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गुजरात: सरकार को फटकार लगाने वाली हाईकोर्ट बेंच में बदलाव, कम टेस्टिंग और अव्यवस्था पर उठाए थे सवाल!

गुजरात सरकार के कामकाज के खिलाफ हाईकोर्ट में दायर याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है। इस दौरान जस्टिस परदीवाला और जस्टिस इलेश वोरा की बेंच ने कई बार अस्पताल में अव्यवस्था तो कभी कम टेस्टिंग को लेकर विजय रूपाणी सरकार पर सख्त टिप्पणियां की थीं। हाईकोर्ट से जारी नए नोटिफिकेशन के मुताबिक कोरोना वायरस के मामलों की सुनवाई अब नई बेंच करेगी।
कोरोना वायरस
Image courtesy: The Indian Practitioner

'राज्य सरकार इस बात पर गर्व करती है कि अहमदाबाद का सिविल अस्पताल एशिया का सबसे बड़ा अस्पताल है, लेकिन उसे अब इसे एशिया के सर्वश्रेष्ठ अस्पतालों में शामिल करने के लिए बहुत मेहनत करनी चाहिए।'

गुजरात हाईकोर्ट ने पिछले दिनों कोरोना संक्रमण को लेकर राज्य की विजय रूपाणी सरकार पर सख्त टिप्पणी करते हुए अहमदाबाद सिविल अस्पताल की तुलना काल-कोठरी से की थी। कोर्ट ने कोरोना से निपटने के लिए सरकार के प्रयासों को अपर्याप्त बताते हुए इसे ‘डूबता  टाइटैनिक जहाज़’ तक करार दे दिया था। इस मामले की अगली सुनवाई आज यानी 29 मई को होनी थी लेकिन उससे ठीक एक दिन पहले ही हाईकोर्ट की जिस बेंच ने सरकार को फटकार लगाई थी उसे बदल दिया गया, जिसे लेकर अब नया विवाद शुरू हो गया है। कई लोग इसे सरकार की आलोचना से जोड़कर भी देख रहे हैं।

क्या है पूरा मामला?

राज्य में कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों को लेकर गुजरात सरकार के कामकाज के खिलाफ हाईकोर्ट में दायर कई याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है। इस मामले में कोर्ट ने स्वत: संज्ञान भी लिया था। इस दौरान जस्टिस परदीवाला और जस्टिस इलेश वोरा की बेंच ने लगभग 11 बार विजय रूपाणी सरकार पर सख्त टिप्पणियां की थी, कभी अस्पताल में अव्यवस्था तो कभी कम टेस्टिंग को लेकर कई महत्वपूर्ण सवाल भी खड़े किए थे।

हाईकोर्ट से जारी एक नोटिफिकेशन में गुरुवार, 28 मई को जानकारी दी गई कि कोरोना वायरस के मामलों की सुनवाई अब नई बेंच करेगी। पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस विक्रम नाथ अब इस बेंच की अध्यक्षता करेंगे। इसके पहले 11 मई से जस्टिस परदीवाला इस बेंच की अगुवाई कर रहे थे और बेंच में जस्टिस इलेश वोरा भी शामिल थे। लेकिन नए रोस्टर के मुताबिक, जस्टिस परदीवाला अब बेंच में जूनियर जज हो गए हैं। वहीं जस्टिस वोरा अब इस बेंच का हिस्सा नहीं होंगे।

क्या टिप्णियां की थी कोर्ट ने?

