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कोरोना की लड़ाई कैसे लड़ रहा है पंजाब?

पंजाब कोविड-19 के कारण कर्फ्यू लगाने में पहल करने वाला देश का अगुआ राज्य है पर लोग मानते हैं कि अमरिंदर सरकार ने भी केंद्र सरकार की तरह शुरुआती दिनों में लापरवाही बरती है।
कोरोना वायरस
Image courtesy: Deccan Herald

पंजाब के सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक पक्ष को कोरोना वायरस ने प्रभावित किया है। स्टोरी लिखे जाने तक राज्य में कोरोना से 8 मौतें हो चुकी हैं और 80 के करीब व्यक्ति संक्रमित पाये जा चुके हैं। पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड ने इस महामारी के चलते दसवीं व बारहवीं की बोर्ड परीक्षाएं स्थगित कर दी हैं। किसान फसलों को लेकर चितिंत हैं। गरीब मज़दूरों के घर चूल्हे ठंडे पड़ गए हैं। कारोबार ठप्प हैं। कई स्थानों पर खाद्य पदार्थों की कमी नज़र आ रही है। ज़रूरत के इस समय में बैंकों के एटीएम भी खाली पड़े हैं।

हालांकि पंजाब कोविड-19 के कारण कर्फ्यू लगाने में पहल करने वाला देश का अगुआ राज्य है पर लोग मानते हैं कि पंजाब सरकार ने भी केन्द्र सरकार की तरह शुरुआती दिनों में लापरवाही बरती है। मार्च महीने के शुरू में बड़े धार्मिक व सामाजिक कार्यक्रम होते रहे। इनमें ‘होला-महल्ला’ उत्सव पर आयोजित हुआ विशाल कार्यक्रम भी शामिल है। आनंदपुर साहिब में आयोजित होने वाले ‘होला-महल्ला’ में हर साल 35 से 40 लाख लोग इकट्ठा होते हैं।

कोरोना वायरस के बावजूद इस बार भी छह दिन चले ‘होला-महल्ला’ के कार्यक्रम में 20 लाख के करीब लोग जमा हुए। पंजाब में कोविड-19 के कारण शहीद भगतसिंह नगर जिला के जिस बलदेव सिंह की पहली मृत्यु हुई (यह देश में कोरोना के कारण हुई चौथी मौत थी) वह जर्मनी की दो हफ्ते की यात्रा के बाद घर जाने से पहले 8 मार्च से 10 मार्च तक होला महल्ला उत्सव में रहा था। मार्च महीने में ही लगभग 90,000 एनआरआई पंजाब पहुंचे हैं जिसकी जानकारी पंजाब के स्वास्थ्य मंत्री बलबीर सिंह सिद्दू द्वारा 23 मार्च को केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्ष वर्धन को लिखी चिठ्ठी से मिलती है।

चिठ्ठी में पंजाब के स्वास्थ्य मंत्री ने केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री को निवेदन किया है कि पंजाब में देशभर से ज्यादा एनआरआई हैं, उनमें से कईयों को कोविड-19 के लक्षण हैं, इसलिए राज्य को इस महामारी से लड़ने के लिए 150 करोड़ की राशि दी जाए। प्रभावशाली राजनीतिक व धार्मिक हस्तियां जो इन दिनों में विदेशों से लौटी हैं उनकी न तो अच्छे से जांच हुई है और न ही उन्हें क्वारंटिन में रखा जा रहा है। इसका सबसे उदाहरण शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की पूर्व प्रधान बीबी जागीर कौर है। वह कपूरथला शहर में स्थित बेगोवाल डेरे की मुखिया भी हैं।

जागीर कौर इटली समेत यूरोप के विभिन्न देशों का दौरा करके 28 फरवरी को पंजाब लौटी थी। लेकिन जागीर कौर ने न तो खुद लोगों से दूरी बनाई और न ही प्रशासन ने इस बारे कोई प्रयास किया। वह आम ही सार्वजनिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेती रही। उसने अपने विदेशी दौरे की तस्वीरें भी सोशल मीडिया पर शेयर की थीं। 27 फरवरी को जब जागीर कौर ने इटली छोड़ा था उस समय वहां 17 मौतें हो चुकी थी और 650 कोरोना पॉजिटिव केस आ चुके थे। हाल ही में विदेश से वापिस लौटे प्रसिद्ध सिख रागी भाई निर्मल सिंह खालसा की कोविड-19 से मौत हो चुकी है।
 
