NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
ख़बरों के आगे-पीछे: चुनाव आयोग की साख पर इतना गंभीर सवाल!
हर हफ़्ते की कुछ खबरें और उनकी बारिकियाँ बड़ी खबरों के पीछे छूट जाती हैं। वरिष्ठ पत्रकार जैन हफ़्ते की इन्हीं कुछ खबरों के बारे में बता रहे हैं। 
अनिल जैन
13 Feb 2022
election
Image courtesy : NDTV

पिछले कुछ वर्षों के दौरान चुनाव आयोग की साख में भारी गिरावट आई है। उस पर यह आरोप तो अब आम हो चुका है कि वह सत्तारूढ़ दल के शीर्ष नेताओं की सुविधा के मुताबिक चुनाव कार्यक्रम घोषित करता है। यह भी माना जाता है कि आचार संहिता के उल्लंघन के मामलों में आयोग सिर्फ विपक्षी नेताओं के खिलाफ ही कार्रवाई करता है और सत्तारूढ़ दल के नेताओं को क्लीनचिट दे देता है। मतदान से एक दिन पहले प्रधानमंत्री इंटरव्यू देते हैं जिसे सारे टीवी चैनल दिखाते हैं, लेकिन चुनाव आयोग खामोश बना रहता है। पिछले कई चुनावों में देखा गया है कि मतदान वाले दिन भी प्रधानमंत्री चुनावी रैली को संबोधित करते हैं, जिसकी शिकायत भी की जाती है लेकिन आयोग कोई कार्रवाई नहीं करता है। अब उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में तो इससे आगे की भी बात सुनने को मिल रही है, जो कि बहुत चिंताजनक है। उत्तर प्रदेश के विभिन्न इलाकों में घूम रहे कई स्वतंत्र पत्रकारों और टिप्पणीकारों ने इसे सुना है और सोशल मीडिया में शेयर किया है कि विपक्षी पार्टियों के नेता प्रचार के दौरान मतदाताओं से अपने उम्मीदवार को 10 हजार से ज्यादा वोटों से जिताने की अपील कर रहे हैं। कई जगह सुनने को मिला कि 10 हजार वोट का मार्जिन चुनाव आयोग के लिए लेकर चलना है। चुनाव आयोग से उनका मतलब आयोग से लेकर स्थानीय प्रशासन तक से है। वे कह रहे है कि अगर 10 हजार से कम वोट का अंतर रहा तो गिनती के समय धांधली हो सकती है। इन नेताओं और उम्मीदवारों को एक चिंता पोस्टल बैलेट को लेकर भी है। ध्यान रहे कि पोस्टल बैलेट गिनती के आखिरी समय तक आ सकता है और उस समय भी उसकी गिनती हो सकती है।

हमला उद्योगपतियों पर, आहत हुए प्रधानमंत्री

आमतौर पर राजनेता अपनी पार्टी पर हमले से आहत होते हैं। वे अपनी पार्टी की नीतियों पर सवाल उठाए जाने पर या अपने पर होने वाले निजी हमले से नाराज होते हैं और उसका जवाब देते हैं। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भ्रष्ट और बेईमान उद्योगपतियों और कारोबारियों पर सवाल उठाना भी बर्दाश्त नहीं होता है और वे तुरंत इतने आहत हो जाते हैं, जितने कि संघ पर होने वाले हमलों पर भी आहत नहीं होते। उद्योगपतियों पर सवाल उठाए जाने पर उनको लगता हैं कि लोग उद्योगपतियों पर सवाल उठा कर खुद उनको कठघरे में खड़ा कर रहे हैं। इसीलिए संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बहस के दौरान जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने महामारी और अर्थव्यवस्था के बेहद खराब दौर में अंबानी-अडानी की संपत्ति में हुए बेहिसाब इजाफ़े पर सवाल उठाए और कहा कि 'डबल ए वैरिएंट’ देश के लिए सबसे खतरनाक है तो प्रधानमंत्री अपने भाषण के दौरान बुरी तरह आहत नजर आए। उन्होंने तिलमिलाए अंदाज में राहुल गांधी से कहा कि आपकी दादी (इंदिरा गांधी) और नाना (जवाहरलाल नेहरू) की सरकार को भी लोग टाटा-बिड़ला की सरकार कहते थे। हालांकि यह कहते हुए प्रधानमंत्री यह भूल गए कि नेहरू और इंदिरा गांधी की सरकार को टाटा-बिड़ला की सरकार कहने वालों में जनसंघ के नेता भी होते थे। बहरहाल यह दूसरा मौका था जब प्रधानमंत्री मोदी ने देश की कीमत पर फल-फूल रहे कारोबारियों का बचाव किया। इससे पहले लखनऊ में 29 जुलाई 2018 को देश के बड़े उद्योगपतियों और कारोबारियों की मौजूदगी में मोदी ने कहा था कि उद्योगपतियों के साथ दिखने से वे डरते नहीं हैं। देश के शीर्ष उद्योगपतियों से अपने करीबी रिश्तों का बचाव करने के लिए उन्होंने महात्मा गांधी का सहारा लेते हुए कहा था कि महात्मा गांधी भी बिना किसी हिचक के बिड़ला के साथ खड़े होते थे। राहुल गांधी द्वारा देश के दो बड़े उद्योगपतियो की आलोचना का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा था, ''देश के विकास में इनकी भी भूमिका होती है। आप इनको अपमानित करेंगे? यह कौन सा तरीका होता है? जो गलत हैं वे तो देश छोड़ कर चले गए।’’

