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EXCLUSIVE : बनारस के इकलौते अंध विद्यालय की कक्षाएं बंद करने के पीछे आख़िर क्या है असली कहानी?

दृष्टिबाधित बच्चों को यह समझ में नहीं आ रहा है कि भाजपा सरकार की अनदेखी के चलते बनारस के श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार अंध विद्यालय को बंद किया जा रहा है अथवा इसके ट्रस्टी सुनियोजित ढंग से हित साधने के लिए अपनी मजूबरियों का हवाला दे रहे हैं?
EXCLUSIVE : बनारस के इकलौते अंध विद्यालय की कक्षाएं बंद करने के पीछे आख़िर क्या है असली कहानी?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 दिसंबर 2015 को अपने रेडियो संबोधन ‘मन की बात’ में कहा था कि शारीरिक रूप से अशक्त लोगों के पास एक ‘दिव्य क्षमता’ है और उनके लिए ‘विकलांग’ शब्द की जगह ‘दिव्यांग’ शब्द का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। इस अभिव्यक्ति को गढ़ने वाले मोदी के गढ़ बनारस में ही दिव्यांगों की दुर्गति हो रही है और इनकी रचनाशीलता भ्रम पैदा कर रही है। बनारस में दृष्टिबाधित छात्रों के लिए एक स्कूल है- श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार अंध विद्यालय। प्रबंधन ने यह कहकर विद्यालय की 9वीं से 12वीं क्लास तक की कक्षाएं बंद कर दीं कि ये बच्चे बहुत खुराफाती और उदंड हैं। दूसरी वजह आर्थिक तंगी बताई गई। यह भी तर्क दिया जा रहा है कि स्कूल का ट्रस्ट अब उसका खर्च वहन नहीं कर पा रहा है।

श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार अंध विद्यालय की 9वीं से 12वीं तक की कक्षाओं को बंद करने के लिए ट्रस्ट ने जो कारण गिनाए हैं वह किसी के गले से नीचे नहीं उतर रहे हैं। देश का यह पहला विद्यालय है जिसके संचालकों ने बच्चों पर खुलेआम उदंडता का आरोप लगाते हुए कक्षाओं को बंद किया है। साथ ही स्टूडेंट्स के घर खत भेजकर बंदी की इत्तिला भी दी है।

दृष्टिबाधित बच्चों को यह समझ में नहीं आ रहा है कि भाजपा सरकार की अनदेखी के चलते इस विद्यालय को बंद किया गया है अथवा इसके ट्रस्टी सुनियोजित योजना के तहत अपना हित साधने के लिए मजूबरियों का हवाला दे रहे हैं? 

समाजसेवा का दम भरने वाले शहर के उद्यमी ट्रस्टियों ने कक्षाओं को बंद करने के लिए जो वजह बताई है, उससे कोई इत्तेफाक नहीं रख रहा है। इस बंदी के खिलाफ 4 लोगों ने अक्टूबर 2020 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर कर रखी है, जिस पर फैसला आना बाकी है। पेटिशन दायर करने वालों में युवराज सिंह, अंगद कुमार गुप्ता, गौतम भारती, नीरज पासवान अंध विद्यालय के छात्र हैं।

श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार अंध विद्यालय को बंद किए जाने से शहर के प्रबुद्ध नागरिक और समाजसेवी बेहद गुस्से में है। इसे फिर से चालू करने के लिए आंदोलन-प्रदर्शन शुरू हो गया है। विपक्षी दलों को अब बड़ा मुद्दा मिल गया है। जन-सरोकारों के लिए काम करने वाले शिक्षाविद अफलातून कहते हैं, “ट्रस्ट की जमीन कीमती है। इसके मेंबरों की नीयत खराब हो गई है। बड़ा सवाल यह है कि अगर ट्रस्ट के मेंबर विद्यालय चला पाने में सक्षम नहीं हैं, तो उसका हिस्सा क्यों बने रहना चाहते हैं? पिछले कलेक्टर ने ट्रस्टियों से साफ-साफ कह दिया था कि अगर वे विद्यालय नहीं चला सकते तो ट्रस्ट से इस्तीफा दे दें। तब सभी सदस्य घुटनों के बल पर आ गए थे। वादा किया था कि हम ही चलाएंगे विद्यालय। पता कर लीजिए, न जाने कितने बेईमान लोग हैं इस ट्रस्ट में। अभी 9वीं से 12वीं तक विद्यालय बंद किया है और फिर धीरे-धीरे स्कूल ही बंद कर देंगे।”

क्यों खोला गया था अंध विद्यालय?

