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किसान आंदोलन: कड़ाके की ठंड और बारिश भी किसानों के हौसलों को डिगा न सकी

आँसू-गैस और बारिश की बौछार के बीच और किसान दिल्ली की ओर रवाना, आंदोलन तीव्र करने की दी चेतावनी
किसान आंदोलन

दिल्ली: केंद्र के नए कृषि क़ानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर पिछले 40 दिन से भी अधिक समय से डेरा डाले प्रदर्शनकारी किसानों की मुश्किलें रात भर हुई बारिश ने रविवार सुबह और बढ़ा दी। बारिश से उनके तंबुओं में पानी भर गया। उनके कंबल भींग गए तथा ईंधन एवं अलाव के लिए रखी गई लकड़ियां भी गीली हो गई। इन सबके बाद भी उनके हौंसलें में कोई कमी नहीं आई।  किसान आंदोलन स्थलों पर पूरे जोश और मुस्तैदी से डटे रहे। हालांकि, इन सबके बीच एक बार फिर हरियाणा सरकार ने किसानों पर अनगिनत आँसू-गैस के गोलों से हमला किया। तकलीफों के बाद भी आंदोलन दिन-ब-दिन और प्रखर और तेज़ होते जा रहा है। रविवार को महाराष्ट्र से सैकड़ों किसान एवं विद्यार्थी दिल्ली के लिए रवाना हुए।

मौसम किसानों के हौसले को पस्त नहीं कर सकता

प्रदर्शनकारियों के मुताबिक लगातार हुई बारिश के चलते आंदोलन स्थलों पर जलभराव हो गया और ‘वाटरप्रूफ’ तंबुओं से भी उन्हें ज़्यादा मदद नहीं मिली।

संयुक्त किसान मोर्चा के सदस्य एवं किसान नेता अभिमन्यु कोहाड़ ने रविवार को कहा कि किसान जिन तंबुओं में रह रहे हैं, वे वाटरप्रूफ हैं लेकिन ये हाड़ कंपा देने वाली ठंड और जलभराव से उनकी रक्षा नहीं कर सकते।

उन्होंने कहा, ‘‘बारिश की वजह से प्रदर्शन स्थलों पर हालात बहुत खराब हैं, यहाँ जलभराव हो गया है। बारिश के बाद ठिठुरन बहुत बढ़ गई है, लेकिन सरकार को किसानों की पीड़ा नजर नहीं आ रही।’’

सिंघू बॉर्डर पर डेरा डाले किसान गुरविंदर सिंह ने ज़ोर देते हुए कहा, ‘‘मौसम किसानों के हौसले को पस्त नहीं कर सकता है, जो एक महीने से अधिक समय से प्रदर्शन कर रहे हैं।’’ उन्होंने आगे कहा, “चाहे कुछ हो जाए, हम यहाँ से तब तक नहीं हिलने वाले हैं, जब तक कि हमारी माँगें पूरी नहीं हो जाती हैं।’’

पंजाब और हरियाणा के किसानों समेत हज़ारों की संख्या में किसान केंद्र के तीन नए कृषि क़ानूनों के खिलाफ़ दिल्ली के सिंघू, टिकरी और ग़ाज़ीपुर बार्डर पर एक महीने से भी अधिक समय से डटे हुए हैं। 

एक अन्य प्रदर्शनकारी किसान वीरपाल सिंह ने कहा कि उनके कंबल, कपड़े, लकड़ियां आदि भींग गए हैं।

उन्होंने बताया, ‘‘बारिश के कारण हुए जलजमाव के चलते हमारे कपड़े भींग गए हैं। खाना बनाने में भी परेशानी आ रही है क्योंकि ईंधन की लकड़ी भींग गई हैं। हमारे पास एलपीजी (रसोई गैस) सिलेंडर है लेकिन यहाँ हर किसी के पास यह नहीं है।’’

ग़ाज़ीपुर बार्डर पर प्रदर्शन कर रहे किसानों में शामिल धर्मवीर यादव ने कहा, ‘‘चाहे भारी बारिश हो या तूफ़ान ही क्यों न आ जाए, हम किसी भी परेशानी का सामना करने को तैयार हैं, लेकिन जब तक माँगें पूरी नहीं होती हैं, हम इस स्थान से नहीं हटेंगे।’’

किसान मज़दूर संघर्ष समिति पंजाब के संयुक्त सचिव सुखविंदर सिंह ने कहा, ‘‘इस वक्त हम गेहूं की बुआई किया करते हैं। पंजाब में हम रात में और सुबह के वक्त खेतों में काम करते हैं, जहाँ तापमान यहाँ की तुलना में काफी कम होता है। यह (बारिश) किसानों के साहस को किसी भी कीमत पर कम नहीं कर पाएगी।’’

