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स्मार्ट सिटी में दफन हो रही बनारस की मस्ती और मौलिकता

बनारस का मज़ा और मस्ती लुप्त होती जा रही है। जनता पर अनियोजित विकास जबरिया थोपा जा रहा है। स्मार्ट बनाने के फेर में इस शहर का दम घुट रहा है... तिल-तिलकर मर रहा है। बनारस वह शहर है जो मरना नहीं, जीना सिखाता रहा है।”
स्मार्ट सिटी में दफन हो रही बनारस की मस्ती और मौलिकता

बनारस के बारे में कहा जाता है, “मजा पाना है तो घाटों के शहर में आइए। जो मजा बनारस में है, वो न पेरिस में है, न लंदन में है...।” मगर अफसोस, बनारस का मजा और मस्ती लुप्त होती जा रही है। स्मार्ट बनाने के फेर में इस शहर का दम घुट रहा है...मर रहा है, क्योंकि यहां अनियोजित विकास जबरिया थोपा जा रहा है। स्मार्ट सिटी के नाम पर अरबों रुपये गंवा चुकी नौकरशाही ने कितना बदला है बनारस को? इस सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार रतन सिंह की तल्खी साफ-साफ झलकती है। वह कहते हैं, “अरबों रुपये खर्चने के बावजूद इस शहर में पैर रखने और सांस लेने की जगह नहीं। कहीं रुकने और सुस्ताने की जगह नहीं। नहाने, शौच करने, वाहन खड़ा करने का पुख्ता इंतजाम नहीं। पीने का पानी नहीं। समय से गंतव्य तक पहुंचने की गारंटी नहीं। गझिन शहर में अगर कुछ है तो हर तरफ सिर्फ जाम का झाम। नौकरशाही नशे में है। उसे इस शहर को स्मार्ट बनाने का इस कदर नशा है कि किसी से पूछे बगैर वह लोगों के सीने पर विकास का बोझ (टैक्स) लाद रही है। ऐसा विकास जिसकी इस शहर जरूरत ही नहीं थी।”

रतन यह भी कहते हैं, “बनारस को स्मार्ट बनाने की कवायद में जो विकास थोपा जा रहा है उसकी चोट हर किसी को लग रही है। जख्मों से लहर भी उठ रही है, लेकिन तिलमिलाहट का इजहार करने की हिम्मत किसी के पास नहीं है। स्मार्ट बनने के ख्वाब में मगन नई पीढ़ी को यह पता ही नहीं अब सुबह-ए-बनारस होता है भी है, या नहीं? जाहिर है कि सुबह हर रोज होती है, लेकिन गंगा में डुबकी लगाकर नहीं, घरों के अंदर नलों और शावर में नहाकर होती है। राशन की दुकानों पर कतार में खड़ा होने वाली होती है। बनारस तिल-तिलकर मर रहा है। यह वो शहर है जो मरना नहीं, जीना सिखाता रहा है।”

गंदगी और सड़ांध से बुरा हाल

स्मार्ट सिटी का मंतव्य है कदम-दर-कदम विकास। इसके तीन माडल हैं- रेट्रोफिटिंग, पुनर्विकास और हरितक्षेत्र। शहर को पर्याप्त और शुद्ध पानी, अवाध विद्युत आपूर्ति, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, स्वच्छता, कुशल शहरी गतिशीलता, सार्वजनिक परिवहन, गरीबों के लिए किफायती आवास, इंटरनेट कनेक्टिविटी और डिजिटलीकरण