अवैध धंधों से कमाई करने में भी सरकारों को गुरेज नहीं

केंद्र और कई राज्यों की सरकारों के खजाने की हालत सचमुच बेहद खस्ता हो गई है। सरकारें कहें भले ही नहीं, लेकिन सबको पैसे की इतनी ज्यादा कमी हो गई है कि उन्हें कमाई के लिए किसी भी धंधे से कोई गुरेज नहीं है। दिल्ली मे गली-गली शराब की दुकानें खुलवाई जा रही हैं और पूरी रात धंधा करने की इजाजत दी जा रही है ताकि लोग ज्यादा से ज्यादा शराब पिएं और सरकार की कमाई हो। मध्य प्रदेश और हरियाणा की सरकारें भी शराब को लेकर बहुत उदारता बरत रही हैं। इसी तरह केंद्र सरकार ने क्रिप्टोकरंसी पर 30 फीसदी टैक्स लगाने का ऐलान किया है। भारत सरकार के वित्त सचिव ने कहा है कि जैसे जुए की कमाई होती है वैसे ही क्रिप्टो करेन्सी की कमाई है और इसलिए सरकार उस पर टैक्स वसूलेगी। क्या यह अजीब बात नहीं है कि एक तरफ सरकार क्रिप्टो करेन्सी के कारोबार को सट्टे और जुए जैसा बता रही है और दूसरी ओर उसे गैरकानूनी बताने की बजाय उस पर टैक्स लगा कर कमाई का रास्ता खोज रही है। अगर क्रिप्टो करेन्सी का कारोबार जुए या सट्टे की तरह है, जैसा कि सरकार के अधिकारी बता रहे है तो उस पर पाबंदी क्यों नहीं लगाई जा रही है? क्या सरकार अपनी डिजिटल मुद्रा लाएगी और उसके कंपीटिशन में निजी क्रिप्टो करेन्सी को भी चलने देगी?

फिर निजी कंपनियों को नोट चलाने की मंजूरी भी क्यों नहीं दे दी जा रही है? कैसी कमाल की स्थिति है कि टेलीविजन चैनलों पर खुलेआम लत लगाने वाले मोबाइल गेम्स के प्रचार हो रहे हैं और सरकार टैक्स लेकर उन्हें चलने दे रही है। भाजपा सांसद और बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी कई बार सट्टेबाजी  को कानूनी बनाने और टैक्स वसूलने की पैरवी कर चुके हैं। जब जुआ, सट्टा और क्रिप्टो पर टैक्स लगा कर इसे कानूनन बनाया जा रहा है तो कोई आश्चर्य नहीं कि आने वाले दिनों में सरकारें देह व्यापार, नशीले पदार्थों के कारोबार और क्रिकेट तथा चुनावी सट्टे को भी वैधता प्रदान कर टैक्स के दायरे में ले आए!

अदालत में लंबित मामले पर चर्चा क्यों नहीं?

