Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

हरियाणा ने डोमिसाइल कोटे पर की ‘राजनीतिक पैतरेंबाज़ी’

औद्योगिक संगठन, ट्रेड यूनियन के कार्यकर्ता और शिक्षाविद इस कदम की निंदा कर रहे हैं, लेकिन सबके कारण भिन्न हैं।
हरियाणा

नई दिल्ली: हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के एक प्रस्ताव के मुताबिक, स्थानीय आबादी के लिए 75 प्रतिशत नई नौकरियों को आरक्षित करने की बात कही गई है जिसे औद्योगिक संगठनों, ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों ने विरोध कर सिरे से खारिज कर दिया है, हालांकि उनके कारण अलग-अलग हैं। राज्य मंत्रिमंडल ने सोमवार को ‘हरियाणा राज्य रोजगार स्थानीय उम्मीदवार अध्यादेश, 2020’ का मसौदा तैयार करने के आदेश दे दिए हैं, जिसमें निजी क्षेत्र में नई नियुक्तियों में 75 प्रतिशत का डोमिसाइल कोटा रहेगा, जिनका वेतन महीने में 50,000 रुपये से कम है।

रिपोर्ट के अनुसार,अध्यादेश का मसौदा मंत्रिपरिषद की अगली बैठक में रखा जाना तय है। उसके बाद, इस पर राष्ट्रपति की सहमति की आवश्यकता होगी, क्योंकि श्रम संविधान की समवर्ती सूची का विषय है।

ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है कि कोई राज्य सरकार – बढ़ते नौकरी संकट के बीच, जो संकट कोविड़-19 महामारी के कारण अब तीव्र हो गया है - रोजगार के मोर्चे पर स्थानीय-पहले की नीति को लागू करने की कोशिश कर रही है। पिछले साल, आंध्र प्रदेश सरकार ने राज्य में मौजूदा और आगामी उद्योगों के लिए स्थानीय लोगों के लिए नौकरियों को आरक्षित करना अनिवार्य कर दिया था। इसी तरह, मध्य प्रदेश में कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने भी उद्योगों में इसी तरह के डोमिसाइल कोटे की घोषणा की थी।

"कई राज्यों में नीतियों पर निर्णय श्रम आपूर्ति और मांग के बीच बेमेल संबंध से होता है," आईआईटी-दिल्लीमें एसोसिएट प्रोफेसर, जयन जोस थॉमस, जिनका शोध ‘श्रम और औद्योगिकीकरण’ से संबंधित हैं। उन्होंने न्यूज़क्लिक को बताया,"उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों से पलायन करने वाले युवा श्रमिकों की बड़ी संख्या अक्सर महाराष्ट्र और हरियाणा जैसे औद्योगिक राज्यों में मांग की कमी का सामना करती है।" ये राज्य विभिन्न तरीकों से श्रमिकों की इस बड़ी तादाद/अति-आपूर्ति का प्रबंधन करने की कोशिश करते हैं - जिनमें से एक रास्ता स्थानीय लोगों के लिए नौकरियों को आरक्षित कर निकाला जाता है।

राजस्थान स्थित एनजीओ सेंटर फॉर माइग्रेशन एंड लेबर सॉल्यूशंस (CMLS) के आजीविका ब्यूरो की रिसर्च एंड पॉलिसी यूनिट की निवेदिता जयराम ने कहा, “यह कुछ भी नहीं है, बल्कि हालात के सामाने ‘घुटने-टेकने की प्रतिक्रिया’ है क्योंकि उद्योगों के भीतर अभी भी प्रवासी श्रमिक अधिक पसंद किया जाता है।”

उन्होंने आगे समझाया, “प्रवासी श्रमिकों के प्रति मालिक अपनी जिम्मेदारी से आसानी से मुकर सकते है। ये मजदूर अक्सर बहुत अधिक असुरक्षित सामाजिक वातावरण में काम करते हैं, इसलिए इनकी पहुँच से कोई भी कानूनी या राजनीतिक सहायता दूर रहती है।”

थॉमस और जयराम दोनों की इस बात से सहमति हैं कि हाल ही में देशव्यापी लॉकडाउन के कारण शहरी स्थानों से श्रमिकों के पलायन ने प्रवासियों के शोषणकारी काम के वातावरण की पोल खोल के रख दी है, जो व्यवस्था लंबे समय से काम कर रही है। पलायन के बाद, हालांकि ध्यान ग्रामीण रोजगार पैदा करने की तरफ चला गया, लेकिन जयराम मानती हैं कि यह पर्याप्त कदम नहीं है।

