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गुजरात चुनावः किस पार्टी पर भरोसा करेगी जनता?

भावनगर का चुनावी दंगल गुजरात के लिए काफी मायने रखता है क्योंकि यह वह ज़िला है जिसे भाजपा का गढ़ माना जाता है।
Gujarat

भावनगर के महुआ में मेथला बंधारा विकास समिति के अध्यक्ष भरत सिंह का कहना है कि “भावनगर में इस बार चुनावी नतीजे चौंकाने वाले होंगे”। भाजपा ने पिछले चुनाव में इस जिले की 7 सीटों में से 6 सीटें जीती थी। भारत सिंह का मानना है कि यह स्थिति उलट सकती है क्योंकि पिछले चुनाव के मुक़ाबले भाजपा को कांटे की टक्कर मिल रही है।

गुजरात में मतदान की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आ रही है वैसे-वैसे सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस और सत्ता की नई दावेदार, आम आदमी पार्टी (आप) ने अपने चुनाव प्रचार में पूरी ताक़त झोंक दी है। सभी राजनीतिक दल ज्यादातर सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं और मतदाताओं को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं।

भावनगर का चुनावी दंगल गुजरात के लिए काफी मायने रखता है क्योंकि यह वह जिला है जिसे भाजपा का गढ़ माना जाता है। पिछले चुनाव में, भाजपा ने यहाँ से सात विधानसभा सीटों में से छह जीती थी और एक सीट कांग्रेस के खाते में गई थी। राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण इस जिले में यह देखना काफी दिलचस्प होगा कि क्या भाजपा भावनगर में अपनी स्थिति बरकरार रख पाएगी या विपक्षी पार्टियां इसमें सेंध लगाएंगी।

भावनगर की भारत के इतिहास में काफी महत्वपूर्ण जगह है। आज़ादी मिलने के बाद भारत में 562 से अधिक रियासतें थीं जिन्हें भारतीय यूनियन में शामिल किया जाना था। हालांकि शुरू में कई रियासतों ने भारत में मिलने से मना कर दिया था और कई रियासतों ने विलय के एवज़ में बहुत सारी शर्तें लगा दी थीं। हालाँकि, सभी रियासतों में, भारत में भावनगर का विलय सबसे पहले हुआ था।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है आम आदमी पार्टी के चुनावी मैदान में उतरने से गुजरात का चुनावी दंगल ‘त्रिकोणीय मुक़ाबले’ में बदल गया है। यद्यपि गुजरात में आप पार्टी का यह पहला विधानसभा चुनाव है और केजरीवाल और अन्य आप नेता लगातार राज्य का दौरा कर रहे हैं।

जिला निर्वाचन दफ्तर के मुताबिक, “गुजरात विधानसभा चुनाव के पहले चरण में 1 दिसंबर को भावनगर जिले की 7 सीटों पर 18 लाख से अधिक मतदाताओं के लिए 1868 मतदान केंद्र बनाए गए हैं। जिले में 944526 पुरुष, 887326 महिलाएं, 40 अन्य समेत कुल 1831892 मतदाता वोट डाल सकेंगे”।

जिले में महुवा, तलाजा, गरियाधर, पलिताना, भावनगर ग्रामीण, भावनगर पूर्व, भावनगर पश्चिम समेत 7 विधानसभा सीटें हैं।

न्यूज़क्लिक से फ़ोन पर बात करते हुए मेथला बंधारा विकास समिति के अध्यक्ष भरत सिंह ने बताया कि “भावनगर में लोग भाजपा नेताओं के झूठे वादों से निराश हैं और इस बार यहाँ के चुनाव नतीजे चौंकाने वाले होंगे। उन्होने बताया कि भावनगर की महुआ और तलाजा के बीच एक बगड़ नदी है जिस पर बांध बनाना था लेकिन भाजपा सरकार ने वादे तो किए लेकिन कभी बांध बनाने के लिए आर्थिक मदद नहीं की। नतीजतन, मेथला बंधारा विकास समिति के नेतृत्व में 2000 आम लोगों ने बांध का निर्माण किया जिसकी क्षमता 750एफडीएमसी पानी है और जो सरकार की 600एफडीएमसी की प्रस्तावित क्षमता से अधिक है”।

