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मंदुरी एयरपोर्ट प्रकरण: ‘खेतों में क़ब्रिस्तान बनाकर हम सबको गाड़ दो और हमारी ज़मीन ले जाओ!'

उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ के मंदुरी एयरपोर्ट के विस्तारीकरण का किसान जबर्दस्त विरोध कर रहे हैं। ज़मीन के अधिग्रहण और किसानों पर किए गए लाठीचार्ज के विरोध में संयुक्त किसान मोर्चा समेत कई संगठन भी साथ आए हैं और धरना दे रहे हैं।
kisan andolan

आजमगढ़ से तक़रीबन 19.4 किमी दूर एक गांव है जमुआ हरिराम। डबल इंजन की सरकार ने मंदुरी हवाई अड्डा के विस्तारीकरण के लिए जमुआ हरिराम और उसके आसपास के सात ग्राम पंचायतों की जमीनों का अधिग्रहण करने ऐलान किया है। ग्रामीणों की शिकायत है कि सरकार ज़बर्दस्ती उनकी ज़मीनों का अधिग्रहण कर रही है। पुश्तैनी जमीन छिन जाने के सदमें के चलते गदनपुर गांव के लल्लन राम और जिगिना गांव के जवाहिर यादव की मौत हो चुकी है।

जमुआ हरिराम गांव की सुनीता कहती हैं, "हमारी जमीनों पर एयरपोर्ट तो बन जाएगा, लेकिन हमारे जैसे हजारों लोग बेघर हो जाएंगे। देर-सबेर भाजपा सरकार चुपके से इस एयरपोर्ट को भी अडानी के हवाले कर देगी। हमारी ज़मीनें चली जाएंगी तो हम क्या करेंगे? कहां रहेंगे? सरकार से न तो हम मुक़दमा लड़ पाएंगे, न तो सीनाज़ोरी कर पाएंगे। सरकार से यही हमारा कहना है कि खेतों में कब्रिस्तान बनाकर हम सभी को गाड़ दो और हमारी ज़मीन ले जाओ!"

मंदुरी हवाई पट्टी का विस्तार यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्राथमिकता वाली परियोजनाओं में से एक है। रीजनल कनेक्टिविटी स्कीम के तहत यहां से फिलहाल 32 सीटर प्लेन उड़ाने की योजना है। आजमगढ़ के मंदुरी बल्देव गांव में पहले से ही हवाई पट्टी है। जमीन बंजर थी, इसलिए इलाकाई किसानों ने हवाई पट्टी का विरोध नहीं किया। साल 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी आजमगढ़ आए तो उन्होंने यहां न सिर्फ एयरपोर्ट की घोषणा की, बल्कि अगस्त 2018 में इसके विस्तार कार्य का शिलान्यास भी कर दिया।

मंदुरी एयरपोर्ट पर विमानों के संचालन के लिए जरूरी संसाधन जुटा लिए गए हैं। इसी साल नवंबर महीने के आखिरी हफ्ते से छोटे विमानों के संचालन की तैयारी है। भविष्य में इसका और विस्तार कर इसे नेशनल अथवा इंटरनेशनल एयरपोर्ट के रूप में विकसित करने की योजना है। प्रशासन ने एयरपोर्ट के विस्तारीकरण के लिए दो फेज में करीब 670 एकड़ जमीन का अधिग्रहण करने की योजना बनाई है। पहले फेज में 360 एकड़ जमीन का सर्वे कर लिया गया है, जबकि दूसरे फेज में 310 एकड़ जमीन का सर्वे बाकी है। मधुवन, गदनपुर, हिच्छन पट्टी, पाती, सउरा, बलदेव मंदुरी, कुआं देवचंद पट्टी, कंधरापुर आदि गांवों में सरकारी और निजी परिसंपत्तियों का मूल्यांकन का काम चल रहा है। मंदुरी एयरपोर्ट की परिसंपत्तियों के मूल्यांकन के लिए अधिग्रहित स्कूलों, निजी भवनों को चिह्नित कर उनकी मालियत निकाली जा रही है। इस कार्य में राजस्व, विकास विभाग और जल निगम विभाग के कर्मचारी लगाए गए हैं।