बनारस के दुर्गाकुंड में श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार स्मृति सेवा ट्रस्ट की स्थापना 26 मार्च, 1972 को हुई थी। मकसद था दृष्टिबाधित विभिन्न व्यवसायों में शिक्षित-प्रशिक्षत कर नेत्रहीनों को आत्मनिर्भर बनाना। संगीत, हस्तशिल्प आदि में निर्देशों के माध्यम से अंधों को पूर्णता के जीवन की ओर ले जाना। संस्था को नेत्रहीनों के लिए विशेष प्रशिक्षण का देश में अग्रणी केंद्र बनाना। नेत्रहीन छात्रों के रहने और शिक्षा के संबंध में पर्याप्त व्यवस्था करना। बिना किसी साधन के मेधावी छात्रों को छात्रवृत्ति पुरस्कार के माध्यम से सहायता करना और देश के लिए आवश्यक पुस्तकों के अलावा अध्ययन सामग्री की ब्रेल लिपि में व्यवस्था करना और खरीदना।

बीएचयू से करीब दो किमी के फासले पर है यह विद्यालय। साल 1984 में इसे जूनियर हाई स्कूल की मान्यता मिली और फिर साल 1993 में इंटरमीडिएट की। विद्यालय में 250 दृष्टिबाधित छात्रों के आवासीय शिक्षण की व्यवस्था है।

पिछले साल तक यहां करीब 160 छात्र पढ़ते थे।  इनके लिए कक्षाएं संचालित करने के लिए यहां 12 कमरे हैं। दो अन्य कमरे गैर-शैक्षणिक गतिविधियों के लिए हैं। प्रधानाध्यापक और शिक्षकों के लिए अलग कमरा है। स्कूल की बाउंड्री पक्की है। बिजली, पेयजल, खेल के मैदान के अलावा 18 लड़कों और छह लड़कियों के लिए शौचालय हैं। विद्यालय के पुस्तकालय में करीब 8600 पुस्तकें हैं। शिक्षण-प्रशिक्षण के लिए कंप्यूटर एडेड लर्निंग लैब है।

ट्रस्टी और सरकार दोनों मिलकर इस विद्यालय को संचालित करते हैं। शहर के उद्यमी कृष्ण कुमार जलान की अध्यक्षता वाली कमेटी में 18 सदस्य हैं, जिन पर विद्यालय के प्रबंधन का दायित्व है। विद्यालय को ग्रांट राज्य सरकार के माध्यम से केंद्र सरकार देती है।

विद्यालय में बनारस और पूर्वांचल ही नहीं, बल्कि कई राज्यों के छात्र भी पढ़ते हैं। विद्यालय के सभी ट्रस्टी शहर के बड़े व्यापारी हैं। साझा संस्कृति मंच के प्रतिनिधि बल्लभाचार्य पांडेय कहते हैं, “ ट्रस्टी ही इस विद्यालय के दुश्मन बन गए हैं। संभवतः वे इस जमीन का इस्तेमाल अपने व्यवसाय के लिए करना चाहते हैं। बजट की कमी और सरकार से अनुदान न मिलने की बात कह कर उन्होंने 9 से 12 तक की कक्षाएं बंद कर दी। प्रदेश और देश में दृष्टिबाधित छात्रों के लिए कोई भी ऐसा अंध विद्यालय नहीं है। दुर्गाकुंड स्थित हनुमान प्रसाद पोद्दार अंध विद्यालय की तकरीबन सौ करोड़ की संपत्ति का व्यावसायिक उपयोग कर मुनाफे की लालसा के चलते ही इस अंध विद्यालय को हमेशा के लिए बंद करने की योजना है।”

कहां ठौर तलाशेंगे दृष्टिबाधित बच्चे?

