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बिगड़ते भारत-नेपाल संबंधों की कीमत चुका रहीं बिहार की नदियां और बेटियां

बढ़ते तनाव के बीच दोनों देशों के सीमावर्ती इलाके के नागरिकों ने दोनों सरकारों से बातचीत कर विवाद को सुलझाने की अपील की है।
 भारत-नेपाल

इन दिनों पड़ोसी देश नेपाल एक अलग किस्म की आग में जल रहा है। वहां कई इलाकों में सरकारी दल नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा प्रस्तावित उस बिल के विरोध में प्रदर्शन हो रहे हैं, जिसके मुताबिक नेपाली नागरिक से विवाह करने वाली किसी भी विदेशी महिला को नागरिकता के लिए सात साल तक इंतजार करना पड़ेगा। अब तक ऐसी महिला को तत्काल नागरिकता मिल जाती थी।

माना जा रहा है कि सरकार यह कदम हाल के दिनों में भारत के प्रति बदले उसके स्टैंड के मद्देनजर उठा रही है, क्योंकि नेपाल में ज्यादातर भारतीय महिलाएं ही शादी करके आती हैं। इस कानून का सबसे अधिक असर उत्तर बिहार के सीमावर्ती इलाकों पर पड़ने जा रहा हैं, जहां नेपाली लोगों के साथ शादी ब्याह बहुत सामान्य तरीके से होते हैं।

हाल के दिनों में भारत-नेपाल संबंधों में बढ़ती दूरी और कई वजहों से उत्पन्न खटास का असर सबसे अधिक उत्तर बिहार के लोगों पर खास कर यहां की नदियों और बेटियों पर पड़ता नजर आ रहा है। खुली और मित्रवत सीमा की वजह से जहां अब तक ये दोनों बेहिचक सीमा के आर-पार जाती आती रही हैं, अब इनके आवागमन और सुरक्षा को बाधित करने के प्रयास किये जा रहे हैं।

पिछले सप्ताह ही नेपाल ने बिहार के जलसंसाधन विभाग के अधिकारियों को अपनी सीमा में प्रवेश करने से रोक दिया, जो गंडक नदी पर बने बराज की मरम्मत करना चाहते थे। जबकि अब तक यह काम सहजता से होता आया था। ऐसा माना जा रहा है कि चीन के प्रभाव में नेपाल भारत से दूर जा रहा है और भारत सरकार उसे रोकने के लिए कोई प्रयास नहीं कर रही। इसका नुकसान दोनों देशों के आमलोगों को झेलना पड़ रहा है।

हालांकि नेपाल के तराई क्षेत्र में इस विदेशी महिलाओं की नागरिकता से संबंधित प्रस्तावित संशोधन बिल के विरोध में जबरदस्त आंदोलन हो रहे हैं, वे इसे भारत के साथ सदियों से चले आ रहे रोटी-बेटी के संबंधों पर आघात बता रहे हैं। वहां के सत्ताधारी दल के इस बिल का विरोध ज्यादातर विपक्षी पार्टियां तो कर ही रही हैं, नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी के कुछ सदस्यों ने भी इस पर सख्त ऐतराज जताया है।

पार्टी के मधेश इलाके के प्रभावशाली नेता मातृका प्रसाद यादव और प्रभु शाह ने इसका सख्त विरोध करते हुए प्रेस विज्ञप्ति जारी की है। इसके मुताबिक वे कहते हैं, वैदिक काल से ही नेपाल भारत के साथ सांस्कृतिक, धार्मिक, भाषाई और आर्थिक संबंधों का उपभोग करता रहा है। दोनों देशों के बीच जो रोटी-बेटी का संबंध है, इसकी यही प्रमुख वजह है। ऐसे में इस प्रस्तावित कानून की वजह से भारत से आने वाली हमारी बहुओं को राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक अधिकारों के लिए सात साल तक इंतजार करना पड़ेगा। नेपाल में सिटिजन एक्ट के कड़े प्रावधानों को देखते हुए यह हमारी बहुओं के लिए उचित कदम नहीं होगा।

नेपाल से सटे बिहार के सीमावर्ती इलाकों में भी इस बिल को लेकर लोगों में नाराजगी है। दरभंगा राज के परिवार से जुड़ीं बिहार की स्वतंत्र पत्रकार कुमुद सिंह कहती हैं, नेपाल का तराई इलाका भले राजनीतिक रूप से नेपाल का हिस्सा है, मगर सांस्कृतिक रूप से वह हमेशा से काशी और मिथिला के संपर्क में रहा है। दोनों मुल्कों के बीच अंतर्राष्ट्रीय सीमा 204 साल पहले 1816 के सुगौली संधि के वक्त खींची गयी है, मगर कभी इस सीमा पर आवाजाही को नियंत्रित करने की कोशिश नहीं की गयी। अब अगर यह नया बिल कानून बन गया तो हमारे आपसी संबंध बुरी तरह प्रभावित होंगे।

कुमुद सिंह की बातों के उदाहरण हाल के दिनों में दिखने भी लगे हैं। पिछले दिनों ऐसे ही एक मामले में बिहार के सीतामढ़ी के नागरिकों पर नेपाली सैनिकों ने गोली चला दी थी, इसमें एक युवक की मौत हो गयी और दो घायल हो गये थे। ऐसा आजादी के बाद के इतिहास में पहली बार हुआ था, जब नेपाल के सैनिकों ने किसी भारतीय पर गोली चलायी है। यह मामला भी दोनों देशों की आपसी रिश्तेदारी की वजह से हुआ था। भारत की तरह के व्यक्ति अपने नेपाली रिश्तेदार से मिलने जा रहे थे। बिहार से सटे नेपाल की सीमा पर हाल के दिनों में कम से कम चार जगहों पर ऐसे विवाद हुए हैं।

पर्यावरण और भारत नेपाल संबंधों पर लगातार लिखने वाले नेपाली पत्रकार चंद्रकिशोर कहते हैं कि हाल के दिनों में भारत-नेपाल संबंधों को लेकर हमारे देश के नजरिये में बदलाव आया है। भारत और नेपाल के आपसी संबंध दो वजहों से दुनिया में अनूठे माने जाते हैं, पहला खुली सीमा, दूसरा आपस में वैवाहिक संबंध। जहां तराई के लोग एक जैसी सांस्कृतिक जीवनशैली की वजह से भारत के उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों से खूब वैवाहिक संबंध बनाते रहे हैं, वहीं नेपाल के गोरखा भी भारत के दार्जिलिंग के इलाकों में शादियां करते रहे हैं। इसी वजह से इन महिलाओं को तत्काल नागरिकता भी दी जाती रही है। मगर अब हमारी सरकार भारत के साथ इन अनौपचारिक और सहज प्रेम संबंधों को खत्म कर उसे औपचारिक बना देना चाहती है। वह खुली सीमा को बंद करना चाहती है और शादी ब्याह के संबंधों को नियम कानून के दायरे में बांधना चाहती है।

चंद्रकिशोर कहते हैं कि जहां कोरोना के बहाने नेपाल ने इस सीमा पर सख्ती बढ़ा दी है, वहीं भारत सरकार का भी एक धड़ा लंबे समय से नेपाल के साथ खुली सीमा को बंद करना चाहता है। उसका मानना है कि इस खुली सीमा का लाभ उठाकर आतंकी भारत के इलाके आसानी से घुसपैठ करते रहे हैं। मगर दोनों सरकारों की इस संवेदनहीन कूटनीति का असर सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले दोनों मुल्कों के लोगों के आपसी संबंधों पर पड़ रहा है।

इस बिगड़ते संबंधों का असर दोनों देशों के बीच बहने वाले तीन हजार से अधिक छोटी-बड़ी जलधाराओं पर भी पड़ने वाला है। उत्तर बिहार की नदियों के जानकार और बिहार के जलसंसाधन विभाग के पूर्व सचिव गजानन मिश्र कहते हैं कि हमारे इलाके में बहने वाली ज्यादातर नदियां नेपाल से होकर ही आती हैं। इन नदियों के कारण हर साल बाढ़ भी खूब आती है। अगर हमें बाढ़ को रोकना है और इन नदियों को सेहतमंद रखना है तो हमें नेपाल से बेहतर संबंध बनाकर ही रखना होगा। क्योंकि ज्यादातर नदियों पर बने बराज भारत-नेपाल सीमा पर हैं और इन पर बड़े तटबंधों का बड़ा हिस्सा नेपाल सीमा में है। जिसकी देखरेख बिहार सरकार करती रही है। अगर संबंध इसी तरह खराब होते रहे और नेपाल हमारे अधिकारियों को वहां जाने से रोकता रहा तो उसका नुकसान उत्तर बिहार को ही भुगतना पड़ेगा।

गजानन मिश्र की बात इसलिए भी सच मालूम पड़ती है, क्योंकि 2008 में कोसी में आयी भीषण बाढ़ की एक बड़ी वजह नेपाल का असहयोग भी था। बांध नेपाल की सीमा में टूटा था, जबकि नेपाल की तरफ से भारतीय अधिकारियों को तटबंध की पेट्रोलिंग करने और बांध सुरक्षा कार्य करवाने से बाधित किया गया था। उस बाढ़ का काफी बड़ा नुकसान उत्तर बिहार के छह जिलों को भुगतना पड़ा था।

इस बढ़ते तनाव के बीच दोनों देशों के सीमावर्ती इलाके के नागरिकों ने दोनों सरकारों से बातचीत कर विवाद को सुलझाने की अपील की है। भारत-नेपाल नागरिक समाज की तरफ से एक साझा अपील जारी की गयी है, जिसमें कहा गया है कि दोनों मुल्क सीमा पर तैनात सैनिकों को दोनों देशों के सांस्कृतिक संबंधों के बारे में संवेदनशील बनायें, ताकि इस खुली सीमा की मर्यादा बरकरार रहे। उन्होंने दोनों देशों से कूटनीतिक स्तर पर आपसी संबध बेहतर करने की भी अपील की है, ताकि भारत-नेपाल संबंधों की वह खूबसूरती बरकरार रहे, जिसकी अबतक मिसाल दी जाती रही है।

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं

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