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पड़तालः 2022 गया, सबको घर मिल गया क्या?

क्या है प्रधानमंत्री आवास योजना की सच्चाई और टारगेट का क्या हुआ? आइये, पड़ताल करते हैं।
PMAY reality

वर्ष 2022 आज़ादी का 75वां साल था। जिसे भाजपा सरकार आज़ादी के अमृत महोत्सव के तौर पर मना रही है। भाजपा की केंद्र सरकार ने वर्ष 2022  के लिए कई लक्ष्य निर्धारित किए थे। जिनमें से सभी के लिए आवास एक प्रमुख टारगेट था। सितंबर 2014 में न्यूयॉर्क, मेडिसन स्कवेयर गार्डन में अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने कहा था कि “मेरे मन में सपना है कि 2022 में जब भारत के 75 साल हों तब तक हमारे देश का कोई परिवार ऐसा ना हो जिसके पास रहने के लिए अपना घर ना हो।”

21 फरवरी 2016 को छत्तीसगढ़ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री आवास योजना की बुनियाद रखी। इस मौके पर उन्होंने कहा था कि “पांच करोड़ परिवार ऐसे हैं जिनके लिए आवास निर्माण आवश्यक हैं। करीब दो करोड़ शहरों में हैं और तीन करोड़ गांवों में हैं.....2022 जब देश कीआज़ादी के 75 साल हों तो ग़रीब से ग़रीब व्यक्ति के पास भी अपना घर हो।”

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प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत वर्ष 2022 तक पांच करोड़ घर बनाने का टारगेट था। प्रधानमंत्री का दावा था कि ग़रीब से ग़रीब व्यक्ति के पास भी अपना घर होगा। अब 2022 जा चुका है। तो क्या सबको अपना घर मिल गया? क्या देश में पांच करोड़ घरों का निर्माण कराया गया है? क्या है प्रधानमंत्री आवास योजना की सच्चाई और टारगेट का क्या हुआ? आइये, पड़ताल करते हैं।

क्या सबको घर मिल चुका है?

सरकार का टारगेट था कि वर्ष 2022 तक सबके पास अपना घर होगा। दो करोड़ मकान शहरी क्षेत्र में और तीन करोड़ मकान ग्रामीण क्षेत्र में यानी देश में कुल पांच करोड़ मकान बनाने का लक्ष्य रखा गया था। सबसे पहले देखते हैं कि आखिर कितने घर बने हैं?

प्रधानमंत्री आवास योजना की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के हिसाब से देश के ग्रामीण इलाकों में अब तक 2,11,45,962 मकान और शहरी इलाकों में अब तक 67.64 लाख मकानों का ही निर्माण किया गया है। स्पष्ट है कि सरकार दोनों ही क्षेत्रों में टारगेट तक पूरा नहीं कर पाई है। सबके लिए घर तो दूर की बात है। ग्रामीण इलाकों में मात्र 70% और शहरी इलाकों में मात्र 33% मकानों का ही निर्माण किया गया है। तमाम आंकड़े 20 जनवरी 2023 तक के हैं और प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण/शहरी का अधिकारिक वेबसाइट से लिए गए हैं।

अगर ग्रामीण और शहरी दोनों को मिलाकर कुल टारगेट की बात करें तो सरकार मात्र 55% टारगेट ही पूरा कर पाई है, यानी लगभग आधा। गौरतलब है कि ये विश्लेषण मात्र उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर है। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बने मकानों की ज़मीनी जांच भी होनी चाहिये क्योंकि गाहे-बगाहे योजना में अनियमितता के आरोप भी लगते रहते हैं।

राज्यसभा में प्रधानमंत्री आवास योजना के बारे में 19 दिसंबर 2022 को पूछे गए सवाल के लिखित जवाब में आवास एवं शहरी मामले राज्य मंत्री कौशल किशोर ने बताया है कि प्रधानमंत्री आवास योजना का टारगेट वर्ष 2022 से बढ़ाकर 31 दिसंबर 2024 कर दिया गया है। जिन घरों को 31 मार्च 2022 तक सेंक्शन किया गया है उनका निर्माण 31 दिसंबर 2024 तक कर दिया जाएगा। स्पष्ट है कि भाजपा सरकार प्रधानमंत्री आवास योजना के टारगेट को पूरा करने में फेल साबित हुई है।

कितने घर तोड़े गये हैं?

सरकारी वेबसाइट और प्रचारतंत्र ये तो बताता है कि कितने मकानों का निर्माण किया गया है लेकिन ये नहीं बताता कि कितने घर तोड़े गए हैं और कितने लोगों को बेदखली और विस्थापन का शिकार होना पड़ा है। कोरोना का लोगों की रिहायश पर क्या असर रहा है? महामारी के दौरान कितने लोगों को बेघर होना पड़ा है?

हाउसिंग एंड लैंड राइट्स नेटवर्क यानी HLRN की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2021 में सरकार द्वारा 36,480 घरों को तोड़ा गया है। जिसकी वजह से 2,07,106 लोगों को जबरन बेदखली का शिकार होना पड़ा है।

वर्ष 2022 में मात्र जनवरी से जुलाई के बीच 25,800 घरों को तोड़ा गया है जिससे 1,24,450 लोगों को बेदखली झेलनी पड़ी है। अगर वर्ष 2021 और जुलाई 2022 तक के ही आंकड़ें लें तो पाएंगे कि मात्र डेढ़ साल में 62,280 घरों को तोड़ा गया है और 3,31,556 लोगों को बेदखली का शिकार होना पड़ा है।

HLRN की रिपोर्ट के अनुसार कोरोना महामारी के दौरान मार्च 2020 से जुलाई 2021 तक 43,600 घरों को तोड़ा है और 2,57,700 लोगों को बेदखली झेलनी पड़ी है। यानी हर दिन 505 और हर घंटे 21 लोगों को बेदखल किया गया है। भारत में 1 करोड़ 60 लाख लोग बेदखली के साये में जी रहे हैं।

देश में झोपड़पट्टियों की स्थिति

जब बात आवास की हो रही है तो उन लोगों की वास्तविक सच्चाई से भी रूबरू होना ही चाहिये जिनके पास घर नहीं हैं और जो झोपड़पट्टी या फुटपाथ पर रहने को विवश हैं। 19 दिसंबर 2022 को राज्यसभा में देश में झोपड़पट्टियों की संख्याके बारे में एक सवाल पूछा गया। जिसका लिखित जवाब आवास एवं शहरी मामले राज्य मंत्री कौशल किशोर ने दिया। उन्होंने अपने लिखित जवाब में बताया है कि देश में शहरी इलाकों में 1,08,227 झोपड़पट्टी हैं, जिनमें 6.54 करोड़ लोग निवास करते हैं। देश के मात्र शहरी इलाकों में 1,39,20191 परिवार झोपड़पट्टी में अमानवीय परिस्थितियों में रहने को विवश हैं। कौशल किशोर ने ये तमाम आंकड़े वर्ष 2011 की जनगणना से प्रस्तुत किये हैं।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं ट्रेनर हैं। आप सरकारी योजनाओं से संबंधित दावों और वायरल संदेशों की पड़ताल भी करते हैं।)

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