MCD चुनाव; यमुना खादर: हर साल बाढ़ में दर-बदर हो जाते हैं लोग, न बिजली, न पानी, न शौचालय
पूर्वी दिल्ली में डीएनडी और मयूर विहार के नज़दीक यमुना खादर वो इलाका है जहां हज़ारों ग़रीब मज़दूर-किसान दशकों से बिना मूलभूत सुविधाओं के अपना गुजर-बसर कर रहे हैं। यहां रह रहे लोगों के पास वोट देने के लिए वोटर आईडी कार्ड तो है लेकिन पानी, बिजली, स्कूल, शौचालय और सड़क जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं। लोग यहां अस्थाई झुग्गी-झोपड़ियों में रहते हैं और बाढ़ आने पर मयूर विहार की सड़कों पर भूखे-प्यासे बैठने को मज़बूर हो जाते हैं। यहां के कई निवासियों को राशन कार्ड, आधार कार्ड होने के बावजूद राशन और सरकारी मदद नहीं मिल पा रही है।
बता दें कि यमुना-चिल्ला खादर का यह इलाका पटपड़गंज विधानसभा क्षेत्र में आता है और यहां से दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया विधायक हैं।
जबकि पटपड़गंज संसदीय क्षेत्र से भाजपा के गौतम गंभीर सांसद हैं।
यहां उत्तर प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़, बिहार के बहुत सारे मज़दूर यहां आकर खेती करते हैं। एक अनुमान के मुताबिक दिल्ली की 10 प्रतिशत खाद्य जरूरतें यहां उगाई गई फसलों से पूरी होती है। लेकिन इन लोगों की जरूरी जरूरतों को भी पूरा करने वाला फिलहाल यहां दूर-दूर तक कोई नज़र नहीं आता।
न्यूज़क्लिक ने यमुना खादर का दौरा कर इस निगम चुनाव में वहां के लोगों के बेसिक मुद्दों को जानने की कोशिश की। साथ ही इस बार वहां के बीजेपी और आम आदमी पार्टी के निगम प्रत्याशियों से उनके मुद्दे भी जानने का प्रयास किया।
शिक्षा से महरूम बच्चे
यमुना खादर में लंबे समय से रह रहे सतेंद्र पाल कहते हैं कि हमारे देश में शिक्षा का अधिकार मूलभूत अधिकार है, लेकिन यमुना खादर में बच्चों के लिए स्कूल ही नहीं हैं। जो स्कूल हैं वो कई किलोमीटर दूर हैं, जिसके चलते लड़कियों और छोटे बच्चों को तो लोग डर के मारे नहीं भेजते। हाईवे रोड की वजह से दुर्घटना का डर अलग से है। इसके अलावा यहां रास्तों से बच्चा चोरी के भी केस हो चुके हैं।
सतेंद्र पाल इन बच्चों को खुद समय निकालकर पढ़ाते हैं और केंद्र, दिल्ली व एमसीडी सरकार से इन बच्चों का भविष्य संवारने की दरख़्वास्त करते हैं। सतेंद्र पाल के मुताबिक यहां वोट मांगने आए प्रत्याशी जनता को वादों का लॉलीपॉप तो पकड़ा देते हैं, लेकिन आज़ादी के 75 साल बाद भी यहां के लोग जरूरी सुविधाओं से महरूम हैं।
खादर की शिवानी ने 12वीं में 86 प्रतिशत अंक प्राप्त किए हैं। इन्हें अग्रसेन कॉलेज में भी दाखिला मिल गया है, लेकिन इनके पिता अपनी बच्ची की शिक्षा को लेकर चिंता में हैं, इसका कारण यहां आने वाली बाढ़ और उनकी खत्म होती पूंजी है। शिवानी खुद चाहती हैं कि और लड़कियां उनकी तरह पढ़े लेकिन वे इसे चुनौती भी मानती हैं क्योंकि स्कूल दूर हैं और रात में पढ़ाई के लिए रोशनी भी नहीं है। इसके अलावा परिवार की ज़रूरतों के लिए इन बच्चों को खेतों में काम करना पड़ता है, जिसके चलते ये पढ़ाई पर फोकस नहीं कर पाते।
