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चारधाम परियोजना में पर्यावरण और खेती-किसानी को हो रहे नुकसान की भारी अनदेखी

“हम सड़क चौड़ीकरण के विरोध में नहीं है, लेकिन सड़क चौड़ीकरण में अंनियमितताओं के चलते कई समस्याएं पैदा हुई हैं। जैसे डम्पिंग जोन में जो क्षमता से अधिक मलवा डाला जा रहा है, वह नीचे खेतों और पर्यावरण की दृष्टि से अत्यधिक उपयोगी पेड़ों को नष्ट कर रहा है और इस मलवे से जो खेत नष्ट हुए हैं, उन का मुआवाजा भी लोगों को नहीं दिया जा रहा है।”
Chardham protest

चारधाम परियोजना के तहत उत्तराखंड में हो रहे सड़क चौड़ीकरण के नाम पर पर्यावरणीय पहलुओं और पहाड़ी क्षेत्र की संवेदनशीलता को पूरी तरह अनदेखा किया गया जिसके चलते जनपद रुद्रप्रयाग के केदार घाटी में आए दिन भारी लैंडस्लाइड हो रहा है और पहाड़ों को अवैज्ञानिक तरीके से काटने के चलते किसानों के खेतों को भारी नुकसान हो रहा है। इसके खिलाफ केदार घाटी के बहुत से गावों, जिनमें सेरसी, बड़ासू, रामपुर, सीतपुर, मैखन्डा, ब्यूंग और फाटा में अखिल-भारतीय-किसान-सभा (AIKS) के नेतृत्व में किसानों और आम जनता के द्वारा शुरू हुआ विरोध प्रदर्शन एक आंदोलन का रूप ले चुका है और जनता में  तीव्र आक्रोश है जिसका प्रभाव बड़े स्तर पर सतह पर नजर आ रहा है।

क्या है असल मुद्दा

ऑलवेदर रोड या चार धाम सड़क परियोजना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में से एक है। 2017 के विधानसभा चुनावों के पहले जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देहरादून आये तो उन्होंने इसकी घोषणा की थी। इसे उन्होंने ऑलवेदर रोड कहा, फिर इसका नाम चार धाम परियोजना कर दिया गया। प्रोजेक्ट के तहत 889 किलोमीटर लंबी सड़कों को चौड़ा किया जा रहा है और इन्हें हाइवे में बदला जा रहा है। साथ ही सड़कों की मरम्मत भी हो रही है। इस के लिये 12000 करोड़ रुपये आवंटित किये गये थे और योजना साल 2020 तक समाप्त होनी थी। 

चारधाम प्रोजेक्ट सड़क के आस-पास रहने वाले लोगों के लिए यह बड़ी परेशानी का सबब  बनती जा रही है। अभी हाल हीं में बहुत सी जगहों से भूस्खलन और गांव दरकने के हादसे की खबरे आ रही हैं। स्थानीय लोग और पर्यावरणविदों का कहना है कि इसकी एक वजह बेढंगा विकास है, जिससे न केवल पर्यावरणीय पहलुओं को ख़ासा नुकसान हुआ है बल्कि स्थानीय खेत चौपट हो रहे हैं। इसमें कोई शक नहीं कि चारधाम परियोजना उत्तराखंड में विकास, तीर्थयात्रा की सुगमता और सीमा पर सुरक्षा की दृष्टि से अहम है, लेकिन सड़क को बनाने और चौड़ा करने में जो पर्यावरण की अनदेखी हो रही है, उससे यह तीनों उद्देश्य पूरे नहीं होंगे साथ ही इनपर आपदाओं का प्रकोप हमेशा बना रहेगा।

पर्यावरण पर पड़ने वाले असर के आकलन को किया गया दरकिनार 

चारधाम प्रोजेक्ट में एनवायरमेंट इंपैक्ट एसेसमेंट यानी पर्यावरण पर पड़ने वाले असर के आकलन से बचने के लिए प्रोजेक्ट को 53 छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटा गया है। इसके कारण पर्यावरण मंत्रालय के अनुसार, 100 किलोमीटर से बड़े किसी भी रोड प्रोजेक्ट पर एनवायरमेंट इंपैक्ट एसेसमेंट कराना होता है, लेकिन प्रोजेक्ट के 100 किलोमीटर से कम होने पर ऐसा नहीं होता है, चारधाम प्रोजेक्ट में भी यही हुआ करीब 900 किलोमीटर के प्रोजेक्ट को 53 हिस्सों में बांट दिया, और प्रत्येक हिस्सा 100 किलोमीटर से कम का है|