जैसे-जैसे कोरोना के मामले सामने आ रहे हैं पंजाब सरकार की स्वास्थ्य सुविधाओं पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। राज्य में 4400 विशेषज्ञ डॉक्टर्स के पदों में से 1200 से अधिक रिक्त पड़े हैं। स्वास्थ्य विभाग के पास कोरोना वायरस से निपटने के लिए कोई खास प्रबंध नहीं हैं। अस्पतालों में डॉक्टर्स किटों की कमी है। राज्य के विभिन्न अस्पतालों में 2200 बेड तैयार किए गए हैं। इसके अलावा प्राइवेट अस्पतालों में 250 वेंटिलेटर, अमृतसर व पटियाला के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में 20-20 वेंटिलेटर तैयार किए गए हैं।

इस वायरस संबंधी सरकार लोगों को जागरूक करने में असफल साबित हुई है। कोरोना विरुद्ध लड़ाई में प्राइवेट अस्पतालों की भूमिका नकारात्मक रही है। कोरोना महामारी के खिलाफ कॉरपोरेट अस्पताल पीछे खड़े हैं। हालांकि समय समय पर ये अस्पताल सरकारों से फायदा उठाते रहे हैं। पंजाब में इस तरह का कोई भी कॉरपोरेट अस्पताल सामने नहीं आया जिसने इस महामारी से निपटने के लिए स्वयं ही पूरे अस्पताल की सेवाएं सरकार के हवाले करने की पेशकश की हो।

पटियाला के राजिन्द्रा सरकारी अस्पताल में कोरोना वायरस पीड़ित मरीजों की देखभाल करने वाले नर्सिंग स्टाफ ने अस्पताल प्रशासन पर उनकी सुरक्षा के लिए उचित साधनों समेत अन्य जरूरी सावधानियों का ख्याल न रखने के दोष लगाए हैं। उन्होंने इसके लिए गत 30 और 31 मार्च को रोष प्रदर्शन भी किया।

नर्सों का कहना है कि यहां कुछ दिन पहले लुधियाना वासी महिला को सीधे ही इमरजेंसी में दाखिल किया गया, वे उसे साधारण मरीज समझ कर उसके आस पास काम करते रहे। अगले दिन उसकी मौत हो गई। बाद में आई रिपोर्ट में वह कोविड-19 पॉजिटिव पाई गई। नर्सिंग स्टाफ़ एसोसिएशन की राज्य प्रधान कर्मजीत कौर औलख व एसोसिएशन की चेयरपर्सन संदीप कौर बरनाला ने बताया कि 529 नर्सों को एक साल पहले रेगुलर करने के बावजूद वेतन 7000 रुपये दिया जाता है।

अब जब मुश्किल समय में मरीजों के पास जाने से हर कोई डरता है तो नर्सिंग स्टाफ़ समेत अन्य स्वास्थ्यकर्मी ही मरीजों की देखभाल कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि सरकार ने डॉक्टर्स और मेडिकल स्टाफ़ की सेवामुक्ति की तारीख भी 30 सितम्बर तक बढ़ा दी है। लेकिन सरकार मेडिकल स्टाफ व स्वास्थ्यकर्मियों के सुरक्षित रूप से काम करने के लिए उचित प्रबंध नहीं कर रही। कोरोना वायरस से निपटने के लिए पंजाब के स्वास्थ्य विभाग ने अपने डाक्टर्स व पैरामेडिकल स्टाफ़ को निहत्थे सिपाहियों की तरह जंग के मैदान में धकेल दिया है।

कर्फ्यू के दौरान बेशक पंजाब पुलिस द्वारा किए गए अच्छे काम भी सामने आ रहे हैं जैसे गरीब व जरूरमंद लोगों को राशन सामग्री दिया जाना लेकिन कर्फ्यू के शुरुआती दिनों में पुलिस द्वारा लोगों पर किए गए जुल्म के भी बहुत सारे मामले सामने आए हैं। ऐसी बहुत सारी वीडियो सामने आयीं जिसमें पुलिस कर्फ्यू की उल्लंघना करने वालों को जालिमाना तरीके से मारपीट कर रही है। इसमें निर्दोष व्यक्ति भी पीटे व बेइज्जत किये गए। एक व्यक्ति जो अपनी छोटी बच्ची के लिए दवाई निकला था वह भी पुलिस के कहर का शिकार हो गया। जब पंजाब के लोगों ने इस पुलिसिया दमन का विरोध किया उस समय पंजाब के मुख्यमंत्री को हस्तक्षेप करना पड़ा।