पूरा देश ओडीएफ फ्री, फिर यहां क्यों खुले में शौच
यहां की निवासी सावित्री कहती हैं, “जंगल में रह रहे हैं, परेशानी बहुत है और कोई सुविधा नहीं है। ये लोग वोट तो मांगने आ जाते हैं लेकिन अबतक न शौचालय है, ना बच्चों के लिए स्कूल। पीने के लिए साफ पानी भी नहीं आता। राशन के लिए भी नाम लिखवा जाते हैं, लेकिन बांटने कोई नहीं आता।"
बता दें कि अक्टूबर 2019 में नरेंद्र मोदी सरकार ने पूरे देश को ओडीएफ यानी खुले में शौच से मुक्त घोषित कर दिया था लेकिन राजधानी दिल्ली समेत देश भर में ऐसे कई क्षेत्र हैं, जो अभी भी खुले में शौच को मजबूर हैं। यमुना खादर का ये इलाका भी संसद भवन और दिल्ली विधानसभा से महज़ कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है लेकिन शौचालय का दूर-दूर तक यहां कोई नामो-निशान नहीं है।
खादर चिल्ला मछलीअड्डा की रीना और भूतनी देवी के अनुसार महिलाओं के लिए खुले में शौच के लिए जाना रात-बेरात डरावना है। छोटे-छोटे बच्चे गंदगी के चलते बार-बार बीमार भी पड़ते हैं। मच्छरों की तो यहां भरमार है, पीने के लिए भी साफ पानी नहीं है। लेकिन हर बार एक ही वादा नेता कर के जाते हैं और चुनाव पूरा होने के बाद यहां के लोगों को भूल जाते हैं।
मछलीअड्डा
स्वास्थ्य व्यवस्था का बुरा हाल
यहीं रहने वाले अमरपाल, जो यूपी से आए हैं और खेती-किसानी कर अपने परिवार का पेट पालते हैं, न्यूज़क्लिक को बताते हैं कि यहां कुछ समय से नहीं मिलता। न पानी, न खेतों के लिए बीज, कीटनाशक और दवाई। बाढ़ आ जाती है, तो सब तबाह हो जाता है, कर्ज का बोझ भी बढ़ जाता है। लेकिन सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिलती। राहत शिविरों में भी भूखे-प्यासे लोगों को छोड़ दिया जाता है।
स्वास्थ्य व्यवस्था भी यहां जर्जर है। अमरपाल का कहना है कि यमुना खादर के इलाके में कोई सरकारी अस्पताल की व्यवस्था नहीं है। यहां रहने वालों को झोला छाप डॉक्टरों से ही बुखार, खांसी की दवाई लेनी पड़ती है। इसके अलावा कोई बड़ी बीमारी हो तो प्राइवेट डॉक्टरों को दिखाना पड़ता है, या तो दूर के सरकारी अस्पतालों के चक्कर काटने पड़ते हैं।
उज्ज्वला योजना नहीं बेहतर कर रही यहां की महिलाओं का जीवन
जितेंद्र के घर के पास ही रुबीना का घर है, जो चूल्हे पर आज भी खाना बनाती हैं। उनके दो मासूम बच्चे हैं, ससुर का निधन हो चुका है, घर में सास है और पति मज़दूरी करते हैं। रुबीना की आर्थिक स्थिति काफी खराब है। इनके पास राथन कार्ड भी नहीं है और न ही इन्हें उज्ज्वला के तहत गैस सिलेंडर जैसा कुछ मिला है।
ध्यान रहे कि 1 मई 2016 को 'स्वच्छ ईंधन, बेहतर जीवन' के नारे के साथ मोदी सरकार ने अपनी महत्वाकांक्षी उज्ज्वला योजना की शुरुआत उत्तर प्रदेश के बलिया से की थी। इसका फायदा उन्हें यूपी विधानसभा चुनावों में भी मिला लेकिन इस योजना ने गरीब महिलाओं का जीवन कितना बदला ये मोदी सरकार के पोस्टरों से इतर यमुना खादर के इस क्षेत्र में आपको बखूबी देखने को मिल जाएगा।