उच्चतम न्यायालय ने भी चारधाम परियोजना के सम्बन्ध में कहा था कि उत्तराखंड के चार पवित्र स्थलों को जोड़ने वाली सभी मौसम के अनुकूल सड़क बनाने संबंधी चारधाम राजमार्ग परियोजना के मामले पर्वतीय क्षेत्र में सड़कों की चौड़ाई के बारे में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के 2018 के सर्कुलर का पालन करना होगा। 2018 के सर्कुलर के अनुसार पर्वतीय क्षेत्र में इंटरमीडिएट मार्ग की चौड़ाई 5.5 मीटर होनी चाहिए।

उच्चतम न्यायालय का फेसला आने से पहले ही केदार घाटी तक पहाड़ों की कटायी 12 मीटर के अनुरूप हो चुकी थी। हाई पॉवर कमेटी की रिपोर्ट प्रस्तुत करने के बाद, उच्चतम न्यायालय का फेसला आने तक किसी भी प्रकार के निर्माण कार्य को रोक दिया गया। लेकिन आधे अधूरे इस निर्माण के कारण स्थानीय लोगों को भारी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। स्थानीय लोगों का कहना है कि चारधाम सड़क निर्माण मे एन.एच. व कार्यदायी संस्थाओं द्वारा भारी अनियमितता व लापरवाही के चलते केदारनाथ मार्ग (रुद्रप्रयाग) के किनारे बसने वाले अनेकों गांव के लोगों की जमीन, मकान, और पेयजल लाइन को ध्वस्त कर दिया गया है। वन पंचायतों से प्रस्ताव लिए बगैर सैकड़ों पेड़ों को गिरा दिया गया, इसी प्रकार ग्राम पंचायतों की सहमति लिए बिना पंचायतों की भूमि व निजी संपत्तियों को भारी नुकसान पहुंचाया गया है।

आंदोलनकारियों का क्या कहना है 

क्षेत्र की जनता ने अनेकों बार आला अधिकारियों को इन सभी समस्याओं के बारे में सूचित कराया, लेकिन इस पर कोई कार्यवाही न होते देख प्रशासन को चेताने के लिये स्थानीय लोग 28 जून 2021 से आंदोलनरत हैं। जनता की आवाज को बुलंद करने के लिये उत्तराखंड किसान सभा के राज्य स्तरीय नेताओं के दो दिवसीय क्षेत्रीय भ्रमण के बाद दिनांक 9 जुलाई 2021 को जिला मुख्यालय रुद्रप्रयाग में प्रेस वार्ता करते हुए यह सारी बातें बताई गईं। उन्होंने यह भी बताया कि एन.एच. 109 के निर्माणदायी संस्थाओं द्वारा स्थानीय ग्रामीणों की कृषि भूमि को विशाल मलबे के ढेर में तब्दील कर दिया गया है। इससे स्थानीय जनता के व्यवसाय को भारी नुकसान पहुंचा है। निर्माण कार्य में घटिया सामग्री का प्रयोग किया जा रहा है। इस कारण क्षेत्रीय जनता में भारी नाराजगी है। इस सम्बन्ध में उत्तराखण्ड किसान सभा के पदाधिकारियों का एक प्रतिनिधिमंडल जिसमें AIKS के अध्यक्ष सुरेंद्र सिंह सजवाण के नेतृत्व में नेशनल हाईवे के अधिशासी अभियंता दीपेन्द्र त्रिपाठी को मिला। इसमें उन्होंने निर्माण कार्य मे हो रही अनियमितताओं व घटिया क्वालिटी की सामग्री का प्रयोग, प्रभावितों को मुआवजा, व्यवसायिक दुकानों के आगे ऊंची नाली निर्माण को ध्वस्त करने, मलबे का डंपिंग जोन गांव से बाहर बनाने, ध्वंस संपर्क मार्गों के पुनर्निर्माण, वन पंचायतों में हुए नुकसान की भरपाई करने, खतरे की जद में आए भवनों का मुआवजा देने की मांग, समय सीमा के अंतर्गत इन समस्याओं के समाधान करने की मांग किसान नेताओं ने की। इन मांगों का पूर्ण समाधान न होने तक उत्तराखंड किसान सभा के नेतृत्व में गांव-गांव में चल रहे इस आंदोलन को तेज व व्यापक करने की रूपरेखा के साथ-साथ 20 जुलाई 2021 को सम्पूर्ण राज्य में विरोध प्रदर्शन का निर्णय लिया है।