पिछले डेढ़ दशक से आजमगढ़ की पहचान 'अंडरवर्ल्ड' और 'टेरर फ़ैक्ट्री' जैसे शब्दों से होती रही है। इस ज़िले के चंद लोगों के 'मुंबई अंडरवर्ल्ड' में शामिल होने पर फिल्में बन चुकी हैं। चरमपंथी हमलों में शामिल होने के आरोप में आज़मगढ़ ज़िले के कई संदिग्ध युवक जेल में हैं तो कई लापता हैं। , कुछ को सज़ा हुई है और कुछ बरी भी हो चुके हैं। हालांकि आजमगढ़ में जिससे भी बात करेंगे, हर कोई यही कहता है कि यहां न आतंकवादी हैं और न ही माफिया डॉन। फिलहाल इस जिले के तमाम किसान मुश्किल में हैं। अपनी जमीन छिन जाने की आशंका में वो खौफजदा हैं और उनकी रातों की नींद गायब है। जमीन को बचाने के लिए वो अपनी जान देने तक के लिए तैयार हैं।

आधी रात में सर्वे, पुलिस का उत्पात

मंदुरी हवाई अड्डे के विस्तार के लिए जमीन अधिग्रहण का विरोध उस समय तेज़ हुआ जब सगड़ी तहसील के उप जिलाधिकारी राजीव रतन सिंह की अगुवाई में मूल्यांकन टीम 13 अक्टूबर 2022 को आधी रात जमुआ हरिराम पहुंची। उपजिलाधिकारी के साथ दो ट्रकों में भरकर पीएसी के जवान भी पहुंचे। साथ ही जमीन पर कब्जा लेने के लिए तहसील के कर्मचारी भी। बगैर नोटिस दिए सगड़ी के एसडीएम और तहसीलदार भारी फोर्स के साथ आधी रात में सर्वे शुरू किया तो ग्रामीणों ने विरोध किया। बाद में किसानों पर रासुका लगाने की धमकी देते हुए मार-पीट शुरू कर दी।

किसान रामनयन यादव कहते हैं, "ग्रामीणों को आतंकित करने के लिए एसडीएम राजीव रतन सिंह और उनके साथ आए कर्मचारियों ने पहले धमकी दी, फिर गाली-गलौज और मारपीट शुरू कर दी। महिलाओं और बच्चों के साथ अभद्रता की गई। पुलिसिया तांडव पर ग्रामीणों के विरोध के स्वर तेज हुए तो पुलिस और पीएसी के जवानों ने लोगों को दौड़ा-दौड़ाकर पीटना शुरू कर दिया। सावित्री और सुनीता को बुरी तरह पीटा गया। रात करीब दो बजे शौच करने निकले कपिल यादव और उनके पोते संजीव की जमकर पिटाई की गई। कपिल का हाथ फैक्चर हो गया। उनके पैरों में गंभीर चोट आई है। आतंक मचाने पहुंचे प्रशासनिक अफसरों ने बाद में चार लोगों को थाने लाकर हवालात में बंद कर दिया गया।"

घटना की चश्मदीद गवाह संगीता गोंड कहती हैं, "मैं खुद मौके पर मौजूद थी। मुझे तो सिर्फ इसलिए पीटा गया, क्योंकि हमने कपिल यादव को पीट रहे पुलिस के जवानों का विरोध किया। खुद एसडीएम ने हमें पांच-छह डंडे मारे। हमारा इकलौता बेटा संजू हमें बचाने आया तो उसे भी पीटा गया और बाद में उसे पुलिस की गाड़ी में ठूंस दिया गया। कड़े विरोध के बाद हमारे बेटे को छोड़ा गया। हमारे पास सिर्फ चार बिस्वा जमीन और एक छोटा सा घर है। हवाई अड्डे के लिए हमारी जमीन और घर ले लिया जाएगा तो हम कहां जाएंगे? सरकार जमीन ले रही है तो पहले वो हमारे पुनर्वास का इंतजाम करे। हमारे पति का पहले ही मौत हो चुकी है। हम बेटी को पढ़ाएंगे या घर बनवाएंगे?" पुलिसिया जुल्म-ज्यादती को बयां करते हुए सुनीता के आंसू छलकने लगते हैं।

जमुआ हरिराम में दहशत फैलाने के लिए 13 अक्टूबर 2022 की रात किए गए लाठीचार्ज से आसपास के दर्जन भर गांवों के लोग बेहद गुस्से में हैं। पिछले एक पखवाड़े से जमुआ स्थित सरकारी प्राइमरी स्कूल के समाने खिरिया की बाग में ग्रामीण धरना दे रहे हैं। खिरिया की बाग में पहले आम, अमरूद और कई अन्य फलदार पेड़ों के बगान हुआ करते थे। अब यहां आम के सिर्फ दो पेड़ बचे हैं। आम के इन्हीं पेड़ों पर ग्रामीणों ने बैनर टांग रखा है, जिस पर लिखा है, “जान दे देंगे, पर जमीन/मकान नहीं देंगे।” खिरिया के बाग में रोजाना तीन से चार हजार ग्रामीण जुट रहे हैं और मंदुरी हवाई पट्टी की विस्तार योजना का विरोध कर रहे हैं। दिवाली की शाम हजारों ग्रामीणों ने एक-एक दीपक अपनी जमीन बचाने के लिए जलाया।