पक्ष-विपक्ष की राजनीति, केंद्र और दिल्ली सरकार में तकरार
शिक्षा, बिजली, पानी, सड़क और शौचालय के इन मुद्दों से राजनेता अंजान नहीं है। वो हर बार इन्हीं मुद्दों पर चुनाव लड़ते हैं और जीत कर शायद लोगों से किए अपने वादे भूल जाते हैं। इस बार इस इलाके से महिला उम्मीदवार मैदान में हैं। आम आदमी पार्टी ने सीमा प्रवीणमान और भारतीय जनता पार्टी ने रेनू चौधरी को यहां से टिकट दिया है। दोनों प्रत्याशी इन मुद्दों को लेकर क्या सोच रखती हैं ये उनसे न्यूज़क्लिक ने जानने की कोशिश की…
आम आदमी पार्टी की प्रत्याशी सीमा प्रवीणमान कहती हैं कि पिछले 15 सालों में बीजेपी एमसीडी में थी और उसने यहां के ज़मीनी मुद्दे बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य को लेकर को काम नहीं किया, लेकिन इस बार अगर आम आदमी की सरकार बनती है, तो ये सारी समस्याएं हल की जाएंगी। लोगों की जरूरी चीजों पर ध्यान सबसे पहले दिया जाएगा।
इस सवाल पर कि घर-घर पानी की व्यवस्था तो दिल्ली सरकार के जिम्मे है, जहां अरविंद केजरीवाल की सरकार है, ये काम अब तक क्यों नहीं हो पाया है। सीमा प्रवीणमान का कहना था कि केजरीवाल सरकार ने कई व्यवस्थाएं करने की कोशिश की है, लेकिन केंद्र और एमसीडी की बीजेपी सरकारें उनके काम में व्यवधान उत्पन्न कर रही हैं, जिसके चलते ये पूरी तरह से सफल नहीं हो पाया है। लेकिन आगे इसे पूरा करना का उनका प्रयास जारी है।
बीजेपी की प्रत्याशी रेनू चौधरी से जब न्यूज़क्लिक ने उनके मुद्दे जानने चाहे तो उन्होंने भी बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य, शौचालय की समस्याएं गिनवा दीं। हालांकि 15 सालों से एमसीडी में उनका शासन है और इन मामले पर उन्होंने क्या किया के सवाल पर गोलमोल कर रेनू चौधरी ने काम न करने का ठीकरा अरविंद केजरीवाल की दिल्ली सरकार पर फोड़ दिया। और बीजेपी को आप से बेहतर विकल्प बताते हुए पीएम नरेंद्र मोदी और यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ की योजनाओं की जनता के लिए हितकारी बताया।
गौरतलब है कि राजधानी दिल्ली का ये इलाका यमुना किनारे बसा हुआ है और लगभग हर साल बाढ़ की चपेट में आता है। कई जानकार बताते हैं कि इसका ज्यादातर हिस्सा डीडीए यानी दिल्ली विकास प्राधिकरण के क्षेत्र में आता है, जिसके चलते यहां झुग्गी-झोपड़ी अवैध निर्माण हैं और कई बार बुलडोजर भी चलाने की कोशिश हुई है। और शायद यही वजह है कि यहां के लोग बुनियादी सुविधाओं के वंचित रह जाते हैं। हालांकि अगर यही यहां की समस्याओं का मूल कारण है फिर एक सवाल और महत्वपूर्ण हो जाता है कि इन लोगों को यहां वोट बैंक कैसे बना दिया गया, मतदाता पहचान पत्र इस इलाके का कैसे बना और अगर ये सब हुआ तो फिर इन्हें सुविधाएं क्यों नहीं मिलीं। क्या यहां के लोग सिर्फ़ वोट के काम आते हैं, नेता उनके किसी काम नहीं।
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