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ग्राउंड रिपोर्टः बनारस में जी-20 के नाम पर ढहा दी 80 गुमटियां, पांच सौ लोगों की आजीविका पर संकट

''पाकिस्तान से आने के बाद हमने जनसंघ का साथ दिया। वोट देने की बारी आई तो भाजपा के पक्ष में तनकर खड़े रहे। हमारे वजूद पर संकट आया तो भाजपाइयों ने हमारा साथ छोड़ दिया। आज़ादी के अमृत काल में सबका साथ-सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास का नारा हमारे लिए अर्थहीन है।''
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बनारस के दशाश्मेध घाट से सटे ऐतिहासिक चितरंजन पार्क के किनारे रखी गुमटियों को रौंदते हुए वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) और नगर निगम के बुलडोजर आगे बढ़ रहे थे। ये गुमटियां पाकिस्तान से आए सिंधी समुदाय के उन रिफ्यूजी परिवारों की थीं, जिन्हें भारत सरकार ने आजीविका चलाने के लिए अलॉट किया था। विकास और जी-20 के नाम पर इस इलाके के सौंदर्यीकरण के लिए कुछ रोज पहले ही गुमटियों को हटाने के लिए नोटिसें चस्पा कराई गई थीं। सिंधी समुदाय के लोगों को यकीन नहीं था कि बुलडोजर अचानक आ धमकेंगे और कुछ ही देर में उनकी आजीविका की डोर हमेशा के लिए टूट जाएगी।

रिफ्यूजी परिवारों के लोग अपने घरों में सोए थे, तभी कोहराम मचा। महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग चितरंजन पार्क की ओर दौड़े, लेकिन उन्हें गोदौलिया पर ही रोक दिया गया। ये लोग कुछ समझ पाते इससे पहले ही वीडीए और नगर निगम के बुलडोजरों ने सब कुछ तहस-नहस कर दिया। बकौल रमेश बधवानी, ''गुमटियों को बचाने के लिए संघर्षरत रंजन कोहली ने सामान निकालने के लिए वीडीए और नगर निगम के अफसरों से मौका देने की बहुत मिन्नतें कीं, लेकिन उन्होंने एक नहीं सुनी। उनके साथ आई पुलिस ने रंजन को उठा लिया। हम उन्हें बचाने पहुंचे तो जवानों ने हमारे साथ भी बदसलूकी की। हमें ढकेल दिया गया, जिससे कमर में गंभीर चोट आई। आज भी हम चलने-फिरने में असमर्थ हैं। पुलिस प्रशासन ने जी-20 के बहाने कुछ ही घंटों में हमें बर्बाद कर दिया। हमारी गुमटियों के साथ रेडिस मार्केट में सब्जी बेचने वालों को भी उजाड़ दिया गया। करीब एक पखवारे से हम सभी का कारोबार ठप है। दशाश्वमेध टूरिस्ट प्लाजा में गुमटीनुमा दुकान आवंटित करने के लिए हमसे 17 से 20 लाख रुपये की डिमांड की जा रही है। आखिर हम इतने रुपये कहां से लाएंगे? ''

रंजन कोहली

कोर्ट का फैसला भी नहीं माना

पुलिसिया जुल्म-ज्यादती और अफसरों की दबंगई की कहानी सुनाते हुए रमेश बधवानी की आंखों से आंसू छलकने लगे। मैं रमेश को सुन ही रहा था तभी उनके एक परिजन अपने बैग से विधानसभा चुनाव में मिली रिटर्निंग अधिकारी की मुहर लगा अपना वोटर आईजी कार्ड ले आते हैं। वोटर आईडी दिखाते हुए वह सवाल करते हैं, ''क्या हम पाकिस्तानी हैं? क्या हम बनारस के नागरिक नहीं है? हमारे परिवार का पेट भरने वाली गुमटियों को आखिर इस तरह से क्यों रौंदा गया, जैसे हम कोई उग्रवादी हों। बनारस के मुंसफ कोर्ट ने 24 जुलाई 1980 को हमारे पक्ष में हमारी गुमटियों को न हटाने का फैसला सुनाया था। बनारस की सरकार ने कोर्ट के फैसले का सम्मान नहीं किया। नौकरशाही ने कुछ ही देर में करीब 500 लोगों की आजीविका पर बुलोडजर चला दिया। हमारा सारा सामान बर्बाद हो गया। दो वक्त की रोटी का इंतजाम करने के लिए हमें सड़क के किनारे पटरी पर एक टेबल लगाकर हमें अचार-पापड़ बेचना पड़ रहा है।''

भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के वक्त सरकार ने सिंध प्रांत से आने वाले रिफ्यूजी परिवारों का तहे दिल से स्वागत करते हुए उन्हें आजीविका चलाने के लिए दशाश्वमेध घाट के पास ऐतिहासिक चितरंजन पार्क में 35 गुमटियां आवंटित की थी। साल 1950 में इन गुमटियों को आवंटित करते समय रिफ्यूजी परिवारों को भरोसा दिलाया गया था कि उन्हें कभी नहीं हटाया जाएगा। अदालत का फैसला इनके पक्ष में होने के बावजूद वीडीए और नगर निगम ने उनकी गुमटियों को बुलडोजर से तहस-नहस कर दिया। पाकिस्तान से आए रिफ्यूजी समुदाय के लोगों के पारंपरिक व्यवसाय फिलहाल ठप हैं। इनके साथ दशाश्वमेध घाट के पास गुमटी और झुग्गी-झुपड़ियों में समान व सब्जी बेचने वाले लोगों के करीब पांच सौ लोगों का भविष्य अंधकारमय हो गया है। दुकानें उजाड़े जाने से इनके सामने गंभीर आर्थिक चुनौतियां खड़ी हो गई हैं और वो मारे-मारे फिर रहे हैं। इन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर वो जाएं कहां? आरोप है कि ये लोग अब अफसरों के यहां गुहार लगाने जाते हैं तो इन्हें वहां से भी भगा दिया जाता है।

नगर निगम का फरमान

बनारस आए थे पांच सौ रिफ्यूजी

आजादी के बाद पाकिस्तान के सिंध और सियालकोट इलाके से करीब चार-पांच सौ रिफ्यूजी परिवार बनारस आए थे। आजीविका चलाने के लिए इन्हें चितरंजन पार्क के अलावा बेनियाबाग, कंपनी बाग (मैदागिन), गोलघर, संजय मार्केट-गोदौलिया, पांडेयपुर आदि स्थानों पर गुमटियां आवंटित की गईं थीं। भाजपा के वरिष्ठ नेता श्यामदेव राय चौधरी जब तक विधायक थे, तब तक वह इन गुमटियों में कारोबार करने वाले रिफ्यूजी समुदाय के लिए ताकत हुआ करते थे। इनकी गुमटियों को हटाने की बात उठते थे, वो उनके पक्ष में खड़ा हो जाते थे और अपनी सरकार से भी लड़ जाते थे। मौजूदा समय में अब उनका कोई रहनुमा नहीं रह गया है।