एयरपोर्ट के लिए उजड़ी जा रही खेती

आजमगढ़ के मंदुरी एयरपोर्ट का इसलिए कड़ा विरोध हो रहा है क्योंकि यूपी सरकार इस परियोजना अमलीजामा पहनाने के लिए ग्रामीणों को उजाड़ने से पहले उनके पुनर्वास का इंतजाम करने के लिए तैयार नहीं है। सात ग्राम पंचायतों के कई गांव इस परियोजना के जद में हैं। ये सभी गांव बड़ी आबादी वाले हैं। इस इलाके में धान, गेहूं, मक्का, ज्वार सभी कुछ पैदा होता है। अधिसंख्य लोगों की आजीविका का साधन सिर्फ खेती-किसानी है। जमुआ हरिराम गांव में धरना स्थल पर मौजूद इसी गांव के शशिकांत उपाध्याय पेशे से सीमांत किसान हैं। वह कहते हैं, "हमें घर और खेतों से बेदखल कर दिया जाएगा तो विस्थापन का दर्द हमारी कई पीढ़ियों को झेलना पड़ेगा। हम सरकार और प्रशासन से पूछना चाहते हैं कि आखिर हमें क्यों परेशान किया जा रहा है? हम एयरपोर्ट के लिए अपनी जमीनें नहीं देना चाहते हैं। सरकार से विकास और सुविधाओं की डिमांड भी नहीं कर रहे हैं। वह हमारे साथ ऐसा खेल क्यों खेलना चाहती है कि किसानों के परिवार दर-दर की ठोकरें खाने के लिए विवश हो जाएं? " दरअसल, शशिकांत जैसे ज़्यादातर किसानों की सबसे बड़ी चिंता की वजह है बच्चों का भविष्य।

शशिकांत उपाध्याय कहते हैं, "हम सालों से सुनते आ रहे हैं कि अच्छे दिन आएंगे। समझ में नहीं आ रहा है कि किसके अच्छे दिन आएंगे? हम तो अच्छे दिन के लिए खेतों में मेहनत कर रहे थे, लेकिन आ गए बुरे दिन। घर-जमीन सब कुछ जब सरकार ले लेगी तब हम कहा जाएंगे? हमें एयरपोर्ट की जरूरत नहीं है। योगी सरकार बस इतना रहम कर दे कि वो हमारे जैसे किसानों को हमारे हाल पर छोड़ दे। सरकार का जोर शिक्षा पर नहीं, एयरपोर्ट पर है। शायद वो यह एयरपोर्ट भी अपने कारपोरेट दोस्तों के हवाले करना चाहते हैं? प्रजा तभी सुकून से रहती है, जब राजा अच्छा होता है। हमारी वेदना सुनने वाला कोई नहीं है। 13 अक्टूबर की रात में पुलिस ने ग्रामीणों के साथ जिस तरह का सुलूक किया उस मंजर को देखने के बाद कोई भी कांप जाएगा। हमारे पास तो कहने के लिए शब्द ही नहीं हैं। मोदी-योगी हमें नहीं सुहा रहे हैं। बेहतर होगा कि दोनों नेता राक्षसों वाला काम न करें। किसानों की बद्दुआएं निकलेंगी तो असर जरूर होगा। जुल्म-ज्यादती करने वालों के भी दुर्दिन आएंगे।"

"अधिग्रहण के नोटिफ़िकेशन से सभी गांव वाले परेशान हैं। हम किसान हैं। खेती और पशुपालन कर जीवनयापन करते हैं। अगर सरकार हमारी ज़मीन ले लेगी तो हम कहां जाएंगे! हमने संबंधित अधिकारियों से बात करने की कोशिश की, लेकिन हमें कहीं से संतोषजनक जवाब नहीं मिला। उल्टे सरकार और प्रशासन ने ज़मीन अधिग्रहण की सहमति देने के लिए हम लोगों पर दबाव डालना शुरू कर दिया है। हमने कई बार प्रशासन के सामने अपनी बात रखी है। अफसरों को यह भी बताया है कि आज़ादी के पहले से ही हम ज़मींदारों की ज़मीनों पर रिआये (प्रजा) की तरह बसे हुए हैं। फिर भी प्रशासन मनमानी कर रहा है। यह स्थित तब है जब कई साल बीत जाने के बाद भी प्रशासन ने न तो किसानों की सहमति ली और न ही मुआवज़े पर बात हुई। अलबत्ता प्रभावित गांवों के किसानों को तरह-तरह से टॉर्चर कर रहा है। फर्जी मुकदमें लादे जा रहे हैं।"

टॉर्चर करके ली जा रही सहमति?

