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चुनाव आयुक्त की नियुक्ति और सुप्रीम कोर्ट के सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए एक स्वतंत्र तंत्र की मांग करने वाली याचिकाओं पर अपना फ़ैसला सुरक्षित रख लिया है।
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फ़ोटो साभार: द लीफलेट

पिछले सप्ताह केंद्र द्वारा चुनाव आयुक्त ए.के. गोयल की जल्दबाज़ी में की गई नियुक्ति को लेकर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट को सौंपे गए फाइल के बाद कई सवाल खड़े हो गए हैं। केंद्र सरकार से चुनाव आयुक्त के पद के लिए उम्मीदवार का चयन करने के लिए अपनाए जाने वाले मानदंडों के बारे में भी पूछताछ की गई।

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र सरकार को निर्देश जारी किया था कि वह नियुक्ति पर ओरिजनल फाइल पेश करे ताकि नियुक्ति के लिए राष्ट्रपति को सिफारिश करने के लिए चुनाव आयुक्तों के नामों का चयन करते समय केंद्र सरकार द्वारा लागू की जाने वाली प्रक्रिया का व्यापक दृष्टिकोण देखा जा सके और वह यह सुनिश्चित करें कि इसमें कोई त्रुटि नहीं है।

गुरुवार को जस्टिस के.एम. जोसेफ़ के नेतृत्व वाली संविधान पीठ ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए एक तटस्थ चयन निकाय के गठन की मांग करने वाली कई याचिकाओं पर तीन दिनों तक की गई सुनवाई के बाद अपना फ़ैसला सुरक्षित रख लिया। ज्ञात हो कि इस पीठ में जस्टिस अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस, हृषिकेश रॉय और सी.टी. रविकुमार शामिल हैं। उक्त याचिकाएं 2021 में अधिवक्ता अनूप बरनवाल और ग़ैर-सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स व अन्य लोगों के बीच दायर की गई थी।

बेंच के सामने पेश की गई फाइल को देखने के बाद जस्टिस रस्तोगी ने टिप्पणी की, "एक ही दिन प्रक्रिया, मंज़ूरी और नियुक्ति। सरकार ने किस तरह का मूल्यांकन किया?

जस्टिस जोसेफ़ ने कहा कि गोयल का "शानदार अकादमिक रिकॉर्ड हो सकता है, लेकिन यह सिर्फ़ प्रतिभा को लेकर नहीं है। सवाल यह है: आपके पास एक आदमी हो सकता है, लेकिन क्या वह विनम्र है?” भारत के अटॉर्नी जनरल ('एजीआई') आर वेंकटरमणी ने जवाब दिया, "इसके लिए, कोई लिटमस टेस्ट नहीं है।"

पीठ ने राष्ट्रपति को सिफारिश करने के लिए चुनाव आयुक्तों को शॉर्टलिस्ट करने की प्रक्रिया और मानदंडों के बारे में केंद्र सरकार से बार-बार पूछा।

केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तुत और द लीफलेट द्वारा देखे गए एक नोट में कहा गया है कि कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के डेटाबेस पर विचार करने के बाद केंद्रीय क़ानून और न्याय मंत्रालय पहले प्रधानमंत्री के विचार के लिए नामों की सूची की सिफारिश करता है और फिर राष्ट्रपति को भेजता है।

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के सामने रखा गया ये नोट इस आरोप की पुष्टि है कि गोयल की नियुक्ति प्रक्रिया असामान्य गति से आगे बढ़ी। इसमें कहा गया है कि स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए गोयल का अनुरोध 18 नवंबर को पंजाब के मुख्य सचिव को भेजा गया था और उसी दिन पंजाब सरकार ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति को स्वीकार कर लिया और तीन महीने के अनिवार्य नोटिस की आवश्यकता को भी नज़रअंदाज़ कर दिया। ज्ञात हो कि गोयल पंजाब कैडर से थे। 19 नवंबर तक उनकी फाइल को प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति दोनों की मंज़ूरी मिल चुकी थी और इस संबंध में गजट नोटिफिकेशन जारी हो चुका था।

जस्टिस बोस ने एजीआई से पूछा, "क्या यह सामान्य रूप से ऐसा होता है?"। एजीआई ने जवाब में कहा, “नहीं, नहीं, यह महज़ एक इत्तेफाक है।'

मानदंड के सवाल पर एजीआई ने कहा कि अन्य चीजों के अलावा केंद्र सरकार संभावित उम्मीदवारों की वरिष्ठता और नियुक्त होने के बाद उनके कार्यकाल की अवधि पर विचार करती है। पिछली सुनवाई के दौरान, एजीआई ने नियुक्तियों के लिए वैधानिक प्रक्रिया की कमी का बचाव करते हुए कहा था, "संस्थागत प्रशासन के कुछ क्षेत्रों में कुछ हद तक अनौपचारिकता हमेशा आवश्यक होती है।"

एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने दावा किया, “यह फाइल आज जब तक नहीं दिखाई गई, हमें पता ही नहीं था कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति कैसे की जाती है। बेंच द्वारा एजीआई से कई सवाल किए गए हैं और इसको लेकर कोई जवाब नहीं है कि क्या कोई प्रक्रिया निर्धारित की गई है या नहीं।”

पिछले दिनों की सुनवाई में, पीठ ने उन व्यक्तियों की नियुक्ति पर केंद्र सरकार से सवाल किया था जिसे "वे जानते हैं कि वे छह साल के कार्यकाल पूरा नहीं कर पाएंगे।"

गुरुवार को, सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि पीठ को ऐसा लगता है कि "केवल सेवानिवृत्ति के कगार पर पहुंच चुके व्यक्तियों को निश्चित रूप से कार्यकाल नहीं मिलेगा... सावधानी से चयन किया जाता है। क्या यह तर्कसंगत मानदंड है?"

पीठ ने कहा, “आप धारा 6 [चुनाव आयोग (चुनाव आयुक्तों की सेवा की शर्तें और कामककज) अधिनियम, 1991] का उल्लंघन कर रहे हैं, हम आपको खुले तौर पर बता रहे हैं। [चुनाव आयुक्तों] को छह साल का कार्यकाल मिलने की उम्मीद है।" धारा 6 में कहा गया है कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त को अपना पद छोड़ने के बारे में तभी माना जाएगा जब उन्होंने अधिनियम की धारा 4 (जो छह साल का कार्यकाल निर्धारित करता है) में निर्दिष्ट कार्यालय की अवधि पूरी कर ली हो या उम्र पैंसठ साल हो गई हो।

लेखक दिल्ली व मोहाली स्थित पत्रकार हैं।

साभार: द लीफलेट

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करेंः

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