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गोवा कैसे बना कोरोना फ्री और क्या हैं अगली चुनौतियां?

गोवा को कोरोना मुक्त ग्रीन ज़ोन घोषित कर दिया गया है। लेकिन ऐसा नहीं है कि चुनौतियां खत्म हो गई है। अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना फिलहाल एक बहुत बड़ी चुनौती है।
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गोवा ग्रीन ज़ोन बन चुका है। कोरोना के ज़ीरो केस के साथ भारत का पहला राज्य, गोवा! आइये, समझते य कैसे हो पाया? लेकिन पहले गोवा में कोरोना के केसों पर एक सरसरी नज़र डालते हैं।

गोवा में कोरोना का पहला केस 25 मार्च 2020 को आया। तीन केस पॉजिटव पाए गये। उसके बाद 29 मार्च को 2 और केस सामने आए। 3 और 4 अप्रैल को एक-एक केस आया। इस प्रकार गोवा में कोरोना के कुल 7 केस पॉजिटिव पाए गए थे। जिनमें से 6 केस नार्थ गोवा से और एक केस साउथ गोवा से था। ये सातों ही ठीक हो चुके हैं। गोवा में कोरोना से कोई मौत नहीं हुई और न ही 4 अप्रैल के बाद से कोई नया केस आया है।

19 अप्रैल को गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सांवत ने ये जानकारी दी कि गोवा में फिलहाल कोरोना का कोई केस नहीं है। हालांकि अभी भी सैंपल लिये जा रहे हैं और उनकी जांच की जा रही है। 7 मई के मीडिया बुलेटिन में स्वास्थ्य निदेशक, गोवा ने बताया है कि 386 सैंपल जांच के लिये भेजे गये थे और सभी की रिपोर्ट नेगेटिव आई है।

ये एक सुखद और चमत्कारिक स्थिति है क्योंकि गोवा में विदेशी सैलानी बड़ी संख्या में आते हैं। गोवा में पर्यटकों की संख्या का जनवरी 2019 से मई तक का प्रोवीज़नर आंकड़ा बताता है कि 22 लाख घरेलू पर्यटक और 4 लाख 47 हज़ार विदेशी सैलानी गोवा में आए थे। ये आंकड़ें वर्ष 2019 के हैं। वर्ष 2020 के आंकड़े वेबसाइट पर अभी उपलब्ध नहीं है। गोवा एक छोटा सा राज्य है जो अपने प्रकृतिक सौंदर्य, खूबसूरत समुद्र तट, पार्टी और सामाजिकरण के लिए आकर्षण का केंद्र है। जनवरी यानी जिस महीने भारत में कोरोना का पहला केस आया वो महीना गोवा में पर्यटन सीजन की पीक का महीना होता है।

गोवा कोरोना फ्री राज्य कैसे बना? इस सवाल के जवाब में मुख्यमंत्री प्रमोद सांवत ने एक साक्षात्कार में बताया कि हम बहुत पहले ही समझ गये थे कि विदेशों से आने वाले ही इस संक्रमण को लेकर आएंगे। गोवा में 7 में से 6 केस ऐसे थे जो विदेशों से आए थे। हमने विदेशों से आए सभी सैलानियों को होटल में ही क्वॉरंटाइन किया और सरकार और होटलों ने इस बात का ध्यान रखा कि इनको कोई तकलीफ ना हो।

गौरतलब है कि लॉकडाउन से संबंधित दिशा-निर्देश सभी राज्यों को तकरीबन समान थे। प्रमोद सांवत का मानना है कि गोवा में इसलिये सफलता मिली क्योंकि गोवा के लोगों ने इन नियमों का ज़िम्मेदारी से पालन किया। इसके पीछे यहां के लोगों का पढा-लिखा होना और एक स्वस्थ एवं जागरूक जीवन शैली है। लोगों ने बड़ी जल्दी मास्क, फीजिकल डिस्टेंस, सैनेटाइज़र आदि को अपने जीवन का हिस्सा बना लिया। 2011 की जनगणना के आंकड़ों के हिसाब से गोवा की साक्षरता दर 88.7 प्रतिशत है। हालांकि यहां कि जनसंख्या भी 20 लाख के करीब हैजिसे एक राज्य के स्तर पर संभालना अपेक्षाकृत आसान है। 