श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार अंध विद्यालय को सरकार की तरफ से 75 फीसदी अनुदान मिलता है। साल 2018-2019 में 50 फीसदी अनुदान मिला था। पिछले साल सरकारी पैसा नहीं आया। ट्रस्टियों ने ठीकरा भाजपा सरकार के माथे मढ़ दिया कि साल 2019-2020 में पैसा नहीं आया। दरअसल, कुछ ट्रस्टियों की नीयत में गड़बड़ी तभी से आनी शुरू हो गई थी जब यूपी में भाजपा सत्ता में आई। ट्रस्टियों ने साल 2017 के बाद वेबसाइट पर संस्था की आय का ब्योरा ही नहीं डाला। वेबसाइट पर जो कुछ दिख रहा है उसके मुताबिक साल 2017 में संस्था की कमाई 60 लाख से ज्यादा थी। यह ट्रस्ट दृष्टिबाधित छात्रों को शिक्षित-प्रशिक्षित करने के नाम पर सिर्फ सरकार से अनुदान ही नहीं, आम जनता से डोनेशन भी लेता रहा है। इन छात्रों के हितों के लिए आंदोलनरत लोक एकता पार्टी के मुखिया जगन्नाथ कुशवाहा कहते हैं, “हमें ये नहीं समझ आता कि ट्रस्ट खुद संसाधन जुटाती है अथवा सरकार उसकी मदद करती है। कोरोना के दौर में दृष्टिबाधित छात्रों के साथ जो व्यवहार किया जा रहा है और विद्यालय को बंद करने के लिए जो तर्क पेश किया जा रहा है वह किसी के समझ से बाहर की चीज है। दृष्टिबाधित छात्र बेहद परेशान हैं और उनके पास कोई रास्ता भी नहीं है। सीधी सी बात यह है कि ट्रस्टियों की नीयत में खोट है। ट्रस्टी अगर विद्यालय के लिए संसाधन जुटा पाने में असमर्थ हैं तो दृष्टिबाधित बच्चों को भगाने से पहले खुद उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए।”

मानवतावाद के प्रहरी थे पोद्दार

श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार अंध विद्यालय की स्थापना हनुमान प्रसाद जी पोद्दार (भाई जी) के नाम पर की गई थी। ये ऐसे शख्स थे जिन्होंने अपना जीवन समाजसेवा और उत्कृष्ट मानवतावाद के लिए समर्पित कर दिया था। हनुमान प्रसाद पोद्दार का जन्म शिलांग में 17 सितम्बर, 1892 को हुआ था। देश की आजादी के लिए वे जेल गए और साल 1914 में महामना मदन मोहन मालवीय के संपर्क में आए तो बनारस में बीएचयू की स्थापना के लिए देश भर से धन जुटाया। गोरखपुर में गीता प्रेस की स्थापना की, जिससे लोगों को कम मूल्य पर धार्मिक पुस्तकें मिलती रही हैं। निःस्वार्थ भाव से जनसेवा करने वाले भाई जी के मकसद को पूरा करने के लिए उनके अनुयायियों ने दुर्गाकुंड मंदिर के सामने दृष्टिबाधित बच्चों के लिए विद्यालय खोला। पवित्र उद्देश्य यह था कि मंदिर में आने वाले लोग दृष्टिबाधित बच्चों के हितैषी बने रहेंगे और उनसे जो बन पड़ेगा, सहायता भी देंगे।

वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप कुमार कहते हैं, “कालांतर में बनारस शहर के कई धन्ना सेठ संस्था के ट्रस्टी बन गए। जो लोग संस्था में हैं, यह ट्रस्ट उनकी निजी जागीर नहीं है। यह कहकर कक्षाओं को बंद कर देना कि दृष्टिबाधित बच्चे उदंड हैं, इस बात पर भला कौन यकीन करेगा। शहर में तमाम विद्यालय हैं जहां इंटर तक पढ़ाई होती है, लेकिन उदंडता को आधार बनाकर कहीं कक्षाएं बंद नहीं की गईं। लगता है कि ट्रस्ट में कुछ विवादास्पद और लालची प्रवृत्ति के लोग घुस गए हैं।”