हसनपुर की रेखा कहती हैं, "चोर और गुंडे हमारे घरों में घुसते हैं तो हम पुलिस से शिकायत करते हैं। जब वही पीटाने और घसीटने पर उतारू हो जाएं तो हम किसके आगे गुहार लगाएंगे? " पुलिसिया जुल्म की शिकार चंदुआ हरिरामपुर की रंजना कहती हैं, "13 अक्टूबर की रात पुलिस ने जो नंगा नाच किया वो हम सभी के लिए एक बुरा सपना की तरह था।" पुलिस पर बर्बरता का आरोप लगाते हुए ग्राम प्रधान मनोज यादव कहते हैं, "हम शांतिपूर्ण थे और चाहते थे कि हमारी मांगों को शांतिपूर्ण तरीके से सुनी जाए, लेकिन ऐसा लगता है कि पुलिस ने न्याय के लिए हमारी पुकार को खतरे के रूप में लिया है। यह साबित करने के लिए कि वे हमें चुप करा सकते हैं। पुलिस ने कई पुरुषों, महिलाओं और बच्चों के साथ मारपीट की है। पुलिस की लाठियों के निशान आज भी कई लोगों के शरीर पर मौजूद हैं।"

जमुआ हरिराम की सावित्री के पास सिर्फ दो बिस्वा जमीन और एक दड़बेनुमा मकान है। उसी में उनके तीन बच्चे और जानवर भी पलते हैं। इनके पति पतिराम रिक्शा चलते हैं, तब किसी तरह नसीब हो पाती है दो वक्त की रूखी-सूखी रोटी। पुलिस ने इनके पैरों पर डंडे मारे हैं, जिसके नीले पड़े निशान अब तक मौजूद हैं। वह कहती हैं, "पुलिस वालों ने गुंडों-मवालियों को फेल कर दिया। हमारे साथ बदसलूकी की गई।" 19 वर्षीया सुनीता का दर्द भी सावित्री जैसा ही था। वह कहती हैं, "पुलिस ने हमारे हाथ और कमर पर डंडे बरसाए। हमारा कुसूर सिर्फ इतना था कि पुलिस हमारे भाई सब्बू कुमार को पीट रही थी और हम उसे बचाने चले गए।"

किसान संदीप कुमार ने नंगे पैर ही खेत में चलते हुए कहा, "देखिए खेती के लिए कितनी बढ़िया ज़मीन है ये, हमारे बाप दादा पुरखे यहां रहते और खेती करते आए, लेकिन अब सरकार हमें उजाड़ना चाहती है। सरकार मंदुरी एयरपोर्ट के लिए जिन गांवों की जमीनें ले रही है वहां चारों तरफ़ धान की फ़सल लहलहा रही है। किसान रबी की फसल की तैयारी में जुटे हैं। इस इलाके की मिट्टी उपजाऊ है। पानी की कोई कमी नहीं है। इसलिए यहां के किसान एक ही सीज़न में कई चीज़ों की खेती करते हैं। हमारे जिन खेतों पर सरकार एयरपोर्ट बनवाना चाहती है, उस पर हजारों किसान आबाद हैं। सभी किसानों की जमीनें छिन गई तो करीब सवा लाख लोग बेघर हो जाएंगे। हैरानी की बात यह है कि जमीनों का सर्वे ठीक ढंग से नहीं किया गया है। सही सर्वे बंदोबस्त के बिना ज़मीनों का अधिग्रहण कैसे किया जाएगा? किसकी ज़मीन कहां तक है, और किसका घर किस गाटा संख्या में है यह प्रशासन कैसे तय करेगा? हमारी मुश्किलों की दास्तां, हमारी आहें, हमारी कराहें न मोदी के पास पहुंच रही हैं और न योगी के पास।"

संदीप कहते हैं, "वे कह रहे हैं कि किसान सहमति से अपनी ज़मीनें दे रहे हैं, लेकिन सचाई यह है कि प्रशासन गांव के लोगों को तरह-तरह से टॉर्चर कर सहमति ले रहा है। अकारण लोगों को पीटा और सताया जा रहा है। अब जिसको अपने परिवार को पालना है वो तुरंत कहता है कि सरकार हमारी ज़मीन ले लो। जो कर्मचारी और टीचर हैं उन्हें निलंबित कराने की धमकी दी जा रही है। जो लेखपाल है उसके अधिकारी से धमकी, जो कोटेदार हैं उसको सस्पेंड कर दे रहे हैं और बैनामा करने का दबाव बना रहे हैं। अब जिसको नौकरी करनी है, बच्चों का पेट पालना है वो मजबूरन अपनी सहमति दे रहा है। किसी ने एक इंच भी सरकार की ज़मीन पर क़ब्ज़ा कर रखा है तो उसको कह रहे हैं कि पूरी बिल्डिंग को ध्वस्त कर देंगे, अगर कार्रवाई से बचना है तो बैनामा कर दो। सरकार के अधिकारी डंडे मारकर सहमति ले रहे हैं।"