सुशासन, टिकाऊ पर्यावरण, नागरिकों की सुरक्षा और संरक्षा, विशेष रूप से महिलाओं, बच्चों एवं बुजुर्गों की सुरक्षा, स्वास्थ्य व शिक्षा का उम्दा प्रबंध, विशेष रूप से ई-गवर्नेंस और नागरिक भागीदारी। यह योजना 'प्रतिस्पर्धी और सहकारी संघवाद' की भावना को दर्शाती है, लेकिन स्मार्ट हो रहे बनारस के हिस्से में आखिर क्या आया? स्मार्ट सिटी की रैंकिंग में देश में अव्वल आने वाले बनारस में विकास के नाम पर जो कुछ हो रहा है वह भी सिर्फ कुछ मुहल्लों तक में सिमट कर रह गया है यानी विश्वनाथ मंदिर के इर्द-गिर्द वाले इलाके। गलियों में जाकर देखेंगे तो विकास का नंगा सच देखने को मिलेगा।

बजरडीहा के अंबा मुहल्ले की गृहणी मंदिरा कहती हैं, “पिछले एक साल से हमारा समूचा मुहल्ला सीवर के गंदे पानी से डूबा हुआ है। गंदगी और सड़ांध से बुरा हाल है। कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है। हमारी गृहस्थी पानी में डूब गई है। ऐसे में हम कैसे कहें कि बनारस स्मार्ट हो रहा है।” यह कहानी सिर्फ अंबा की ही नहीं, दर्जनों मुहल्लों की है।

अच्छे दिन आ गए... !

नगर निगम के अफसरों को लगता है कि बनारसियों के अच्छे दिन आ गए हैं। अपर नगर आयुक्त देवी दयाल स्मार्ट सिटी पर बनारस की रैंकिंग पर गुमान करते हुए कहते हैं,  “आवास और शहरी मंत्रालय की ओर से 100 शहरों के लिए जारी रैंकिंग में अबकी बनारस अव्वल है। दूसरे नंबर पर भोपाल, तीसरे पर सूरत और चौथे पर अहमदाबाद है। साल 2019 में बनारस 13वें और साल 2020 में 7वें स्थान था। यूपी के लखनऊ, कानपुर, आगरा, झांसी, अलीगढ़, प्रयागराज, बरेली, सहारनपुर और मुरादाबाद जैसे शहर विकास के मामले में फिलहाल बनारस से बहुत पीछे हैं। साल 2016 से 2018 के बीच चार चरणों में स्मार्ट सिटी योजना के तहत इन शहरों का चयन किया गया था।”

दैनिक अखबार “अमर उजाला” के लिए स्मार्ट योजना को कवर करने वाले पत्रकार आलोक त्रिपाठी कहते हैं, “शहर को स्मार्ट सिटी बनाने वालों ने इसे बर्बाद कर दिया है। गृहकर कई गुना बढ़ गया है, लेकिन सुविधाएं नदारद हैं। लोगों को न साफ पानी मयस्सर हो पा रहा है, न गलियां दुरुस्त हुई हैं। पेयजल लाइनों और बिजली के जंक्शन खुले छोड़ दे गए हैं। मेनहोल को ढंग से ढंका तक नहीं गया है। दशाश्वमेध इलाके में कई स्थानों पर उल्टी सीवर लाइनें बिछा दी गई हैं। गलियों के मजबूत चौकों को उखाड़कर ठेकेदार ले गए। जो नए चौके बिछाए जा रहे हैं उनकी गुणवत्ता बेहद घटिया है। नए चौके लगने के साथ ही चिटकने लगे हैं। योजनाओं का सिर्फ कोरम पूरा हो रहा है। जिन मुहल्लों का कायाकल्प करने की बात कही जा रही है, उसकी सूरत ही बिगाड़ दी गई है। पार्षदों की नहीं सुनी जा रही है। ठेकेदारों की मनमानी का विरोध करने पर नगर निगम के पार्षद कुंवरकांत समेत दो के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराकर यह संदेश देने की कोशिश की गई कि जो बोलेगा वह जेल जाएगा। आने वाले दिनों में बनारसियों को समझ में आ जाएगा कि उन्हें अच्छे दिन की कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है?”