अभिलेखों के मुताबिक, श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार अंध विद्यालय ट्रस्ट में कृष्ण कुमार जालान-अध्यक्ष, जय प्रकाश-उपसभापति, जगदीश झुनझुनवाला-उपाध्यक्ष, श्याम सुंदर प्रसाद-मंत्री, अनुज कुमार डिडवानिया-सहायक सचिव, नंदकिशोर-कोषाध्यक्ष के अलावा गोवर्धनलाल झावर, अशोक कुमार अग्रवाल, कृष्ण कुमार खेमका, मूलराज शर्मा, शिवकुमार कोठारी, रे अश्वनी कुमार, आशीष अग्रवाल, राकेश गोयल, श्वेता कनोडिया, विनीत अग्रवाल, रोशन कुमार अग्रवाल और डॉ. धर्मेंद्र कुमार सिंह सदस्य हैं।

दरअसल, बनारस के लोगों को जिन ट्रस्टियों की नीयत या नीतियों पर शंका-शुबहा या गुस्सा है उनमें हैं कृष्ण कुमार जालान। साझा संस्कृति मंच से जुड़ीं  जागृति राही ऐलानिया तौर पर कहती हैं, “किस पर यकीन करें? सरकार पर या फिर ट्रस्ट के मुखिया कृष्ण कुमार जालान पर। जालान बंधुओं का खेल तो समूचा बनारस जानता है। आरोप है कि कारमाइकल लाइब्रेरी के कर्ताधर्ता बने तो उस पर कब्जा करके कपड़े की दुकान खोल ली। रविंद्रपुरी में साहित्यकार रामचंद्र शुक्ल के पुश्तैनी मकान पर इनकी नजर पड़ी तो वहां अपनी डेयरी खोल लिया। गोसेवा करने रामेश्वर पहुंचे तो हीरमपुर और रामेश्वर में ग्राम सभाओं की करीब 90 बीघे जमीन हथिया ली। क्या यही समाजसेवा है? जिन ट्रस्टियों और उनके कुनबे पर बेईमानी के ढेरों आरोप चस्पा होते रहे हैं, बनारस के लोग आखिर उन पर कैसे यकीन कर लेंगे कि जो बोल रहे हैं, वो सच है। दृष्टिबाधित छात्रों के लिए पूर्वांचल की इकलौती संस्था को हथियाने का हथकंडा है। हमें तो यही लगता है कि बनारस के चंद पूंजीपति मिलकर संस्था की संपत्ति हड़प लेना चाहते हैं। तभी तो दृष्टिबाधित बच्चों पर आरोप लगाकर इन्हें बाहर का रास्ता दिखाया गया है। कोई यह तो बताए कि देश में कौन सा ऐसा स्कूल रहा होगा जिसे बंद करने से पहले बेहद फूहड़ और भौड़ा तर्क दिया गया हो कि बच्चे उदंडता करते हैं, इसलिए बड़ी कक्षाएं बंद की गईं हैं।”

समाजसेवा की आड़ में हथिया ली ज़मीन!

जालान के बारे में जागृति राही की तरह अन्य लोग भी बातें करते हैं। आरोप यह भी है कि श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार अंध विद्यालय ट्रस्ट के मुखिया कृष्ण कुमार जालान के कुनबे के लोगों ने ही जनसेवा की आड़ में बनारस के रामेश्वर में 65 बीघा और हीरमपुर में 32 बीघे जमीन पर कब्जा कर रखा है। तत्कालीन डीएम प्रांजल यादव ने इनका फर्जी नामांतरण रद्द करा दिया था, लेकिन भाजपा सरकार आई तो पहुंच का फायदा उठाकर पुनः काबिज हो गए। हीरमपुर के पूर्व प्रधान विपिन यादव उर्फ बल्ली यादव ने इस बाबत कोर्ट में याचिका दायर कर रखी है।