यह पूछे जाने पर कि सरकार तो चार गुना मुआवज़ा देने के लिए राज़ी हो गई है फिर क्यों सहमति नहीं बन पा रही है। इस पर किसान नेता राजेश आजाद बताते हैं, "सरकार चार गुना मुआवज़ा देने के लिए तो तैयार हो गई है, लेकिन ज़मीन का सर्किल रेट साल 2017 से नहीं बढ़ा है। जबकि कम से कम 10 प्रतिशत हर साल बढ़ना चाहिए और बढ़ती महंगाई को ध्यान में रखते हुए ये ज़रूरी भी है। सरकार 2013 के भूमि अधिग्रहण क़ानून के तहत किसानों की ज़मीन लेने में आनाकानी कर रही है, क्योंकि 2013 अधिग्रहण क़ानून के तहत भू-स्वामियों को मुआवज़ा देना सरकार को महंगा पड़ रहा है। इसलिए सरकार और प्रशासन हर जगह कह रहा है कि किसान सहमति से अपनी ज़मीन दे रहे हैं।"

विस्तारीकरण का जबर्दस्त विरोध

उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ के मंदुरी एयरपोर्ट के विस्तारीकरण का एक ओर किसान जबर्दस्त विरोध कर रहे हैं, दूसरी ओर बिग चार्टर प्राइवेट लिमिटेड कंपनी इस एयरपोर्ट से अगले महीने लखनऊ के लिए विमान सेवा शुरू करने जा रहा है। मंदुरी एयरपोर्ट के विस्तारीकरण के लिए पहले फेज का सर्वे पूरा हो चुका है। दूसरे फेज में 310 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया जाना जाना है। शासन की ओर से जिला प्रशासन को उपलब्ध कराई गई सूची में सौरा, साती, कंधरापुर, मधुबन और कुआ देवपट्टटी बाहर हो गए है। इनके स्थान पर मंदुरी, जमुआ हरिराम, गदनपुर हिच्छन पट्टी, कादीपुर, हसनपुर, जोलहा जमुआ और जिगिना कर्मनपुर गांव विस्तारीकरण में आ रहा है। योगी सरकार ने फिलहाल जिन गांवों के किसानों की जमीन अधिग्रहित करने की योजना बनाई है उसमें गदनपुर हिच्छनपट्टी, कुंवा देवचंद पट्टी, कंधरापुर, मधुबन, बलदेव मंदुरी, सांती, सऊरा गांव शामिल हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि प्रशासन बगैर जमीन की पैमाइश किए ही अधिग्रहित करने के लिए नापजोख करा रहा है। वो अपनी जमीन किसी कीमत पर नहीं देंगे।

आजमगढ़ के अपर जिलाधिकारी प्रशासन अनिल कुमार मिश्र के मुताबिक, "हवाई अड्डे के विस्तारीकरण का काम दो चरणों में पूरा किया जाना है। पहले चरण में 360 एकड़ जमीन और दूसरे चरण में 310 एकड़ भूमि प्रस्तावित है जिसका प्रस्ताव शासन को भेजा जा चुका है। प्रस्ताव कैबिनेट के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा और जब बजट आवंटन होगा तब काश्तकारों से मुआवजे पर बात की जाएगी। यह सरकार का ड्रीम प्रोजेक्ट है। इसे इंटरनेशनल एयरपोर्ट बनाने की तैयारी की जा रही है।"

