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किसान हित को सर्वोपरि बताने वाले, किसानों की मौत का ‘मज़ाक’ बना रहे हैं?

किसान आंदोलन में किसानों की आत्महत्या को लेकर हरियाणा के कृषि मंत्री जेपी दलाल का कहना है कि किसान स्वेच्छा से मर रहे हैं। उनके मुताबिक “ये लोग घर में होते तो भी मरते। यहां नहीं मरते क्या?”
JP

ये विडंबना ही है कि एक ऐसा देश जहां सड़कों पर महीनों से किसान आंदोलन चल रहा हो, जिसकी आधी से ज्यादा आबादी खेती पर निर्भर हो, रोज़ाना किसानों की जान जा रही हो, बड़ी संख्या में वे आत्महत्या कर रहे हों, वहां एक ओर तो सत्ताधारी पार्टी के नेता और मंत्री किसानों के हितों को सर्वोपरि रखने का दावा करें तो वहीं दूसरी ओर उनकी मज़बूरियों का उपहास और मौत का मखौल उड़ाएं।

ये सब जानते हैं कि किसान आत्महत्या सरकार की नाकामी और विफलता की वो कहानी है, जो चीख-चीख कर कहती है कि मेरे देश में ‘सब चंगा नहीं सी’। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आँकड़ों के मुताबिक साल 2019 में रोजाना 28 किसानों (खेत मालिक और कृषि मज़दूर) ने आत्महत्या की। देश में जारी किसान आंदोलन में अब तक 200 से अधिक किसानों की जान जा चुकी है। इनमें कई आत्महत्याएं भी शामिल हैं। लेकिन सत्ताधारी पार्टी बीजेपी के नेता और हरियाणा के कृषि मंत्री जेपी दलाल इसे ‘स्वेच्छा से मरना’ बता रहे हैं।

क्या है पूरा मामला?

हरियाणा के कृषि मंत्री और लोहारू विधानसभा से बीजेपी विधायक जेपी दलाल का एक वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है। ये वीडियो शनिवार, 13 फरवरी का बताया जा रहा है, जहां जेपी दलाल हरियाणा के भिवानी में पत्रकारों से बात कर रहे थे।

एक पत्रकार ने जब उनसे सवाल किया कि किसान आंदोलन के दौरान मरने वाले किसानों को लेकर उनका क्या कहना है?

तो इस पर मंत्री जी ने बेरुख़ी से जवाब दिया – “ये लोग घर में होते तो भी मरते, यहां नहीं मरते क्या?”

जेपी दलाल की इस बात पर आस-पास बैठे लोग हंसने लगे। इस बीच पत्रकार पूछते हैं कि “तो क्या ये ऐसे ही मर गए?”

मंत्री जी कहते हैं – “कोई हार्ट अटैक से मर गया, कोई बुखार से मर गया। मुझे एक चीज बता दो कि हिंदुस्तान में लोगों की एवरेज ऐज कितनी है और साल में कितने मरते हैं, उसी रेशियो में मरे हैं।”

फिर एक पत्रकार टोकता है –“संवेदनाएं होनी चाहिए सर।”

इस पर मंत्री जी कहते हैं – “संवेदना का जहां तक सवाल है तो 135 करोड़ के लिए संवेदनाएं हैं। टुकड़े-टुकड़े में संवेदना वाली बात नहीं है। भारत एक है, सभी के लिए संवेदनाएं हैं।”

फिर एक पत्रकार कहता है कि लोग एक्सीडेंट में मरते हैं तो प्रधानमंत्री जी दुख व्यक्त करते हैं, फिर इन किसानों के लिए आप संवेदना क्यों नहीं दिखा रहे?

इस पर जेपी दलाल कहते हैं – “एक्सीडेंट में नहीं मरे हैं न। स्वेच्छा से मरे हैं। (फिर मसखरी के अंदाज में कहते हैं) मरे हुए के प्रति मेरी पूरी-पूरी हार्दिक संवेदनाएं।”

आपको बता दें कि मंत्री जी पूरे प्रकरण के दौरान ज़रा भी संवेदनशील नहीं दिखाई दिए। ऐसे गंभीर सवालों के दौरान जेपी दलाल लगातार मुस्कराते रहे और उनके साथ बैठे लोग ठहाका लगाते रहे। उन्होंने कहा कि आम किसान भोला-भाला है, कुछ वहां बहकावे में गए, कुछ जबरदस्ती ले जाए गए और कुछ अन्य वजहें भी थीं। लेकिन ये आंदोलनकारी कुछ दिनों में शांत हो जाएंगे।

विवादित बयान पर विपक्ष की कड़ी प्रतिक्रिया

पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने हरियाणा के कृषि मंत्री समेत बीजेपी के बड़े नेताओं के किसानों को लेकर दिए गए बयानों की आलोचना करते हुए कहा कि केंद्र की बीजेपी नेतृत्व वाली एनडीए सरकार और हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर सरकार को इस्तीफा दे देना चाहिए।

बता दें कि केंद्र सरकार में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने इससे पहले दिल्ली पुलिस के हवाले से कहा था कि सिर्फ दो किसानों की मौत आंदोलन के दौरान हुई और एक किसान ने आत्महत्या की है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि जिस प्रकार केंद्र सरकार को यह पता नहीं था कि लॉकडाउन के दौरान कितने प्रवासी मजदूर देश भर में मारे गए, उसी तरह उसे यह नहीं पता है कि कितने किसान कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन के दौरान अपनी जान गंवा चुके हैं। या तो कृषि मंत्री जानबूझकर सदन में झूठ बोल रहे थे या उन्हें तथ्यों या आंकड़ों को प्रमाणित करने की परवाह ही नहीं है।

करोड़ों रुपये विज्ञापन पर ख़र्च लेकिन किसान परिवारों को मुआवज़ा नहीं!

पंजाब के मुख्यमंत्री ने तोमर के उस बयान की भी निंदा की, जिसमें उन्होंने कहा था कि केंद्र सरकार की किसान कल्याण फंड से उन किसान परिवारों को मदद देने की कोई योजना नहीं है, जिन्होंने जान गंवाई है।

अमरिंदर ने कहा कि जो सरकार नए कृषि कानूनों के प्रचार पर 8 करोड़ रुपये खर्च कर सकती है। वह उन किसान परिवारों को मुआवजा नहीं दे सकती, जिन्होंने अपने अधिकारों के लिए जान दे दी। उन्होंने कहा कि आंदोलन के दौरान मारे गए 102 किसानों के परिवारों को उनकी सरकार ने मुआवजा दिया है।

कांग्रेस की ओर से रणदीप सुरजेवाला ने जेपी दलाल का वीडियो शेयर करते हुए लिखा, "आंदोलन में संघर्षरत अन्नदाताओं के लिए इन शब्दों का प्रयोग एक संवेदनहीन और संस्कारहीन व्यक्ति ही कर सकता है। शर्म, मगर इनको आती नही। पहले किसानों को पाकिस्तान व चीन समर्थक बताने वाले हरियाणा के कृषि मंत्री जेपी दलाल को कैबिनेट से बर्खास्त किया जाना चाहिए।"

आम आदमी पार्टी ने भी जेपी दलाल के बयान पर नाराजगी जाहिर करते हुए इसे शर्मनाक बताया।

किसान आंदोलन से जुड़े स्वराज इंडिया के योगेंद्र यादव ने ट्वीट कर लिखा, “इसे कहते हैं जले पर नमक छिड़कना। आंदोलन में शहीद हुए किसानों के प्रति हरियाणा के कृषि मंत्री की जुबान सुनिए, उनके हाव-भाव देखिए उनकी हँसी पहचानें। या तो वे अपने बयान पर माफी मांगे, नहीं तो उन्हें कृषि मंत्री पद से बर्खास्त किया जाये।”