पत्रकार आलोक यह भी बताते हैं, “स्मार्ट सिटी योजना में लगे अफसरों की नीति-रीति से खुद महापौर श्रीमती मृदुला जायसवाल बेहद खफा हैं। इसी साल अगस्त के पहले हफ्ते में आयोजित नगर निगम कार्यकारिणी की बैठक में महापौर ने स्मार्ट सिटी के अफसरों और ठेकेदारों के रवैये पर गहरी नाराजगी जताई और सार्वजनिक रूप से कहा कि इनके अधिकारी, जनप्रतिनिधयों की बात ही नहीं सुनते। मृदुला ने साफ-साफ कहा कि शहर की ज्यादातर गलियों को खोदकर छोड़ दिया गया हैं। सारा का सारा काम ऊटपटांग ढंग से किया जा रहा है। जनता हमसे सवाल कर रही है। आखिर कैसे और क्या जवाब दें?”

बदहाल गलियों में टूट रहे हाथ-पैर

बनारस गलियों का शहर है, लेकिन स्मार्ट सिटी के नाम पर यहां जो खेल हो रहा है, उसे देखकर लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। खोजवां से लेकर भदैनी और बंगाली टोला से लगायत दशाश्वमेध तक गलियों का बुरा हाल है। चाहे पीलीकोठी जाइए या फिर राजघाट। गलियों के रास्ते आना-जाना दुश्वार है। खोजवां के सरायनंदन मुहल्ले में गारमेंट की दुकान चलाने वाले पप्पू गुप्ता कहते हैं, “स्मार्ट सिटी की दुश्वारियां हम पर भारी पड़ रही हैं। आसपास की सड़कें बदहाल हैं। बारिश के दिनों में ये सड़के ताल-तलैया में तब्दील हो जाती हैं।”

बंगाली टोला में परचून की दुकान चलाने वाले अशोक कुमार, कारोबारी अनूप व हेमंत तोलानी कहते हैं, “हमारा सारा कारोबार चौपट हो गया। साल भर से गलियां खुदी पड़ी हैं। रोजाना न जाने कितने लोगों के हाथ-पैर टूट रहे हैं। शिकायत पर सत्तारूढ़ दल के जनप्रतिनिधि आते हैं और ज्ञान बांटकर चले जाते हैं।” जालपा रोड की बदहाल सड़क को दिखाते हुए अवनीश रो पड़े और सवाल किया, “ये विकास है या विनाश?” पीलीकोठी पर मिले शमशीर। मोहम्मद सईद मस्जिद के सामने टूटी सड़क पर तंज कसते हुए कहा, “बनारस में स्मार्ट होने का मतलब है गलियों और सड़कों पर हाथ-पैर तुड़वाकर कुछ दिनों तक घर में आराम फरमाना। आखिर यही तो अच्छे दिन हैं।”

धोखा है स्मार्ट सिटी

गुणवत्तापूर्ण जीवन, स्वच्छ और टिकाऊ पर्यावरण और 'स्मार्ट' समाधानों के प्रयोग का मौका देती है स्मार्ट सिटी। शहर को एक रेप्लिकेबल मॉडल बनाने के लिए प्रकाश पुंज का ऐसा काम करती है, जिसे स्मार्ट सिटी के भीतर और बाहर दोहराया जा सके, ताकि देश के अन्य हिस्सों में भी इसी तरह के शहर के सृजन को उत्प्रेरित किया जा सके। दशाश्वमेध इलाके में व्यापारियों के हितों के लिए मुहिम चला रहे गणेश शंकर पांडेय कहते हैं, “बनारस में स्मार्ट सिटी योजना सिर्फ एक धोखा है। गोदौलिया से रथायात्रा, मदनपुरा, सोनापुरा, रेवड़ी तालाब, भेलूपुर, बेनियाबाग से लगायत लहुराबीर चले जाएइए क्या कोई काम नहीं हुआ है? फिर भी नाम दिया गया है स्मार्ट सिटी का। सारी सुंदरता विश्वनाथ मंदिर परिसर के अगल-बगल के इलाके में उतारी जा रही है ताकि धार्मिक यात्रा पर आने वालों को बताया जा सके कि पीएम मोदी बनारस को स्मार्ट कर दिया है। सिर्फ दशाश्मेध (वार्ड नंबर-81) और चितरंजन पार्क में काम हो रहा है। रात में गुलजार रहने वाले चौक-बुनानाला और लहुराबीर इलाके में घूम आइए। शहर के लोग स्मार्ट बनाने के धोखे का खामियाजा रोज-रोज भुगत रहे हैं।”