मंदुरी एयरपोर्ट परियोजना के कारण अपनी भूमि से बेदखली का सामना कर रहे ग्रामीण सरकार के साथ इसलिए संघर्ष कर रहे हैं क्योंकि वे मुआवजे से संतुष्ट नहीं है। वो पुनर्वास पैकेज चाहते हैं। एयरपोर्ट के विस्तारीकरण परियोजना का विरोध करने वाले ग्रामीणों का डर यह है कि उनके हाथ से जमीनें चली गई तो नए सिरे से बसने में कई पीढ़ियों को मरना-खपना पड़ेगा। पीड़ित किसानों का आरोप है कि नए सर्वे में आठ ग्राम सभाएं पूरी तरह उजाड़ दी जाएंगी। जमुआ हरिरामपुर गांव के आशोक राम, शंभू पासवान, आशीष उपाध्याय, सुधीर उपाध्याय, रामअवतार शुक्ला, निर्मल राम, लालबहादुर पांडेय कहते हैं, "हमें घर व उपजाऊ भूमि से बेदखल होना पड़ेगा। हमारी जमीन, मकान आबादी सब हवाई अड्डा (वल्देव मंदुरी) के विस्तार की भेंट चढ़ जाएगी। जमीन अधिग्रहण से अपूर्णनीय क्षति हो रही है। आबादी के अधिग्रहण से आम जनता का काफी नुकसान है। अधिग्रहण का विरोध करने वाले पर पुलिस बर्बता कर रही है। फर्जी मुकदमा में लोगों को चालान किया जा रहा है।"

ग्रामीणों के साथ धरने पर किसान संगठन

मंदुरी हवाई पट्टी के विस्तारीकरण के लिए जमीन के अधिग्रहण और किसानों पर किए गए लाठीचार्ज के विरोध में संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) समेत कई किसान संगठन धरना दे रहे हैं। 22 अक्टूबर 2022 को जमुआ हरिराम में पूर्वांचल भर के तमाम किसान नेता जुटे। बनारस से जमुआ हरिराम पहुंचे किसान नेता चौधरी राजेंद्र सिंह ने सीधे तौर पर आरोप लगाया, “मोदी सरकार निजीकरण के नाम पर सरकारी व सार्वजनिक संस्थानों को लगातार पूंजीपतियों को बेच रही है। इस वजह से डबल इंजन की सरकार से जनता का भरोसा उठता जा रहा है। कल तक मुसलमानों के खिलाफ बुलडोजर चलाया जा रहा था, अब गरीबों के खिलाफ चलाने लगा है। जगह-जगह बंजर, परती, जीएस की जमीनों पर बसे गरीबों की बेदखली का नोटिस थमाया जा रहा है।“

चंदुआ हरिराम स्थित धरना स्थल पर मौजूदा सुमित्रा, दुखहरण राम, राहुल विद्यार्थी, विनोद यादव, अवधेश यादव, प्रमोद, आशीष उपाध्याय, सुरेश, मुन्ना लाल, राधेश्याम ने "न्यूजक्लिक" से कहा, "हवाई पट्टी, मंडी, हाईवे, एक्सप्रेस वे, अभ्यारण्य, सेंचुरी के नाम पर हर रोज नए-नए सामंत और बड़े भूस्वामी तैयार किए जा रहे हैं। मोदी सरकर किसानों किसानों और मजदूरों को सस्ता व लाचार मजदूर बना चुकी है। अब उनके मान-सम्मान और स्वाभिमान को छीनकर बंधुआ बनाने की तैयारी में जुटी है। किसानों-मजदूरों की लड़ाई लड़ने के लिए एसकेएम हर गांव में संघर्ष कमेटियों का गठन करने पर जोर दे रही है, जिसमें महिलाओं की अग्रिम भूमिका होगी।"

मंदुरी एयरपोर्ट के विस्तारीकरण को लेकर ग्रामीणों के बाद सपा भी विरोध में उतर आई है। गोपालपुर विधायक नफीस अहमद, मुबारकपुर विधायक अखिलेश यादव, जिला पंचायत अध्यक्ष विजय यादव, देवनाथ यादव, लालजीत क्रांतिकारी, हरिराम यादव, जोरार खान, अजीत कुमार राव, रामनरायन सिंह, संतोष यादव, निवर्तमान जिलाध्यक्ष हवलदार यादव ने योगी सरकार को ज्ञापन भेजकर विस्तारीकरण रोकने की मांग उठाई है। प्रतिनिधिमंडल में शामिल निजामाबाद के विधायक आलमबदी आजमी कहते हैं, "मंदुरी हवाईपट्टी साल 2005 से स्थापित है। साल 2017-18 में इसका विस्तारीकरण होकर राजकीय मंदुरी एयरपोर्ट का निर्माण कार्य शुरू हुआ। इसके विस्तारीकरण के नाम पर अब किसानों उपजाऊ जमीनों को चिह्नित किया जा रहा है। इसमें आवासीय आबादी, स्कूलों, अस्पतालों के अलावा एक बड़ी आबादी प्रभावित हो रही है, जिससे बल्देव मंदुरी, गदनपुर हिच्छनपट्टी, सौरा, साती, कंधरापुर, मधुबन और कुआं देवचंदपट्टी आदि गांवों के हजारों लोग काफी भयभीत और चिंतित हैं। सभी किसानों के माथे पर चिंता की गहरी लकीरें उभर आई हैं। अधिग्रहण होने पर मकान और आबादी का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा और वे लोग बेघर हो जाएंगे। अगर एयरपोर्ट का विस्तार जरूरी है तो आबादी से दूर किसी सरकारी जमीन का अधिग्रहण किया जाए।"

