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गार्गी कॉलेज प्रकरण: अब हमले हमें डरा नहीं रहे, बल्कि एकजुट होना और बोलना सिखा रहे हैं

यह गार्गी प्रशासन की बड़ी लापरवाही ही है कि कॉलेज के भीतर एक अनजानी भीड़ प्रवेश पा गई और छात्राओं को इसका खामियाज़ा खराब अनुभवों को झेलकर भुगतना पड़ा। यही नहीं प्रशासन किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए न तैयार था न ही ऐसी कोई मंशा थी...।
Gargi college
Image courtesy: The Asian

बीती 6 फरवरी को दिल्ली विश्वविद्यालय के गार्गी कॉलेज के अंदर जो कुछ हुआ वह शर्मनाक है। कॉलेज छात्रसंघ का सालाना उत्सव था तीन दिन का जिसके आखिरी दिन अनजाने पुरुषों की एक भीड़ ने कॉलेज में जबरन प्रवेश किया और लड़कियों के बीच घुसकर उनसे बदसलूकी की और यौन हमले भी किए। प्रिंसिपल ने तत्काल शिकायत करने वाली लड़कियों को ही डांट दिया, कॉलेज प्रशासन ने पुलिस को सूचित नहीं किया और 9 फरवरी तक मीडिया ने इसे कहीं रिपोर्ट नहीं किया।

आखिरकार छात्राओं ने फैसला किया कि वे सोशल मीडिया पर अपनी बात रखेंगे। कई वीडियो क्लिप्स जारी हुए और ट्विटर और फेसबुक पर छात्राओं ने लिखा तो यह भयावह सच सामने आया। सोमवार को छात्राओं ने अपनी प्रिंसिपल से तमाम सवालों के जवाब भी मांगे और प्रिंसिपल ने भी माफी मांगी। दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल के हस्तक्षेप के बाद अंतत: दिल्ली पुलिस ने एफ़आईआर दर्ज की।

कौन थे ये लोग और क्यों घुसे थे कॉलेज में?

गार्गी, कालिंदी जैसे कॉलेज रिहायशी इलाको से हटकर बने हुए कॉलेज नहीं हैं वे कॉलोनियों के बीच बने कॉलेज हैं इस लिहाज़ से सुरक्षित होने चाहिए थे लेकिन बाहर आने-जाने वाला सामान्य ट्रैफिक और भीड़ के लिए वह आसानी से अप्रोचेबल है इसका नुकसान भी है। कुछ छात्राओं ने सोशल मीडिया पर लिखा और बताया कि 6 फरवरी को, फेस्ट के आखिरी दिन जब म्यूज़िक कंसर्ट होता है और आमतौर पर ज़्यादा भीड़ रहने की सम्भावना होती है, बगल में ही CAA समर्थन की रैली चल रही थी। अनजाने अधेड़ आदमियों का एक झुण्ड कॉलेज के भीतर जबरन प्रवेश कर गया जिससे भीड़ इतनी बढ़ गई कि वातावरण दमघोंटू हो गया।

उस भीड़ ने लड़कियों को छूना, दबोचना और यौन हमले करना शुरू किया। पैंट की ज़िप खोले या शर्ट उतार कर ऊपर चढ़े मर्दों को देखकर लड़कियाँ घबरा गईं। कुछ छात्राओं ने बताया कि वे मर्द जयश्रीराम भी बोल रहे थे। तमाम सीसीटीवी फुटेज होंगे ही। लड़कियाँ भी शिकायत करने प्रिंसिपल के पास पहुँची थी। बिना पास के कॉलेज में प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी। फेस्ट के दौरान आम दिनों से ज़्यादा चौकसी होती है कॉलेजों में। फिर कैसे यह सम्भव हुआ और प्रशासन ने कोई तुरंता कार्रवाई नहीं की?

सुरक्षा का मसला

दिल्ली विश्वविद्यालय के कई कॉलेजों ने वह दौर देखा है जब गुण्डागर्दी खुलेआम हुआ करती थी। शिवाजी कॉलेज, राजधानी और श्यामलाल कॉलेज के पुराने स्टाफ से पूछेंगे तो वे कहानियाँ सुनाएंगे कि कैसे छात्रों और स्थानीय गुण्डों की राजनीति के चलते कॉलेज लड़कियों और महिलाओं के लिए असुरक्षित हो गए थे। लेकिन इन कॉलेजों ने खुदपर मेहनत की और इनकी शक्ल आज एकदम बदली हुई है। वे अपने अतीत को बहुत पीछे छोड़ चुके हैं। महिलाओं के कॉलेज तो हमेशा से एक दुर्ग की तरह रहे हैं।

कॉलेज फेस्ट वह मौका होता है जब वहाँ अनेक अंतर्विद्यालयी गतिविधियों के चलते दूसरे कॉलेजों के लड़के-लड़कियों का प्रवेश होता है, लेकिन वह भी बिना पहचान-पत्र या पास के नहीं होता। दीवार कूदकर कुछेक लड़के फिर भी अक्सर घुस आया करते थे यह कुछ नया नहीं क्योंकि फेस्ट के आख़िरी दिन किसी बड़े कलाकार को बुलाकर म्यूज़िक कंसर्ट या जैम सेशन किया जाता है। सब स्थितियों को ध्यान में रखकर ही कॉलेज सुरक्षा के इंतज़ाम करते हैं और एकाध घटना के साथ या उसके बिना ही ज़्यादातर फेस्ट निपट जाते हैं।

यह गार्गी प्रशासन की बड़ी लापरवाही ही है कि कॉलेज के भीतर एक अनजानी भीड़ प्रवेश पा गई और छात्राओं को इसका खामियाज़ा खराब अनुभवों को झेलकर भुगतना पड़ा। यही नहीं प्रशासन किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए न तैयार था न ही ऐसी कोई मंशा थी क्योंकि एक वीडियो में सुरक्षाकर्मी गुण्डों को सुरक्षित प्रवेश देने के लिए एकदम शांत खड़े दिख रहे हैं। जब प्रिंसिपल से शिकायत की गई तो लड़कियों को जवाब मिला कि- इतना अनसेफ़ फील होता है तो कॉलेज मत आया करो। एक अखबार को भी प्रिंसिपल ने यही बयान दिया कि छात्राओं के लिए एक सुरक्षित घेरा बना हुआ था वे इसके बाहर निकलीं तो यह उनका निजी चयन था।

एक कॉलेज की चारदीवारी के भीतर एक इंच भी ऐसा इलाका क्यों होना चाहिए जो लड़कियों के लिए असुरक्षित हो? 17 -18 साल की ये लड़कियाँ हैं जो अपने ही कॉलेज में है किसी दड़बे में बंद मुर्गियाँ नहीं। प्रिंसिपल ने यह भी कहा कि मेरे पास सिर्फ एक शिकायत आई। सोमवार को कॉलेज परिसर में प्रिंसिपल प्रोमिला कुमार को एक खुली मीटिंग में तमाम छात्राओं ने साफ कहा कि यह झूठ है,बहुतों ने शिकायत की और सुनी नहीं गई। धरना देकर बैठी छात्राओं ने कहा कि उन्हें कॉलेज में अपनी सुरक्षा के प्रति आश्वासन चाहिए और उन्हें इस बात का भी जवाब चाहिए कि कॉलेज में आईसीसी क्यों नहीं है?

क्या है आई सी सी?

प्रिवेंशन ऑफ सेक्शुअल हरासमेण्ट कानून के तहत यह ज़रूरी है कि हर कार्यालय और संस्थान में एक आंतरिक शिकायत समिति हो जहाँ महिला कर्मचारी, विद्यार्थी या शिक्षक यौन-उत्पीड़न की शिकायत कर सकें। विश्वविद्यालयों में इस समिति में शिक्षक, छात्र, सपोर्ट स्टाफ और प्रिंसिपल शामिल होते हैं। इस समिति का काम होता है किसी शिकायत पर जाँच करना और नतीजे के अनुसार प्रिंसिपल, गवर्निंग बॉडी को सज़ा के लिए सुझाव देना। जब सवाल उठे कि गार्गी कॉलेज की छात्राओं ने आईसीसी में उस दिन की यौन-उत्पीड़न की शिकायत क्यों नहीं की तो पता लगा कि कॉलेज में यह समिति एक साल से भंग हो चुकी है। कॉलेज प्रशासन को इस लापरवाही का जवाब देना चाहिए। इसके बावजूद, आईसीसी का काम कॉलेज की सुरक्षा का नहीं है।

वह शिकायतों पर जाँच करती है और सुझाव देती है। वह अपने बलबूते एक्शन लेने वाली समिति नहीं है। 6 फरवरी को गार्गी में हुई घटना आईसीसी के बूते से बड़ी बात है। यह बात है कॉलेज-परिसर के असुरक्षित होने की, तुरंत कार्रवाई में अक्षम होने की, उस पितृसत्तात्मक सोच की जिसकी वजह से कोई प्रिंसिपल या शिक्षक यौन-उत्पीड़न के लिए पीड़ित लड़कियों को ही ज़िम्मेदार बताती है। आमतौर पर ही यह एक रवायत बन चुकी है कि आईसीसी यौन-उत्पीड़न के केस दबाने वाली समिति के रूप में ज़्यादा काम करती है। अपने परिसर में होने वाले यौन-उत्पीड़न को कॉलेज, संस्थान बदनामी से बचने के लिए पीड़ित पर दबाव बनाकर छुपा देने की कोशिश में ही रहते हैं।

क्यों बाहर नहीं आई यह खबर उसी दिन?