अपनी टिप्पणी में कोर्ट ने अहमदाबाद सिविल अस्पताल को काल-कोठरी जैसा बताया था। इसके साथ ही कम टेस्टिंग के मामले पर सरकार के उद्देश्यों पर सवाल खड़ा करते हुए कहा था कि ‘यह तर्क कि अधिक संख्या में टेस्ट होने से 70 फीसदी आबादी ही पॉजिटिव निकलेगी, यह डर टेस्ट को नकारने या सीमित कर देने का आधार नहीं होना चाहिए।’

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कई अन्य सख्त टिप्पणियां भी की थीं जैसे “आप मरीज़ों को इंसान समझिए, जानवर समझकर इलाज न करें, आप अपने अस्पताल को एशिया का सबसे बड़ा अस्पताल कहते हैं, लेकिन उसमें इलाज का स्तर भी सुधारिए, ये युद्ध की स्थिति है, धंधा करके मुनाफा करने का वक्त नहीं है।”

सरकार ने क्या कहा?

कोर्ट में सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि काल-कोठरी वाली जैसी सख्त टिप्पणी नहीं करनी चाहिए थी, इससे अस्पताल में मरीज़ों का मनोबल गिरता है।

क्या है कम टेस्टिंग का मामला?

महाराष्ट्र के बाद हाल ही में सबसे अधिक संक्रमित राज्यों में दूसरे स्थान पर रहे गुजरात में अचानक कोरोना संक्रमितों की संख्या में भारी गिरावट देखी गई। इसके पीछे एक बड़ा कारण राज्य में हो रही कम टेस्टिंग को बताया जा रहा है। गुजरात सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि कोरोना के मरीजों की तादाद कम दिखाने के लिए सरकार कम टेस्टिंग कर रही है।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक गुजरात में महाराष्ट्र और तमिलनाडु की तुलना में प्रति 1,000 लोगों पर टेस्ट का अनुपात कम है। गुजरात की टेस्टिंग दर बहुत धीमी गति से बढ़ रही है। 26 मई तक प्रति हजार व्यक्ति गुजरात में महज़ 2.79 लोगों की जांच हो रही थी, जबकि महाराष्ट्र में ये संख्या 3.2 है और तमिलनाडु में 5.7 थी।

गुजरात सरकार के आंकड़ों के मुताबिक 17 मई को जहां राज्य में 5,193 लोगों की जांच हुई तो वहीं 26 मई को केवल 2,992 लोगों की ही टेस्टिंग की गई। इस मामले को लेकर अहमदाबाद मेडिकल एसोसिएशन ने गुजरात हाईकोर्ट में एक याचिका भी दाखिल की है, जिस पर आज सुनवाई से पहले ही बेंच को ट्रांसफर कर दिया गया।

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क्या कहना है डॉक्टरों का?

अहमदाबाद नर्सिंग होम एसोसिएशन एक्‍जीक्‍यूटिव कमेटी के सदस्‍य डॉ. वसंत पटेल ने कहा कि आईसीएमआर की गाइडलाइंस के मुताबिक किसी भी मरीज की सर्जरी के पहले उसका कोविड-19 टेस्‍ट कराना जरूरी है। लेकिन गुजरात सरकार कोविड-19 टेस्‍ट को काफी हल्‍के में ले रही है। वे कम संख्‍या में कोविड-19 टेस्‍ट क्‍यों कर रहे हैं, ये लोगों और डॉक्‍टरों की समझ से अब भी परे हैं।

डॉ. वसंत पटेल ने मीडिया को बताया, 'मैंने बुधवार को एक पेशेंट की डिलीवरी के लिए अप्‍लाई किया था। इसे 24 घंटे से अधिक हो चुके हैं। लेकिन अभी तक मुझे उसके कोविड-19 टेस्‍ट की अनुमति नहीं मिली। अहमदाबाद के सभी डॉक्‍टर इस परेशानी से जूझ रहे हैं। इसके कारण मरीज परेशान हालत में हैं। यह गुजरात सरकार की खराब नीति का नतीजा है।'

आखिर प्राइवेट लैब में टेस्ट क्यों बंद किया गया?