खेत ही नहीं, आवास भी छीन रही सरकार

'लैंड कॉनफ़्लिक्ट वॉच' के आंकड़ों का हवाला देते हुए समाजवादी जन परिषद के महासचिव अफलातून कहते हैं, "साल 2013 के भूमि अधिग्रहण क़ानून के तहत अधिग्रहण के लिए भू-स्वामियों की सहमति लेना, सामाजिक प्रभाव का मूल्यांकन करना और पुनर्वास की व्यवस्था कराना आसान प्रक्रिया नहीं है। नए कानून के तहत अधिग्रहण की जा रही ज़मीनों के लिए उचित मुआवज़े की व्यवस्था की गई है। लेकिन सरकारें क़ानून का सही तरीक़े से पालन नहीं कर रही हैं। 35 फीसदी से ज़्यादा भूमि अधिग्रहण के मामले विवादित हैं। उचित मुआवज़ा न देना, जबरन घर ख़ाली कराना, पुनर्वास की व्यवस्था न करना सामान्य बात हो गई है। गांव के लोग जीवकोपार्जन के लिए खेती और पशुपालन पर निर्भर हैं। ऐसे में उनकी चिंता है कि अगर वे अपनी ज़मीनें दे देते हैं तो बदले में सरकार उनका भविष्य कैसे सुरक्षित करेगी? ज़मीन के बदले ज़मीन देगी या किसी सदस्य को नौकरी देगी? इस पर सरकार या प्रशासन की तरफ़ से कोई लिखित आश्वासन नहीं मिलने से मुंदरी हवाई अड्डे से प्रभावित किसान काफी चिंतित हैं। एयरपोर्ट मामले में सबसे अहम बात यह है कि हजारों किसानों की सिर्फ जमीनें ही नहीं, उनके आवास भी छीने जा रहे हैं।"

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, पूर्वांचल में दो तिहाई से ज़्यादा आबादी के लिए रोज़ी-रोटी का प्रमुख साधन है खेती-किसानी। एक दशक पहले तक एक किसान के पास औसतन सिर्फ़ तीन एकड़ ज़मीन होती थी, जो अब और भी घट गई है। पूर्वांचल के जाने-माने पत्रकार एवं चिंतक प्रदीप कुमार कहते हैं, " केरल, बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु जैसे राज्यों में औसत जोत का आकार आधे से दो एकड़ के बीच है। इस संदर्भ में देखें तो फ्रांस में भूमि जोत का आकार औसतन 110 एकड़, अमरीका में 450 एकड़ और ब्राजील व अर्जेंटीना में तो इससे भी अधिक है। भारतीय अर्थव्यवस्था में खेती सबसे कम उत्पादक क्षेत्र है। देश के जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में कृषि क्षेत्र का योगदान 15 फीसदी है, जबकि खेतों में काम करने वालों की संख्या देश के कुल कार्यबल के आधे से अधिक है। इस तरह ज़मीन भारत का दुलर्भतम संसाधन तो है ही, साथ ही, इसकी उत्पादकता भी बेहद कम है। ये एक गंभीर समस्या है और ये भारत की ग़रीबी का मूल कारण भी है। मंदुरी हवाई अड्डे के विस्तारीकरण के विरोध में उतरे किसानों की चिंता की असल वजह भी यही है।"

प्रदीप यह भी कहते हैं, "उत्पादकता में तेजी लाने के दो बुनायादी तरीके हैं। पहला, कृषि को अधिक उत्पादक बनाया जाए और दूसरा, ज़मीन को खेती के अलावा किसी अन्य काम के लिए इस्तेमाल किया जाए। आज़ादी के बाद हमारे देश में विकास की प्रक्रिया इसी नुस्ख़े पर चली। बड़े पैमाने पर सिंचाई और कृषि को आधुनिक बनाने का सरकारी प्रयास किया गया। साथ ही सरकार के नेतृत्व में औद्योगिकीकरण और शहरीकरण का अभियान भी चलाया गया। कृषि को बड़े पैमाने पर आधुनिक बनाने के लिए प्रयास किए गए, जिसमें राज्य की अगुआई में औद्योगिकीकरण और शहरीकरण अभियान भी शामिल है। इन दोनों प्रक्रियाओं के कारण व्यापक स्तर पर भूमि अधिग्रहण हुआ। आज़ाद भारत ने भूमि अधिग्रहण के लिए जिस क़ानून का सहारा लिया वो 1894 में बना था। इसने एक झटके में बड़ी ज़मीदारियों और विवादास्पद मामलों को हल कर दिया। छले गए तो सिर्फ छोटे और सीमांत किसान। इन किसानों को अब अपने भविष्य की चिंता सता रही है।"