सरकारी नुमाइंदों की कार्यशैली से बेहद खफा गणेश शंकर यह भी कहते हैं, “तालाब और बावलियों का शहर रहे बनारस में को देखिए।  तालबों  में फैली काई किसी अफसर को नहीं दिखती। सोनिया पोखरा, सगरा तालाब, नदेसर तालाब स्मार्ट सिटी योजना को मुंह चिढ़ा रहे हैं। शहर के मुस्लिम बहुल इलाकों का हाल तो और भी ज्यादा खराब है। नौकरशाही ने बजबजा रहे बजरडीहा, कोनिया, पीलीकठी, नक्खीघाट जैसे दर्जनों इलाकों को भगवान भरोसे छोड़ दिया है। जहां थोड़ा बहुत विकास हो भी रहा है वहां काम कम डिमास्ट्रेशन ज्यादा है।”

लुप्त हो रही शहर की पहचान

जिन शहरों में हम सदियों से रह रहे हैं उन्हें सुधार कर भविष्य के लिए तैयार करने की कवायद है स्मार्ट सिटी योजना। ऐसा तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या और बढ़ते प्रदूषण के जवाब में हो रहा है। साथ ही पूरे शहर को एक साथ वेब नेटवर्क पर जोड़ना भी नए शहर बसाने और पुराने शहरों के नवीनीकरण का एक प्रमुख कारण है। स्मार्ट शहर का मतलब ये हो सकता है कि डेटा की मदद से ट्रैफिक में जाम से बचा जा सके, या फिर निवासियों को बेहतर सूचना देने के लिए विभिन्न सेवाओं को एक साथ जोड़ देना। वहीं कुछ शहर स्मार्ट होने का मकसद शहरों को और हरा-भरा और पर्यावरण को कम दूषित करना है।

बनारस के एमएलसी शतरुद्र प्रकाश कहते हैं, “हमारी पहचान खत्म हो रही है। कोई प्राकृतिक प्रतिमान बचा ही नहीं है। हेरिटेज को बचाने के बजाए तहस-नहस किया जा रहा है। चाहे वह विश्नाथ मंदिर इलाका हो या फिर बेनियाबाग व टाउनहाल का मैदान। शहर के सांस्कृतिक और आर्थिक चक्र को खंडित किया जा रहा है। स्मार्ट सिटी के बहाने यूं ही काम होता रहा तो हम न अपना आस्तित्व बचा पाएंगे, न पहचान। पहले बनारस से लेकर मगध तक कारोबार होता था। इस शहर की अपनी आर्थिक नीति थी, जिसके दम पर देश भर के कारोबारी यहां खिंचते हुए चले आते थे। पीएम नरेंद्र मोदी की पहल पर अरबों की लागत से बड़ा लालपुर में स्थापित ट्रेड फेसिलिटेशन सेंटर को देखिए या फिर जाल्हूपुर में बंदरगाह, सिगरा में रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर अथवा गंगा की रेत पर बनी नहर, क्या इनसे बनारस के विकास को नई रफ्तार मिल सकी? अव्वल तो बनारस के लोग न तो समझ पाए और न ही सरकार हमें समझा पाई कि आखिर किसे कहते हैं स्मार्ट सिटी? जिस शहर का सीवर सिस्टम और ट्रैफिक ठीक नहीं, वह कैसे स्मार्ट हो सकता है? मोदी से पूछने की कोई हिम्मत तो करे कि वह इस शहर में क्या कर रहे हैं? बनारस का पीएम होने का जनता को नुकसान यह है कि अफसर आम आदमी की सुन ही नहीं रहा है। जनता का धन डिमांड डेवलपमेंट के बजाए इंपोज डेवलपमेंट के नाम पर खर्च किया जा रहा है।”