चितरंजन पार्क के बाहर फुटपाथ पर फल बेचती गरीब महिला

चितरंजन पार्क में सिंधी समुदाय की गुमटियों के मलबे अभी पूरी तरह साफ नहीं किए गए हैं। ईंट-पत्थर जहां-तहां बिखरे पड़े हैं। कुछ महिलाएं सड़क के किनारे सब्जियां बेच रही हैं तो सिंधी व्यापारी फुटपाथों पर अचार-पापड़ बेचते नजर आ रहे हैं। रिफ्यूजी समुदाय का समूचा कारोबार फिलहाल सड़क पर आ गया है। ये वो लोग हैं जो भारत-पाक बंटवारे के समय यहां आए और पिछले सात दशक से ज्यादा समय से यहां रोजगार कर अपनी आजीविका चला रहे हैं। किसी का लड़का, किसी का पोता गुमटी में अपनी दुकान चला रहा था। उजाड़े गए सिंधी समुदाय के ज्यादातर लोगों का कहना है कि वो अपने बच्चों को पढ़ाएं अथवा दुकान खरीदें? पूरी जिंदगी हमने 10-12 लाख रुपये नहीं देखे। आखिर इतनी मोटी रकम कहां से लाएंगे? उनके बैंक खातों की पड़ताल कर ली जाए। अगर पैसे हैं तभी जोर-जबर्दस्ती की जाए।

सड़क पर अचार पापड़ बेचने की मजबूरी

चितरंजन पार्क से उजाड़े गए दुकानदार दिलीप तुलस्यानी की आखों के कोर गीले हो जाते हैं। आंसू भरी आंखों से अपनी-अपनी व्यथा सुनाते हुए वह कहते हैं, ''हमारे पूर्वजों ने पाक से विस्थापित होते हुए बहुत दर्दनाक मंजर देखे हैं। बंटवारे के वक्त वो मंजर भी देखा है, जब हिंदुस्तान के एक हिस्से से हमें निकालकर यहां भेजा गया, जिसे याद कर हमारे बुजुर्गवार आज भी सिहर जाते हैं। वो हमें बताते हैं कि पाकिस्तान से आने वाली रेलगाड़ियां खून से लथपथ होकर हिंदुस्तान के इस हिस्से में पहुंचती थी तो उसमें 70 से 80 फीसदी लोग विभाजन के इस दंश की मार झेल चुके होते थे। कुछ मौत मुंह में समा चुके होते थे। जो बचे हुए यहां पहुंचे, वह अपना बसा-बसाया घर और परिवार छोड़कर बनारस पहुंचे। हमने यहां खूब मेहनत की। अपने स्वाभिमान को बचाए रखने के लिए किसी के आगे हाथ तक नहीं फैलाया। हम रिफ्यूजी बनकर आए थे और मोदी सरकार ने हमें दोबारा रिफ्यूजी बना दिया।''

लीलता जा रहा विकास

‘न्यूजक्लिक’ से बात करते हुए दिलीप तुलस्यानी काफी भावुक हो जाते हैं। वह यह भी कहते हैं, ''चितरंजन पार्क में हमारे पिता को गुमटी में कारोबार करने की जगह भारत सरकार ने दी थी। आपातकाल के समय भी हमें यहां से हटाने की कोशिश हुई थी। उस वक्त नगर निगम ने हमें हटाने के लिए नोटिस दिया तो हम अदालत में गए। वहां से हमें स्टे मिला और बाद में हमारे पक्ष में फैसला भी आया। कोर्ट ने स्पष्ट आदेश दिया कि गुमटी में दुकान चलाने वालों को कोई नहीं हटा सकता है। हमारी पीड़ा यह है कि बनारस का विकास हमें लीलता जा रहा है। पाकिस्तान से आए 35 परिवारों के सैकड़ों लोगों की जिंदगी कैसे चलेगी, यह बताने वाला कोई नहीं है? ''

पाकिस्तान से आने वाले रिफ्यूजी सिंधी समुदाय की अगुवाई करने वाले रंजन कोहली लाजपत नगर में रहते हैं। वह बताते हैं, ''आपातकाल के दौर में हमारी गुमटियों को तोड़ने के लिए प्रशासन ने बुलडोजर भेजा था। उस समय की चर्चित कांग्रेसनेत्री चंद्रा त्रिपाठी ने हमारा साथ दिया। उन्होंने औरंगाबाद हाउस में कलेक्टर को बुलवाया। हमने अपनी बात रखी और विवाद का पटाक्षेप हो गया। अबकी हमें 15 फरवरी 2023 को नोटिस दी गई। दुकानों को बुक करने के लिए हम सभी से सौ-सौ रुपये की बुकलेट दी गई। बाद में गुमटियों को ढहाने के लिए चार दिन पहले गुमटियों पर नोटिसें चस्पा कराई गईं। हमने कोर्ट के फैसले का आदेश दिखाया, लेकिन वो नहीं माने। तीन बुलडोजर, दो फायर ब्रिगेड की गाड़ियां, दो एंबुलेंस के साथ करीब 250 से ज्यादा पुलिसकर्मी मौके पर पहुंचे। इससे पहले सभी रास्तों पर नाकेबंदी कर दी गई। जिन गुमटियों में माल भरा पड़ा था, उसे भी आनन-फानन में ढहा दिया गया।''

पहले यहां थीं रिफ्यूजी समुदाय की गुमटियांं

''सबसे पहले रेडिस मार्केट में चाय विक्रेता जोगी साहनी की गुमटी तोड़ी गई और बनारसीलाल को धमकाया गया। फिर राम उदासी की होजरी की गुमटी को बुलडोजर ने रौंद दिया। अचार-पापड़ के विक्रेता संतूमल और छब्बल दास की गुमटियां देखते ही देखते जमींदोज कर दी गईं। गुमटियों में कारोबार करने के एवज में हम नगर निगम को टैक्स देते आ रहे हैं। सभी के पास रसीदें हैं, लेकिन उन्हें कोई नहीं देख रहा है। वीडीए यह कहकर पल्ला झाड़ रहा है कि गुमटी वाले हमारे किरायेदार नहीं हैं। हमसे दशाश्वमेध टूरिस्ट प्लाजा में दुकानें आवंटित करने की पेशकश की जा रही है। यहां तीन मंजिलों पर करीब 120 दुकानें बनाई गई हैं। इन दुकानों के आवंटन के लिए सिंधी समुदाय के लोगों से 17 से 20 लाख रुपये की डिमांड की जा रही है। किसी के पास इतनी पूंजी नहीं है। हमारे ऊपर नई-नई शर्तें भी लादी जा रही हैं। कहा जा रहा है कि जो भी दुकानें आवंटित की जाएंगी, उन्हें वो किसी भी स्थिति में बेच नहीं पाएंगे। सारा पैसा वीडीए को लौटाना होगा।''

अर्थहीन है सरकारी नारा

रंजन कोहली कहते हैं, ''पाकिस्तान से आने के बाद हमने जनसंघ का साथ दिया। वोट देने की बारी आई तो भाजपा के पक्ष में तनकर खड़े रहे। हमारे वजूद पर संकट आया तो भाजपाइयों ने हमारा साथ छोड़ दिया। आजादी के अमृत काल में सबका साथ-सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास का नारा हमारे लिए अर्थहीन है। बनारस के सांसद पीएम नरेंद्र मोदी ने पिछले साल 'यथास्थान झुग्गी-झोपड़ी पुनर्वास परियोजना' शुरू की थी, तब उम्मीद जगी थी कि सरकार उजाड़ने से पहले हमारे पुनर्वास का इंतजाम करेगी। हमने कड़ी मेहनत व अथक कोशिशों के दम पर विकास और सपनों की नींव गरीबी में डाली थी। अब हमें दयनीय परिस्थितियों में रहने के लिए छोड़ दिया गया है। जब पीएम के संसदीय क्षेत्र में इतना बड़ा अन्याय और असंतुलन है, तो हम समग्र विकास के बारे में कैसे सोच सकते हैं? ''

दशाश्वमेध टूरिस्ट प्लाजा के पास फुटपाथ पर अचार-पापड़ बेचने वाले रितेश वर्धवानी योगी सरकार की बुलडोजर नीति से बेहद आहत हैं। वह कहते हैं, ''यह सरकार कोर्ट के आदेश तक नहीं मान रही है। पहले गुमटी में हमारा श्री सीता राम भंडार नाम से दुकान थी, अब हम एक छोटे से टेबल पर सामान बेचने के लिए मजबूर हैं। वहां से भी हमें कब खदेड़ दिया जाएगा, कहा नहीं जा सकता है।''

40 वर्षीय भरत खान चंदानी की गुमटी तोड़ दी गई तो परिवार का पेट भरने के लिए एक दुकान पर कर्मचारी बन गए। इनके तीन बच्चे हैं, जिन्हें जिंदा रखने के लिए इनके पास गुमटी के अलावा दूसरा कोई जरिया नहीं है। इनके पास इतने पैसे भी नहीं हैं कि वो दशाश्वमेध प्लाजा में दुकान खरीद आवंटित करा सकें। उधर, रेडिस मार्केट में दो मार्च को सब्जी बेचने वालों की गृहस्थी उजाड़ दी गई। इनमें कुछ लोगों ने दशाश्वमेध प्लाजा के ग्राउंड फ्लोर पर अपनी दुकानें सजा ली हैं, लेकिन बिक्री नहीं हो रही है।

अंधेरा है भविष्य

रेडिस मार्केट में दुकान लगाने वालों की लड़ाई राजेश यादव लड़ रहे हैं। दो मार्च को पुलिस ने इन्हें सबसे पहले गिरफ्तार किया था और मारपीट करने के बाद जेल भेज दिया था। सब्जी विक्रेता ओमप्रकाश सोनकर ''न्यूजक्लिक'' से कहते हैं, ''रेडिस मार्केट में हमारी सालों पुरानी दुकान थी। पिछले 32 सालों से हम घाट पर सब्जियां बेच रहे थे। फिर भी हमें भगा दिया गया। अब हमसे आठ लाख रुपये मांगा जा रहा है। हम अपने चार बच्चों की परवरिश करें अथवा सब कुछ दांव पर लगाकर पैसे का इंतजाम करें? आखिर हम कितना कमाएंगे कि बैंक का लोन भरेंगे?'' ऊषा गुप्ता, भरत सोनकर और दिलीप सोनकर का दर्द भी कुछ ऐसा ही है। इनका कहना है कि दुकान के बदले दुकान के लिए लड़ेंगे। जरूरत पड़ेगी तो आंदोलन भी करेंगे। ''किराये पर दुकान देंगे, तभी ले सकेंगे, नहीं तो छोड़ देंगे। जहां किस्मत ले जाएगी, चले जाएंगे।'' इतना कहकर बिरजू सोनकर आस्तीन से अपनी आंखें पोंछने लगते हैं।

ओमप्रकाश 

दशाश्वमेध रोड के व्यापारियों के हितों के लिए संघर्ष करने वाले गणेश शंकर पांडेय कहते हैं, ''कोर्ट के आदेश के बाद भी उजाड़े गए लोगों का पुनर्वास नहीं किया जा रहा है। अतिक्रमण हटाने के नाम पर सरकार गरीबों को इधर-उधर करती रहती हैं। हमारी मांग यही है कि इन लोगों को एक जगह रहने और कारोबार करने का स्थायी ठिकाना दिया जाए ताकि ये बार-बार न उजाड़े जा सकें। बनारस शहर में सरकारी ज़मीनों पर तमाम करोड़पतियों ने अवैध इमारतें खड़ी कर दीं, लेकिन वीडीए उन्हें कुछ नहीं कर पाता। गरीब लोग किसी जमीन पर झुग्गी भी डाल लेते हैं तो सरकारी मुलाज़िमों को अतिक्रमण तत्काल दिख जाता है। उजड़ने और बस कर फिर उजड़ने के अभ्यस्त हो चुके लोग अपनी गरीबी का हवाला देकर अपने गुजर-बसर के लिए सिर्फ एक छत मांग रहे हैं। फिलहाल इनका खुरदरा हो चुका भविष्य अंधेरे में है।''

दुकानदारों ने मांग उठाई है कि उन्हें समायोजित किया जाए, क्योंकि दुकानदारों के पास इतने पैसे नहीं है कि वह अपनी गृहस्थी उजड़ने के बाद अब पैसा खर्च करके दुकान ले पाए। दुकानदारों को मुफ्त में दुकानें मिले और उसको वह संचालित करते रहे, जिसके बदले किराया चाहे तो ले सकते हैं। कोई भी दुकानदार दुकान खरीदने की स्थिति में नहीं है। सिंधी समाज के लोगों की गुमटियों को ढहाए जाने के पीछे वीडीए और नगर निगम के अफसर अलग-अलग तर्क दे रहे हैं। सहायक नगर आयुक्त अमित शुक्ला कहते हैं, ''सभी को दशाश्वमेध प्लाजा में दुकाने दी जाएंगी। इसके लिए उन्हें छह से 18 लाख रुपये तक का भुगतान करना होगा। पहले आओ पहले पाओ की तर्ज पर दुकानें आवंटित की जाएंगी।''

तूल पकड़ता जा रहा मुद्दा

जी-20 सम्मेलन से पहले अतिक्रमण के नाम पर रिफ्यूजी समुदाय की गुमटियों को ढहाए जाने का मामला अब तूल पकड़ता नजर आ रहा है। सियासी दलों ने इस मुद्दे पर अब दांव खेलना भी शुरू कर दिया है। कांग्रेस ने तो सड़क पर उतरकर आंदोलन की बात भी कह दी है। समाजवादी पार्टी इस मामले को विधान परिषद में उठा चुकी है और अब सपा पीड़ित व्यापारियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ने की भी बात कर रही है।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजय राय का कहना है, ''कांग्रेस ने रिफ्यूजी समुदाय के लोगों को कांग्रेस ने बसाया था और बीजेपी ने उन्हें उजाड़ दिया। साल 1950 में जब कांग्रेस ने उनको दुकानें देकर वहां पर स्थापित किया था, तब वह अपनी रोजी-रोटी चलाने में सक्षम थे। आज जिस बीजेपी को लोग चुनकर लाए हैं, वहीं बीजेपी उनके घर को बर्बाद कर रही है। यह सरासर गलत है। पीएम नरेंद्र मोदी के दावे में यह कितना विरोधाभास है कि गरीब लोगों को दयनीय परिस्थितियों में रहने के लिए छोड़ दिया गया है। जब एक ही शहर में इतना असंतुलन है, तो हम समग्र विकास के बारे में कैसे सोच सकते हैं? हम उस वक्त भी उनके साथ थे और अब भी उनके साथ हैं। जरूरत पड़ेगी तो सड़क पर उतरकर आंदोलन भी करेंगे।''

जी-20 के नाम पर उजड़ दिए गए रिफ्यूजी

समाजवादी पार्टी के एमएलसी आशुतोष सिन्हा ने इस मुद्दे को विधान परिषद में उठाया भी है। उनका कहना है, ''रिफ्यूजी समुदाय के साथ नाइंसाफी हुई है। हमने इस मामले को जब उच्च सदन में उठाया तो जमकर हंगामा भी हुआ। रिफ्यूजी कारोबारियों के साथ ठीक नहीं हुआ है। उन्हें समायोजित किया जाना चाहिए, न कि उन्हें दुकानें भारी-भरकम पैसे लेकर दी जानी चाहिए। इस मामले में समाजवादी पार्टी व्यापारियों के साथ खड़ी है। क्या डबल इंजन की सरकार की पुनर्वास परियोजना का उद्देश्य झुग्गी-झोपड़ी समूहों के निवासियों को सुविधाओं और सहूलियत को छीनना है। आखिर गरीबों को बेहतर और स्वस्थ रहन-सहन का वातावरण देने की जिम्मेदारी किसकी है? ''

(लेखक बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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