भारत में चर्चा और जिम्मेदारी से बचने के लिए सरकारों के पास एक अनोखा बहाना होता है कि मामला अदालत में लंबित है। मामला अदालत में लंबित है तो क्या उस पर चर्चा नहीं हो सकती है या उस मामले के लिए किसी की जिम्मेदारी तय नहीं हो सकती है? फिर तो किसी मसले पर न चर्चा हो सकती है, न राजनीति हो सकती है और न जिम्मेदारी तय हो सकती है क्योंकि किसी न किसी तरह से सारे मामले अदालत में लंबित हैं- बहरहाल इस सनातन बहाने का इस्तेमाल केंद्र सरकार पेगासस जासूसी मामले को टालने के लिए कर रही है। संसद के बजट सत्र का दूसरा हफ्ता बीत गया है और इस दौरान सरकार के मंत्रियों ने यह बहाना बताया कि पेगासस मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है इसलिए संसद में चर्चा नहीं हो सकती है। यह अलग बात है कि पेगासस मामला जब सुप्रीम कोर्ट नहीं पहुंचा था तब भी सरकार ने इस पर चर्चा नहीं कराई थी और न जांच। सो, मामले का संसद में लंबित होना, एक बहाना भर है। आरक्षण की सीमा बढ़ाने से लेकर, प्रमोशन में आरक्षण और समान नागरिक संहिता से लेकर कश्मीर तक के अनगिनत मामले अदालतों में लंबित हैं, लेकिन उन पर संसद में भी चर्चा होती है, सरकार भी चर्चा करती है और मीडिया में भी चर्चा होती है। सिर्फ उन्हीं मसलों पर अदालत के बहाने चर्चा रोकी जाती है, जो सरकार के लिए असुविधानजक होते हैं।

प्रतीकात्मक राजनीति में भी कांग्रेस से आगे है भाजपा

जब प्रतीकों की राजनीति में भाजपा बनाम कांग्रेस की बात चलती है तो छह फरवरी को लता मंगेशकर के निधन के दौरान भी दोनों पार्टियों का जैसा आचरण रहा उससे भी फर्क पता चलता है। भाजपा ने इस मौके पर भी प्रतीकात्मक राजनीति में बाजी मारी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उत्तर प्रदेश और गोवा दोनों जगह वर्चुअल रैली थी, लेकिन उन्होंने गोवा वाली रैली रद्द की और शाम में लता मंगेशकर के अंतिम संस्कार में हिस्सा लेने मुंबई भी पहुंचे। यह अलग बात है कि वे अंतिम संस्कार तक नहीं रूके और सिर्फ फूल चढ़ा कर लौट गए। उधर पार्टी ने लखनऊ में संकल्प पत्र यानी घोषणापत्र जारी करने का कार्यक्रम टाल दिया। दूसरी ओर कांग्रेस ने क्या किया? तय कार्यक्रम के हिसाब से राहुल गांधी लुधियाना गए और वहां मंच से चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री पद का दावेदार बनाने का ऐलान किया। मंच पर कांग्रेस ने भी मौन रख कर लता मंगेशकर को श्रद्धांजलि दी लेकिन कार्यक्रम अपने हिसाब से हुआ। राहुल गांधी भी अगर इस कार्यक्रम को एक दिन टाल देते तो कोई आफत नहीं आ रही थी। कायदे से कांग्रेस को भी अपना कार्यक्रम रद्द करना चाहिए था और राहुल गांधी को मुंबई जाना चाहिए था। मुंबई के शिवाजी पार्क में कांग्रेस का कोई नेता नहीं दिखा। प्रधानमंत्री वहां पहुंचे थे और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस भी उनके साथ थे। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से लेकर एनसीपी प्रमुख शरद पवार, अजित पवार, सुप्रिया सुले, राज ठाकरे, पीयूष गोयल और फिल्म जगत के लोग वहां मौजूद थे। 