निवेदिता जयराम का कहना है कि इस तरह की नीतियों के बावजूद प्रवासन होता रहेगा। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि शहरी मजदूरी अक्सर ग्रामीण से बेहतर होती है। उन्होंने कहा कि, जरूरत इस बात की है कि ऐसे नियम लाए जाएं जो यह सुनिश्चित करें कि प्रवासी और स्थानीय श्रमिकों के साथ एक जैसा व्यवहार किया जाए। इस पर थॉमस ने सहमति व्यक्त की और कहा कि इस तरह के नीतिगत निर्णय से यह भी सुनिश्चित होगा कि स्थानीय श्रम को "गलत तरीके से" श्रम बाजार से बाहर नहीं रखा जाए।

उन्होंने कहा,  “यदि प्रवासी श्रमिकों की अपने हक़ के लिए बातचीत करने की ताक़त बढ़ जाती है, तो यह अंततः स्थानीय मजदूरों को भी लाभान्वित करेगा। सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने और प्रवासियों को समान वेतन देने से मालिक पर दबाव रहेगा कि वह सुनिश्चित करेगा कि उद्योग में स्थानीय लोगों के मुक़ाबले प्रवासियों को रोजगार देने में कोई अनुचित प्रोत्साहन नहीं दिया जाए।”

अंतरराज्यीय प्रवासी कामगार (रोजगार और सेवा की शर्तों का विनियमन) अधिनियम, 1979, जिसके प्रवासी श्रमिकों की आर्थिक ढाल बनना मक़सद था, हालांकि, वह देश में सबसे कम लागू कानूनों में से एक है। अब इसे व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य दशा संहिता विधेयक के तहत मिलाने की कोशिश चल रही है, जो प्रवासी श्रमिकों के प्रति सुरक्षा उपायों के मामले में चुप है।

जयराम के अनुसार, प्रवासी श्रमिकों के लिए सुरक्षात्मक प्रावधानों को हटाने और स्थानीय आबादी के लिए "राजनीतिक रूप से प्रेरित" नौकरी कोटा लाने से केवल सामाजिक क्षेत्रों में प्रवासी श्रमिकों के बहिष्कार और बदनामी का सबब बनेगा। उन्होंने कहा कि इससे पहले से ही प्रवासी कामगारों के कम वेतन में अधिक कमी आ सकती है। उद्योग, हालांकि, इस तरह के नीतिगत फैसले का विरोध कर रहे हैं। गुड़गांव इंडस्ट्रियल एसोसिएशन के उपाध्यक्ष केसी संदल को लगता है इस कदम को लागू करना संभव नहीं है, जबकि इसे ऐसे समय पर लिया जा रहा है जब उद्योग को कोविड के बाद के समय की ज़रूरत है।”

संदल का कहना है कि “स्थानीय लोग पर्याप्त रूप से कुशल नहीं हैं। वे औद्योगिक नौकरियों के लिए उपयुक्त नहीं हैं क्योंकि उनके पास आवश्यक अनुशासन की कमी है और अक्सर गुंडागर्दी में संलग्न होते हैं।”

इसी तरह, मानेसर इंडस्ट्रियल एसोसिएशन के महासचिव, मनमोहन गैंद ने इसे एक "बेरहम" कदम करार दिया है, जो रिश्वत और जुर्माना को बढ़ावा देगा। उन्होंने कहा, “मानेसर में 80 प्रतिशत श्रमिक प्रवासी हैं। स्थानीय आबादी पर स्विच करना अब लगभग असंभव है। यह आश्चर्य की बात है कि इस तरह के कदम पर विचार किया जा रहा है जब कि उद्योग पहले से ही कोविड-19 की मार से त्रस्त हैं। ”

सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन (सीटू) के महासचिव सतबीर सिंह ने हरियाणा सरकार के कदम को "राजनीतिक पैतरेंबाज़ी" करार दिया है। उन्होंने कहा, "जब पर्याप्त नौकरियां ही नहीं हैं, तो सरकार आरक्षण की घोषणा करके स्थानीय लोगों को बेवकूफ बनाने की कोशिश कर रही है।" उनका कहना है कि सरकार का इरादा स्थानीय लोगों और प्रवासी श्रमिकों के बीच दरार पैदा करना है और मजदूर वर्ग को विभाजित रखना है।

मूल आलेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Haryana’s Move for Domicile Quota: None to Benefit by ‘Political Stunt’

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest