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ग्राउंड रिपोर्ट: प्रधानमंत्री के गोद लिए गांव जयापुर में ‘मोदी चरखे’ ने पहाड़ बना दी औरतों की ज़िंदगी

"पांच-सात साल में बहुतै मीडिया वाले अइलन। पहिले टीवी पर जयापुर रोज दिखत रहल। अब अखबार और टीवी से जयापुर ओझल हो गइल। तनिक दू मिनट बदे हमरे घरे भी चला। घूम के देख ला, तोहके सच पता चल जाई। हम लोगन वैसहीं हैं, जइसन पहिले रहली।"
प्रधानमंत्री मोदी के गोद लिए गांव जयापुर का हाल।
प्रधानमंत्री मोदी के गोद लिए गांव जयापुर का हाल।

कुर्सी और बेंच पर बैठे कुछ नौजवान व औरतें बहस कर रहे थे कि पीएम नरेंद्र मोदी के गोद लेने के बाद जयापुर कितना बदला? नवयुवक प्रदीप कुमार गोंड नव निर्वाचित प्रधान राजकुमार यादव के भाई छब्बू यादव को समझाने की कोशिश कर रहा था, “अब बहुत हो चुका। मोदी के पीछे मत भागिए। इस गांव के बाशिंदों ने ढेरों सुनहरे सपने बुने, लेकिन मिला क्या? सिर्फ बदनसीबी और सरकारी कर्ज...!” 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत सबसे पहले जयापुर को गोद लिया था। पहले दौर में उन्होंने चार गांव- जयापुर, नागेपुर, ककहरिया और डोमरी को गोद लिया। इस साल दो और नए गांव पूरे बरियारपुर (सेवापुरी) व परमपुर (अराजीलाइन) जुड़ गए हैं।

वाराणसी शहर से करीब एक घंटे का सफर करने के बाद जयापुर पहुंचने के पहले पड़ोस के दो गांव पड़ते हैं कचहरिया और चंदापुर। जयापुर में बीएसएनएल का बड़ा विशाल टावर, धूप से बचने के लिए विश्रामालय, सौ-सौ मीटर पर लगे सोलर लैंप... मोदी के दुलारा गांव में कदम रखते ही पहली नजर इन आधुनिक सुविधाओं पर पड़ती है। बड़े-बड़े बोर्ड पर मोदी की तस्वीरों के साथ स्वच्छाता का संदेश देने की अपील वाले पोस्टरों को देखकर दूर से नए भारत की तस्वीर उभरती है।

अपना दुख सुनातीं जयापुर की महिलाएं

गाड़ी पर “प्रेस” लिखा देखकर जयापुर की कुछ महिलाओं ने हमें रोका और कहा, “मीडिया से आए हो?" जवाब देने से पहले ही मीना गुप्ता बोलने लगीं, " पांच-सात साल में बहुतै मीडिया वाले अइलन। पहिले टीवी पर जयापुर रोज दिखत रहल। अब अखबार और टीवी से जयापुर ओझल हो गइल। तनिक दू मिनट बदे हमरे घरे भी चला। घूम के देख ला, तोहके सच पता चल जाई। हम लोगन वैसहीं हैं, जइसन पहिले रहली।"

मीना गुप्ता अधेड़ महिला हैं। इनका बेटा सुजीत और बहू कंचन दोनों ही विकलांग हैं। वह हमें अपने घर ले गईं। एक झोपड़ी और उससे सटी पांच-छह फीट ऊंची छत वाले कमरे में कुछ बर्तन रखे थे। झोपड़ी में एक चारपाई और लकड़ी की चौकी थी। घर में कीचड़ भरा था। महिला ने इशारे से बताया कि कुछ देर पहले उन्होंने कमरे को लीपकर सूखने के लिए छोड़ा है।

मड़ई में घुसा बाढ़ का पानी

मीना के मुताबिक़, "पीएम मोदी ने जयापुर को गोद लिया तो लगा कि हम सभी की हैसियत बढ़ गई है। सरकारी मुलाजिम रोज घर आकर हालचाल पूछा करते थे। सालों गुजर गए। अब न अफसरों की गाड़ियां आती हैं और न ही सरकारी नुमाइंदे। विकास की आंधी में हमने अफसरों और नेताओं पर आंख बंद करके भरोसा किया। सबको पता था जयापुर की तरक्की पक्की है। अब हम उसी विकास का खामियाजा भुगत रहे हैं। न घर के रहे, न घाट के।"

जयापुर की पटेल बस्ती में जिस पेड़ के नीचे नौजवानों और महिलाओं के बीच गर्मा-गरम बहस चल रही थी, वहां सड़क टूटी हुई थी। चौतरफा कीचड़ फैला था। नाली-सीवर न होने की वजह से गंदा पानी सड़क पर फैला हुआ था। कुछ रोज पहले मूसलधार बारिश हुई थी, तब पटेल बस्ती के कई घर पानी से लबालब भर गए। गरीब तबके के लोगों को रात जागकर काटनी पड़ी।

