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शिक्षा अनुदेशक लड़ रहे संस्थागत उत्पीड़न के ख़िलाफ़ हक़ की लड़ाई

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने शिक्षकों को आश्वस्त किया था कि 2019 तक उन्हें नियमित कर दिया जायेगा। लेकिन इस वादे से भाजपा पूरी तरह से पलट गई है।
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“बहराइच ज़िले के नवाबगंज ब्लॉक में मेरा घर है और उच्च प्राथमिक विद्यालय कोहली, मिहितुरवा में मैं पढ़ाती हूँ। एक तरफ़ की दूरी 105 किमी है जिसे तय करने में 3 घंटे का समय और 180 रुपये किराया लगता है। सुबह 6 बजे घर से निकलती हूँ और शाम को 6 बजे घर पहुँचती हूँ। कई बार ऑटो नहीं मिलने पर पैदल भी जाना पड़ता है। प्रति महीने किराये में ही मेरा 9 हज़ार रुपये से अधिक खर्च हो जाता है, जबकि मुझे मानदेय केवल 7,000 रुपये प्रतिमाह ही मिलता है।” 

अपनी नौकरी की समस्याओं का ज़िक्र करते हुए सरताज बानो आय-व्यय का हिसाब समझाने लगती हैं। सरताज बानो ने उर्दू और समाज शास्त्र विषय से परास्नातक के साथ डीएलएड का कोर्स भी किया है। वह शिक्षा अनुदेशक हैं और 2 जुलाई 2013 से ही अपनी सेवायें दे रही हैं। वह अफ़सोस ज़ाहिर करते हुए कहती हैं “कहने को मैं नौकरी करती हूँ लेकिन महीने के अंत में मुझे अपने भाइयों से पैसे लेने पड़ते हैं। मैंने घर के नज़दीक ट्रांसफर कराने की सोची पर हमारा ट्रांसफ़र होता ही नहीं है।”

जब आय से अधिक आपका खर्च हो जा रहा है तो आप पढ़ाती क्यों हैं? इस सवाल के जवाब में वह कहती हैं, “मेरे माता-पिता नहीं हैं। मैं अपनी आजीविका के लिये दूसरे पर निर्भर नहीं रहना चाहती। मुझे उम्मीद है कि भविष्य में कुछ बेहतर होगा। हम लोग लगातार कोशिश कर रहे हैं। सरकार हमारी माँगे मान लेगी तो हमारी परेशानियाँ ख़त्म हो जायेंगीं।”

उत्तर प्रदेश सरकार ने 2013 में अनिवार्य शिक्षा अधिनियम 2009 के तहत परिषदीय उच्च विद्यालयों में शिक्षा अनुदेशकों की नियुक्ति की थी। 100 से अधिक पंजीकृत छात्रों वाले विद्यालयों में कला शिक्षा, शारीरिक एवं स्वास्थ्य शिक्षा तथा कार्यानुभव शिक्षा प्रत्येक के तहत 13,769 सहित कुल 41,307 शिक्षकों की तैनाती की गई थी। 

विज्ञापन के दौरान ही अनुदेशकों का मानदेय 7,000 हज़ार निर्धारित किया गया था और दिसंबर 2021 तक भी इतना ही भुगतान किया गया है। मानदेय बढ़ाने की माँग को लेकर शिक्षा अनुदेशकों ने लगातार प्रदर्शन किया पर हर बार उन्हें केवल आश्वासन ही मिला। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने भाषणों में अक्सर शिक्षा अनुदेशकों का मानदेय बढ़ाने की बात करते रहते थे।

100 से अधिक संख्या वाले प्रत्येक विद्यालयों में 3 अनुदेशकों की नियुक्ति की गई है। यह शिक्षक सहायक अध्यापकों की तरह विद्यालयों में पढ़ाने के साथ-साथ सरकारी योजनाओं को लागू करवाने के लिये भी काम करते हैं। जैसे- बच्चों को पोलियो की दवा पिलाना, चुनाव में बीएलओ की ड्यूटी, कोरोना टीकाकरण व निर्वाचन प्रक्रिया में ड्यूटी आदि। शिक्षा अनुदेशकों को ज़रूरत पड़ने पर सरकारी कार्यालयों से अटैच भी कर दिया जाता है। 