बल्ली का आरोप है, “विहिप नेता अशोक सिंघल से लेकर गोविंदाचार्य तक जलान पर मेहरबान रहे हैं। जब भाजपा की सत्ता आती है तभी ये खेल खेलते हैं। तीन गोशालाओं-मधुवन, वृंदावन व रामेश्वर के नाम पर अरबों की संपत्ति के मालिक बने जालान्स के कुनबे के लोग उस समय भी विवादों में घिर गए थे जब 6 जुलाई 2013 को जंसा थाना पुलिस ने सूर्यकांत जालान और उनके गिरोह के सदस्यों को गो-तस्करी में गिरफ्तार किया था। गो-वध निवारण अधिनियम और पशु क्रूरता का आरोप में जेल काटने वाले सूर्यकांत जालान भाजपा की सत्ता आते ही गो-सेवा समिति के सदस्य बन गए। विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता अंबिका चौधरी ने इस मामले को उठाया, तब योगी सरकार को उन्हें गो-सेवा समिति की सदस्यता से हटाना पड़ा।”

“जालान्स, बनारस के मिनी अंबानी”

श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार अंध विद्यालय को बचाने के लिए पूर्व छात्र शशिभूषण सिंह ने विकलांग अधिकार संघर्ष समिति बनाई है। वह कहते हैं, “जालान्स, बनारस के मिनी अंबानी हैं। भाजपा सत्ता में आती है तो इनकी बांछें खिल जाया करती हैं। कथावाचक मोरारी बापू तक इनकी पैरोकारी करते हैं। किस पर यकीन करें, जमीन-जायदाद का अवैध धंधा करने वाले भी इस ट्रस्ट में घुसे हुए हैं। दृष्टिबाधित छात्रों की कक्षाओं को बंद करने की योजना को अंदरखाने में ही रखने की भरसक कोशिश की गई। सच जब सामने आया तो हमने प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, शिक्षा सचिव और सामाजिक न्याय मंत्रालय तक को अपनी व्यथा-कथा लिखकर भेजी, लेकिन हमारे सपने टूट गए। “मन की बात” में दिव्यांगों के प्रति विशेष तौर पर संवेदनशीलता दिखाने वाले बनारस के सांसद पीएम नरेंद्र मोदी ने मौन धारण करके यह जता दिया की सरकार किसके लिए और किसके साथ है?”

बनारस के पास गाजीपुर के रहने वाले 11वीं के दृष्टिबाधित छात्र अंगद कहते हैं, “ साल 2009 से वह अंध विद्यालय में पढ़ रहे हैं। पहले हम उपद्रवी नहीं थे। 8वीं पास करते ही हम उदंड हो गए। प्रबंधन ने हमारे माथे पर उपद्रवी होने का आरोप चस्पा कर दिया।” अंगद ने यह भी बताया, “हमें जून के आखिरी सप्ताह में नोटिस मिला। लिखा था कि स्कूल बंद किया जा रहा है। नीचे तीन स्कूलों के नाम थे, जिसमें एडमिशन कराने की सलाह दी गई थी। कोरोना काल में हम कहां जाएं?  कई छात्रों के घर टीसी भी भेज दी गई। करीब 60 छात्रों का भविष्य अंधेरे में है। हमें कुछ समझ नहीं आ रहा है। विद्यालय की तरफ से जारी किए गए प्रपत्र के अनुसार यहां पिछले 27 साल का दसवीं का रिजल्ट 100 प्रतिशत रहा है।”

आंदोलित दृष्टिबाधित छात्र बनारस के कमिश्नर दीपक अग्रवाल से मिलकर अपनी शिकायत दर्ज करा चुके हैं। 27 जुलाई को वे राजनीतिक दलों के दफ्तरों में अर्जी देंगे और समर्थन मांगेंगे। इससे पहले दुर्गाकुंड पर जलान्स के कपड़े की दुकान पर लोग प्रदर्शन कर चुके हैं। इस दुकान से लेकर अंध विद्यालय तक मानव श्रृंखला भी बना चुके हैं।