महुआ और तलाजा के बीच मेथला बंधारा विकास समिति के न्रेतत्व में ग्रामीण बांध का निर्माण करते हुए।

भारत सिंह ने आगे कहा कि, “2007 में जब नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने जनता से कहा था कि आप मुझे वोट दो में आपके बांध के 35 करोड़ रुपया आवंटित करूंगा। लेकिन चुनाव जीतने बाद फिर से यह मुद्दा ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। फिर 2015 में आनंदीबेन ने कहा कि वे बगड़ बांध के लिए 55 करोड़ का प्रावधान करेंगी। लेकिन फिर कुछ नहीं हुआ”।

सिंह के अनुसार, “आम जनता ने अंतत आंदोलन का फैसला लिया और महुआ से तलाजा तक 40 गांवों में महीनों तक अभियान चलाया गया। मार्च 2018 में मेथला बंधारा विकास समिति ने सरकार को चेतावनी दी कि यदि वह बांध नहीं बनाती है तो जनता खुद अपने खर्च पर बांध बनाएगी। इससे घबराकर, मार्च के महीने में ही नए मुख्यमंत्री रूपाणी ने समिति को एक फ़ैक्स भेजा और 86 करोड़ आवंटित करने का वादा किया। लेकिन बांध के निर्माण के लिए कोई पैसा नहीं आया”।

चारों तरफ से निराश होकर आखिरकार महुआ और तलाजा की जनता ने मिलकर 6 अप्रैल 2018 को बांध निर्माण का काम शुरू किया जिसमें 2000 से अधिक ग्रामीणों ने भाग लिया और कुल 55 लाख रुपए खर्च हुए। सिंह ने कहा कि “नरेंद्र भाई मोदी से लेकर रूपाणी तक, हर मुख्यमंत्री ने करोड़ों के आवंटन का वादा किया लेकिन एक पैसा नहीं दिया जबकि ग्रामीणों ने मिलकर मात्र तीन महीनों में बांध के काम को पूरा कर लिया था। इससे आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि भाजपा नेता किस तरह की खोखली घोषणाएँ करते हैं”।

जब न्यूज़क्लिक ने पूछा कि इसका राजनीतिक रूप से क्या प्रभाव पड़ेगा? तो सिंह ने कहा कि “वैसे तो पिछले चुनाव में यहाँ से भाजपा को 6 सीटें मिली थी, लेकिन इस बार उन्हें बड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी क्योंकि परिणाम चौंकने वाले होंगे”।

आप पार्टी राज्य की लगभग सभी सीटों पर चुनाव लड़ रही है और ऐसा माना जा रहा है यह मुख्य मुख्य रूप से कॉंग्रेस पार्टी का वोट काटेगी जिससे भाजपा को फायदा होगा। लेकिन क्या हक़ीक़त है?

भावनगर के विट्ठलभाई दुघेरी का मानना है कि “इस बार भी लोगों में भाजपा के खिलाफ गुस्सा है क्योंकि भाजपा सरकार अपने न्यूनतम वादे भी पूरे नहीं कर पाई है। यदि हिन्दू-मुस्लिम की राजनीति में मतदाता न फंसे तो स्थिति बादल सकती है। उनके मुताबिक, शिक्षा की खस्ता हालत, बेरोज़गारी, महंगाई, भ्रष्टाचार और फसल का नुकसान बड़े मुद्दे हैं।

राज्य में शिक्षा के मुद्दे पर काम कर रहे एक एनजीओ के एक्टिविस्ट दामोदर भाई (नाम बदला हुआ) ने फ़ोन पर बताया कि “राज्य में शिक्षा, बेरोज़गारी और महंगाई बड़े मुद्दे हैं और आम जनता भाजपा सरकार से नाराज़ है। कई जिलों में बांध न बनाने की वजह से किसानों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है और किसान और ग्रामीण मिलकर अपने लिए छोटे-छोटे बांध बना रहे हैं’।