वहीं, कुछ किसानों ने बारिश की संभावना को ध्यान में रखते हुए समुचित तैयारियाँ भी कर रखी थी।

पंजाब के पटियाला जिले के गुरमेल सिंह ने कहा, ‘‘बारिश से हमें कोई फ़र्क नहीं पड़ता। हमने अपनी ट्रैक्टर-ट्रालियों को पूरी तरह से ढक दिया है।’’

हरियाणा के अंबाला जिला के निवासी अवतार सिंह ने कहा, ‘‘हमने बारिश को ध्यान में रखते हुए अपनी तैयारियाँ की थीं। अनाज पूरी तरह से सुरक्षित है और तंबू के अंदर है।’’

बारिश के एक दिन बाद भी किसान पानी और कीचड़ से परेशान तो हुए लेकिन उनके हौसले में कोई कमी नहीं आई है। बल्कि उनका कहना है कि इन सबसे उनके जोश और एकता को और मज़बूती मिली है।

महाराष्ट्र से सैकड़ों किसान एवं विद्यार्थी दिल्ली के लिए रवाना हुए

शायद सरकार को लग रहा है कि वो इस आंदोलन को जितना लंबा खींचेगी, उससे आंदोलन कर रहे किसान कमज़ोर हो कर वापस चले जाएंगे। लेकिन इसके उलट, सरकार की देरी इस आंदोलन के स्वरूप का और विस्तार हो रहा है। रविवार को महाराष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रों से सैकड़ों किसान, विद्यार्थी एवं अलग-अलग क्षेत्रों के लोग रविवार शाम को नागपुर से दिल्ली के लिए रवाना हुए। ये लोग कृषि क़ानूनों को वापस लेने की माँग को लेकर एक महीने से अधिक समय से राष्ट्रीय राजधानी की सीमाओं पर डेरा डाले कृषकों का साथ देंगे। किसान सभा के एक नेता ने यह जानकारी दी।

उन्होंने बताया कि पूर्वी महाराष्ट्र एवं मराठवाड़ा में जिन किसानों ने कर्ज़ या अन्य संबंधित मुद्दों के कारण ख़ुदकुशी कर ली, उनकी विधवाएं भी इस ‘चलो दिल्ली’ वाहन मार्च में शामिल हैं।

किसान सभा के नागपुर जिला सचिव अरूण वानकर ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘ये किसान और अन्य लोग बसों, चारपहिया गाड़ियों समेत 40 वाहनों में दिल्ली रवाना हुए।’’

उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र राज्य किसान सभा के करीब 800 सदस्य भी प्रदर्शनकारी किसानों का साथ देने के लिए दिल्ली जा रहे हैं।

उन्होंने आगे कहा, ‘‘हम उन किसानों का साथ देना चाहते हैं जो तीन कृषि क़ानूनों के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे हैं। ये तीनों कानून केंद्र सरकार ने तानाशाही तरीके से संसद से पारित कराए हैं।’’

किसानों के जज़्बे को कायम रखने के लिए बारिश के बीच सिंघू बॉर्डर पर महिला कबड्डी का आयोजन

नए कृषि क़ानूनों के खिलाफ़ प्रमुख प्रदर्शन स्थल और दिल्ली की सीमा पर स्थित सिंघू बॉर्डर रविवार को महिला कबड्डी प्रतियोगिता के लिए एक मैदान में तब्दील हो गया, जहाँ कड़ाके की ठंड के बीच हुई बारिश भी उनके इस जज़्बे को कम नहीं कर पाई। कुल 12 महिला टीमों ने इस प्रतियोगिता में हिस्सा लिया, जो पूर्वाह्न 11 बजे शुरू हुआ था।

किसान मज़दूर संघर्ष कमेटी पंजाब के संयुक्त सचिव सुखविंदर सिंह ने कहा कि महिलाएँ इस प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए खुद ही आगे आईं।

पंजाब के तरन तारन जिले के रहने वाले सिंह ने कहा, ‘‘विभिन्न राज्यों की टीमें आईं और हमसे कहा कि वे एक कबड्डी प्रतियोगिता का आयोजन करना चाहते हैं। हमने सिंघू बॉर्डर पर लोगों को सक्रिय रखने के लिए प्रत्येक दिन के लिए विभिन्न गतिविधियों की योजना बना रखी है।’’