शहर के सभी प्रमुख स्वयंसेवी संगठन दृष्टिबाधित छात्रों के साथ हैं। विद्यालय के छात्र रहे कॉमेडियन अभय कुमार शर्मा स्टार प्लस के शो ‘द ग्रेट लॉफ्टर चैलेंज’ के हिस्सा रह चुके हैं। वह कहते हैं, “यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि दृष्टिबाधित छात्रों के जीवन में डार्कनेस की एक और परत चढ़ाई जा रही है। अगर संस्था के पास संसाधन नहीं हैं, तो उसे जुटाने का प्रयास करें, न कि विद्यालय ही बंद कर दें। बच्चों पर उदंडता का आरोप लगाना ठीक नहीं। सरकार और शहर के लोगों को इसके बारे में सोचना होगा।”

मेरी मां ने ख़रीदी थी जमीनः केके जालान

श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार अंध विद्यालय ट्रस्ट के अध्यक्ष कृष्ण कुमार जालान को लगता है कि अराजकतत्व संस्था पर कब्जा करना चाहते हैं। बच्चों को उकसा कर कुछ लोग सुनियोजित ढंग से बवाल करा रहे हैं। जलान कहते हैं, “ट्रस्ट की संपत्ति निजी है। मेरी मां गायत्री देवी बाजोरिया ने अंध विद्यालय खोलने के लिए जमीन खरीदी थी। पिछले तीस सालों से मैं ट्रस्ट से जुड़ा हूं। बड़ी कक्षाओं को जनहित में बंद किया गया है। जिन कक्षाओं को बंद किया गया है उसमें पढ़ने वाले दृष्टिबाधित बच्चे बहुत उत्पाती और अनुशासनहीन हैं। ये छात्र बवाल भी करते हैं और अंधे होने की वजह से सिंपैथी भी बटोर लेते हैं। हमारी गर्दन पर बंदूक रखकर और बंधुआ मजदूर की तरह गाली सुनते हुए हम समाजसेवा कतई नहीं कर सकते। सरकार से जो ग्रांट मिलती है, वह बहुत कम है। ट्रस्ट को हर महीने तीन लाख रुपये अपने पास से खर्च करने पड़ते हैं। कोरोनाकाल में तो सरकार की ओर ग्रांट मिली ही नहीं। बताइए, हम कैसे संस्था की गाड़ी खींच सकते हैं।”

कृष्ण कुमार जालान दावा करते हैं, “अंध विद्यालय के दृष्टिबाधित छात्र इतने उपद्रवी हैं कि उन्होंने दो साल पहले मेरे कपड़ों की दुकान में घुसकर तोड़फोड़ कर दी थी। हम विद्यालय में पहुंचे तो उदंड दृष्टिबाधित छात्रों ने हमें भी बंधक बना लिया। पुलिस आई तो हमें ही दोषी ठहराने लग गई। हम चाहते हैं कि विद्यालय बचा रहे। यह बेबुनियाद भ्रम फैलाया जा रहा है कि विद्यालय को हमने अपनी निजी जागीर बना ली है। हम दशकों से विद्यालय के ट्रस्टी हैं। आंदोलनकारियों की ओर से जितने भी आरोप लगाए जा रहे हैं, सभी झूठे और उदंड दृष्टिबाधित छात्रों और उन्हें उकसाने वालों ने गढ़ा है।”

