केवल जून महीने में क़रीब 1 करोड़ 30 लाख लोग रोज़गार से बाहर हुए
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनोमी के मुताबिक साल 2022 के मई महीने में भारत में तकरीबन 404 मिलियन यानी 40 करोड़ 40 लाख लोगों के पास किसी न किसी तरह का रोजगार था। केवल एक महीने बाद यह संख्या घटकर तकरीबन 39 करोड़ हो गयी है। यानी केवल एक महीने में तकरीबन 1 करोड़ 30 लाख लोग बेरोजगार हो गए।
इस पर CMIE के निदेशक महेश व्यास का कहना है कि कोरोना के बाद यह रोजगार की संख्या में हुई सबसे बड़ी गिरावट है। अप्रैल से मई महीने में रोजगार में 80 लाख की बढ़ोतरी हुई थी। जो भी बढ़ोतरी हुई, वह जून के महीने में गँवा दी गयी। पिछले एक साल रोजगार के मामले में यह सबसे बड़ी गिरावट है।
रोजगार गंवा चुके 1 करोड़ 30 लाख लोगों में से केवल 30 लाख लोग ही अभी रोज़गार की तलाश में लगे हैं। इसमें से 1 करोड़ लोग लेबर मार्केट छोड़कर बाहर चले गए। यानी तकरीबन 1 करोड़ लोगों ने रोजगार की तलाश बंद कर दी है। इस तरह से जो रोजगार दर पिछले दो सालों से 39 से 41 फीसदी के आसपस अटका हुआ था। वह घटकर जून 2022 में 35.8 फीसदी हो गया है।
यानी भारत की 15 साल से ज्यादा काम करने लायक आबादी में मुश्किल से 36 प्रतिशत लोगों के पास किसी न किसी तरह का काम है या वह काम की तलाश में है। नहीं तो बाकी आबादी रोजगार की तलाश से बाहर है। इस सोच के साथ जी रही है कि उन्हें रोजगार नहीं मिलेगा। भारत से तुलना करने लायक दुनिया के देशों में रोजगार दर का औसत आंकड़ा 60 फीसदी के आसपास है। यानी रोजगार के मामले में भारत अपने समदर्शी दूसरे मुल्कों से बहुत पीछे खड़ा है।
रोजगार क्षेत्र से बाहर होने वाले ज्यादातर लोग ग्रामीण क्षेत्र से हैं, भारत के अनौपचारिक क्षेत्र से हैं। यानी उन क्षेत्रों से जहाँ पर काम करने वाले केवल इतना कमा पाते हैं, दिनभर के भोजन का जुगाड़ कर सकें। वहां से अपना रोजगार गँवा देने वाले सबसे ज्यादा हैं।
इन सबका जवाब सरकार के पास क्या है? कुछ भी नहीं। रोजगार की कोई मुकम्मल पालिसी नहीं है। ऐसा कोई खाका नहीं दिखता जिससे पता चले कि कहाँ पर कितना रोजगार दिया गया है? कितनी मजदूरी दी जा रही है? नरेंद्र मोदी सरकार के आने के बाद बेरोजगरी की हालत गहरी से गहरी होती जा रही है। अर्थव्यवस्था बदतरी पर है, लेकिन उसमे लोकल्याण की कोई जगह नहीं दिखती। साल 2014 में चुनाव से पहले भारत के प्रधानमंत्री के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने लोगों से वादा किया था कि अगर उनकी सरकार सत्ता में आती है तो हर साल एक से दो करोड़ नौकरियां देंगे। यानी सरकार को अब तक 16 करोड़ या कम से कम 8 करोड़ नौकरियां दे देनी चाहिए थी।
इतनी नौकरियों पर सरकार ने क्या किया? सरकार की तरफ से इस पर कोई रिपोर्ट कार्ड नहीं पेश किया गया। उल्टे प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ से यह ट्वीट किया गया है कि प्रधानमंत्री ने सभी मंत्रालयों और विभागों के मानव संसाधन का मुआयना किया। यह निर्देश दिया कि मिशन मोड के तहत अगले डेढ़ साल में 10 लोगों की भर्ती की जाए। मतलब 1 से 2 करोड़ सालाना नौकरी देने का लक्ष्य घटाकर सरकार ने खुद अगले डेढ़ साल में 10 लाख भर्तियों का लक्ष्य तय कर दिया है। बेरोजगार युवाओं का कहना है कि मोदी जी जुमला नहीं जॉब दीजिए। बेरजगार युवा ऐसा क्यों कह रहे है वह बेरोजगारी की हालत देखकर समझी जा सकती है।
इन सबके बीच लोग नौकरी की तौर पर सरकारी नौकरी का हाल पूछेंगे। सरकारी नौकरी का हाल पहले से बेहाल होते जा रहा है। साल 2018 के आर्थिक सर्वे का आंकड़ा कहता है कि भारत में तकरीबन 7 करोड़ 50 लाख के आसपास औपचारिक क्षेत्र की नौकरियां हैं। इनमें से महज डेढ़ करोड़ सरकारी नौकरियां हैं। यानी 140 करोड़ वाले हिंदुस्तान में सरकारी नौकरियों की संख्या महज डेढ़ करोड़ है। यह सरकारी नौकरियां 2018 के बाद बढ़ने की बजाए घटी होंगी। जमकर निजीकरण हो रहा है। अग्निपथ जैसे योजना आ रही हैं। जहाँ की नौकरी की प्रवृत्ति ठेके पर काम करवाने वाली है।
सरकार के जरिये परमानेंट नौकरी देने की बजाए ठेके वाली नौकरियां दी जा रही हैं। सरकार के श्रम मंत्री ने संसद के पटल पर जवाब दिया कि साल 2019 में केंद्र सरकार में ठेके पर काम करने वाले कर्मचारियों की संख्या तकरीबन 13 लाख थी। साल 2021 में बढ़कर यह 24 लाख हो गयी। मतलब सरकार चाहती है कि सरकारी नौकरी के तामझाम से मुक्ति मिल जाए। अगर सरकार के नौकरियां का हाल यह है तो आप खुद सोच सकते हैं कि सरकार नौकरी देने के बारे में क्या सोचती है?
तकरीबन 36 प्रतिशत रोजगार के बारे में सोचते हुए यह ध्यान रखना चाहिए कि इसमें तकरीबन 90 प्रतिशत काम करने वालों की मासिक आमदनी 25 हजार रुपये प्रति महीना से कम है। बेरोजगारी की इस खतरनाक सच के साथ भारत की सारी परेशानियों के बारे में सोचते चले जाइये आपको पता चलेगा कि भारत की सारी परेशनियों की जड़ें कहाँ है?
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