भाजपा ने की थी अनुदेशकों को नियमित करने की माँग

3 अप्रैल 2016 को लखनऊ के झूलेलाल मैदान में भाजपा ने “जो अधिकार दिलायेगा-अब वही प्रदेश चलायेगा” का नारा देकर “अधिकार दिलाओ रैली” का आयोजन किया था। रैली में आशा बहुओं, आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों एवं उनकी सहायिकाओं, चौकीदारों, शिक्षा प्रेरकों, पीआरडी जवानों, रोज़गार सेवकों, किसान मित्रों, सरकारी विद्यालयों की रसोइयों को राज्य कर्मचारी घोषित करने की माँग की थी। 

रैली में सभी विभागों के संविदा कर्मियों और शिक्षा अनुदेशकों को नियमित करने की माँग की गई थी। रैली को संबोधित करते हुए तत्कालीन केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था “संविदाकर्मियों की माँगे पूरी करने के लिये ख़ज़ाने में धन न होने की बात ठीक नहीं है। सरकार के ख़ज़ाना कुबेर का ख़ज़ाना होता है। संविदाकर्मियों की बेहतरी के लिये नीयत हो तो पैसे की कमी आड़े नहीं आती। केन्द्र सरकार की आमदनी में से पहले 32 फ़ीसदी धन राज्य सरकार को दिया जाता था। इसे 10 फ़ीसदी बढ़ाकर 42 प्रतिशत कर दिया गया है।”

2017 विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आने के बाद यह स्पष्ट हो गया कि भाजपा की इस रैली में किये गये वादों पर लोगों ने विश्वास व्यक्त किया है। 7 अप्रैल 2017 को अनुदेशक शिक्षकों के एक प्रतिनिधि मंडल ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लखनऊ में उनके आवास पर मुलाक़ात की थी। मुख्यमंत्री ने तब शिक्षकों को आश्वस्त किया था कि 2019 तक उन्हें नियमित कर दिया जायेगा। नियमित करने के वादे से भाजपा पूरी तरह से पलट गई। 

केवल काग़ज़ों में बढ़ा मानदेय, मिला नहीं

वर्ष 2016-17 में राज्य सरकार ने अनुदेशकों का मानदेय 15,000 रुपये प्रतिमाह ( 11 महीनों में 1.65 लाख रुपये ) करने का प्रस्ताव भारत सरकार को भेजा था। लेकिन केन्द्र सरकार ने प्रोजेक्ट अप्रूवल बोर्ड की बैठक में अंतिम रूप से अनुदेशकों का मानदेय 8,470 रुपये प्रतिमाह ही स्वीकृत किया। 

अनुदेशकों ने राज्य सरकार के प्रस्ताव 15,000 रुपये प्रतिमाह को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने 7 दिसंबर 2016 को आदेश पारित कर दिया जिसका निस्तारण करते हुए 2 जून 2017 को अपर मुख्य सचिव बेसिक शिक्षा, उत्तर प्रदेश ने निर्णय लिया कि अनुदेशकों को 17,000 रुपये प्रतिमाह की दर से मानदेय का भुगतान किया जायेगा। 

2017-18 हेतु अनुदेशकों का मानदेय 17,000 रुपये प्रतिमाह करने का प्रस्ताव मुख्य सचिव की समिति ने अनुमोदित करते हुए फिर से भारत सरकार की प्रोजेक्ट अप्रूवल बोर्ड की बैठक 27-3-2017 में अंतिम स्वीकृति हेतु भेजा। बैठक में अनुदेशकों का मानदेय 17,000 रुपये प्रतिमाह को अंतिम मंज़ूरी प्रदान कर दिया गया। जिसकी पुष्टि मानव संसाधन मंत्रालय ने 30 जून 2017 को जारी पत्र में भी किया। 

मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार ने अपर मुख्य सचिव बेसिक शिक्षा को दिनांक 18-7-2017 को जारी पत्र में भी अनुदेशक मानदेय 17,000 रुपये प्रतिमाह की स्वीकृति प्रदान होना का ज़िक्र किया। 

राज्य सरकार ने भारत सरकार के आदेश और बैठक में स्वीकृत अनुदेशक मानदेय को 2017-18 में नहीं दिया। बल्कि 21-12-2017 को मुख्य सचिव की अध्यक्षता में बैठक आहूत कर भारत सरकार के आदेश के ख़िलाफ़ मानदेय घटाकर 9,800 रुपये प्रतिमाह कर दिया गया, परंतु इसका भी भुगतान नहीं किया गया। नाराज़ अनुदेशकों ने इलाहाबाद और लखनऊ हाईकोर्ट में याचिका दायर की। 

कोरोना संकट के मुश्किल समय में भी दी सेवायें

शिक्षा अनुदेशकों ने कोरोना संक्रमण के बेहद ख़तरनाक दौर में भी अपनी सेवायें दीं। अनुदेशकों का आरोप है कि उनके साथ सम्मानजनक व्यवहार नहीं किया जाता है। छुट्टियाँ नहीं मिलतीं हैं, नवीनीकरण के लिये अधिकारियों के चक्कर लगाने पड़ते हैं और ज़िम्मेदार अधिकारी समस्याओं पर ध्यान नहीं देते हैं। लगातार बढ़ती महंगाई के बाद भी मानदेय में बढ़ोत्तरी नहीं की जा रही है।

बस्ती ज़िले के हर्रैया ब्लॉक में एक विद्यालय में तैनात शिक्षा अनुदेशक पवन कहते हैं “कोरोना काल के दौरान पंचायत चुनाव में मेरी ड्यूटी लगी थी। हम लोगों में से कई को 35-65 किलोमीटर दूर जाकर कोरोना काल में ड्यूटी करनी पड़ती थी। हमें कोई अतिरिक्त खर्च भी नहीं दिया गया। इसी दौरान मैं और मेरे एक दर्जन साथी कोरोना वायरस से संक्रमित हो गये। प्रशासन ने हमें किसी तरह का सहयोग तो दूर की बात है मास्क तक भी नहीं दिया। किसी तरह से हम उभर सके लेकिन हमारे एक साथी की मौत हो गई, वह परिवार का इकलौता लड़का था।" 

ट्रांसफ़र नहीं होने से महिला अनुदेशक हैं काफ़ी परेशान

अनुदेशकों की सबसे बड़ी समस्या है प्रशासन द्वारा उनका ट्रांसफ़र नहीं किया जाना। नियुक्ति के बाद से ही अनुदेशकों का ट्रांसफ़र नहीं किया गया है। शिक्षकों की तुलना में शिक्षिकाओं की समस्या अधिक है। 2013 के बाद कई शिक्षिकाओं की शादी हो चुकी है। ट्रांसफ़र नहीं मिलने के कारण पूरी तरह से ससुराल में शिफ़्ट नहीं हो पा रही हैं। 

बाँदा ज़िले के जवाहर नगर की संगीता वर्मा पूर्व माध्यमिक खप्तिहा कला में पढ़ाती हैं। वह कहती हैं “मेरे पति मुरादाबाद में रहते हैं और विकलांग होने के कारण उन्हें घरेलू कार्य करने में काफ़ी परेशानी होती है। ट्रांसफ़र नहीं होने के कारण अब हमारा रिश्ता टूटने की कगार पर आ गया है। पति ने साफ़ कह दिया है कि अपना ट्रांसफ़र नहीं करवा सकती तो नौकरी छोड़ दो वरना तलाक़ ले लो। सरकार एक तरफ़ तो विभिन्न नारों के जरिये महिलाओं के हिमायती होने का दावा करती है दूसरी ओर महिला अनुदेशकों के अंतर जनपदीय ट्रांसफ़र की अनुमति भी नहीं दे रही है।”