किसान नेता राजीव यादव "न्यूजक्लिक" से कहते हैं, "इंडियन एयरलाइंस, कोयला, खनन, रेलवे, बीमा समेत अन्य सार्वजनिक संस्थानों को बेचने पर तुली सरकार जनता का विश्वास खो चुकी है। इसके जमीन छिनने के हर कदम में पूंजीपतियों की दलाली छिपी लगती है। जमीन अधिग्रहण का मामल केवल आजमगढ़ में ही नहीं है, बल्कि छत्तीसगढ़, झारखंड, सिलगेर व हसदेव अभ्यारण्य से लेकर पूर्वी उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार के कैमूर में भी चल रहा है। यह एक सरकारी तरीक़ा है भारत के उद्योगपतियों द्वारा किसानों की ज़मीन पर कब्जा करने का। भूमि अधिग्रहण से सबसे अधिक प्रभावित होने वाले भू-मालिकों को ज़मीन की काफी कम क़ीमत मिली। कइयों को तो अब तक कुछ नहीं मिला। ज़मीन के सहारे रोज़ी-रोटी कमाने वाले भूमिहीन लोगों को तो कोई भुगतान भी नहीं किया गया। ज़मीन अधिग्रहण के बदले किया गया पुनर्वास बहुत कम हुआ या जो हुआ वो बहुत निम्न स्तर का था। इस मामले में सबसे ज़्यादा नुकसान दलितों और आदिवासियों को हुआ। ज़मीन हासिल करने की ये व्यवस्था पूरी तरह अन्यायपूर्ण थी, जिसके कारण लाखों परिवार बर्बाद हुए। इस प्रक्रिया ने बुनियादी संरचनाएं, सिंचाई और ऊर्जा व्यवस्था, औद्योगिकीकरण और शहरीकरण से लैस आधुनिक भारत को जन्म दिया।"

राजीव यह भी कहते हैं, "सत्ता में आते ही मोदी सरकार ने एक अध्यादेश जारी कर 2013 में यूपीए सरकार द्वारा लाए गए भूमि अधिग्रहण बिल से 'किसानों की सहमति' और 'सामाजिक प्रभाव के आंकलन' की अनिवार्यता को हटा दिया। यह रक्षा, राष्ट्रीय सुरक्षा, ग्रामीण बुनियादी संरचनाएं, सस्ते घर, औद्योगिक कॉरिडोर और अन्य आधारभूत संरचनाओं के लिए अधिग्रहण पर लागू कर दिया गया। नए विधेयक में अधिग्रहण के लिए लगने वाले समय में कई साल की कमी कर दी जिससे प्रॉपर्टी बाज़ार में दाम गिर गए। शहरी क्षेत्र के नज़दीक जो ज़मीनें हैं, वहां क़ीमतें आसमान छू रही हैं और इन इलाक़ों में ज़मीन मालिकों के लिए बहुत ज़्यादा मुनाफ़ा देने वाली हैं।"

" इसके अलावा, इस विधेयक में ऐसा कुछ नहीं है जो सबसे आसान शिकार किसान आबादी की भूमि अधिग्रहण चक्र से सुरक्षा कर सके। ये कई तरह की भ्रष्ट गतिविधियों के शिकार हैं, मसलन स्थानीय भू-माफ़िया कम क़ीमत देकर या बिना सहमति के उनकी ज़मीनें छीन लेता है और इसमें राजनीतिक दखलंदाज़ी भी शामिल है। अधिग्रहण विधेयक में जो सबसे अहम बात होनी चाहिए, वो ये कि भारत की भौगोलिक और आर्थिक विविधता से साथ साथ विशेष स्थानीय संस्कृति और इतिहास को पहचानना चाहिए। मंदुरी एयरपोर्ट का विस्तारीकरण आजमगढ़ के किसानों के साथ छलावा है। धोखे से छीनी गई किसानों की जमीनें कौड़ियों के दाम पूंजीपतियों के हवाले कर देगी। भाजपा सरकार का यह खेल कोई नया नहीं, सालों से चल रहा और शायद सत्ता में बने रहने तक कारपोरेट घरानों को उपकृत करने का सिलसिला जारी रहेगा।"

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