शतरुद्र यह भी कहते हैं, “थोपा हुआ विकास बनारसियों के मन के अनुकूल नहीं है। स्मार्ट सिटी में जनता की कोई भागीदारी नहीं है। बनारस के मेयर, पार्षदों-विधायकों तक से राय-मशवरा नहीं। पत्रकारों, वकीलों, प्रबुद्ध लोगों को पता नहीं कि विकास नाम पर शहर में क्या हो रहा है? जब हम अपनी पूंजी संभाल नहीं पा रहे तो कोई भी तहस-नहस कर देगा। हम विश्वनाथ मंदिर ही नहीं बचा सके, बेनिया के गांधीचौरा को नहीं बचा सके, गलियां नहीं बचा सके तो फिर हमें क्योटो का सपना क्यों दिखाया जा रहा है? हम  चंडीगढ़, पूना, इंदौर भी बन गए होते तब भी गुंजाइश थी, हमारा तो कोई पुरसाहाल ही नहीं है। अगर बीएचयू का ले-आउट भी चुरा लेते तब भी बनारस स्मार्ट हो गया होता। दीवार में छेद होगा तो पानी आएगा ही। पहले लोग बनारस के नाम पर एक हो जाते थे। हम अपना फर्ज भूलकर खामोश बैठ गए हैं तो चोर-डाकू आएंगे ही।”

जुमला है मोदी का सफरनामा

दुनियाभर में चर्चा में रहने वाले ऐसे स्मार्ट शहरों सॉन्गडो (दक्षिण कोरिया), मास्दार (संयुक्त अरब अमीरात),रियो डे जेनेरो ( ब्राज़ील), बार्सिलोना (स्पेन) और लंदन (इंग्लैंड) हैं जहां स्थानीय लोगों से विचार-विमर्श करने के बाद विकास की योजनाएं बनाई जा रही हैं। इसी तर्ज पर भाजपा सरकार ने देश के जिन 100 शहरों को स्मार्ट बनाने की योजना बनाई है वहां भौतिक, संस्थागत, सामाजिक और आर्थिक बुनियादी ढांचे का व्यापक विकास करना, हर किसी के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाना और निवेश को आकर्षित करना था। विकास व प्रगति के एक गुणी चक्र की स्थापना और प्रौद्योगिकी की मदद से लोगों का जीवन खुशहाल बनाना है। इस नई पहल और अभिनव प्रयास का आखिर क्या नतीजा निकला? वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप कुमार कहते हैं, “बनारस में मोदी का सफरनामा एक जुमला साबित हुआ है। शहर की पौराणिक पहचान मिटाई जा रही है। ऐसा क्रूर मजाक कभी नहीं दिखा था। बनारस की पुरानी कलाओं को बचाने के बजाए दीवारों पर चित्रकारी हो रही है। डीरेका, बरेका हो गया और ऐतिहासिक मंडुआहीह बनारस स्टेशन। कहावत है ‘बैठा बनिया क्या करे-एक कोठरी का धान दूसरी कोठरी में करे।’ होटल उद्योग तबाह हो गया। शिल्पकलाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गईं। हर तरफ लूट मची है। आशापुर में फ्लाई ओवर बना तो लागत बढ़ा दी और लंबाई 60 मीटकर घटाकर लाखों डकार लिए गए। बनारस शहर का भला कौन हिस्सा है जहां  सीवर न बजबता हो, गलियों की सड़कें ठीक हों? विकास का मतलब दशश्वमेध और अस्सी घाट नहीं। ट्रैफिक इंतजाम और पल्युशन की स्थिति बेकाबू है। शब्दों के मायाजाल की जादुगरी ज्यादा दिन असर नहीं कर पाएगी।”

क्या कहते हैं सरकारी आंकड़े?