गर्दन मरोड़ कर नहीं कराई जा सकती सेवा

अंध विद्यालय संचालित करने वाले ट्रस्ट के मंत्री श्याम सुंदर प्रसाद से हमने बात की। उन्होंने बताया कि बनारस में वह बिजली के सामानों का कारोबार करते हैं। पिछले आठ वर्षों से विद्यालय से जुड़े हैं। स्कूल को 9वीं से 12वीं तक बंद करने के कारण के सवाल पर उन्होंने कहा,  “सेवा अपने श्रद्धाभाव से होती है। किसी की गर्दन मरोड़कर नहीं कराई जा सकती है। सरकार हमें सिर्फ 60 फीसदी फंड देती है, लेकिन इतना दौड़ाती है कि हमारे लोग थक जाते हैं। यह कहना गलत और भ्रामक है कि विद्यालय को बंद किया जा रहा है। हम लोग पहले तेरह कक्षाएं चलाते थे। पिछले साल विद्यालय के प्रारूप के थोड़ा छोटा करके नौ कक्षाएं चलाने का निर्णय लिया है। कुछ लोग निहित स्वार्थों के चलते बवाल करा रहे हैं। हम तो विद्यालय को बचाने का प्रयास कर रहे हैं। हम छोटे बच्चों को उदंड बड़े छात्रों से बचाने का प्रयास कर रहे हैं। यहां बड़े बच्चे अनुशासन में नहीं रहते। इसका असर छोटे बच्चों पर पड़ता है। जहां शिक्षा में अनुशासन और गुरुजनों का सम्मान न हो, उसे चलाने चलाने का कोई औचित्य नहीं है।”

वे कहते हैं, “हम सभी लोग अपने कार्य क्षेत्र में व्यस्त हैं। ट्रस्ट के लोग तन-मन-धन से समर्पण करते हैं। हमारा विरोध एनजीओ की दुकान चलाने वाले कर रहे हैं। पिछले सात-आठ सालों से हम पर यह आरोप लगाया जा रहा है। कोई आदमी आए उसे दिखा सकता हूं। बढ़ते खर्चे, घटती आय के चलते भी दिक्कतें खड़ी हुई हैं। संस्था के लिए दिल से काम करने वाले विमुख होने लगे हैं। यह कहना गलत है कि सरकार ने सहायता बंद कर दी है। ग्रांट आती है, लेकिन बहुत देर से। हम जब धन के लिए रिमाइंडर लगाते हैं तब विकलांग विभाग के लोग कमी निकाल देते हैं। कोरोना के चलते पिछले साल से विद्यालय में पढ़ाई बाधित है। ऑनलाइन क्लासेस चलाया जा रहा है। विद्यालय में कुल 123 बच्चे हैं और जो 8वीं पास कर गए हैं, उनका गोरखपुर, लखनऊ, बांदा, मेरठ के आवासीय स्कूलों में दाखिला कराया जा चुका है। बनारस की तरह ही वहां भी भोजन, वस्त्र, आवास सब कुछ निःशुल्क है। पैसों की समस्या पहले से थी, लेकिन करोना के समय से बहुत दिक्कत हो रही है। मसलन, हमें दो लाइब्रेरियन की जरूरत थी, लेकिन सरकार एक का ही पैसा देती है। हम किसी टीचर को कुछ और पैसे देकर लाइब्रेरी की जिम्मेदारी देते हैं। उद्दंड बच्चों पर काबू पाना मुश्किल हो जाता है। इसका समाज में गलत असर जाता है।”

किसी की बपौती नहीं अंध विद्यालय

श्याम सुंदर यह भी कहते हैं कि प्रबंधक के रूप में उन्होंने करीब आठ साल तक सेवाएं दीं। यह ट्रस्ट किसी की बपौती नहीं है। कुछ लोगों ने गलत धारणा बना ली है, वह ठीक नहीं है। जब तक मैं जीवित हूं तब तक विद्यालय पर अवैध कब्जा कतई नहीं होने दूंगा। मेरे रहते यह संस्था जालान्स की व्यक्तिगत प्रापर्टी नहीं हो पाएगी। सब कुछ ठीक रहा तो दो-तीन साल बाद फिर बंद की गई कक्षाओं में प्रवेश शुरू कर देंगे। आंदोलनरत लोगों पर सवालिया निशान लगाते हुए श्याम सुंदर कहते हैं, “महीनों खामोश रहने के बाद पीएम मोदी के बनारस दौरे से कुछ रोज पहले आंदोलन क्यों शुरू किया गया? जब यह केस हाईकोर्ट में है तो राम जन्मभूमि की तरह फैसले का इंतजार क्यों नहीं किया जा रहा है? यह ट्रस्ट भाई जी के अनुयायियों का है। संस्था निजी है। हम संस्था चलाएं या बंद कर दें, हमसे कोई क्लेम नहीं कर सकता।”