खाने-पीने की वस्तुओं की कमी

कर्फ्यू के दौरान जहां पंजाब में खाने-पीने वाली वस्तुओं की कमी दिखने लगी है वहीं वस्तुओं के दाम भी आसमान छू रहे हैं। इसमें व्यापारी अपने हाथ रंगने लगे हैं। छोटे-बड़े शहरों में कालाबजारी और मुनाफाखोरी आम हो गई है। पंजाब सरकार की सख्ती कहीं दिखाई नहीं दे रही। इसी मारामारी में करियाना स्टोर भी ग्राहकों की जेबें ढीली करवा रहे हैं।

प्राप्त जानकारियों के अनुसार पंजाब में दालें, गुड़, चीनी, आटा, वनस्पति घी, सरसों के तेल के भाव शिखर पर पहुंच गए हैं। थोक में चीनी का भाव 225 रुपये से 300 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ गया है। जबकि दालों में 15 से 20 रुपये प्रति किलो की तेजी आई है। वनस्पति घी और सरसों के तेल के दामों में 4 से 5 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी हुई है। आटे के दाम में भी प्रति थैली (10 किलोग्राम) 45 रुपये बढ़ोतरी हुई है। ग्राहकों में अफरा-तफरी मची हुई है और सभी को वस्तुओं के खत्म हो जाने का डर लग रहा है।

बटाला के करियाना स्टोर के मालिक का कहना है कि थोक व्यापारियों ने भाव बढ़ा दिए हैं। छोटे शहरों, कस्बों व गांवों से एकत्र की गई जानकारी मुताबिक ज्यादातर दुकानों पर जरूरत का सामान खत्म हो गया है या खत्म होने की कगार पर है। दुकानदारों का कहना है कि पंजाब को करियाना की बड़े स्तर पर सप्लाई नई दिल्ली समेत अन्य राज्यों से होती है लेकिन पिछले 10 दिनों से अन्य राज्यों से सप्लाई ठप्प होने के कारण सामान में भारी कमी आई है। यहां तक कि चंडीगढ़ के स्टोर्स तक में सामान खत्म होने की रिपोर्टस आ रही हैं।

लोगों को डर है कि अगर कर्फ्यू 14 अप्रैल के बाद भी जारी रहा तो जरूरी सामानों की सप्लाई में भारी कमी आ सकती है। वैसे तो पुलिस व सिविल प्रशासन ने गांवों व शहरों में झुग्गी-झोंपड़ियों में रह रहे गरीबों, रिक्शा चालकों और दिहाड़ीदारों के परिवारों को राशन व सब्जियां पहुंचाने के दावे किए हैं।

खेती संकट

कोरोना की मार कृषि क्षेत्र पर भी पड़ी दिखाई दे रही है। राज्य में कर्फ्यू के कारण किसान कपास की फसल की बिजाई को लेकर फिकरमंद हैं। उन्हें डर है कि अगर कर्फ्यू का समय सीमा बढ़ती है तो उनकी परेशानियां भी बढ़ेंगी। बेशक खेती विभाग सारे प्रबंध सुनिष्चित होने के दावे कर रहा है पर यदि पिछले साल को देखा जाए तो इस बार बिजाई में देरी होने की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता।

देश भर में लॉकडाउन के चलते बीज वाली कम्पनियों का काम भी ठप्प हुआ पड़ा है। किसान गेहूं की कटाई को लेकर चिंतित है कि कहीं उसकी फसल मंडियों में न खराब हो जाए। लेकिन पंजाब सरकार का कहना है कि गेहूं की खरीद 15 अप्रैल से शुरू हो जाएगी।

साथ ही मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने आढ़तियों को 48 घंटों में गेहूं की अदायगी के निर्देश दिए हैं। फसल कटाई के समय मज़दूरों की कमी महसूस हो सकती है। मुल्क भर में तालाबंदी होने के कारण अन्य राज्यों से मज़दूरों का पहले की तरह आना मुश्किल है। खेती के आर्थिक जानकार बताते हैं कि खेती सेक्टर को नज़रअंदाज करना सरकार की बड़ी भूल होगी।
 
गरीब मज़दूरों की हालत

कोरोना की सबसे ज्यादा मार मज़दूर-मेहनतकश वर्ग पर पड़ी है। उन्हें दो जून की रोटी नसीब होनी मुश्किल हो चुकी है। पंजाब सरकार ने गरीबों के लिए मुफ्त राशन देने की योजना शुरू कर दी है लेकिन मज़दूर लोगों का कहना है कि राज करने वाली पार्टी वाले हमारे साथ भेदभाव करते हैं। शहरों में काम कर रहे मज़दूरों के हालात ज्यादा गंभीर बनी हुई है। प्रवासी मज़दूर अपने पैतृक राज्यों की तरफ चल पड़े हैं।

कोरोना खत्म होने के बाद उद्योगों पर पड़ने वाला बुरा प्रभाव अभी से ही नज़र आने लगा है। लुधियाना के एक उद्योगपति का कहना है कि आने वाले दिनों में राज्य में लेबर संकट का खतरा हो सकता है। राज्य की अनेक फैक्टरियों में 35 लाख के करीब मज़दूर काम करते हैं जिनमें दिहाड़ीदार मज़दूर भी शामिल हैं। अकेले लुधियाना में 15 लाख मज़दूर हैं जिनमें 5 लाख दिहाड़ीदार व 10 लाख फैक्टरियों में नियमित काम करते हैं। लॉकडाउन के चलते शहरों में फैक्टरियां बंद हैं।

इस संकट में रोज कमाकर पेट भरने वाले दिहाड़ीदार मज़दूरों का जीना दूभर हो गया है। लुधियाना में दिहाड़ी करके अपना गुजारा करने वाले राजमिस्त्री गुरदेव का कहना है कि कोरोना वायरस ने उनकी जिंदगी को एक हफ्ते में बर्बाद कर दिया है। उसने जितने पैसे दिहाड़ी करके जोड़े थे सब खत्म हैं अब खाने के लाले पड़े हुए हैं।

प्रवासी मज़दूरों के बड़ी गिनती में अपने राज्यों में चले जाने के कारण उद्योगपति के साथ-साथ किसान भी चिंतित है। अगले कुछ दिनों में खेतों में पक रही गेहूं की कटाई शुरू होनी है इस हालात में मज़दूरों की कमी दिखाई देने लगी है। किसानों ने अपने गांवों वाले प्रवासी मज़दूरों को पैसे व राशन देकर गांवों में ठहरा लिया है। चंडीगढ़ व उसके आसपास निर्माणकार्य में लगे प्रवासी मज़दूर व रिक्शाचालक बड़ी गिनती में अपने राज्यों की ओर चले गए हैं।
 
पंजाब के ग्रामीण मज़दूरों के हाल भी खराब हैं। इन मज़दूरों का कहना है कि जो नेता चुनावों के समय उनके घर रोटी खाकर व रात ठहर कर अपने होने का पाखंड करते थे अब संकट की घड़ी में वे कहीं दिखायी नहीं दे रहे। गरीब मज़दूर परिवारों के चेहरों पर उदासी है।

लेबर चैक का जाने वाले रास्ते बंद पड़े हैं। उम्मीदों की तार टूटती नज़र आ रही है। मज़दूर परिवारों को कोरोना वायरस के खौफ से ज्यादा घरों में खत्म हो रहे राशन की चिंता है। जिला संगरूर के गांव खेड़ी निवासी दर्शन सिंह और उसकी पत्नी दोनों अपाहिज हैं, उनका छोटा लड़का नाबालिग है, 20 साल का बड़ा लड़का मिस्त्री के साथ मज़दूरी करता है लेकिन कर्फ्यू के कारण एक हफ्ते से काम बंद है। सिलेंडर खत्म हो गया है, घर में राशन भी नहीं है।

कोरोना वायरस की माहामारी कारण दैनिक कमाई पर निर्भर ग्रामीण गरीब व खेत मज़दूर परिवारों पर आपदा आ पड़ी है। इन हालातों में जहां सरकारी दावों का जनाज़ा निकल गया है वहीं धार्मिक-सामाजिक संगठन आगे बढ़कर गरीब लोगों को राहत सामग्री पहुंचा रहे हैं। अनेक नौजवान सभाएं, किसान संगठन भी इस काम में जुटे हुए हैं। कर्फ्यू के दौरान स्कूलों के बंद होने के चलते बच्चों को मिलने वाले मिड-डे मील का भी उन तक पहुंचना मुश्किल हो गया है।

टूरिज़्म, होटल व रेस्टोरेंट

कर्फ्यू के चलते सर्विस इंडस्ट्री (होटल, गेस्ट हाऊस, रेस्टोरैंट, ढाबे व टूरिज़्म सेन्टर) को बड़ी आर्थिक चोट लगी है। सर्विस इंडस्ट्री के मालिक व इनमें काम करने वाले कर्मचारी आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। चंडीगढ़, पंचकूला, मोहाली समेत समूचे पंजाब के छोटे बड़े शहरों, कस्बों और सड़कों के किनारे खुले रेस्टोरैंट व ढाबों को ताले लग गए हैं।