स्मार्ट सिटी योजना के आंकड़ों पर गौर करें तो बनारस को स्मार्ट बनाने के लिए बनरस में 837 करोड़ की परियोजनाएं चलाई जा रही हैं। इसमें 261 करोड़ रुकी 16 परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं और 561 करोड़ की 25 गतिमान योजनाओं को अमलीजामा पहनाने की कवायद चल रही है। इनके अलावा 15 करोड़ की पांच योजनाओं की रफ्तार थोड़ी धीमी है। स्मार्ट सिटी के परियोजना प्रबंधक वासुदेवन कहते हैं, “बनारस में सिगरा स्थित कन्वेंशन सेंटर “रुद्राक्ष” सरकार की एक बड़ी उपलब्धि है। 14.21 करोड़ रुपये की लागत से मछोदरी का सरकारी स्कूल स्मार्ट हो चुका है। यहां बच्चों को अंग्रेजी मीडियम से शिक्षा दी जाएगी। मालवीय मार्केट को दिल्ली के कनाट प्लेस की तर्ज पर सजाया-संवारा जा रहा है। शहर में कई फ्लाई ओवर, आरओबी और फोरलेन सड़कों का जाल बिछाया जा रहा है। शहर को तेज रफ्तार से बदला जा रहा है। इसी का नतीजा है कि बनारस स्मार्ट सिटी योजना में अव्वल है। यूं समझें कि 837 करोड़ की योजनाओं से अपनी मस्ती में रहने वाला बनारस स्मार्ट हो रहा है। दिसंबर 2021 तक स्मार्ट सिटी की ज्यादतर योजनाएं पूरी हो जाएंगी। साल 2022 में बनारस के लोग इन सुविधाओं का उपभोग कर सकेंगे। इन योजनाओं पर करीब 1000 करोड़ रुपये खर्च होंगे।”

परियोजना प्रबंधक के मुताबिक, “पुराने शहर को सुरम्य, संयोजित, निर्मल और एकीकृत बनाने के लिए शहर के नौ इलाकों में काम चल रहा है। श्रेष्ठ प्राथमिकता बाबा विश्वनाथ मंदिर के आसपास रहने वाले इलाके के लोगों को दी जा रही है। समूचे बनारस में ई-गवर्नेंस और इंटीग्रेटेड ट्रैफिक मैनेजमेंट को प्राथमिकता से लागू किया जा रहा है, जो आधुनिक सुविधाओं से लैस होगा। घाटों और मंदिरों के पुनरुद्धार, पेयजल और बिजली की निर्बाध आपूर्ति, कूड़ा प्रबंधन और नदी मार्ग को विकसित करने पर जोर दिया जा रहा है। क्षेत्र के चिह्नित पार्क, कम जगह में मल्टी लेवल पार्किंग, कल्चर कम कन्वेंशन सेंटर, और टाउन हाल को स्मार्ट बनाया जाएगा। क्षेत्र में शिल्पी हाट, सेंटर आफ एक्सलेंस विद हाल ऑफ फेम, लाइट एंड साउंड शो, नाइट बाजार के साथ पुराने जलाशयों व पोखरों का पुनरुद्धार कर उन्हें नया रूप दिया जाएगा।”