यहां कुल दो जिले है- उत्तरी गोवा और दक्षिणी गोवा। सोशल डिस्टेंसिंग की अगर बात करें तो दोनों ज़िलों में जनसंख्या घनत्व काफी कम है। 1,736 वर्ग किलोमीटर में फैले उत्तरी गोवा जिले में 471 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर में रहते हैंजबकि दक्षिण गोवा जो 1,966 वर्ग किलोमीटर में फैला हैयहां 329 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर में रहते हैं। मतलब यहां व्यवहारिक तौर पर फीज़िकल डिस्टेंसिंग संभव है। जबकि दिल्ली की अगर बात करें तो 2011 की जनगणना के अनुसार राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्रदिल्ली का घनत्व संघ शासित राज्यों में सबसे अधिक 11,320 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है। जहां फीज़िकल डिस्टेंसिंग की कल्पना करना काफी मुश्किल काम है।।

गोवा का जीवन ग्रामीण है। आमतौर पर जो लोग गोवा कभी नहीं आए हैं उन्हें लगता होगा कि गोवा पेरिस जैसा कोई बहुत बड़ा शहर है। पणजी और मडगांव ये दो ही बड़े शहर कहे जा सकते हैं। लेकिन इन शहरों की भी तुलना देश के अन्य शहरों से करना गलत है। गोवा के शहर काफी नियंत्रित हैं। अगर हम कहें कि गोवा एक गांव है जो सांस्कृतिक तौर पर विकसित है और जहां जीवन की गुणवत्ता है, तो गलत नहीं होगा। स्थानीय लोग ज्यादातर घरेलू उत्पादों का उपयोग करते हैं। मसाले, नारियल का तेल, सिरका, कोकम, इमली, अचार, साबुन आदि पैकेट की बजाय घर पर बने हुए इस्तेमाल किये जाते हैं। इसके अलावा घर पर उगाई हुई सब्ज़ियां आपको आसानी से मिल सकती है। आदिवासी इलाकों के हाट की तरह लगने वाले साप्ताहिक बाज़ार में आपको घर से बनें रोज़मर्रा में इस्तेमाल किए जाने वाले उत्पाद आसानी से मिल जाते हैं।

पर्यावरण को लेकर गोवा के लोग ना सिर्फ सजग है बल्कि अतिसंवेदनशील भी हैं। पर्यावरण गोवा का मुख्य चुनावी मुद्दा होता है। पर्यावरण और कूड़े के निपटान को लेकर ग्राम सभाओं की बैठकों होती हैं जिनमें बड़ी संख्या में लोग हिस्सा लेते हैं। ग्राम पचायतें काफी शक्तिशाली और सक्रिय हैं।

कोरोना से लड़ाई में ये सारी चीज़ें काफ़ी काम आई हैं।

इसके अलावा गोवा में कोरोना का मामला सामने आने के दो सप्ताह बाद ही गोवा ने पुणे से टेस्ट किट मंगवा ली थी और मेडिकल स्टाफ को उचित ट्रेनिंग भी मुहैया कराई गई थी। गोवा की एक मेडिकल टीम ना सिर्फ पुणे में जाकर ट्रेनिंग लेकर आई बल्कि गोवा में भी मेडिकल स्टाफ का प्रशिक्षण किया गया। जिसमें डॉक्टर से लेकर, नर्स और पैरामेडिकल स्टाफ भी शमिल है। उनका मानना है सैंपल लेने और जांच करने की प्रक्रिया काफी बेहतर रही। गोवा में कोई भी जांच ब्लड सैंपल के आधार पर नहीं की गई। बाहर से आने वालों की बॉर्डर पर ही जांच की जाती है जिसकी रिपोर्ट एक दिन के अंदर ही आ जाती है। तब तक उस व्यक्ति को इंस्टीट्यूशनल क्वॉरंटाइन रखा जाता है। इसके अलावा सामुदायिक स्तर पर डोर टू डोर सर्वे किया गया है।

