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खबरों के आगे-पीछे: अंदरुनी कलह तो भाजपा में भी कम नहीं

राजस्थान में वसुंधरा खेमा उनके चेहरे पर अगला चुनाव लड़ने का दबाव बना रहा है, तो प्रदेश अध्यक्ष सतीश पुनिया से लेकर केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत इसके खिलाफ है। ऐसी ही खींचतान महाराष्ट्र में भी चल रही है, जहां देवेंद्र फड़नवीस बनाम चंद्रकांत पाटिल का मसला सुलझ नहीं रहा है।
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माना जाता है कि भाजपा बहुत ही अनुशासित और संगठित पार्टी है और जब से नरेंद्र मोदी व अमित शाह ने कमान संभाली है, तब से पार्टी के अंदर कुछ ज्यादा ही अनुशासन कायम हो गया है। यह सोचा ही नहीं जा सकता है कि पार्टी के नेता केंद्रीय नेतृत्व के किसी फैसले पर सवाल उठाएं और आपस में लड़ाई करे। लेकिन असल में हो यही रहा है, खास कर उन राज्यों में जहां भाजपा सत्ता में नहीं है। यह और बात है वैसे गुटबाजी तो उन राज्यों में भी है जहां भाजपा की सरकारें हैं, लेकिन चूंकि मुख्यमंत्रियों को आलाकमान का वरदहस्त प्राप्त है इसलिए वहां विवाद सामने ज्यादा दिखता नहीं है। लेकिन जहां पार्टी विपक्ष में है, वहां गुटबाजी बहुत साफ दिख रही है। इसका नतीजा यह हो रहा है कि भाजपा राज्य सरकारों के खिलाफ प्रभावी विपक्ष की भूमिका नहीं निभा पा रही है।

झारखंड में विधानसभा का गठन हुए ढाई साल हो गए हैं और अभी तक सरकार ने भाजपा विधायक दल के नेता को नेता विपक्ष का दर्ज़ा नहीं दिया है। पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी विधायक दल के नेता हैं, लेकिन उनकी पार्टी टूटने और उसके भाजपा में विलय को लेकर तकनीकी सवालों के आधार पर उनको नेता विपक्ष का दर्ज़ा नहीं मिल पा रहा है। पर पार्टी की ओर से इसके लिए कोई आंदोलन या विरोध नहीं है। विधानसभा में भी सब कुछ सामान्य तरीके से चलता है। मरांडी की टीम उनको मुख्यमंत्री बनवाने में लगी है, तो दूसरी ओर पार्टी के ज्यादातर नेता ऐसे प्रयासों को विफल करने में लगे हैं। इसी तरह राजस्थान में वसुंधरा राजे बनाम अन्य की खींचतान चल रही है। वसुंधरा खेमा उनके चेहरे पर अगला चुनाव लड़ने का दबाव बना रहा है, तो प्रदेश अध्यक्ष सतीश पुनिया से लेकर केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत यह लाइन पकड़े हुए हैं कि नेता का नाम पार्टी आलाकमान तय करेगा। ऐसी ही खींचतान महाराष्ट्र में भी चल रही है, जहां देवेंद्र फड़नवीस बनाम चंद्रकांत पाटिल का मसला सुलझ नहीं रहा है। कई जानकारों का मानना है कि अगर यह मामला सुलझ जाता तो वहां भाजपा की सरकार बन जाती। दिल्ली में सारे पुराने नेता घर बैठा दिए गए हैं, लेकिन नए नेताओं में भी पूर्व अध्यक्ष मनोज तिवारी बनाम मौजूदा अध्यक्ष आदेश गुप्ता की वजह से पार्टी एकजुट नहीं हो पा रही है।

ट्विटर पर स्वच्छता अभियान से किसे होगी परेशानी?