इस संबंध में अहमदाबाद हॉस्पिटल एंड नर्सिंग होम एसोसिएशन के प्रेसिडेंट डॉक्टर भरत गढ़वी ने आरोग्य सचिव जयंति रवि को एक लेटर लिख कर पूछा है कि प्राइवेट लैब में टेस्ट क्यों बंद किया गया है।

डॉक्टर भरत गढ़वी का कहना है कि प्राइवेट लैब में टेस्ट होने से फायदा होता था। मरीजों की रिपोर्ट जल्दी आ जाती थी और उसके बाद उसकी लाइन ऑफ ट्रीटमेन्ट तय हो पाती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं हो पा रहा है।

बता दें कि पिछले हफ्ते गुजरात हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को तुरंत अधिक से अधिक टेस्टिंग किट खरीदने का निर्देश दिया था। साथ ही निजी लैब को सरकारी दरों पर परीक्षण करने में सक्षम बनाने के लिए भी कहा था। फिलहाल राज्य में प्राइवेट लैब में कोविड टेस्ट करवाने के लिए सरकार की अनुमति लेना अनिवार्य है, जिसके चलते अस्पतालों में ढेरों कोविड संभावित मरीज़ भर्ती होने के बावजूद टेस्ट के लिए लंबे इंतज़ार करने को मजबूर हैं।

क्या सरकार संक्रमितों के आंकड़ें छुपाना चाहती है?

अहमदाबाद मिरर की रिपोर्ट के अनुसार शहर के निजी अस्पतालों में भर्ती मरीज प्राइवेट लैब में कोविड टेस्ट करवाने के लिए सरकारी अनुमति लेने के लिए कई-कई दिनों तक इंतजार करने को मजबूर हैं। इसके चलते राज्य में टेस्टिंग की गति तो कम हुई ही है, साथ ही इलाज का इंतजार कर रहे मरीजों के लिए भी यह स्थिति घातक साबित हो रही है क्योंकि उनके ट्रीटमेंट के बारे में कोई फैसला ही नहीं लिया जा पा रहा है।

अख़बार का कहना है कि उनके पास सरकारी, अहमदाबाद नगर निगम (एएमसी) द्वारा संचालित और निजी अस्पतालों में भर्ती 18 मरीजों के मेडिकल दस्तावेज हैं, जो बताते हैं कि वे गंभीर हालत में हैं या वेंटिलेटर पर हैं, लेकिन उनके कोविड-19 टेस्ट की रिपोर्ट भर्ती होने के पांच दिन बाद भी नहीं मिली।

निजी अस्पतालों के अनुसार टेस्टिंग के लिए किए जा रहे उनके अनुरोध, जो अनिवार्य रूप से सरकारी कर्मचारियों के माध्यम से किए जाने हैं, को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। कम से कम चार मामलों में टेस्ट के अनुरोध और टेस्टिंग में चार दिन से ज्यादा समय लगा और मरीज की मौत हो गई।

कम टेस्टिंग ज़िंदगी से खिलवाड़ है!

कम टेस्टिंग को लेकर कांग्रेस ने भी गुजरात सरकार पर सवाल उठाए हैं। लोगों की ज़िंदगी से खिलवाड़ करने का आरोप लगाया है। कांग्रेस प्रवक्ता जयराज सिंह परमार का कहना है कि सरकार ने प्राइवेट लैब के कोरोना टेस्ट करने पर पाबंदी लगाई है। प्राइवेट लैब को टेस्ट करने से पहले सरकार से अनुमति लेनी पड़ती है। ज्यादा टेस्ट होंगे, तो करोना के मामले ज्यादा दिखेंगे. इसे छिपाने के लिए सरकार ने ऐसा किया है।

गौरतलब है कि कोरोना संक्रमण से गुजरात में अब तक 960 लोगों की मौत हो चुकी है। वहीं फैटेलिटी रेट यानी मृत्यु दर (कुल कन्फर्म केसों में मरने वालों की संख्या का औसत) छह फीसदी से ऊपर है जबकि राष्ट्रीय औसत 2.87 फीसद है। इसके साथ ही गुजरात सरकार के ऊपर रोजाना होने वाले टेस्ट में कमी लाने का भी आरोप लगा है। 

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