इस व्यवसाय से जुड़े व्यक्तियों का कहना है कि पंजाब व चंडीगढ़ में इन दिनों के दौरान इस धंधे के साथ जुड़े 50 हज़ार के करीब लोग बेरोजगार हो गए हैं। होटल व रेस्टोरेंट एसोसिएशन के चेयरपर्सन मनमोहन कोहली का कहना है कि अगर चंडीगढ़, पंचकूला और मोहाली की बात करें तो सिर्फ ए-श्रेणी के होटल व रेस्टोरैंट्स की गिनती 5000 से अधिक है। बूथ, छोटी दुकानों में चलते ढाबे अलग से हैं। उपरोक्त तीनों शहरों में पांच से सात सितारा होटलों की गिनती भी दर्जन के करीब है। एक महीने में तीनों शहरों के छोटे-बड़े होटलों व रेस्टोरैंट्स का 250 करोड़ रुपये का नुकसान होगा। अगर लॉकडाउन 14 अप्रैल से आगे बढ़ता है तो स्थिति और भी भयंकर होगी।

पॉवरकॉम का संकट

लॉकडाउन के कारण पहले हफ्ते ही पंजाब स्टेट पॉवर कारपोरेशन लिमिटिड को करीब पौने दो अरब रुपये का वित्तीय नुकसान उठाना पड़ गया है। गौर करने लायक है कि पॉवरकॉम पहले ही घाटे में चल रहा है और पॉवरकॉम ने करीब 11 हजार करोड़ रुपये के घाटे की पूर्ति के लिए पंजाब राज्य बिजली रेगुलेटरी कमीशन के समक्ष अगले वित्तीय साल 2020-2021 के लिए बिजली दरों में बढ़ोतरी बारे पिटीशन दायर की थी।

कमीशन को पूरी सुनवाई के बाद 1 अप्रैल 2020 से पहले अगले वित्तीय वर्ष के लिए नई बिजली दरों का ऐलान करना था। लेकिन राज्य में मंहगी बिजली दरों के खिलाफ उठे विरोध और बाद में कोरोना वायरस के कारण लगे कर्फ्यू कारण नई बिजली दरें ऐलान करने का प्रोग्राम अधूरा रह गया। जानकारी मुताबिक बिजली की खपत कर्फ्यू के बाद आधे से भी नीचे गिरी है। ऐसी खपत की कमी की मार के चलते पॉवरकॉम को रोज 25 करोड़ रुपये का घाटा सहना पड़ रहा है।
 
पंजाब का वित्तीय संकट

पंजाब सरकार के खजाने को भी कोरोना वायरस चिपट गया है। वित्त विभाग के अधिकारियों का कहना है कि लॉकडाउन व कर्फ्यू में समूचे कारोबार व बाजार बंद होने के कारण सरकार को रोजाना 150 करोड़ रुपये के करीब आर्थिक घाटा पड़ रहा है। इसी तरह वित्त विभाग के सामने कोरोना वायरस के कारण पैदा हुई आफतों से टक्कर लेने के लिए 500 करोड़ रुपये से अधिक का खर्चा खड़ा हो गया है।

आर्थिक संकट का सामना करती आ रही सरकार के लिए ताज़ा संकट बेहद चुनौतीपूर्ण है। यदि संकट लम्बा चलता है तो सरकार के ऊपर लोगों को सुविधाएं प्रदान करने का दबाव बढ़ेगा। पंजाब सरकार ने इस समय केन्द्र से वैट का मुआवज़ा व पुराने बकाया के रूप में 4700 करोड़ रुपये लेने हैं। इस बकाया के लिए राज्य के मुख्यमंत्री ने हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को दख़ल देने की प्रार्थना की है। सरकार को सबसे बड़ी आमदनी पेट्रोल, डीज़ल, तेल की बिक्री , जीएसटी, कारों व अन्य वाहनों की बिक्री से आने वाले करों व ज़मीनों की ख़रीद-फरोख्त से होने वाली कमाई से आती है। ये सभी साधन बंद हो गए हैं।

सरकार की आमदनी हालांकि बंद हो गई है लेकिन नियमित खर्चों जैसे वेतनों की अदायगी पर प्रति महीना 2100 करोड़ रुपया, पेंशनों की अदायगी के लिए 700 करोड़ रुपया, 2700 करोड़ रुपया कर्जे की किश्तें व कर्जे का ब्याज़ अदा करने के लिए जरूरी होते हैं। इस तरह बिजली सब्सीडी एवं अन्य दैनिक खर्चे मिलाकर 6000 करोड़ रुपये से अधिक पैसा सरकार को हर महीने चाहिए। पंजाब सरकार कई सालों से गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रही है। चालू वित्त वर्ष के खत्म होने तक पंजाब सरकार के सिर कर्जे का भार 2 लाख 24 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच जाना है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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