ट्विटर के नए मालिक एलन मस्क ने स्वच्छता अभियान छेड़ने का ऐलान किया है। उन्होंने ट्विटर को खरीदते ही कहा कि फर्जी ट्विटर अकाउंट्स बंद किए जाएंगे, ट्विटर यूजर्स की पहचान की जाएगी और ट्रोल्स की छुट्टी होगी। सवाल है कि इस सफाई अभियान से सबसे ज्यादा परेशानी किसे होगी? वैसे तो सभी राजनीतिक दलों और नेताओं ने अपनी सोशल मीडिया टीम बना रखी है और सब झूठे-सच्चे ट्विट कराते रहते हैं, लेकिन इस मामले में सबसे ज्यादा सक्रिय भाजपा का आईटी सेल है। उसके पास हजारों की संख्या में साइबर सोल्जर हैं, जो कुछ मिनटों में ही किसी भी विपक्षी नेता की दुर्गति कर देते हैं। यह बात खुद गृह मंत्री अमित शाह भी अपने कार्यकर्ताओं की एक बैठक में कह चुके हैं कि हमारे पास किसी भी सच-झूठ को मिनटों में वायरल कराने की क्षमता है। भाजपा का आईटी सेल सरकार विरोधी किसी भी ट्विट या ट्रेंड को चलने नहीं देता है। तत्काल नए ट्रेंड शुरू कर दिए जाते हैं। भाजपा के अलावा आम आदमी पार्टी के पास भी आईटी की बड़ी टीम है, जो झूठे-सच्चे ट्वीट्स को वायरल कराती है। पिछले दिनों पार्टी की नेता आतिशी सिंह ने केरल सरकार के कथित अधिकारियों के दिल्ली के स्कूल देखने का एक ट्वीट किया था, जिसे हर प्लेटफॉर्म पर वायरल किया गया। बाद में खुलासा हुआ कि केरल का कोई अधिकारी दिल्ली के स्कूल देखने नहीं आया था। कांग्रेस का आईटी सेल ज्यादा सक्षम नहीं है, पर कई प्रादेशिक क्षत्रपों की टीमें इसे एक मारक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करती हैं। इसलिए कहा जा रहा है कि सबसे ज्यादा चिंता राजनीतिक दलों के कार्यालयों में होगी, क्योंकि अगर सफाई हुई और फर्जी अकाउंट्स बंद कराए गए तो कई दलों का फर्जीवाड़ा और प्रोपेगेंडा बंद होगा।

आम आदमी पार्टी का अनोखा सर्वे मॉडल 

आम आदमी पार्टी दूसरे कई मामलों में भले ही बाकी पार्टियों जैसी हो, लेकिन आंतरिक सर्वेक्षण कराने के मामले में सबसे अलग है। भाजपा, कांग्रेस और अन्य पार्टियां अपने संगठनात्मक फैसलों या चुनावी स्थिति का आकलन करने के लिए आंतरिक सर्वेक्षण कराती रहती हैं। लेकिन आम आदमी पार्टी का सर्वेक्षण का अपना एक मॉडल है। वह खुद सर्वे कराती है और उसे अपने राजनीतिक मकसद के लिए घोषित करती है। जैसे अभी उसने फिर एक सर्वे की घोषणा की है। यह सर्वे पूरे देश में होगा, जिसमें आम आदमी पार्टी और भाजपा के बारे में लोगों की राय पूछी जाएगी। इसके जरिए आम आदमी पार्टी का मकसद अपने को भाजपा से बेहतर बताने का है, जो इस सर्वेक्षण से जाहिर होगा। सर्वेक्षण शुरू होते ही सबको इसके नतीजे पता है। सबको पता है कि इस कथित सर्वेक्षण के बाद उसकी ओर से ऐलान किया जाएगा कि देश के लोगों को भाजपा की बजाय आम आदमी पार्टी पसंद है और उसकी दोनों सरकारों का मॉडल भाजपा की सरकारों से ज्यादा बेहतर है। इससे पहले भी आम आदमी पार्टी कई सर्वेक्षण करा चुकी है, जिसमें हर बार नतीजे उसके मनमाफिक आए हैं। बताया जा रहा है कि यह नया सर्वे अखिल भारतीय राजनीति के लिए पार्टी की पोजिशनिंग की शुरुआत है। असल में देश भर मे हो रहे सांप्रदायिक दंगों और नफरत फैलाने वाले भाषणों के बीच अरविंद केजरीवाल की चुप्पी को लेकर सवाल उठे हैं। उस चुप्पी पर पर्दा डालने या उससे ध्यान भटकाने के लिए इस सर्वेक्षण की घोषणा हुई है।

दिल्ली का दंगा संयोग है या प्रयोग? 