हरियाणा पुलिस ने एक बार फिर किसानों पर की बर्बरता

आपको बता दें 31 दिसंबर को कुछ नौजवान किसान शाहजहाँपुर खेड़ा बॉर्डर पर बैरिकेड तोड़कर आगे बढ़ गए थे। हालांकि, उनकी संख्या कम थी। अधिकतर किसान शाहजहाँपुर बॉर्डर मोर्चे पर ही रह गए थे। कल रविवार को राजस्थान के गंगानगर और हनुमानगढ़ से आया किसानों के एक जत्थे ने भी नौजवानों के साथ शामिल हुए और दिल्ली की तरफ बढ़ने लगे। परन्तु इस बीच हरियाणा पुलिस ने दिल्ली की तरफ जा रहे किसानों पर रेवाड़ी जिले के मसानी बांध के पास रविवार की शाम को आँसू गैस के गोलों की बौछार कर दी। जिसमें कई किसान गंभीर रूप से घायल हो गए।

इस घटना की सभी किसान नेताओं ने निंदा की और इस बर्बरता को सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना बतया।

किसानों ने बुधला सांगवारी गांव के पास पहले पुलिस बैरीकेड तोड़े और फिर शाम में वे दिल्ली की तरफ बढ़ने लगे। ये नौजवानों का जत्था 31 दिसंबर से दिल्ली-जयपुर राजमार्ग के सर्विस लेन पर डेरा डाले हुए हैं।

रेवाड़ी के पुलिस अधीक्षक अभिषेक जोरवाल ने पीटीआई को फोन पर बताया कि, ‘‘हमने उन्हें (किसानों को) मसानी पर रोक दिया है।’’

आंदोलनकारी हर किसान-श्रमिक सत्याग्रही है जो अपना अधिकार लेकर रहेगा: राहुल गांधी

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने केंद्र सरकार के तीन नए कृषि क़ानूनों के खिलाफ़ जारी किसान आंदोलन की तुलना अंग्रेजों के शासन में हुए चंपारण आंदोलन से की और कहा कि आंदोलन में भाग ले रहा हर एक किसान एवं श्रमिक सत्याग्रही है, जो अपना अधिकार लेकर ही रहेगा।

गांधी ने ट्वीट किया, ‘‘देश एक बार फिर चंपारण जैसी त्रासदी झेलने जा रहा है। तब अंग्रेज़ ‘कम्पनी बहादुर’ था, अब मोदी-मित्र ‘कम्पनी बहादुर’ हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन आंदोलन में भाग ले रहा हर एक किसान-मज़दूर सत्याग्रही है जो अपना अधिकार लेकर ही रहेगा।

किसानों के साथ वार्ता से पहले नरेंद्र सिंह तोमर ने की राजनाथ सिंह के साथ चर्चा

केंद्र और प्रदर्शनकारी किसान संगठनों के बीच सातवें दौर की अहम वार्ता से एक दिन पहले रविवार को केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के साथ एक बैठक की और इस वर्तमान संकट के यथाशीघ्र समाधान के लिए सरकार की रणनीति पर चर्चा की। सूत्रों ने यह जानकारी दी।

सूत्रों के अनुसार तोमर ने सिंह के साथ इस संकट के समाधान के लिए ‘बीच का रास्ता’ ढूंढने के लिए ‘‘सभी संभावित विकल्पों’’ पर चर्चा की।

पिछले 40 दिनों से दिल्ली की सीमाओं पर ठिठुरती ठंड और अब बारिश के बाद भी टिके प्रदर्शनकारी किसानों ने धमकी दी है कि यदि तीन नए कृषि क़ानूनों को वापस लेने और न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी स्वरूप प्रदान करने की उनकी दो बड़ी माँगें सरकार 4 जनवरी की बैठक में नहीं मानती है तो वे अपना आंदोलन  और तेज़ करेंगे।

वर्षा होने से प्रदर्शन स्थलों पर पानी जमा हो गया है, लेकिन किसान संगठनों ने कहा है, ‘‘जब तक हमारी माँगें नहीं मान ली जाती हैं, तब तक हम यहाँ से नहीं हटेंगे।’’

पाँच दौर की वार्ता के बेनतीजा रहने के बाद 30 दिसंबर को छठे दौर की वार्ता में सरकार और 40 किसान संगठनों के बीच बिजली की दरों में वृद्धि एवं पराली जलाने पर ज़ुर्माने पर प्रदर्शनकारी किसानों की चिंताओं के समाधान पर बात बनी थी। लेकिन तीन कृषि क़ानूनों के निरसन एवं एमएसपी को कानूनी गारंटी देने के विषय पर दोनों पक्षों में गतिरोध कायम है।

पिछले सप्ताह प्रदर्शनकारी किसानों ने अल्टीमेटम जारी किया था कि यदि अगली दौर की वार्ता में उनकी माँगें नहीं मानी गयी तो वे गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में ट्रैक्टर परेड के साथ प्रवेश करेंगे।

(समाचार एजेंसी भाषा इनपुट के साथ )

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