अखिल भारतीय किसान सभा के रुद्रप्रयाग जिला सचिव राजाराम सेमवाल का कहना है कि हम सड़क चौड़ीकरण के विरोध में नहीं है, लेकिन सड़क चौड़ीकरण में अंनियमितताओं के चलते जो समस्याएं पैदा हुई हैं जैसे डम्पिंग जोन में जो क्षमता से अधिक मलवा डाला जा रहा है, वह नीचे खेतों और पर्यावरण की दृष्टि से अत्यधिक उपयोगी पेड़ों को नष्ट कर रहा है और इस मलवे से जो खेत नष्ट हुए है उन का मुआवाजा भी लोगों को नहीं दिया जा रहा है। सड़क चौड़ीकरण के लिए पहाडों की कटाई के कारण आस-पास के गांवों को जाने वाली सड़कों का संपर्क मुख्य सड़क से टूट चुका है। इसी के साथ पानी की पाइपलाइनें भी काफी जगह टूटी हैं। लेकिन इन को सही करने के ऊपर प्रशासन का कोई ध्यान नहीं है। लोगों को उन के नुकसान का मुआवजा अभी तक नहीं मिल पाया है। इन्हीं सभी समस्याओं को देखते हुए यह आंदोलन किया जा रहा है और यदि आवश्यकता हुई तो इस आंदोलन को राज्यव्यापी और अंततः देशव्यापी किया जायेगा।

किसान नेता शिवप्रसाद देवली का कहना है कि पहाड़ में होने वाले किसी भी निर्माण का लाभ पहाड़ की जनता को नहीं मिलता चाहे वह चार धाम प्रोजेक्ट हो या हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्ट। इन सभी का लाभ बड़े-बड़े पूंजीपति हड़प जाते हैंं। चारधाम प्रोजेक्ट की बात करे तो इस रोड के चोडी होने से अधिकांश स्थानीय लोगो के रोजगार को नुकसान हुआ है जिस का हरजाना अभी तक लोगो को नहीं मिल पाया है| इस के आलावा वन पंचायतो की अनुमति के बिना ही हजारो की संख्या में पेड़ो का कटान हुआ है, विकास के नामपर प्रकृति का दोहन हो रहा है इस का हर्जाना भी स्थानीय लोगो को ही भरना होगा, उन्होंने आगे बताया कि उत्तराखंड का निर्माण अपने जल जंगल और जमीन को बचाने के लिये ही हुआ था लेकिन राज्य बनने के 21 साल बाद भी राज्य के लोगो को उन का हक़ नहीं मिल पाया, आज भी लोग पानी, रोजगार, बिजली और पलायन  की समस्या से जूझ रहे है| अत: AIKS ने यह फ़ेसला लिया है कि अपने हक के लिये इस आन्दोलन को तब तक जरी रखा जायेगा जब तक हमारी मांगे पूरी नहीं हो जाती और यदि जरुरत हुई तो इस आन्दोलन को देश व्यापी आन्दोलन भी बनाया जायेगा।

चार धाम परियोजना में हाई पावर कमेटी के सदस्य रहे हेमंत ध्यानी बताते हैं कि इस प्रकार की समस्या पैदा होंगी ये जानकारी पहले ही हाई पावर कमेटी की रिपोर्ट में दी जा चुकी है। क्योंकी जिन मानकों के अनुसार कार्य हो रहा है वह केवल मैदानी क्षेत्रों के लिए कारगर है पहाड़ लिये नहीं, पहाड़ में जितनी अधिक चौड़ी सड़क बनेगी उतना अधिक पहाड़ों की कटाई होगी और भूस्खलन उतना ज़्यादा होगा। मामला अभी कोर्ट में है इसलिए जब तक कोर्ट का फ़ैसला नहीं आजाता तब तक कोई नया निर्माण नहीं होना चाहिए और कटाई के कारण जो समस्याएं पैदा हुई हैं उन का जल्द समाधान होना चाहिए ताकि कोई और बड़ी घटना जन्म न लें।

ह्यूमन राइट्स लॉयर और कंज़र्वेशन ऐक्टिविस्ट रीनू पॉल का कहना है कि चार धाम प्रोजेक्ट जैसा निर्माण हिमालय पर्वत माला के लिये बहुत ही खतरनाक है। इस प्रकार के निर्माण से भूस्खलन की घटनाये बढ़ जाती हैं, जो सीधे-सीधे यहां के परिस्थातिक तंत्र को प्रभावित करता है। ये सभी प्रकृति के लिये भी सुखद समाचार नहीं है। आगे वह सरकार के इस प्रकार के निर्णय पर चिंता व्यक्त करते हुए कहती हैं, “सरकार के साथ-साथ लोगों को भी अपनी ज़िम्मेदारी समझनी होगी क्योंकि चारधाम प्रोजेक्ट के अनुसार क्षमता से अधिक पर्यटक केदार घाटी पहुंचेंगे जो प्रकृति और हमारी संस्कृति दोनों के लिये ही खतरनाक है। यहां इन किसानों की ही भांति प्रत्येक नागरिक को प्रकृति और अपनी संस्कृति को बचाये रखने के लिये अपनी आवाज उठानी चाहिए।”

विकास बहुत जरूरी है, लेकिन किस कीमत पर यह जानना बहुत आवश्यक है। क्योंकि प्राकृतिक मानकों को दरकिनार कर किया गया विकास, विकास नहीं विनाश होता है। अत: अब आवश्यकता है कि इस अंधे विकास से बचा जाये।

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