वाड़गाम के फिरदौस भाई का मानना है कि “आप पार्टी कॉंग्रेस को कम बल्कि भाजपा को अधिक नुकसान पहुंचाएगी क्योंकि ‘आप’ शहर आधारित पार्टी है और शहरों में भाजपा का बड़ा जनाधार है। इसके अलावा काँग्रेस ने गुजरात के मतदाताओं को जो आठ वचन दिए हैं उनका आम जनता और युवाओं पर काफी प्रभाव है। गुजरात के लोगों को विश्वास है कि कांग्रेस ने राजस्थान और छत्तीसगढ़ में इन आठ वचनों को लागू किया है इसलिए वे इन्हें गुजरात में भी लागू करेंगे”।

फिरदौस भाई कहते हैं कि, ये आठ वचन जिसमें 500 रुपये में घरेलू गैस सिलेंडर उपलब्ध करना, सरकारी कर्मचारियों को 300 यूनिट घरेलू बिजली मुफ्त देना, पुरानी पेंशन योजना को लागू करना। लड़कियों के लिए केजी से पीजी तक मुफ्त शिक्षा, 3000 नए अंग्रेजी माध्यम वाले सरकारी स्कूल खोलना, युवाओं को 10 लाख रोजगार देना, ठेका प्रथा को पूर्ण रूप से समाप्त कराना और बेरोजगारों को 3000 रुपये मासिक बेरोगारी भत्ता देना, किसानों की तीन लाख रुपये तक की कर्जमाफी, किसानों का बिजली बिल माफ, दुग्ध उत्पादकों को पांच रुपये प्रति लीटर की सब्सिडी देना और हर गुजराती को 10 लाख रुपये तक का मुफ्त इलाज, किडनी, लिवर और हार्ट ट्रांसप्लांट, मुफ्त दवा आदि शामिल है।

इसके अलावा, नशा माफिया के खिलाफ सख्त कार्रवाई, नशा विरोधी कानूनों का सख्ती से लागू करना और अपराधियों को जेल भेजना, शहरी क्षेत्र में जरूरतमंद लोगों के लिए शहरी रोजगार योजना गारंटी को लागू करना, मात्र आठ रुपये में भोजन की व्यवस्था करना, सरकारी नौकरियों में भर्ती और सरकारी नौकरियों में संविदा व्यवस्था को समाप्त किया जाना भी शामिल हैं, कांग्रेस को भाजपा के खिलाफ मुख्य टक्कर में ले आए हैं।

कांग्रेस ने महंगाई और बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, सरकारी स्कूलों की बदहाली और निजी स्कूलों में महंगी पढ़ाई, कोरोना के दौर में ऑक्सीजन की कमी, बीजेपी के 27 साल के शासन में वेंटिलेटर की कालाबाजारी जैसे मुद्दों को उठाया है। गैस सिलेंडर की कीमतों में बढ़ोतरी के अलावा किसानों पर जीएसटी के बोझ को भी बड़ा मुद्दा बनाया है।

आम आदमी पार्टी ने भी मुफ्त बिजली, बेरोज़गारी भत्ता, रोज़गार और शिक्षा को बेहतर बनाने का वादा किया है और दावा कर रही है कि गुजरात की जनता अबकी बार आम आदमी की सरकार चुनेगी।

गुजरात में चुनावी सरगर्मी बड़ी तेज हो गई है और भाजपा ने चुनाव जीतने के लिए अपनी पूरी ताक़त झोंक दी है। देखना अब यह होगा कि गुजरात की जनता किस पार्टी के वादों पर अधिक विश्वास करती है। यह बात अलग है कि गुजरात की जनता को वादा-खिलाफ़ी को झेलने की अब आदत सी हो गई है।

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