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बीच बहस: आह किसान! वाह किसान!

बंगाल में किसान के घर खाना खाते अमित शाह की तस्वीरें देखकर दिल्ली के विज्ञान भवन की वह तस्वीरें भी याद आ गईं जब किसानों ने वार्ता के दौरान सरकार का खाना खाने से इंकार कर दिया था और लंगर से आए भोजन को ज़मीन पर बैठकर खाया था। काश...!
बंगाल में किसान के घर खाना खाते अमित शाह की तस्वीर

दिल्ली के बॉर्डर पर किसानों को ठिठुरता छोड़कर देश के गृहमंत्री अमित शाह दो दिन के दौरे पर पश्चिम बंगाल पहुंच गए हैं और वो भी किसलिए- पश्चिम बंगाल में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा की तैयारियों का जायजा लेने के लिए। वे और उनके मंत्री-सहयोगी अब हर चौथे-आठवें दिन बंगाल पहुंच रहे हैं।  इससे पहले वे बिहार में और उसके बाद हैदराबाद नगर निगम के चुनाव में बिज़ी थे। शायद अब उनके पास देश में चुनाव की तैयारियों के अलावा कोई काम ही नहीं बचा है। और जैसे कोरोना भी शायद ख़त्म हो गया है, जबकि इसी कोरोना के नाम पर उन्होंने संसद का शीत सत्र रद्द कराया है।  

अमित शाह ने आज शनिवार को मिदनापुर में पहले एक किसान के घर दोपहर का भोजन भी किया है, लेकिन उन्हें याद रखना चाहिए कि नमक का क़र्ज़ भी अदा करना होता है। ये किसान भले उनकी पार्टी भाजपा का समर्थक या कार्यकर्ता हो, लेकिन अगर वाकई किसान है, तो उसे भी किसानों के दुख-दर्द का पता होना चाहिए और उसके घर भोजन करने वालों को भी जान लेना चाहिए कि किसान सबको खिलाने की क्षमता रखता है, बस हम ही उसका क़र्ज़ अदा नहीं कर पाते बल्कि उसे ही क़र्ज़ में धकेल देते हैं।

फोटो साभार : इंडिया टुडे 

किसान के घर खाना खाते अमित शाह की मनोहारी तस्वीरें देखकर दिल्ली के विज्ञान भवन की वह तस्वीरें भी याद आ गईं जब किसानों ने समझौता वार्ता के दौरान सरकार का खाना खाने से इंकार कर दिया था और लंगर से आए भोजन को ज़मीन पर बैठकर खाया था।

फोटो साभार : एनडीटीवी 

काश! आप या आपके मंत्री उसी समय उनके साथ ज़मीन पर बैठकर लंगर का खाना खा लेते यानी “अपना सिंहासन छोड़कर धरातल पर आकर किसानों की समस्या को समझते और सुलझाते” तो आज ये तस्वीरें बनाने और दिखाने की ज़रूरत न पड़ती।

वैसे बंगाल का हाल देखकर लगता है कि अगर आज पूरे देश में चुनाव होते...तो मोदीजी, शाह जी किसान के घर जाने की बजाय खुद ही किसान बन जाते!

आज अमित शाह के किसान के घर खाना खाते हुए देखकर लोकसभा और विधानसभा चुनाव से पहले इसी तरह कई राज्यों में आपको नेताओं के किसानों, दलितों के घर जाने, खाना खाने और रात बिताने की तस्वीरें ज़रूर याद आ गई होंगी। मुझे तो एक और तस्वीर याद आ गई, वो है प्रधानमंत्री द्वारा सफ़ाकर्मियों के पांव धोने की तस्वीर।

आपको याद है न कि लोकसभा चुनाव से पहले फरवरी, 2019 में कुंभ मेले के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रयागराज (इलाहाबाद) में खुद पांच सफ़ाईकर्मियों के पांव धोए थे, उस तस्वीर को किस तरह वायरल कर भुनाया गया था। यह अलग बात है कि उसके बाद उन्होंने या उनकी सरकार ने सफ़ाईकर्मियों की तरफ़ पलटकर नहीं देखा कि आज भी क्यों उनके पांव कीचड़ में सने हैं, क्यों आज भी सर पर मैला ढोया जा रहा है।

ख़ैर, अभी भी देर नहीं हुई है, अभी भी समस्याओं का समाधान हो सकता है, बस ध्यान केवल ख़ुद खाना खाने की बजाय खाना उपजाने वालों पर, खाना कमाने वालों पर लगाना होगा।

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