बजबजाते जयापुर में न नाली, न सीवर

प्रदीप कुमार गोड़ ने हमें बदहाल रास्ते को दिखाया और साफगोई से कहा, “हम नर्क में जी रहे हैं। छोटे लोग हैं साहब ! हमारी कोई औकात नहीं। पूर्व ग्राम प्रधान नारायन पटेल ने सिर्फ पैसे वालों को सरकारी आवास दिया। जिनके पास पहले से अच्छी खेती की जमीन थी और घर बने थे, सरकारी पैसे से उनके नए आवास दोबारा बन गए। हमारी हालत ठन-ठन गोपाल जैसी है। क्या यही है सबका साथ-सबका विकास।”

बदहाल सोलर चरखा प्रशिक्षण केंद्र

सोलर चरखा ने किया बर्बाद

बात चल ही रही थी, तभी महिलाओं ने सवालों की झड़ी लगा दी। प्रमिला नाम की महिला आगे बढ़ी। एक ही सांस में ढेरों शिकायतें दर्ज करा गई। कहा, “हुजूर! हमें “मोदी चरखा” नहीं मिला। फिर भी धोखाधड़ी से हमारे माथे पर बैंक का हजारों रुपये का कर्ज लाद दिया गया। पाई-पाई के लिए मोहताज हैं। बैंक वाले जबरिया कर्ज वसूलने आ रहे हैं। मोदी के फेर में जिस कंपनी ने हम सभी को बुरी तरह फंसाया, वो गायब है। कहां ढूंढें उसे?”

कबाड़ में तब्दील चरखा प्रशिक्षण केंद्र

जयापुर की महिलाओं ने गांव में बांटे गए सोलर चरखे को नाम दिया है “मोदी चरखा”। प्रमिला को इस बात का रंज है कि जिस मशीन को उन्होंने कभी देखा भी नहीं, उसका कर्ज उन्हें जबरिया चुकाने के लिए कहा जा रहा है। प्रमिला ने गुस्से में कहा, “गुनाह सिर्फ इतना है कि हम पढ़े-लिखे नहीं हैं। मोदी आए और हमें सपना दिखा गए। उनके साथ आए लोगों ने रोजगार दिलाने के बहाने अनगिनत कागजों पर हमारे दस्तखत कराए और आधार कार्ड ले गए। कोरोना की महामारी फैली तब पता चला कि जालसाजों के चंगुल में हम बुरी तरह फंस गए हैं। हजारों का लोन चढ़ाकर “मोदी चरखा” चलवाने वाले चंपत हो गए। यह धोखा नहीं तो और क्या है?”

प्रमिला के पति सुनील मजूरी करते हैं। मुश्किल से दो वक्त की रोटी जुटा पाते हैं। दो छोटे-छोटे बच्चे हैं। लाकडाउन के बाद से इन्हें खाने के लाले पड़े हैं। प्रमिला को आज तक “मोदी चरखा” नहीं मिला, फिर भी वह कर्जदार बन गई हैं। बैंक वालों की धमकी से उनकी रातों की नींद उड़ गई है। कहती हैं, “क्या कमाएं-क्या खाएं? बच्चों को का पेट भरें, पढ़ाएं या फिर कर्ज भरें? वह कर्ज जिसके बदले उन्हें आज तक चरखा मिला ही नहीं।”

गीता की कहानी भी प्रमिला की तरह ही है। वह खेतों में काम करती हैं। पति विजय कुमार वर्मा विकलांग हैं। कहती हैं, “हमारे साथ बहुत बड़ा धोखा हुआ है। मोदी ने जयापुर को गोद क्या लिया, हम तबाह हो गए। सोलर चरखे से आज तक धेले भर की कमाई नहीं हुई। कहां से अदा करें हजारों रुपये का बैंक लोन? हमारी तो मति मारी गई थी जो “मोदी चरखे” की लालच में आ गए। बैठे-ठाले मुसीबत गले पड़ गई। बैंक का कर्ज तो अब हमें ही भरना पड़ेगा। जिन लोगों ने हमसे सैकड़ों पन्ने पर दस्तखत कराए थे, उन्होंने पहले यह नहीं बताया था कि सारा कर्ज हमें अपने पास से चुकाना पड़ेगा।”

गीता बताती हैं, “हमारे घर में तीन “मोदी चरखे” हैं। चार-चार हजार नकद देकर लिया था। बताया गया था कि चरखा कीमती है। कोई लोन नहीं भरना होगा। सारा पैसा सरकार देगी। चरखा चलाने के लिए न तो रूई-पूनी दी जा रही, और न ही दूसरी सुविधाएं। बहलाकर हमसे कागज ले गए। कुछ रोज बाद आए और हमारे माथे पर कर्ज लादकर चले गए।”

कुछ ऐसी ही कहानी सीता देवी, गीता, बिंदू,  रीना और ज्ञानती देवी की भी है। रुआंसे स्वर में इन महिलाओं ने कहा, “मोदी चरखे ने जयापुर के गरीब घरों की औरतों की जिंदगी को पहाड़ बना दिया है।” राजेश वर्मा बताते हैं, “ जिन लोगों “मोदी चरखा” लिया था, सबके ऊपर 50 से 90 हजार तक कर्ज है। जिन लोगों ने सूत कातने के लिए कच्चा माल घर तक पहुंचाने की बात कही थी, वह सभी गायब हैं। आ रहे हैं तो सिर्फ बैक वाले तगादा करने। हमसे अच्छा तो पास के गांव चंदापुर, कचरहिया, महगांव, जक्खिनी, गजापुर, मिल्कीपुर, वीरसिंहपुर और पचाई के लोग हैं। कम से कम उन्हें चैन की नींद तो आती है। हमारे घरों की ज्यादातर औरतें कर्ज के बोझ के चलते अधकपारी जैसी घातक बीमारी की चपेट में आ गई हैं। सभी को बैंक लोन की चिंता खाए जा रही है। जिन महिलाओं ने “मोदी चरखा” एक दिन भी नहीं चलाया, वो भी हजारों रुपये की कर्जदार हैं। ऐसा धोखा तो आज नहीं मिला था।”

 सोलर चरखा प्रशिक्षण एवं प्रसार केंद्र

जयापुर में गरीब महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए दो बुनकर केंद्र स्थापित किए गए हैं। एक केंद्र का संचालन खादी ग्रामोद्योग विभाग करता है और दूसरा गांव के निछद्दम में स्थापित गोशाला में। यहां भारती हरित खादी संस्था के जरिए मुद्रा लोन स्कीम के तहत डेढ़-दौ सौ महिलाओं को सोलर चरखा बांटा गया था। शुरुआत में बताया गया था महिला सशक्तिकरण मुहिम के तह भाजपा सरकार औरतों को आत्मनिर्भर बनाना चाहती है। महिलाओं के मुताबिक भारती हरित खादी संस्था ने जयापुर, डोमरी और ककरहिया में करीब पांच सौ महिलाओं को “मोदी चरखा” (सोलर से संचालित) बांटा है। ये तीनों पीएम नरेंद्र मोदी के दुलारा गांव हैं, जिसे उन्होंने गोद लिए लिया था। अकेले डेढ़-दो सौ महिलाएं तो जयापुर की हैं, जिन्हें “मोदी चरखा” देकर आत्मनिर्भर बनाने का सपना दिखाया गया था।”

स्टोर में जंग खा रहे सोलर चरखे

“हमारे प्रोजेक्ट में पूरा दम है”

मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा करने वाली जयापुर की महिलाएं बताती हैं कि भारती हरित खादी के प्रबंध निदेशक विजय पांडेय ने उन्हें झांसा दिया और वह उनके जाल में फंस गईं। लेकिन विजय पांडेय जयापुर की महिलाओं के आरोपों को सिरे से खारिज करते हैं। वह कहते हैं, “हमने जयापुर की महिलाओं को अपने पास से वर्किंग कैपिटल दिया है। साथ ही सोलर चरखे पर सरकारी छूट भी दिलाई है। यह आरोप झूठा और बेबुनियाद है कि सभी महिलाएं हजारों-हजार की कर्ज में डूब गई हैं। हमारी संस्था जयापुर से भागी नहीं है। कोरोना के चलते हमें काम बंद करना पड़ा। जिन कंपनियों को हमने धागा और कपड़ा दिया उन्होंने हमारा करोड़ों रुपये दबा रखा है। हमें कोरोना की तीसरी लहर का डर है। पिछले डेढ़ साल से हम महामारी में कोई काम नहीं कर पाए। संकट जैसे ही पूरी तरह छंट जाएगा महिलाओं के घर कच्चा माल पहुंचने लगेगा। हमारे प्रोजेक्ट में पूरा दम है। बस धैर्य रखने की जरुरत है।”

सोलर चरखा दिए बगैर बैंक का कर्जदार बनाए जाने के बाबत पूछे जाने पर भारती हरित खादी के पूर्व प्रबंध निदेशक विजय पांडेय कहते हैं, “ हो सकता है कि कुछ महिलाएं चरखा न ले गई हों। जिन महिलाओं को सोलर चरखा नहीं मिला है उन्हें प्रधानमंत्री रोजगार गारंटी योजना के तहत सूक्ष्म, लघु मध्यम उद्यम मंत्रालय की ओर से यह मशीन उपलब्ध कराई जाएगी। यह कहना गलत है कि चरखे का लोन 50 हजार से एक लाख के बीच चला गया है। आठ हजार रुपये का लोन भला 80 हजार कैसे हो जाएगा? बैंक लोन कोई समस्या नहीं। कोरोना संकट के बाद हम पुख्ता योजना बनाकर जयापुर की महिलाओं को रोजगार देंगे। प्रधानमंत्री के गोद लिए गांवों में बने धागे को देश-विदेश में निर्यात करने की योजना है। हमने घरेलू महिलाओं को 5000 सोलर चरखे देने की योजना बनाई गई है।”