किसान और देश के हित अलग-अलग हैं क्या?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश में विधानसभा की 58 सीटों के मतदान से 12 घंटे पहले एक लंबा इंटरव्यू दिया, जिसमें एक कमाल की बात उन्होंने यह कही कि कृषि कानून किसानों के हित में बनाया गया था और उसे देशहित में वापस लिया गया। कानून वापस लिए जाते समय भी यह बात कही गई थी। लेकिन प्रधानमंत्री इस बात को दोहरा रहे हैं इसका मतलब यह गंभीर बात है। इसलिए सवाल है कि क्या किसानों का हित और देश का हित अलग-अलग हैं? प्रधानमंत्री की टिप्पणी से इस तरह के कई सवाल खड़े होते हैं। प्रधानमंत्री ने जो कहा, उस पर इंटरव्यू करने वाली पत्रकार ने कोई पूरक सवाल नहीं पूछा। लेकिन यह पूछा जाना चाहिए था कि किसानों के एक साल तक चले शांतिपूर्ण आंदोलन से देश और लोकतंत्र मजबूत हो रहा था या उससे देश के लिए खतरा पैदा हो रहा था? यह भी सवाल है कि क्या किसान अपना हित नहीं समझते हैं, जो उन्होंने सरकार की बात नहीं समझी? अगर बिल में किसानों का हित था तो किसान इतना कष्ट उठा कर एक साल तक क्यों धरने पर बैठे रहे और जान गंवाते रहे? अगर बिल किसानों के हित में था तो देश के सारे किसान उसके पक्ष में खड़े क्यों नहीं हुए और उन्होंने क्यों प्रदर्शन कर रहे किसानों का विरोध नहीं किया? जाहिर है कि चुनावी चिंता में किसानों के आगे झुकने के फैसले को देशहित का जामा पहना कर सरकार को शर्मिंदगी से निकालने का प्रयास किया जा रहा है।

हिंदुत्व की दो और नई प्रयोगशालाएं 

मध्य प्रदेश सरकार तो पिछले कई दिनों से उत्तर प्रदेश की तर्ज पर मध्य प्रदेश को हिंदुत्व की प्रयोगशाला बनाने में जुटी ही है और अब हरियाणा के गुरुग्राम और कर्नाटक के बेंगलुरू को भी हिंदुत्व की प्रयोगशाला बनाया जा रहा है। गुरुग्राम देश की मिलेनियम सिटी और बेंगलुरू टेक्नोलॉजी सिटी है। हैरानी की बात है कि महानगर होने, आधुनिक व विकसित होने के बावजूद इन दोनों शहरों में हिंदुत्ववादी राजनीति करने वाले संगठन फल-फूल रहे हैं। ध्यान रहे श्रीराम सेना का पहली बार जिक्र बेंगलुरू में ही हुआ था, जब इस संगठन के लोगों ने बार और रेस्तरां में महिलाओं पर हमला किया था। साल 2017 में इसी शहर में पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या हिंदुत्ववादी संगठन से जुड़े कार्यकर्ताओं ने की थी। उससे पहले हिंदुत्वादियों ने ही सुपरिचित कन्नड़ साहित्यकार और हम्पी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एमएम कलबुर्गी की हत्या कर दी थी। उसके बाद बेंगलुरू दक्षिण से तेजस्वी सूर्या सांसद बने और भाजपा ने उनको भाजपा युवा मोर्चा का अध्यक्ष बना दिया। उन्होंने कोरोना से लड़ाई के लिए बने वार रूम में काम करने वाले पेशवरों की निष्ठा पर सवाल उठाते हुए कहा था कि उसके वार रूम के मुस्लिम सदस्य भेदभाव करते हैं। हालांकि उनके आरोप गलत साबित हुए। अब कर्नाटक के कई हिस्सों में मुस्लिम छात्राओं के हिजाब पहनने का विरोध हो रहा है और मुस्लिम लड़कियां क्लासरूम में नहीं जा पा रही हैं। बेंगलुरू की तरह हिंदुत्व की दूसरी प्रयोगशाला गुरुग्राम है, जहां पिछले कई महीने तक लगातार टकराव चलता रहा। हिंदुवादी संगठनों ने गुरुग्राम में कई जगह खुले में नमाज पढ़ने के खिलाफ प्रदर्शन किया। हर शुक्रवार को जुमे की नमाज से पहले हिंदू संगठनों के कुछ लोग इकट्ठा होकर मुसलमानों का विरोध करते। यह विरोध इतना बढ़ गया कि सिख गुरुद्वारों ने मुसलमानों को नमाज के लिए अपना परिसर ऑफर किया था। बाद में पुलिस भी हिंदुवादी संगठनों के साथ मिल गई और अंततः कई जगह खुले में नमाज पढ़ना बंद हो गया। इसी विवाद के चलते हरियाणा के मुख्यमंत्री ने भी कह दिया कि उनकी सरकार राज्य में कहीं भी खुले स्थान पर नमाज पढने की अनुमति नहीं देगी। बाद में हिंदू संगठनों के लोग उसी खुली जगह पर भजन-कीर्तन करने लगे।