दिल्ली में हुए सांप्रदायिक दंगे की टाइमिंग को लेकर सवाल उठ रहे है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन की भारत यात्रा से ठीक पहले सांप्रदायिक दंगा हुआ। कहा जा सकता है कि यह संयोग था क्योंकि उससे पहले हनुमान जयंती की शोभायात्रा पर कथित पथराव हुआ, जिसके बाद दंगा हुआ और नगर निगम ने लोगों के मकानों-दुकानों पर बुलडोजर चलवाए। लेकिन याद करें कैसे दो साल पहले कोरोना की शुरुआत के समय अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की यात्रा के समय भी दिल्ली में दंगे हुए थे। उस समय 23 फरवरी को दंगे शुरू हुए थे और इसके अगले ही दिन ट्रंप भारत पहुंचे थे। वे पहले गुजरात गए थे और वहां 'नमस्ते ट्रंप’ कार्यक्रम में शामिल होने के बाद अगले दिन दिल्ली पहुंचे थे। जिस समय ट्रंप दिल्ली में थे उस समय दिल्ली का एक हिस्सा दंगे की चपेट में था। नागरिकता कानून को लेकर शुरू हुआ यह दंगा उसके बाद भी कई दिन तक चलता रहा था। वह दंगा दिल्ली विधानसभा चुनाव के ठीक बाद हुआ था, जिसमें भाजपा बुरी तरह हारी थी। इस बार के दंगे की टाइमिंग का सवाल इसलिए भी है क्योंकि इससे ठीक पहले दिल्ली नगर निगम के चुनाव टले हैं। उधर पंजाब में आम आदमी पार्टी जीती और इधर दिल्ली में चुनाव टल गए। उसके बाद सांप्रदायिक दंगा शुरू हो गया और बुलडोजर भी चलने लगे। इसलिए कहीं न कहीं यह किसी प्रयोग का हिस्सा लग रहा है।

भाषा विवाद को क्यों सुलगा रही है भाजपा?

गृह मंत्री अमित शाह ने पिछले दिनों हिंदी को देशभर की संपर्क भाषा बनाने का जो बयान दिया है, उस पर दक्षिण भारत के सभी राज्यों में जिस तरह तीखी प्रतिक्रिया हो रही है उसे देखते हुए ऐसा लगता है कि भाजपा में दक्षिण भारत में अपने विस्तार की उम्मीद छोड़ दी है और वह उत्तर भारत खासकर हिंदी भाषी क्षेत्रों पर अपना ध्यान केंद्रित करने जा रही है। उसको लग रहा है कि कर्नाटक को छोड़ कर दक्षिण के बाकी राज्यों में कम से कम 2024 के लोकसभा चुनाव में कुछ नहीं हो सकता है। इसलिए उसकी कोशिश हिंदी पट्टी के राज्यों में अपनी बढ़त बनाए रखने और उसे ज्यादा एकजुट करने की हो गई है। अमित शाह का हिंदी को लेकर दिया गया बयान उसकी इसी रणनीति का नतीजा है। गौरतलब है कि उत्तर भारत के हिंदी भाषी राज्यों में करीब सवा दो सौ सीटें हैं, जिनमें से से लगभग 90 फीसदी सीटें भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियों के पास हैं। अगर भाजपा इस स्थिति को बनाए रखने में कामयाब हो जाती है तो उसके लिए 2024 का चुनाव आसान हो जाएगा। क्योंकि हिंदी पट्टी के राज्यों- उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, बिहार, झारखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, दिल्ली और हरियाणा के अलावा भाजपा को गुजरात में सारी सीटें जीतने का भरोसा है। इसके अलावा महाराष्ट्र, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर के राज्यों में उसे कुछ सीटें मिल जाएंगी तो बहुमत हासिल हो जाएगा। संभवत: इसी वजह से हिंदी की बहस छेड़ी गई है। इस मुद्दे पर दक्षिण भारत में हिंदी का जितना विरोध होगा, उत्तर भारत में भाजपा को अपनी स्थिति मजबूत करने मे उतनी मदद मिलेगी। 

मोदी सरकार की आठवीं सालगिरह की तैयारी

अगले महीने नरेंदर मोदी सरकार के आठ साल पूरे हो जाएंगे। उनकी दूसरे कार्यकाल की तीसरी सालगिरह 30 मई को है। नरेंद्र मोदी की दूसरी सरकार मई 2019 में बनी थी और जनवरी 2020 से कोरोना का संक्रमण शुरू हो गया। सो, उनकी दूसरी सरकार की पहली और दूसरी सालगिरह धूमधाम से नहीं मनाई जा सकी थी। लेकिन इस बार भाजपा कुछ बड़ा करने की तैयारी हो रही है। हालांकि इस बार भी सरकार और भाजपा के पास कुछ खास नहीं है, क्योंकि महंगाई व बेरोजगारी का संकट है और देश की अर्थव्यवस्था लगभग चौपट हो चुकी है। इसके बावजूद पार्टी इस बार धूमधाम से सालगिरह मनाने की तैयारी कर रही है। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और केंद्रीय मंत्रियों की बैठक में सालगिरह की थीम पर विचार किया जा रहा है। क्या नया किया जाए, इसके आइडिया तलाशे जा रहे हैं। जो भी हो, इस मौके पर सरकार का बड़ा प्रचार अभियान चलेगा, जिसमें तीन बातें मुख्य रूप से होगी। कोरोना वायरस की मुफ्त वैक्सीन, देश भर में मुफ्त अनाज योजना और चार राज्यों में भाजपा की जीत। इन तीन बातों के इर्द-गिर्द ही भाजपा और सरकार का पूरा प्रचार अभियान चलेगा।

हिमाचल में परिवार के भरोसे है कांग्रेस

किसी भी राज्य में कांग्रेस आलाकमान को जब कुछ नहीं सूझता है तो वह किसी पुराने नेता को या उसके परिजनों को आगे कर देती है। हिमाचल प्रदेश में यही हुआ है। कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व को कुछ नहींं सूझा तो उसने दिवंगत नेता वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया। कहा जा रहा है कि उनके बेटे विक्रमादित्य सिंह को भी कुछ जिम्मेदारी दी जा सकती है। इसका मतलब है कि पार्टी पूरी तरह से वीरभद्र सिंह के परिवार पर आश्रित होकर चुनाव लड़ेगी। यह सोचने वाली बात है कि एक तरफ इस सूबे में भाजपा ने दोनों पुराने क्षत्रपों शांता कुमार और प्रेम कुमार धूमल की जगह नया नेता खड़ा कर लिया है, लेकिन कांग्रेस अभी तक वीरभद्र सिंह के परिवार में ही अटकी है। गौरतलब है कि पिछली बार चुनाव हारने के बाद धूमल भाजपा की राजनीति से दूर हैं। उनके बेटे अनुराग ठाकुर केंद्र सरकार में मंत्री हैं। पिछले दिनों उन्हें हिमाचल प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने की चर्चा हुई थी पर पार्टी आलाकमान ने साफ कर दिया कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ही पार्टी का चेहरा होंगे। दूसरी ओर कांग्रेस के पास ले-देकर वीरभद्र सिंह का परिवार ही है। पार्टी को विधायक दल के नेता मुकेश अग्निहोत्री, पूर्व अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खु, कौल सिंह ठाकुर, आनंद शर्मा जैसे नेता पर भरोसा नहीं है। वीरभद्र सिंह के नहीं रहने के बाद भी कांग्रेस नया नेता नहीं तैयार कर पाई इसलिए मजबूरी में प्रतिभा सिंह को कमान मिली। 

गुजरात भाजपा में कार्यकर्ता हैं या कर्मचारी? 

राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता होते हैं या कर्मचारी? यह सवाल इसलिए है क्योंकि गुजरात भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ने पार्टी के कार्यकर्ताओं को तीन दिन की छुट्टी देने का ऐलान किया है। पार्टी कार्यालय में काम करने वाले कर्मचारियों को नहीं, बल्कि पार्टी के कार्यकर्ताओं को। यह हैरान करने वाली बात है। क्या पार्टी के पास फुल टाइम काम करने वाले कार्यकर्ता हैं, जिनको छुट्टी की जरूरत है? गौरतलब है कि गुजरात भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल हैं, जिनका काम करने का मॉडल पूरे देश में मशहूर है। एक सांसद के नाते वे अपने क्षेत्र के लोगों के लिए जिस तरह काम करते हैं, उसका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कई बार जिक्र किया है। इसलिए जब उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए छुट्टी का ऐलान किया तो उस पर सवाल उठे। उन्होंने कहा है कि पार्टी के कार्यकर्ता दो से चार मई तक छुट्टी पर रहें, क्योंकि अगले छह महीने उनको बिना छुट्टी के काम करना है। दिसंबर में गुजरात विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। उसकी तैयारी शुरू होने से पहले उन्होंने कार्यकर्ताओं को छुट्टी दी है। बहरहाल, माना जा रहा है कि यह विपक्षी पार्टियों पर दबाव बनाने की एक मनोवैज्ञानिक पहल है क्योंकि कोई भी कार्यकर्ता हर दिन और सारे समय पार्टी का काम नहीं कर रहा होता है। इसलिए उसे तीन दिन की छुट्टी का कोई खास मतलब नहीं है।

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