शिवसेना नेता और राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने भी इस वीडियो को ट्वीट कर लिखा कि ये संवेदनहीनता है। प्रियंका चर्तुवेदी ने उन लोगों पर भी सवाल उठाए, जो जेपी दलाल की इन बातों पर हंस रहे हैं।

कांग्रेस नेता दीपेंदर हुड्डा ने जेपी दलाल का वीडियो शेयर करते हुए कहा, “दलाल साहब वो जो चले गए वो किसान भी किसी के लाल थे।”

इस बयान पर हरियाणा कांग्रेस ने कहा कि हमारा किसान महीनों से न्याय की लड़ाई लड़ रहा है। सैकड़ों किसान देश पर अपनी जान कुर्बान कर चुके हैं। परंतु भाजपा के नेताओं के लिये यह एक ‘मज़ाक़’ से ज़्यादा कुछ नहीं। सत्ता के नशे में चूर, अहंकारी, भावनाहीन भाजपा नेताओं से ज़्यादा उम्मीद भी नहीं है।

जेपी दलाल की माफ़ी और किसानों का हित

आख़िरकार मामले के तूल पकड़ने के बाद जब ट्विटर पर मंत्री जी ने खुद की किरकिरी होते देखी तो माफी मांग ली।

उन्होंने कहा, “मैंने संवेदना प्रकट की थी। दोबारा से भी करता हूं। किसी की भी मौत हो तो कष्ट होता है। मेरे बयान का गलत अर्थ निकाला गया है। तोड़मरोड़ कर सोशल मीडिया पर चलता हुआ मैंने देखा है। किसी भी भाई को मेरी बात से कष्ट हुआ हो तो मैं क्षमा याचना करता हूं। मेरी सारी कोशिशें किसानों के हित की हैं। जब तक मैं हरियाणा का कृषि मंत्री हूं, मेरा ध्यान किसानों के हित पर ही रहेगा।”

किसानों की दोगुनी आय का सपना हक़ीक़त से कोसो दूर!

गौरतलब है कि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आँकड़ों के अनुसार, 1995 से 2018 तक देश में 2,96,438 किसानों ने आत्महत्या की हैं। सबसे ज़्यादा 18,241 मामले 2014 में पाए गए। किसानों के आत्महत्या के मामले में सबसे बुरी स्थिति महाराष्ट्र की है। इस राज्य में 1995 से अब तक 60,750 किसानों ने आत्महत्या की। उसके अलावा ओडिशा, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, आन्ध्र प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़ व दूसरे राज्यों में भी ये घटनाएं हुई हैं। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में शामिल बुंदेलखंड इलाके से भी किसान आत्महत्या की ख़बरें लगातार आती हैं। 

यह साफ़ है कि ज़्यादातर किसानों ने क़र्ज़ के जाल में फँस कर ही आत्महत्या की है। उनकी फसल खराब हो गई, उन्हें फसल की उचित कीमत नहीं मिली, आय का दूसरा कोई साधन नहीं था, वे तनावग्रस्त हो गए और घातक कदम उठा लिया।

मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद 2022 तक किसानों की दोगुनी आय का जो सपना देश को दिखाया था, वो फिलहाल हक़ीक़त से कोसो दूर ही नज़र आता है। इसके उलट हाल ही में केंद्र द्वार लाए गए तीन कृषि कानूनों के चलते किसानों को अपनी बची-खुची आय भी खतरे में नज़र आ रही है। इन कानूनों के विरोध में किसान 80 दिन से ज़्यादा समय से दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं, सरकार से कानून वापस लेने की मांग कर रहे हैं लेकिन फिलहाल यहां भी किसानों के हितों को सर्वोपरि बताने वाली सरकार न तो किसानों की मांगे मान रही है और न ही उनके विश्वास को जीत पा रही है।

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