ये भी पढ़ें: ख़बरों के आगे पीछे: हिंदुत्व की प्रयोगशाला से लेकर देशभक्ति सिलेबस तक

election commission
UP Assembly Elections 2022
cryptocurrency
Narendra modi
Modi government
Hindutva
BJP
Congress

Related Stories

भाजपा सरकार अगर जनकल्याणकारी होती तो मुफ़्तख़ोरी जैसी शब्दावाली का इस्तेमाल न करती

लालकिले से 83 मिनट के भाषण का सार: "खाया पिया कुछ नहीं, गिलास फोड़ा आठ आना"

भारत @75 : हिंदू राष्ट्रवाद ने धर्मनिरपेक्षता के वादे को कैसे प्रभावित किया है

आज़ादी की 75वीं सालगिरह: भारतीय चाहते क्या हैं ?

आज़ाद भारत के 75 साल : कहां खड़े हैं विज्ञान और विकास?

ख़बरों के आगे-पीछे:  क्या हैं वेंकैया के रिटायरमेंट के मायने और क्यों हैं ममता और सिसोदिया मुश्किल में

तिरछी नज़र: रेवड़ी छोड़ो, रबड़ी बांटो

बिहार में भाजपा की सत्ता से बेदखली, टीवीपुरम् में 'जंगलराज' की वापसी

कटाक्ष: ...भगवा ऊंचा रहे हमारा

एमपी में बांध टूटने का ख़तरा: कांग्रेस ने भाजपा सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया


बाकी खबरें

  • संजय सोलोमन
    विशेष: स्त्री अस्मिता की वो साहित्यिक जंग, जिसने पितृसत्ता को घुटनों के बल ला दिया!
    15 Aug 2022
    सावित्री बाई फुले, पंडिता रमाबाई, एक अज्ञात हिन्दू औरत, रुकैया सख़ावत हुसैन, ताराबाई शिंदे समेत कुछ अन्य महिलाओं ने आगे आकर पितृसत्ता के विरुद्ध स्त्री मुक्ति की जंग छेड़ दी।
  • समीना खान
    लाल सिंह चड्ढा: इस मासूम किरदार को दंगे और कोर्ट कचहरी से दूर ही रखें
    15 Aug 2022
    आमिर ख़ान आज उस स्टेज पर पहुंच चुके हैं जहाँ वह किसी सीमित काल या स्थान के लिए सिनेमा नहीं बनाते। ऐसे में चार बरस बाद आई लाल सिंह चड्ढा उनकी मेहनतों को साबित करती नज़र आती है।
  • हर्षवर्धन
    आज़ादी@75: भारत की आज़ादी की लड़ाई और वामपंथ
    15 Aug 2022
    आज़ादी के आंदोलन में वामपंथियों ने क्या भूमिका निभाई थी इसपर मुख्यधारा में कभी कोई खास चर्चा नहीं हुई और अगर हुई भी है तो बहुत ही संकुचित दायरे में।
  • भाषा
    स्वतंत्रता दिवस पर गूगल ने पतंग उड़ाने की परंपरा से प्रेरित डूडल पेश किया
    15 Aug 2022
    यह आकर्षक डूडल गूगल आर्ट्स एंड कल्चर द्वारा हाल ही में शुरू की गई ‘इंडिया की उड़ान’ परियोजना के बाद पेश किया गया है, जो इन 75 वर्षों के दौरान भारत की उपलब्धियों का जश्न मनाता है और ‘देश की अटूट और…
  • प्रमोद कपूर
    जब भारत के आम लोगों ने अपनी जान ज़ोखिम में डालकर आज़ादी की लड़ाई लड़ी थी
    15 Aug 2022
    1946 में स्वतंत्रता की खातिर अंतिम जंग, रॉयल इंडियन नेवी म्युटिनी द्वारा लड़ी गई थी, उस आईएनए से प्रेरित युवा रॉयल इंडियन नेवी के नौसैनिकों के ऐतिहासिक विद्रोह की घटना को प्रमोद कपूर एक बार फिर से…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें