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भारत में लोकतंत्र व संविधान का भविष्य CAA विरोधी आंदोलन की सफलता पर निर्भर

जब से भारतीय जनता पार्टी की सरकार केन्द्र में आई है वह हमारे लोकतंत्र व संविधान को कमजोर करने में लगी हुई है। इस सरकार का रवैया पूरी तरह से तानाशाही है।
CAA Protest
फाइल फोटो

केन्द्र और उत्तर प्रदेश की सरकार ने जिस प्रकार से नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) व राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) की प्रकिया के विरोध में हुए आंदोलन का दमन किया व आम जनता के साथ अत्याचार किया और उसके माध्यम से साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश की, आम मुस्लिम महिलाएं अपने बच्चों के साथ सड़क पर निकल आईं और शांतिपूर्ण धरनों पर बैठने के लिए बाध्य हुईं। इसलिए शहीन बाग़ के शुरू हुए इस आंदोलन और उसकी प्रेरणा से दिल्ली में करीब दो दर्जन जगहों पर, कोलकाता, अहमदाबाद, इलाहाबाद, लखनऊ, कानपुर, आदि देश में अन्य सैकड़ों जगहों पर जो महिलाओं के धरने लगातार चल रहे हैं उसके लिए नरेन्द्र मोदी, अमित शाह व योगी आदित्यनाथ खुद जिम्मेदार हैं।

योगी आदित्यनाथ ने हाल में सम्पन्न दिल्ली चुनाव की सभाओं में कहा कि उन्हें शहीन बाग़ में चल रहे धरने के कारण अपनी सभाओं में पहुंचने में देरी हुई। क्या योगी कबूल कर रहे हैं कि दिल्ली की हरेक सड़क अब शहीन बाग़ होकर ही गुजरती है?

जब से भारतीय जनता पार्टी की सरकार केन्द्र में आई है वह हमारे लोकतंत्र व संविधान को कमजोर करने में लगी हुई है। इस सरकार का रवैया पूरी तरह से तानाशाही है और यह कोई फैसला लेने के पहले अपने सांसदों के बीच भी बहस नहीं कराती और संसद में पूर्ण बहुमत का फायदा उठाते हुए मनमाने फैसले देश की जनता के ऊपर थोप देती है।

इसलिए ऐसी विचित्र परिस्थिति उत्पन्न हुई है कि कानून बनने के बाद भाजपा नेताओं को जनता को समझाने के लिए जाना पड़ रहा है। किंतु जब सरकार ने लोगों की नागरिकता पर ही सवाल खड़ा किया तो लोगों को अपने अस्तित्व की लड़ाई हेतु सड़क पर आना पड़ा। खासकर मुस्लिम महिलाओं को लगा कि अपनी नागरिकता सिद्ध न कर पाने की स्थिति में जेलनुमा डिटेंशन केन्द्र में जाने से तो अच्छा है कि सरकार से आर-पार की लड़ाई लड़ी जाए।

खतरा सबसे ज्यादा मुसलमानों पर है किंतु असम में यह भी देखा गया कि राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर की प्रकिया से छूटे 19 लाख लोगों में 14 लाख हिंदू हैं तो इससे सभी को खतरा है, खासकर उन सभी के लिए जिनके पास अपने बाप-दादा की सम्पत्ति के कोई दस्तावेज नहीं होंगे। यदि कोई हिंदू इस राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर से बाहर रह जाता है तो वह कैसे साबित कर पाएगा कि वह बंग्लादेश, पाकिस्तान या अफगानिस्तान से आया था? फर्जी दस्तावेज बनाने की एक होड़ लगेगी और भ्रष्टाचार के नए अवसर पैदा हो जाएंगे जिसका फायदा उठाएंगे दलाल, अधिकारी-कर्मचारी व नेता और पिसेगी जनता।

ऐसा प्रतीत होता है कि बिना सोचे समझे सिर्फ राजनीतिक फायदा उठाने की दृष्टि से यह कानून बना दिया गया है। देखा जाए तो जिनको पाकिस्तान से भारत आना था वे ज्यादातर लोग आ चुके हैं और जिन्हें यहां से पाकिस्तान जाना था वे भी जा चुके हैं। अब जो मुस्लिम हिंदुस्तान में रह रहे हैं और जो हिंदू व सिक्ख पाकिस्तान या बंग्लादेश में रह रहे हैं वे अपनी मर्जी से रह रहे हैं।

वैसे भी यह कितनी अजीब बात है कि भारत की सरकार अपने देशवासियों की ठीक से देखभाल नहीं कर पा रही है, देश में लोग अभी भी भूख से मर रहे हैं और तमाम सरकारी दावों के बावजूद शौचालय की बात तो दूर रहने के लिए घर तक नहीं है, किसान आत्महत्या कर रहे हैं और हमारी सरकार बंग्लादेश, पाकिस्तान व अफगानिस्तान के गैर-मुस्लिम नागरिकों की जिम्मेदारी भी लेना चाहती है।

बांग्लादेश से अवैध रूप से भारत में अपनी रोजी रोटी के लिए आए लोगों के लिए सबसे सरल उपाय था कि उनको इस देश में बिना नागरिकता दिए काम करने का अधिकार दे दिया जाता जैसा कि बहुत सारे देशों में प्रावधान है। बंग्लादेश की राष्ट्रपति शेख हसीना ने ठीक ही कहा है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम की कोई जरूरत ही नहीं थी।

खुशी की बात है कि नागरिक अब भाजपा व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के देश को बांटने के प्रयासों के खिलाफ एक हो गए हैं। हरेक धरने पर नारे लग रहे हैं 'हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, आपस में हैं भाई-भाई’’ और पूरा माहौल आजादी के आंदोलन जैसा हो गया है। आजादी के आंदोलन के बड़े नेताओं की तस्वीरें हरेक धरने पर लगी हैं। दिल्ली में खुरेजी में रोहित वेमुला की भी तस्वीर लगी है जिसकी बलि वर्तमान सरकार के फासीवादी तरीकों ने ले ली। कुछ समझदार महिलाओं ने, जैसे दिल्ली के चांदबाग में, फातिमा शेख व सावित्री बाई फूले की तस्वीरें लगाई हैं जिन्होंने भारत में पहली बार लड़कियों व दलितों की शिक्षा के लिए काम किया।

आमतौर पर इस्लामिक संगठनों जैसे जमात-ए-इस्लामी में महिलाओं को बैठकों में पर्दे के पीछे रखा जाता है और मंच पर तो वे कदापि दिखाई नहीं देतीं। किंतु किसी ने शायद यह उम्मीद भी नहीं की होगी कि हिंदुस्तान में इतनी जल्दी यह दिन आ जाएगा जब सभा में जहां तक नजर जाए सिर्फ मुस्लिम औरतें ही दिखाई देती हैं और मंच पर भी वही हैं।

मंच का संचालन भी मुस्लिम नवयुवतियां कर रही हैं और आदमी किनारे खड़े हैं या सहयोगी भूमिका निभा रहे हैं। जो महिलाएं इन धरनों में शामिल हो रही हैं वे राजनीतिक सभाओं की तरह सिर्फ भीड़ बढ़ाने नहीं आई हैं। वे बकायदा आज़ादी के नारे लगा रही हैं इसके बावजूद कि योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि जो आजादी के नारे लगाएगा उसके खिलाफ देश-द्रोह का मुकदमा दर्ज होगा

कुछ लोग इस बात से परेशान हैं कि धरनों पर सिर्फ मुस्लिम महिलाएं ही क्यों दिखाई पड़ रही हैं। इसमें शेष समुदायों की महिलाएं क्यों नहीं आ रहीं? 26 जनवरी, 2020 को वाशिंगटन डी.सी. में भारतीय समुदाय के लोगों के नागरिकता संशोधन अधिनियम व राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में सना कुतुबुद्दीन ने कहा कि जैसे अमरीका में नागरिक अधिकारों की लड़ाई मार्टिन लूथर किंग के नेतृत्व में काले लोगों को लड़नी पड़ी थी उसी तरह आज भारत में लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई भारतीय मुसलमान को लड़नी पड़ेगी।

आमतौर पर यह माना जाता है कि इस्लाम आक्रामक धर्म है और हिंदू मानते हैं कि उनका धर्म तो सारी दुनिया को शांति का संदेश देता है। किंतु जिस तरह से दिल्ली में हिंदुत्व की विचारधारा के प्रभाव में कुछ नवजवानों ने हाथ में बंदूकें लहराते हुए गोली चलाई तो हिन्दुत्व की छवि आक्रमक और मुस्लिम महिलाओं की छवि गांधी के रास्ते चलने वाली अहिंसक आंदोलनकारी व शांति के दूत की बनी है। कहना न होगा कि आज हिंदू धर्म को सबसे बड़ा खतरा शायद हिंदुत्व की राजनीति से ही खड़ा हो गया है।

(संदीप पाण्डेय प्रख्यात समाजसेवी और सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) के उपाध्यक्ष हैं। लेख में व्यक्त विचार निजी हैं।)

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