जयापुर ने 7 नवंबर 2014 को उस समय सुर्ख़ियां बटोरी थीं जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सांसदों से गांवों को गोद लेने का अनुरोध किया था और ख़ुद जयापुर को गोद लिया था। उसके बाद जयापुर के दिन ही बदल गए। देखते ही देखते दो-दो सोलर प्लांट लग गए। पानी की टंकी बन गई। दो-दो बैंक खुल गए। एटीएम चालू हो गया। एंबुलेंस की तैनाती कर दी गई। कम्प्यूटर सेंटर और सिलाई केंद्र भी खुल गए। अब जय़ापुर सीन बदल गया है। यहां न अफसर आते हैं और न नेताओं का हुजूम जुटता है। पेयजल और बैंक के अलावा सब कुछ पहले जैसा हो गया है।

झाड़-झंखाड़ से घिरी गोशाला

भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ी काऊशाला

जयापुर में खोली गई गोशाला को नाम दिया गया है आदर्श भारती काऊशाला। इसके लिए ग्रामीण मेखुर सिंह की जमीन तीस हजार रुपये सालाना के दर से तीस साल तक के लिए लीज पर ली गई है। काऊशाला में गांव के कुछ लोग अपने मवेशी बांध रहे हैं। काऊशाला के बगल में सोलर चरखा प्रशिक्षण एवं प्रसार केंद्र है। एक कमरे में 24 और दूसरे में 15 सोलर चरखे जंग खा रहे हैं। प्रशिक्षण के दौरान जयापुर की महिलाओं ने जो सूत तैयार किए थे वह गोदाम में सड़ रहा है। गार्ड मूलचंद ने बताया, “गाय पालने और सूत कातने के लिए मशीनें लगाने वाले लोग लंबे समय से लापता हैं। महीनों से उन्हें भी वेतन तक नहीं मिला है।” गार्ड अपना दुखड़ा सुना ही रहा था तभी पहुंचे मेखुर के पुत्र नीरज कुमार सिंह।

नीरज कुमार सिंहः मोदी के गांव का नाम लेने में शर्म आती है

गोशाला परिसर में उगे घास-फूस और झाड़ियों को दिखाते हुए नीरज कहते हैं, “इसे आप क्या कहेंगे, विकास या विनाश? हम मोदी को दोष नहीं देंगे, लेकिन उन्होंने जब जयापुर को गोद लिया तो यहां कई फ्राड घुस आए। जमीन का लीज लेते समय भारती हरित खादी के प्रबंध निदेशक विजय पांडेय ने हमसे दो लोगों को नौकरी देने की बात कही थी, मगर वादा पूरा नहीं किया। जैसे ही सरकार की नजर हटी, संस्था के लोग गाय-भैंस बेचकर खा गए।”

नीरज ने कहा, “सोलर चरखा केंद्र में घूम आइए। कोई पुरसाहाल नहीं है। जयापुर में विकास की गंगा बहाने जो संस्थाएं आईं, सब की सब लुटेरी निकलीं। अब तो यह बताने में शर्म आती है कि हमारे जयापुर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गोद लिया था। बकाया बिल के चलते गोशाला परिसर की बिजली कटी हुई है। कटिया कनेक्शन से बिजली जोड़ी गई है। अब यह पता करने की कोशिश कर रहा हूं कि हमारी जमीन पर आदर्श भारती काऊशाला के संचालकों ने कितना बैंक लोन लिया है। हालात चाहे जो भी हो, लेकिन गोलमाल लंबा हुआ है।”

बात जारी रखते हुए नीरज कुमार सिंह ने कहा, “अखबारी सुर्खियां बटोरने के लिए हिमाचल से हवाई जहाज से सेब के पौधे मंगाए गए। जयापुर के लोगों ने पौधों को रोपा भी, लेकिन सेब के पेड़ लू की चपेट नहीं झोल पाए। सब खत्म हो गए। हमारे हिस्से में विकास भले ही नहीं आया ही नहीं, लेकिन ढोल तो दुनिया भर में पीट डाली गई।”

जयापुर में यह हाल है शौचालयों का

शौचालयों से झांक रही बदहाली

जयापुर के अंदर जाने पर साफ दिखता है कि गांव के बेहतरी के लिए कुछ काम हुए हैं। मिसाल के तौर पर लगभग हर घर के सामने शौचालय और खड़ंजे हैं। दीगर बात है कि घटिया निर्माण और रख-रखाव ठीक न होने के कारण कोई पुरसाहाल नहीं है। जगह-जगह कूड़े के ढेर और फ़ाइबर के बने ज्यादातर शौचालय बंद पड़े हैं। कई शौचालयों में खिड़की-दरवाजे तक नहीं हैं। कई लोगों ने उसे भूसा जमा करने का गोदाम बना रखा है। भाजपा का झंडा लगाकर घूम रहे एक नौजवान ने कहा, “मोदी जी की पहल पर लोगों को शौचालय मिला। उन्होंने ख़्याल नहीं रखा तो क्या किया जाए। सरकार तो उनके शौचालय का ख़्याल रखेगी नहीं।”

गुजरात के सांसद सीआर पाटिल ने जयापुर में चार सौ शौचालय बनवाए थे। “क्लीन इंडिया कैंपेन” के तहत बनाए गए ज्यादातर शौचालय कबाड़ में तब्दील हो गए हैं। कुछ स्टोर रूम में बदल गए हैं तो कुछ के दरवाजे आंधी में उड़ गए हैं। मोबाइल टायलेट की हालत तो पूरी तरह जर्जर है। आंगनबाड़ी केंद्र से थोड़ी दूर पर बने शौचालय में ताला लगा है। आधा दरवाज़ा टूटा हुआ है। थोड़ा और आगे जाने पर सड़क के किनारे बना शौचालय टूटा पड़ा है। उसमें न नल बचा है और न ही उसमें पानी की व्यवस्था है। गांव के आख़िरी छोर पर बसे अटल नगर में जो शौचालय बने हैं उनमें उपले रखे हुए हैं।

नंदघर के सामने मिले नौजवान तारकेश्वर शर्मा। हमने सवाल दागा, “जयापुर में पिछले सात सालों में क्या बदला है?” जवाब मिला, “हमसे क्यों पूछते हैं, खुद देख लीजिए। शौचालय सिर्फ नाम के लिए। सिर्फ डिब्बा भर है। दो-तीन दिनों में वह भर जाता है। हैंडपंप के आस-पास गंदा पानी बजबजा रहा है। इसी बीच तभी इनकी मां गीता देवी ने अपने पुत्र तारकेश्वर को चुप कराते हुए कहा, "सब ठीक है। सब बढ़िया है। जयापुर में बहुत कुछ हुआ है। मैं कह रही हू न, मोदी जी ने बहुत काम किया है...!"

जयापुर के साथ ही नागेपुर के प्राथमिक विद्यालयों में सोलर वॉटर पंप की व्यवस्था थी, जो अब ध्वस्त हो चुकी है। यहां लड़कियों की पाठशाला, बुनकर केंद्र बारिश के  पानी से घिर गया है। कमरों पर काई लग गई है। विद्यालय में न टीचर आ रहे हैं और न ही मोहल्ला पाठशाला लग रही है। खादी उद्योग द्वारा संचालित बुनकर केंद्र में काम-काज बंद है। बुनकर केंद्र के सामने का मैदान एक बड़े तालाब की शक्ल अख्तियार कर चुका है। पीएम मोदी के नाम पर लगाई गईं बेंच पानी में डूबी हुई हैं।

नंदघरः इसी ने दुनिया भर में बटोरी थी सुर्खियां

नंदघर भी बदहाल

जयापुर में जिस नंदघर को देश का सबसे अत्याधुनिक आंगनबाड़ी केंद्र बताकर भाजपा सरकार सुर्खियां बटोर रही थी, वो आजकल बारिश के पानी में डूबा हुआ है। नंदघर यानी आंगनबाड़ी केंद्र सिर्फ दूर से देखने में ये सुंदर लगता है। आप पास जाकर देखेंगे तो पता चलता है कि अर्से से ताला बंद है। मार्बल उखड़े पड़े हैं।  खिड़की का शीशा टूटा हुआ है। अंदर झांकने पर सारा सामान बिखरा पड़ा नज़र आता है। सभी जगह धूल ही धूल है। मेदांता ग्रुप और आईएलएंडटी ने यहां नंदघर बनवाया था।

पानी से घिरी नंदघर के सामने लगी बेंच

नंदघर की बदहाली देखकर अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि पिछले कई महीने से ये खुला नहीं है। ये आख़िरी बार कब खुला था, गांव वाले इसके बारे में भी नहीं बता पाते। पूर्व प्रधान नारायण पटेल दावा करते हैं, “उनके कार्यकाल में नंदघर रोज खुलता था। ऐसा नहीं है कि वो खुले ही नहीं”।

जयापुर की कन्या पाठशाला एवं बुनकर प्रशिक्षण केंद्र

जयापुर में एक पूर्व माध्यमिक स्कूल है, जो पास के चंदापुर गांव में स्थित है। यह स्कूल गांव के आख़िरी छोर पर स्थित है, जहां से जयापुर गांव की शुरुआत होती है। यहां आठवीं तक की पढ़ाई होती है। इससे आगे की पढ़ाई के लिए यहां कोई इंतजाम नहीं है। आगे की पढ़ाई के लिए बच्चों को जक्खिनी अथवा राजातालाब जाना पड़ता है, जो कि लगभग छह किमी दूर है। गांव में कोई साधन नहीं है, इसलिए बच्चे साइकिल से पढ़ने के लिए जाते हैं। जिन बच्चों के पास साइकिल नहीं है वो कैसे स्कूल जाते हैं?  इसके जवाब में एक ग्रामीण ने कहा, “क्या कर लेंगे पढ़ाई करके। जयापुर के बच्चों के नसीब में तो सिर्फ खेतीबाड़ी ही है।”

छात्रों को मुंह चिढ़ा रही लाइब्रेरी

जयापुर में एक लाइब्रेरी भी खोली गई थी, जिसकी दीवार पर अभी भी सुंदर-सुंदर स्लोगन लिखे हुए हैं। लेकिन सब कुछ दिखावे के तौर पर है। लाइब्रेरी में कई सालों से ताला लगा है। ये कब से बंद है, किसी को पता नहीं। लाइब्रेरी आख़िरी बार कब खुली थी, गांव में किसी को जानकारी नहीं है? यहां से किसी ने कभी कोई किताब ली हो, ऐसा कोई व्यक्ति भी गांव में नहीं मिला। युवक सुनील बताते हैं, “प्राथमिक विद्यालय के छात्रों के लिए खोली गई लाइब्रेरी का प्रबंध 'रूम टू रीड' नाम के एक गैर सरकारी संस्थान को सौंपा गया था। इस बाबत 'पुस्तकालय बाल प्रबंधन समिति' गठन किया गया था। दावा किया गया था कि एक महीने में सबसे अधिक किताब पढ़ने वाले छात्र को पुरस्कृत किया जाएगा। कमजोर छात्रों के लिए बेहतर शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए अतिरिक्त ट्यूशन का इंतजाम 'नन्हीं कली' नाम की एक गैर सरकारी संस्था ने किया था। 'नन्ही कली' के संचालकों ने यहां बच्चों को दो घंटे अतिरिक्त ट्यूशन देने की बात कही थी। साथ ही यह भी जिम्मेदारी ओढ़ी थी कि बच्चों के अंदर बोलने की शैली विकसित की जाएगी, ताकि वे युवा संसद चला सकें।”

अभिभावकों को बताया गया कि बच्चों के लिए स्मार्ट क्लासेज की सुविधा देने का दावा किया गया तो जयापुर के लोगों ने ढेरों सपने बुन लिए। टेबलेट से पढ़ाई कराने का जिम्मा 'यूनियन बैंक आफ इंडिया' और बेंगलुरु की एक गैर सरकारी संस्था 'क्रेया' ने मिलकर ओढ़ा था, लेकिन नतीजा वही-ढाक के तीन पात।

ग्रामीण संतोष बताते हैं, “गांव में पानी निकासी की कोई व्यवस्था नहीं है। जब बारिश होती है तो पानी घर में घुसने लगता है। हम क्या करें, ऐसे ही रहते हैं। कोई सुनवाई ही नहीं होती है।” लालमन भी इनके हां में हां मिलाते हैं। वह कहते हैं, “ जयापुर में विकास तो बहुत हुआ है, लेकिन पानी निकासी का कोई इंतजाम नहीं है। गांव भर का गंदा पानी इधर-उधर सड़क पर बहता रहता है। कई बार लिखकर दिया गया, अधिकारी आए भी, लेकिन देखकर लौट गए।”

जयापुर के समीपवर्ती गांव चंदापुर महगांव, जक्खिनी आदि में भी सीवर की व्यवस्था नहीं है। प्रधानमंत्री के जयापुर गांव को गोद लेने के बाद डीएम, सीडीओ, एसडीएम, ब्लॉक प्रमुख सभी ने वादा किया था कि आसपास के सभी गांवों में नाली-सीवर की मुकम्मल व्यवस्था कराएंगे। ग्राम पंचायत के चुनाव के समय भी प्रत्याशियों ने नाली-सीवर की बुनियादी समस्या हल करने का वादा किया, लेकिन चुनाव बीतते ही सब भूल गए।

सरकारी कागजों में जयापुर वाराणसी संसदीय क्षेत्र ही नहीं पूर्वांचल के सबसे विकसित गांवों में शुमार है, लेकिन यहां के लोग काम की गुणवत्ता पर अब खुलकर सवाल उठा रहे हैं। नीरज पटेल कहते हैं, “जितने पैसे आए थे और जिस गुणवत्ता के साथ काम होना चाहिए, वो नहीं हुआ। सड़कें बनाई तो गईं, लेकिन कुछ दिनों में ही टूट गईं। नाली-सीवर नहीं होने की वजह से हर घर में गंदगी है। पीएम मोदी के गांव को गोद लेने का बाद तत्कालीन डीएम प्रांजल यादव महीने में एक-दो बार गांव का दौरा जरूर करते थे। वो गांव वालों की समस्याएं भी सुनते थे, हालांकि उनका तबादला हो गया। मौजूदा कलेक्टर के तो दर्शन ही दुर्लभ हो गए हैं।”