हालांकि विपक्ष ने इस पर सवाल उठाये हैं। गोवा फारवर्ड पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व उप मुख्यमंत्री विजय सरदेसाई ने गोवा को कोरोना फ्री घोषित करने को जल्दबाज़ी कहते हुए मुख्यमंत्री से 12 सवाल पूछे थे। उन्होंने सरकार से पूछा है कि अब तक कितने टेस्ट किए गये हैं, किस प्रकार किये गये हैं और किनके किए गये है, इसका आंकड़ा सरकार जारी करे। उनका आरोप है कि गोवा में कम टेस्ट किये गये हैं।

सवाल तो हैं लेकिन अगर गोवा के स्वास्थ्य ढांचे की भी बात करें तो वो देश के बाकी राज्यों की तुलना में काफी बेहतर स्थिति है। इसके अलावा गोवा में कोरोना के मरीज़ों के लिए अलग से मेडिकल सुविधाओं और हस्पताल का इंतज़ाम भी किया गया। साथ ही कोरोना टेस्टिंग के 60 केंद्र बनाए गये।

बहरहाल गोवा को कोरोना मुक्त ग्रीन ज़ोन घोषित कर दिया गया है। लेकिन ऐसा नहीं है कि चुनौतियां खत्म हो गई है। अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना एक बहुत बड़ी चुनौती है। गोवा की अर्थव्यवस्था काफी हद तक पर्यटन पर निर्भर है। नाइट क्लब, होटल, रेस्टोरेंट, क्रूज़ और पर्यटन से जुड़े अन्य सभी व्यवसाय ठप्प पड़े हैं। अगर बॉर्डर खुलते हैं और पर्यटन गतिविधियां शुरु होती हैं तो बाहर से संक्रमण आने का ख़तरा भी है। दूसरा ये उद्योग काफी हद तक प्रवासी मज़दूरों पर निर्भर है। गोवा से काफी संख्या में प्रवासी मज़दूरों को श्रमिक ट्रेन के ज़रिये उनके पैतृक गांव भेज दिया गया है। गोवा का महाराष्ट्र और कर्नाटक से बार्डर लगता हैं। इसके अलावा गुजरात से गोवा में आवागमन काफी सुलभ है। इस समय महाराष्ट्र और गुजरात दोनों ही कोरोना के लिहाज़ से काफी संकट की हालत में हैं।

टैक्सी ड्राइवर, मोटरसाइकिल टैक्सी पायलट, रेस्टोरेंट व होटल के मालिक और स्टाफ, वाटर स्पोर्टस से जुड़े वर्कर, पर्यटन केंद्रों पर कपड़े, बिकनी, नारियल, मैगी आदि बेचने वाले छोटे दुकानदार, फास्ट-फूड की रेहड़ी लगाने वाले, स्कूटर किराये पर देने वाले आदि अनेकों लोग आजीविका के संकट से जूझ रहे हैं।

फिलहाल मुख्यमंत्री प्रमोद सांवत ने कहा है कि लॉकडाउन पीरियड तक सभी बार्डर सील रखे जाएंगे। अतिथि हमारे लिए भगवान के समान है और ये हमारी परंपरा रही है। हम पर्यटन उद्योग को पटरी पर लाने के लिये काम कर रहे हैं। पर्यटन उद्योग के लिये एक एसओपी यानी स्टैंडर्ड आपरेटिंग प्रोसिज़र बनाने पर काम हो रहा हैं।

(लेखक राज कुमार स्वतंत्र पत्रकार एवं ट्रेनर हैं। आप गोवा में रहते हैं और सरकारी योजनाओं से संबंधित दावों और वायरल संदेशों की पड़ताल भी करते रहते हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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