यह एक बड़ा सवाल है कि यह खबर उसी दिन बाहर क्यों नहीं आई। दिल्ली में चुनाव था आठ तारीख को, चुनाव भी साधारण नहीं, सत्ताधारी पार्टी की ओर से ज़हर-नफ़रत-कुत्सा और हिंसा का खुला प्रदर्शन करती राजनीति वाला चुनाव। ऐसे में यहाँ पत्ता हिलना भी एक ख़बर बन सकती थी ऐसे में इतनी बड़ी बात कैसे बाहर नहीं आई? कॉलेज के सुरक्षाकर्मी उस भीड़ को देखकर साइड में क्यों खड़े रहे। प्रिंसिपल को क्यों ज़रूरी नहीं लगा कि पुलिस में इसकी खबर करके मदद बुलाई जाए? कथित तौर पर CAA समर्थकों की भीड़ का जय श्रीराम के नारे के साथ लड़कियों के कॉलेज में घुसकर अभद्र हरकत करना क्या जानबूझकर चुनाव तक के लिए दबा दिया गया? इस घटना को दबाने और लड़कियों को ही दोषी ठहराकर पितृसत्ता में हिस्सेदारी निभाने वाली महिला प्रिंसिपल छात्राओं का क्या भला करेंगी यह सोचने वाली बात है।

कल संसद में गार्गी प्रकरण को उठाया गया और मज़ेदार बात है कि राहुल गाँधी के भारत को रेप कैपिटल कहने से लेकर दीपिका पादुकोण के जेएनयू जाने और तापसी पन्नू की फिल्म ‘थप्पड़’ तक पर प्रतिक्रिया करने वाली स्मृति ईरानी को इसपर साँप सूँघ गया। वैसे भी जयश्रीराम और भारत माता की जय के नारे के साथ महिलाओं, दलितों, अल्पसंख्यकों, आदिवासियों के साथ कोई भी अत्याचार करना अब नॉर्मल हो चुका है। स्मृति ईरानी या मीनाक्षी लेखी बस तभी दहाड़ती जब पता लगता कि गार्गी में जबरन घुसी भीड़ रामभक्त नहीं है। हद तो यह है कि इल्ज़ाम धरने को न मुसलमान है उनके सामने न आप के कार्यकर्ता। लड़कियों के कॉलेज में फेस्ट के माहौल को यौन-कुण्ठाओं को निकालने का बढ़िया मौका समझने वाले ये सामने संस्कारी भारतीय मर्द थे।

जबकि पुलिस को गार्गी में आकर तत्काल कार्रवाई करनी थी वह जामिया के छात्र-छात्राओं को शांतिपूर्ण मार्च के दौरान लाठियों से मारने में व्यस्त थी। एक सम्पूर्ण स्त्री-विरोधी हिंदू राष्ट्र बनाने में दिल्ली पुलिस के पुरुषों का योगदान अतुल्य माना जाएगा जिस तरह से उन्होंने जामिया की छात्राओं और मार्च में हिस्सा लेती स्थानीय महिलाओं की छातियों और प्राइवेट पार्ट्स पर बूटों से हमला किया।

शाहीन बाग़ और जामिया में गोली चलाने वाले रामभक्त, नागरिकता संशोधन कानून के समर्थक रामभक्त, नकाबपोश, लाठी वाले गुण्डों को विश्वविद्यालय परिसर में आसानी से घुसाने वाले मामीडाला, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के हवाले कैम्पस देकर शांत बैठे रहने वाले जामिया या डीयू के वाइस चांसलर, शांतिपूर्ण मार्च-प्रदर्शन पर जमकर कहर बरसाने वाले दिल्ली पुलिस के जाँबाज़ और सबसे महत्वपूर्ण गोदी मीडिया जो इस तरह की खबरों को या तो बाहर ही नहीं आने देता या सत्ता के पक्ष में खड़ा होकर इनकी रिपोर्टिंग करता है, ये सब उस नए हिंदू राष्ट्र के निर्माण में मुस्तैदी से जुटे हैं जहाँ स्त्रियाँ, दलित, वंचित, ग़रीब, आदिवासी और अल्पसंख्यक सबको सबक सिखाया जाएगा।

यही सबक धीरे-धीरे मनुष्यता के पक्ष में खड़ी हर आवाज़ को एक करने का काम भी कर रहा है। गोदी मीडिया अगर सत्ता की ताकत है तो सोशल मीडिया फिलहाल नागरिकों की ताकत है। जिस तरह पिछले दिनों महिलाओं ने प्रोटेस्ट और आंदोलनों की बागडोर सम्भाली है उसे देखते हुए अब ऐसे हमले हमें डराने की बजाय संघर्ष की प्रेरणा दे रहे हैं। औरतों का ज़मीन पर बड़ी संख्या में उतर आना वह ताक़त है जो एक से दूसरी में संचरित हो रही है और गार्गी कॉलेज की लड़कियों को धरना देते, प्रिंसिपल और प्रशासन से खुलकर जवाब तलब करते देख यही महसूस होता है कि ये आंदोलन हमें एकजुट होना सिखा रहे हैं।

(सुजाता एक कवि और दिल्ली विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर हैं। लेख में व्यक्त विचार निजी हैं।)

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