स्मार्ट सिटी योजना के तहत 15.40 करोड़ रुपये की लागत से तालाबों के सुंदरीकरण का कार्य लगभग पूरा हो चुका है। टाउनहॉल में 23.31 करोड़ की लागत से पार्किंग की सुविधा की जाएगी। इसी तरह बेनियाबाग पार्किंग में 90.41 करोड़ से पार्किंग का काम तेजी चल रहा है। करीब 4.45 करोड़ से पांच पार्कों का सुंदरीकरण, 85.33 करोड़ से पांच वार्डों का कायकल्प हो रहा है। घाटों की मरम्मत के लिए 11.88 करोड़ के टेंडर जारी कर दिए गए हैं और काफी काम हो चुका है। हेरिटेज साइनेज लगाया जा रहा है, जिस पर करीब 5.08 करोड़ खर्च किए जाएंगे। शहर के चौराहों पर जेब्रा क्रासिंग के लिए 66 लाख, साउंड सिस्टम पर 8.87 करोड़ खर्च होंगे। शहर के सभी चौराहों पर 128.04 करोड़ रुपये की लागत से अत्याधुनिक कैमरे लगाए जा रहे हैं। दशाश्वमेध पर 26.58 करोड़ से पार्किंग का निर्माण कराया जा रहा है। इसी तरह संपूर्णानंद स्टेडियम को स्मार्ट बनाने पर 133 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई है और इसका ज्यादातर काम पूरा हो चुका है। बिजली व्यवस्था की ऑनलाइन मॉनिटरिंग व्यवस्था पर 72 करोड़ और इलेक्ट्रानिक गाड़ियों के लिए 21.64 करोड़ की लागत से चार्जिंग स्टेशन बनाने का कार्य जोरों से चल रहा है।

स्मार्ट सिटी योजना से शहर में लगाए जा रहे शक्तिशाली कैमरों को देखकर बहुत से लोग खुश हैं। पांडेयपुर चौराहे पर लगे कैमरों को दिखाते हुए युवक राजकुमार ने कहा, “ये कैमरे अपराधियों को पकड़ने के लिए नहीं, अलबत्ता पतलून उठाकर पेशाब करने वाले "भद्र पुरुषों" को सीधा करने और दीवारों पर, सड़क किनारे, पेड़ों के पीछे पेशाब करने की बुरी आदतें न छोड़ने वालों को जेल भेजकर सबक सिखाने के लिए लगाए जा रहे हैं।”

स्मार्ट सिटी, वेस्टेज आफ मनी योजना

स्मार्ट सिटी योजना जनता की सबसे अहम जरूरतों और उनके जीवन में सुधार करने के लिए सबसे बड़े अवसरों पर ध्यान केंद्रित करती है। साथ ही जनता के हितों को प्राथमिकता देती है। इस बाबत कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजय राय स्मार्ट सिटी को “वेस्टेज आफ मनी” की संज्ञा देते हैं। वह कहते हैं, “कोई मोदी से कोई यह पूछने की हिम्मत क्यों नहीं कर रहा है कि गोदौलिया पर करोड़ों की लागत से बनी पार्किंग में गाड़ियां खड़ी होने के बजाए सड़कों पर क्यों दिख रही हैं? जो सरकार आज तक बनारस का शाही नाला तक साफ नहीं करा सकी, वो शहर को स्मार्ट क्या बनाएगी? मोदी गंगा को “मां” कहते हैं और शहर की सारी गंदगी पवित्र नदी में बहाई जा रही है। मैदागिन चौराहे पर पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की प्रतिमा के ठीक नीचे शराबी और गंजेड़ी चिलम फूंकते नजर आते हैं। क्या कोई सुध लेना वाला है? शहर की कास्टमेटिक सर्जरी स्मार्ट सिटी का पैमाना नहीं है। बदहाल सिटी में रहकर जनता अब बोर हो गई है।” सपा नेता वीरेंद्र सिंह बेबाक टिप्पणी करते हैं, “बनारस हवा में स्मार्ट हो रहा है या फिर कागजों पर”। बनारस के स्मार्ट होने का मतलब है आमजन को राहत मिले। सिर्फ हाउस टैक्स और विद्युत बिल बढ़ा देने से कोई शहर स्मार्ट नहीं होता।”

सभी फोटोः विजय विनीत

विजय बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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