ट्रस्ट के एक अन्य सदस्य अशोक खेमका कक्षाओं की बंदी की वजह आर्थिक तंगी बताते हैं। वह कहते हैं, “9वीं से 12वीं तक की कक्षाओं को बंद करने का निर्णय कमेटी का है। विद्यालय के ऊपर करीब डेढ़ करोड़ से अधिक की लाइबेल्टी है। डेढ़ बरस से सरकार की ओर से कुछ नहीं मिला है। विद्यालय को हमें चलाना है, बच्चों को नहीं। हम तो समूचे स्कूल को ही बंद करना चाहते थे, लेकिन बाद में तय हुआ कि सिर्फ चार क्लास ही बंद करेंगे। खासतौर पर उन्हें जिसमें पढ़ने वाले बच्चे शरारती और उदंड हैं।”

अंध विद्यालय के छात्रों पर उदंडता और आर्थिक तंगी का हवाला देकर कक्षाओं को बंद किए जाने के बाद कई पूर्व छात्र सक्रिय हुए हैं। साल 1998 में इसी विद्यालय से शिक्षा ग्रहण करने के बाद बिहार में संस्कृत के शिक्षक बने शिवशंकर दावा करते हैं, “सत्र 2018-2019 के लिए सरकार से स्कूल को 49 लाख रुपये मिले। इससे पहले कौशल विकास योजना के तहत साल 2017 में 32 लाख मिले थे। राज्य सरकार अलग से मदद दे रही है। स्कूल से ही फाइल देरी से भेजी जा रही है, ताकि पैसे देरी से आएं और ऐसा हवाला दिया जा सके। यह स्कूल पूरे पूर्वांचल के दृष्टिबाधित बच्चों के लिए आंखों से कम नहीं है। इसके बाद भी यहां के कमेटी के सदस्य इसे बंद कराने पर तुले हुए हैं। मैं खुद दिल्ली में सामाजिक न्याय विभाग तक गया हूं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।”

मांगेंगे नहीं तो कैसे मिलेगी ग्रांट?

श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार अंध विद्यालय के कई अध्यापकों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि छात्रों की उद्दंडता का मसला इतना बड़ा नहीं कि उसके लिए स्कूल ही बंद कर दिया जाए। यह संस्था सौ-डेढ़ सौ छात्रों को संभाल नहीं पा रही हैं। जहां हजारों छात्र पढ़ते हैं, वहां का प्रबंधन अपनी संस्थाओं को कैसे संचालित करता होगा। पिछले तीन सालों से ट्रस्ट के पदाधिकारी मुश्किलें गिना रहे हैं। ग्रांट का रोना रो रहे हैं। जब समय से कागज ही नहीं भेजा जाएगा तो ग्रांट कैसे आएगी?

अंध विद्यालय में कार्यरत शिक्षकों और कुछ कर्मचारियों से पता चला कि ट्रस्ट के कुछ प्रमुख सदस्य विद्यालय को अपने निजी उपयोग में लाते हैं और वह आगे भी ऐसा ही करना चाहते हैं। अगर हायर क्लासेज बंद होंगे तो सरकार अनुदान भी बंद कर देगी। कमेटी तो यही चाहती है कि विद्यालय पूरी तरह बंद हो जाए। अब से पहले जब भी कोई कलेक्टर ट्रस्टियों से इस्तीफा देने को कहता है तो वो रिरियाने लग जाते हैं। स्वयंसेवी धनंजय त्रिपाठी, संजीव सिंह और नंदलाल मास्टर कहते हैं, “दृष्टिहीनों से इल्म की रौशनी छीनने वाले अंध विद्यालय को खाक में मिलाकर यहां कब गगनचुंबी व्यावसायिक इमारत तान दें, पता ही नहीं चलेगा। ट्रस्ट में कुछ ऐसे लोग हैं जिन्हें कुछ वैध और कुछ अवैध इमारतें सजाने में महारत हासिल है। सरकार ने ध्यान नहीं दिया तो पूर्वांचल के इकलौते अंध विद्यालय को ठिकाने लगाने से इनकार नहीं किया जा सकता है।”

(बनारस स्थित विजय विनीत वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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