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पड़ताल: यूपी के सरकारी स्कूल बदहाली के शिकार

भाजपा दावा कर रही है कि उत्तर प्रदेश के स्कूलों की तस्वीर बदल रही है। क्या सचमुच उत्तर प्रदेश के स्कूलों की तस्वीर बदल गई है। आइये, पड़ताल करते हैं।
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उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार लगातार स्कूलों और शिक्षा की स्थिति में बेहतरी का दावा कर रही है। भाजपा के प्रचार अभियानों में नारा दिया जा रहा है “नये उत्तर प्रदेश का ये है लक्ष्य, बेहतर हो शिक्षा उन्नत हो भविष्य”। भाजपा उत्तर प्रदेश इन्हें अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से  ट्वीट करती है। भाजपा दावा कर रही है कि उत्तर प्रदेश के स्कूलों की तस्वीर बदल रही है।

अब सवाल उठता है कि क्या सचमुच उत्तर प्रदेश के स्कूलों की तस्वीर बदल गई है। क्या इंफ्रास्ट्रक्चर में कुछ सुधार हुआ है? स्कूलों में टॉयलेट, पीने के पानी, बिजली, लाइब्रेरी, हाथ धोने की व्यवस्था और मेडिकल सुविधाओं की क्या स्थिति है? आइये, पड़ताल करते हैं।

सबसे पहले जानते हैं कि स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं की स्थिति क्या है?

उत्तर प्रदेश सराकरी स्कूलों की स्थिति

उत्तर प्रदेश में स्कूलों की स्थिति को आंकड़ों की नज़र से समझते हैं। दिये जा रहे तमाम आंकड़े वर्ष 2021-22 के हैं और स्कूल एवं साक्षरता विभाग, भारत सरकार की वेबसाइट से लिए गये हैं। आर्काइव लिंक। उत्तर प्रदेश में 3,176 ऐसे सरकारी स्कूल हैं जिनमें आज भी लड़कियों के लिए अलग से टॉयलेट नहीं है। तमाम स्वच्छता अभियान के बाद ये स्थिति है।

27,304 स्कूलों में लाइब्रेरी नहीं है। जिन स्कूलों में लाइब्रेरी है इससे आप ये ना समझे कि उनमें किताबें भी होंगी। क्योंकि वेबसाइट पर अलग से एक श्रेणी है जिसमें उन स्कूलों को वर्गीकृत किया गया है जो ऐसे स्कूल हैं जिनमें ऐसी लाइब्रेरी हैं जिनमें किताबें भी हैं।

उत्तर प्रदेश के 35,414 स्कूलों में किताबों वाली लाइब्रेरी नहीं है। हैरानी कि बात ये है कि क्या किसी ऐसे कमरे को लाइब्रेरी कहा जा सकता है जिसमें किताबें ही नहीं है। लेकिन शायद ये वर्गीकरण इस लिए होगा कि किताबें रखने की जगह है लेकिन किताबें नहीं हैं।

हर घर बिजली, 24 घंटे बिजली और 100% विद्युतिकरण के दावे के बीच उत्तर प्रेश के 27,226 ऐसे स्कूल हैं जिनमें बिजली नहीं है।

222 स्कूलों में बच्चों के लिए पीने के पानी की सुविधा है। 9,538 स्कूलों में हाथ धोने की सुविधा नहीं है।

और सबसे भयावह आंकड़ा ये है कि उत्तर प्रदेश के 81,864 सरकारी स्कूलों में मेडिकल फैसिलिटी नहीं है। यानी लगभग 60% स्कूलों में कोई मेडिकल सुविधा नहीं है। ये आंकड़े बता रहे हैं कि उत्तर प्रदेश के सराकरी स्कूलों की तस्वीर क्या है? कितना विकास है औऱ कितनी बदहाली है?

क्या 2017 के बाद स्कूलों की स्थिति में कोई परिवर्तन आया?

अब एक बार वर्ष 2017 से लेकर अब तक की तुलना करके ये भी समझने की कोशिश करते हैं कि भाजपा की योगी सरकार में क्या अब तक स्कूलों की स्थिति में क्या परिवर्तन आया है?

स्कूल एवं साक्षरता विभाग, भारत सरकार के डैशबोर्ड के अनुसार वर्ष 2017-18 में उत्तर प्रदेश के 31% स्कूलों में मेडिकल सुविधा नहीं थी जबकि वर्ष 2021-22 में ये आंकड़ा बढ़कर 60% हो गया। यानी लगभग दोगुना।

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सवाल ये उठता है कि कायदे से कोरोना के बाद स्कूलों में मेडिकल सुविधाओं को गंभीरता से लेना चाहिये था और सभी स्कूलों में बुनियादी सुविधा होनी चाहिए थी लेकिन स्थिति बदतर ही हुई।

वर्ष 2017-18 में 33% स्कूलों में किताबों वाली लाइब्रेरी नहीं थी वर्ष 2021-22 तक मात्र 7% और स्कूलों तक ही किताबों वाली लाइब्रेरी पहुंच पाई। लेकिन अभी भी 26% स्कूल ऐसे हैं जो ऐसी लाइब्रेरी का इंतजार कर रहे हैं जिसमें किताबें भी हों।

वर्ष 2017-18 में 17% ऐसे स्कूल थे जिनमें पुस्तकालय नहीं था। वर्ष 2021-22 में ये आंकड़ा बढ़कर 20% हो गया। यानी 3% की बढ़ोतरी हुई। एक आंकड़ा चौंकाने वाला है।

वर्ष 2017-18 में उत्तर प्रदेश के 2% स्कूलों में लड़कियों के लिए शौचालय नहीं था। वर्ष 2021-22 में भी आंकड़ा ज्यों का त्यों है। यानी 2021-22 में भी 2% स्कूल ऐसे हैं जिनमें लड़कियों के लिए शौचालय नहीं है।

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बिजली की स्थिति में सुधार हुआ है। वर्ष 2017-18 में 50% स्कूल ऐसे थे जिनमें बिजली नहीं थी। वर्ष 2021-22 में ये आंकड़ा घटकर 20% रह गया। लेकिन ये कोई ऐसी स्थिति नहीं है कि पीठ थपथपाई जाए और डींगे हांकी जाए। बल्कि स्थिति अभी शर्मनाक है। क्योंकि आज भी 27,226 ऐसे स्कूल हैं जिनमें बिजली नहीं है।

कुल मिलाकर हम देख सकते हैं कि वर्ष 2017 से लेकर अब तक यानी 2021-22 तक स्थिति में कुछ ज्यादा परिवर्तन नहीं हुआ है बल्कि कई मामलों में स्थिति औऱ भी बदतर हुई है। भाजपा का प्रचार स्कूली की जिस बदलती तस्वीर को पेश कर रहा है, शिक्षा विभाग के आंकड़े उसकी पुष्टि नहीं कर रहे हैं।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं ट्रेनर हैं। आप सरकारी योजनाओं से संबंधित दावों और वायरल संदेशों की पड़ताल भी करते हैं।)

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