यात्री प्रतीक्षालय है, पर बस नहीं

जयापुर में यात्री विश्रामालय तो चमचमाता दिखता है। मगर यहां कोई बस का इंतजार नहीं करता। जयापुर से अब कोई बस नहीं गुजरती ही नहीं। वाराणसी रेलवे स्टेशन से तकरीबन 30 किमी दक्षिण-पश्चिम में बसे इस गांव में आने के लिए आपको साधन की काफ़ी मशक़्क़त करनी पड़ सकती है। राजातालाब से जयापुर जाने के लिए एकमात्र साधन ऑटो है। इसके अलावा कोई दूसरा व्हीकिल नहीं है। बस स्टैंड के पास खड़े युवक अमित पटेल ने बताया, “पहले एक बस थी। कब आती थी, कब जाती थी, इसके लोगों को कोई खास मतलब नहीं नहीं होता था। वो नामुराद बस भी जयापुर से हमेशा के लिए अब विदा हो गई। ग्रामीणों को अगर बाहर जाना है और अपनी गाड़ी है तो ठीक, नहीं तो पैदल ही आना-जाना पड़ता है।”

अमित ने जयापुर की नई तस्वीर खींची। कहा, “पीएम मोदी ने जब इस गांव को गोद लिया तब रोज़-रोज़ पत्रकार आते थे और लिख-पढ़कर जाते थे। छोटी-छोटी खबरें अखबारों में सुर्खियां बनती थीं। अब तो सन्नाटा है। कोई आता ही नहीं।” किसान राजकुमार कहते हैं,  “हमारे गांव में सीवर और नाली का इंतजाम हो जाए और छोटी-छोटी गालियां, जो ख़राब हैं, वो सब ठीक हो जाए, तभी हमारी दिक्कत दूर होगी।”

जयापुर गांव में पहुंचेंगे तो आपको दो बैंक दिखाई देते हैं-सिंडीकेट और यूनियन बैंक। यहां एक पोस्ट ऑफिस भी है। मोदी के गोद लेने के बाद यहां दोनों बैंक खुले हैं, जिससे ग्रामीणों को खाता खुलवाने में थोड़ी आसानी हो गई है।

जयापुर में स्वास्थ्य इंतजाम अब भी नदारद है। कोई अस्पताल नहीं, दवा नहीं। कोई बीमार होता है तो जयापुर के लोगों को क़रीब पांच किमी दूर जक्खिनी जाना पड़ता है। महिलाओं की डिलिवरी अथवा कोई भी इमरजेंसी के दौरान जयापुर में कोई सुविधा नहीं है। पहले एक एंबुलेंस आती थी, अब उसका भी अता-पता नहीं है। हालांकि जक्खिनी के बजाय लोग राजातालाब के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जाना चाहते हैं। वहां के लिए वाहन का साधन आसानी से मिल जाया करता है।

सोलर लाइटों की बैटरियां चोरी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जयापुर को गोद लेने के बाद जयापुर में लगी करीब 135 सोलर स्ट्रीट लाइटों के खंभे तो दिखते हैं, लेकिन इनमें एक भी ढंग से नहीं जलतीं। ज्यादातर लाइटों की बैटरियां चोरी हो गई हैं अथवा खराब हैं। ग्रामीणों के मुताबिक एक-एक बैटरी चार-पांच हजार की थी। देख-रेख के अभाव में कुछ बैटरियां खराब हो गईं और कुछ चोर ले गए। कुछ लाइटों के सोलर पैनल तक गायब हैं। इलाकाई थाना पुलिस पैनल और बैटरी चुराने वालों का सालों से सुराग लगा रही है, मगर उन तक नहीं पहुंच सकी है। नतीजा सोलर लैंप शो-पीस बन गए हैं।

जयापुर में 25-25 किलो वाट के सोलर प्लांट हैं, जिनसे दो बल्ब और मोबाइल चार्जर की सुविधा दी गई थी। ग्रामीणों से अब भी बीस-बीस रुपये महीना वसूला जाता है। सोलर से अब बिजली की सप्लाई नहीं होती। पूर्व ग्राम प्रधान नारायण पटेल इस बारे में गोल-मोल जवाब देते हैं। कहते हैं, “लोग-बाग जब सोलर से टुल्लू मोटर चलाएंगे तो कितने दिन चलेगा सौर ऊर्जा प्लांट।” हालांकि ग्रामीणों का मानना है कि मोदी के गोद लेने के बाद बिजली की स्थिति में काफी सुधार हुआ है। रोजाना करीब 20 घंटे बिजली मिलती है।

जयापुर में बीएसएनएल का टावर है। बिजली गुल होने पर मोबाइल का कनेक्शन टूट जाता है। पंचायत भवन के सौ मीटर के दायरे में फ्री वाईफाई सुविधा फेल हो चुकी है। बेरोजगारी से जूझ रहे युवाओं के लिए सुविधाएं बेमतलब हैं। सिर्फ प्रभावशाली लोग ही इन सुविधाओं का लाभ उठा रहे हैं।

गंदगी के बीच हैंडपंप

ओवर हेड टैंक से पानी की सप्लाई होती है, लेकिन गांव में जो हैंडपंप लगे हैं उसका पानी खारा है। जयापुर से गुजरने वाली बदहाल सड़कों की ओर इशारा करते हुए नव निर्वाचित ग्राम प्रधान राजकुमार यादव कहते हैं, “कोलतार की सड़कें तो पीडब्ल्यूडी को बनाना है। यह सड़क हमारे चुने जाने के पहले से ही बदहाल थी।”

