यादा है जो खेतों में काम करते हैं या किसान हैं। प्‍लंबर, खदानों में काम करने वाले लोग, मछुआरे, सीवर वर्कर्स भी इसकी जद में आ सकते हैं। जो लोग जंगल जैसे इलाके के आसपास रहते हैं उन्‍हें भी लेप्टो स्पायरोसिस बुखार हो सकता है। घर में पेड़-पौधों की संख्‍या ज्‍यादा होने पर भी ये इंफेक्‍शन हो सकता है। जिनके शरीर में घाव, चोट या खरोंच है उन्‍हें यह बैक्‍टीरिया जल्‍द बीमार कर सकता है।

बहुत खतरनाक है यह बीमारी

लेप्टो स्पायरोसिस से जो व्‍यक्‍त‍ि संक्रमित होता है उसकी जांच करवाने पर खून और रीढ़ के हड्डी के द्रव में बैक्‍टीरिया नजर आता है, जो किडनी में चले जाते हैं। मरीज का ब्‍लड टेस्‍ट, क‍डनी, लिवर फंक्‍शन और सीरम टेस्‍ट से इस बीमारी की पुष्टि होती है। एंटीबायोटिक दवाओं से इनका इलाज किया जा सकता है। गंभीर मरीजों को नसों के जरिए दवाएं दी जा सकती हैं।

वाराणसी में बीएचयू के जाने-माने चिकित्साविद डॉ. वीएन मिश्र कहते हैं, "लेप्टो स्पायरोसिस के लक्षण नजर आने पर तुरंत इलाज करवाएं नहीं तो स्थित गंभीर होने पर ब्लीडिंग, पीलि‍या और किडनी से जुड़े रोग हो सकते हैं। हल्दी वाले दूध, तुलसी, दालचीनी, काढ़ा से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाकर इससे बचा जा सकता है। बारिश के दिनों में पानी में भीगने से बचें और प्रदूषित जल से दूर रहें। अगर आपके घर में चूहे हैं तो दवा डालकर उन्‍हें उस जगह से हटाएं नहीं तो आपको कई तरह से इंफेक्‍शन हो सकता है। चूहे आपके खाने को भी दूषित कर सकते हैं, इसलिए घर को साफ रखना चाहिए।" 

डॉ. मिश्र सलाह देते हैं, " अगर आप बाहर जा रहे हैं तो इस बात का खयाल रखें कि खुले में बिक रहा जूस अथवा खाने-पीने की चीजें न खरीदें। पब्‍लिक टॉयलेट इस्‍तेमाल करते समय ख्याल रखें कि वो साफ हों। गंदे टॉयलेट से बैक्‍टीरियल इंफेक्‍शन हो सकता है। पब्‍ल‍िक टॉयलेट से इसका संक्रमण चार गुना तेजी से फैलता है।" 

डेंगू का नया वैरिएंट 'डी2'

अगस्त के मध्य में जब फिरोजाबाद में बुखार से बच्चों की मौत होने लगी, तब मौतों को 'मिस्ट्री फीवर' के लिए जिम्मेदार ठहराया गया। हालांकि, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने इस बीमारी की जांच के बाद खुलासा किया कि यूपी में अधिकांश मौतें डेंगू के 'डी2' प्रकार के कारण हुईं हैं।

आईसीएमआर के महानिदेशक बलराम भार्गव ने हाल में एक मीडिया ब्रीफिंग में बताया, "फिरोजाबाद, आगरा और मथुरा में ज्यादातर मौतें की वजह डेंगू वायरस का डी2 स्ट्रेन था। डेंगू पैदा करने के लिए जिम्मेदार वायरस को डेंगू वायरस कहा जाता है और इसे DENV के रूप में दर्शाया जाता है। चार DENV सीरोटाइप हैं और इनमें से प्रत्येक द्वारा एक संक्रमण उस विशेष सीरोटाइप के खिलाफ जीवन भर प्रतिरक्षा सुनिश्चित करता है। इसका मतलब यह भी है कि वायरस से चार बार संक्रमित होना संभव है। चार सीरोटाइप (जिसे वेरिएंट या स्ट्रेन के रूप में भी जाना जाता है) हैं: DENV 1, DENV 2, DENV 3 और DENV 4। इनमें से DENV 2 को सबसे घातक माना जाता है।"

बुखार से कैसे निपट रहा यूपी

उत्तर प्रदेश में बुखार के हजारों मरीज हैं। इन मरीजों का सही ब्योरा स्वास्थ्य महकमे के पास नहीं है। इतना जरूर है कि सरकारी अस्पतालों के बाहर लगने वाली लाइनों में ज्यादातर वो लोग होते हैं जो किसिम-किसिम के बुखार से तप रहे होते हैं। लाख प्रयास के बावजूद बुखारजनित बीमारियों पर अंकुश नहीं लगाया जा सका है।

यूपी में तेजी से फैल रहे बुखार को लेकर कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने योगी सरकार पर निशाना साधा और आरोप लगाया कि स्वास्थ्य व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। प्रियंका ने ट्विटर पर एक खबर साझा करते हुए लिखा है, "यूपी में फिरोजाबाद, मथुरा, आगरा व अन्य कई जगहों पर बुखार से बड़ी संख्या में बच्चों की मौत की खबर बहुत चिंताजनक है। उत्तर प्रदेश सरकार ने स्वास्थ्य व्यवस्था को मजबूत करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए हैं।"

समाजवादी पार्टी के मुखिया पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने आरोप लगाया है कि बड़ी संख्या में बच्‍चे जानलेवा फीवर व डेंगू से दम तोड़ रहे हैं और योगी आदित्‍यनाथ झूठे दावे करते फिर रहे हैं कि सब कुछ ठीक है। यूपी के अस्पतालों का हाल देखिए। तमाम बच्चे और आमजन बुखार से दम तोड़ रहे हैं। यूपी में क्या यही है इलाज की 'नंबर-वन सुविधा?

पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले पूर्व मंत्री अजय राय ने पूछा है, "यूपी सरकार ने दूसरी लहर में अपने विनाशकारी कोविड प्रबंधन के भयावह परिणामों से आखिर कोई सबक क्यों नहीं सीखा? डेंगू से जिन लोगों की मौतें हो रही हैं उसके लिए आखिर जिम्मेदार कौन है-पब्लिक का नसीब या फिर हर मोर्चे पर फेल हो चुकी योगी सरकार? "

(बनारस स्थित विजय विनीत वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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