संगीता काफ़ी परेशान हैं लेकिन फिर भी नौकरी नहीं छोड़ सकती हैं। वह अपनी मजबूरियाँ बताते हुए कहती हैं “संविदा की नौकरी करने का मतलब है, ख़ुद का शोषण करवाना। पर क्या करूँ मेरे पास कोई और बेहतर रास्ता भी नहीं है। मेरी दो बेटियाँ हैं। पति भी प्राइवेट नौकरी ही करते हैं आय कम होने के कारण मैं नौकरी नहीं छोड़ सकती हूँ। अगर सरकार हमें नियमित नहीं कर सकती पद ही ख़त्म ही कर दे। ताकि हम लोगों का भ्रम टूट जाये कि भविष्य में सरकार हमें कोई सुविधा देगी।”

शिक्षा अनुदेशकों को वर्ष के 11 महीने ही मानदेय मिलता है। प्रत्येक वर्ष उन्हें नवीनीकरण कराना पड़ता है। नवीनीकरण की प्रक्रिया पूरी करने के लिये प्रधानाध्यापक, खंड शिक्षा अधिकारी, जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी, मुख्य विकास अधिकारी, डीएम के सहमति की आवश्यकता होती है। किसी भी स्तर पर यदि अधिकारी नाखुश हैं तो अनुदेशकों को नवीनीकरण के लिये जद्दोजहद करनी पड़ जाती है।

पाली ब्लॉक के पूर्व माध्यमिक विद्यालय कोदरी में पढ़ा रही शिक्षा अनुदेशक सारिका सिंह कहती हैं “मेरा विद्यालय क़रीब 25 किलोमीटर की दूरी पर है। मुझे प्रति महीने 7,000 रुपये मानदेय मिलता है और किराये में 4,000 रुपये ख़त्म हो जाते हैं। मेरे घर के डेढ़ किलोमीटर के दायरे में 4 स्कूल हैं जहाँ मेरा ट्रांसफ़र कर दिया जाये तो मुझे बहुत सुविधा होगी। पर हमारा ट्रांसफ़र नहीं किया जाता है।"

2,000 रुपये बढ़ोत्तरी की घोषणा को चुनावी स्टंट बता रहे अनुदेशक

परिषदीय अनुदेशक कल्याण एसोसिएशन उत्तर प्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष विक्रम कहते हैं “सरकार ने जो 2,000 रुपये की मानदेय में बढ़ोत्तरी की है उसे भी वापस रख ले। यदि सरकार के पास पैसे नहीं हैं तो हम 7,000 रुपये प्रतिमाह का मानदेय भी वापस कर देंगे और फ़्री में पढ़ायेंगे। यदि सरकार कुछ देना ही चाहती है हमें नियमित करे और अपने पिछले वादों को पूरा करे।”

शिक्षा अनुदेशकों का आरोप है कि सहायक अध्यापक और प्रधानाध्यापक सम्मानजनक व्यवहार नहीं करते हैं। उन्होंने जबरन काम थोपने का भी आरोप लगाया है। इनकी नियुक्ति अंशकालिक बताकर की गई थी लेकिन काम पूर्णकालिक का लिया जाता है। छुट्टियाँ भी नहीं मिलती हैं तबियत ख़राब होने पर अनुदेशकों को मानदेय से पैसा कटवाना पड़ता है। 

2013 में नियुक्ति करवाने से लेकर आज तक शिक्षा अनुदेशक अपनी ड्यूटी करने के अलावा अपनी माँगों को लेकर लगातार संघर्षरत हैं। सरकार ने उनकी माँगें तो नहीं मानी लेकिन उनके प्रमाण पत्रों की 4 बार जाँच करवा चुकी है। हालात से परेशान होकर कुछ ने नौकरी छोड़ दी और कुछ का नवीनीकरण नहीं हुआ। नतीजा यह है कि वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश में 41,307 शिक्षा अनुदेशकों में से मात्र 27,546 ही रह गये हैं। 

यदि सरकार ने इनकी माँगों के प्रति गंभीरता नहीं दिखाई तो आने वाले दिनों में अनुदेशकों की संख्या और भी कम हो सकती है। जिससे बच्चों की पढ़ाई पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। 

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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