मुसहर बस्ती के लिए रास्ता नहीं

जयापुर के आख़िर छोर पर स्थित मुसहर बस्ती को सरकारी नुमाइंदों ने नाम दिया है अटल नगर। यहां पहुंचने का रास्ता ठीक नहीं है। खेत के मेड़ और कच्चे रास्ते से होते हुए वहां पहुंचते हैं। मोदी सरकार ने भले ही उज्ज्वला योजना का जमकर ढोल पीटा, लेकिन अटल नगर की औरतें चूल्हे पर खाना पकाता हुई दिखीं। गायत्री देवी, मझरी देवी, नंदिनी, पार्वती, निशा, गुड्डी ने कहा, “गैस सिलेंडर और चूल्हा नि:शुल्क मिल गया, मगर सिलेंडर खाली होने पर उसे दोबारा भरवाने के लिए हजार रुपये कहां से लाएं? सब्सिडी का पैसा तो बाद में आएगा। लिहाज़ा वह फिर से लकड़ी पर खाना बनाने को मजबूर हैं।”

सेवापुरी विधानसभा सीट से तीन बार विधायक रहे पूर्व मंत्री सुरेंद्र पटेल तंज कसते हुए कहते हैं, “ अब हर किसी को समझ में आ गया है “जयापुर की भूल-कमल का फूल”। तभी तो जिला पंचायत के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी को यहां करारी मात मिली। जयापुर को मोदी ने जिस दिन गोद लिया,  उस रोज प्रधानमंत्री ने हमें भी अपने बगल में बैठाया था। भाषण दिया कि जयापुर को इसलिए गोद लिया कि यहां आकाशीय बिजली से छह लोग मर गए थे। मोदी को कौन समझाने जाए कि जयापुर में ऐसी कोई घटना आज तक नहीं हुई है। झूठ से जयापुर का नया अवतार हुआ। किसी से पूछ लीजिए क्या इस गांव के नौजवानों की बेरोजगारी और भ्रष्टाचार दूर हो गया? क्या महिलाएं सशक्त हो गईं? जो लोग कह रहे थे कि देश को झुकने नहीं देंगे, बिकने नहीं देंगे। जयापुर में देश झुका भी और बिका भी। इनका बस चले तो वो जयापुर को भी बेच दें।”

पूर्व मंत्री पटेल यह भी कहते हैं, “जितना पैसा जयापुर के नाम पर जारी हुआ, उसका बंदरबांट हुआ। सब अफसरों की जेब में चला गया। यहां विकास हुआ तो सिर्फ भ्रष्टाचार का, बेरोजगारी का और झूठ का। डेवलेपमेंट पैसा लूटकर आलीशान सितारा दफ्तर खड़ा किया जाता है। हमने तो जयापुर वालों के यहां निमंत्रण में भी जाना छोड़ दिया है। मोदी से पहले ककरहिया, नागेपुर, सूजाबाद और डोमरी को गोद हमने लिया था। लोहिया ग्राम घोषित कराया था, जिस पर मोदी ने अपना ठप्पा ठोंक दिया। जयापुर के पड़ोसी गांव चंदापुर में घूम आइए। इस गांव को हमने गोद लिया था। यहां न ठग मिलेंगे, न बैंक लोन से सिसकते और कराहते लोग। विकास कैसे होता है, चंदापुर में सब दिख जाएगा।”

जयापुर की कुल आबादी इस समय 4200 है। हालांकि साल 2011 की जनगणना के अनुसार, आबादी 3100 है। कुल 2700 वोटर हैं। यहां पटेल, ब्राह्मण, भूमिहार, कुम्हार, दलित आदि जातियों के लोग रहते हैं। सर्वाधिक आबादी पटेलों की है। ग्रामीण मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर हैं। यहां गेहूं, धान और तरह-तरह की सब्ज़ियों की खेती होती है। कुछ लोग सरकारी तो कुछ प्राइवेट नौकरी करते हैं। राष्ट्रीय साक्षरता दर 73 फीसदी है, लेकिन यूपी की दर 53 फ़ीसदी है। सरकारी अभिलेखों में जयापुर की साक्षरता दर 76 फ़ीसदी है। सौ पुरुषों के मुकाबले 62 महिलाएं साक्षर हैं। मोदी के गोद लेने के बाद जयापुर में जो बड़ा अंतर दिखाता है, वह है जमीनों की कीमत का। एक-डेढ़ लाख रुपये बिस्वा वाली खेती की जमीन चार-पांच लाख रुपये बिस्वा हो हई। सड़क पर चार-पांच लाख रुपये वाली प्रापर्टी 12-14 लाख बिस्वा में बिक रही है। जयापुर के लोग तो अब साफ-साफ कहते हैं, “हमें यह बताते हुए शर्म आती है कि हम मोदी के दुलारा गांव जयापुर में रहते हैं।”

बजबती सड़कें दिखाते जयापुर के लोग

यह है जयापुर में खेल का मैदान

सभी फोटो- विजय विनीत

(लेखक बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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