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पड़ताल: देश के एक भी एम्स में पूरा स्टाफ नहीं है!

देश में मौजूद मेडिकल शिक्षण संस्थानों की स्थिति को समझने के लिए एक बार एम्स की स्थिति को समझते हैं। देश में कुल कितने एम्स हैं? उसमें कितने शिक्षकों के पद स्वीकृत हैं और कितने पद भरे गये हैं? ग़ैर-शिक्षक कर्माचारियों के कितने पद स्वीकृत हैं और कितने पद भरे गये हैं?
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मोदी सरकार अपने आठ साल पूरा करने के मौके पर स्वास्थ्य के क्षेत्र में किए गये कामों के साथ-साथ मेडिकल एजुकेशन पर भी कई तरह के दावे कर रही है। वर्ष 2014 और 2022 के तुलनातमक आंकड़े पेश किये जा रहे हैं। सरकार का कहना है कि मेडिकल कॉलेज़ों की संख्या में 55%की बढ़ोतरी हुई है। सीटों में 80% की बढ़ोतरी की गई है। इंफ्रास्ट्रक्चर और मानव संसाधनों के विस्तार के दावे किए जा रहे हैं।

स्मरण रहे कि हम इस विषय पर भयानक महामारी से जूझते हुए ही बात कर रहे हैं। क्योंकि महामारी अभी गई नहीं है। महामारी के दौरान गंगा में तैरती लाशों के दिल दहलाने वाले दृश्य आप देख चुके हैं। कोविड मौतों के आंकड़े को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन और भारत सरकार आमने-सामने हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारत में कोविड से संबंधित मौतों का आंकड़ा 47 लाख है। लेकिन भारत सरकार ने इस रिपोर्ट का खंडन किया और किनारा कर लिया। आपको ये याद रहे कि हम भारत में स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर और मेडिकल एजुकेशन की स्थिति पर चर्चा इस पृष्ठभूमि में कर रहे हैं। तो आइये, एक बार समझते हैं कि देश में मेडिकल एजुकेशन की स्थिति क्या है?

एम्स में शिक्षकों एवं अन्य स्टाफ की स्थिति

देश में मौजूद मेडिकल शिक्षण संस्थानों की स्थिति को समझने के लिए एक बार एम्स की स्थिति को समझते हैं। देश में कुल कितने एम्स हैं? उसमें कितने शिक्षकों के पद स्वीकृत हैं और कितने पद भरे गये हैं? ग़ैर-शिक्षक कर्माचारियों के कितने पद स्वीकृत हैं और कितने पद भरे गये हैं?

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री डॉ. भारती प्रवीन ने 15 मार्च 2022 को राज्यसभा में बताया कि देश में कुल 19 एम्स हैं। जिनमें शिक्षकों के 4,209 स्वीकृत पद हैं। जिनमें से मात्र 1,998 पद ही भरे गये हैं और 2,211 पद खाली पड़े हैं। कुल पदों के लगभग आधे यानी 47.4% पद खाली पड़े हैं। सीनियर रेजिडेंट के 2,794 पद स्वीकृत है जिनमें से 1,190 पद यानी 42.5% पद खाली पड़े हैं। जूनियर रेजिडेंट के 2,638 पद स्वीकृत हैं जिनमें से 470 पद खाली पड़े हैं। इन सभी 19 एम्स में ग़ैर-शिक्षक कर्मचारियों के 35,346 पद स्वीकृत हैं जिनमें से 17,804 पद खाली पड़े हैं। यानी आधे से ज्यादा पद खाली पड़े हैं। देश के किसी भी एम्स में शिक्षकों की पर्याप्त संख्या नहीं है। हमें देश की मेडिकल शिक्षा को इस रोशनी में भी देखने की ज़रूरत है।

मेडिकल कॉलेज और सीटों की संख्या

ये बात सही है कि वर्ष 2014 की तुलना में वर्ष 2022 में मेडिकल कॉलेज़ों और सीटों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। 9 दिसंबर 2014 को राज्यसभा में देश में मेडिकल कॉलेज़ों की संख्या के बारे में एक सवाल पूछा गया, जिसका ब्यौरा सदन के पटल पर रखा गया। जिसके अनुसार वर्ष 2014 में कुल 404 मेडिकल कॉलेज थे और उस वर्ष सीटों की संख्या 54,348 थीं।वर्ष 2022 में मेडिकल कॉलेज़ों की संख्या 596 और सीटों की संख्या 89,875 है। इस वक्त लोगों को ये लुभावना आंकड़ा तो परोसा जा रहा है लेकिन बाकी स्थिति से अवगत नहीं कराया जा रहा।

जैसे कि ये नहीं बताया जा रहा कि कुल मेडिकल कॉलेज़ों में से 47.4% प्राइवेट मेडिकल कॉलेज हैं। देश की कुल मेडिकल सीटों का लगभग आधा यानी 48% सीटें प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में हैं। आंकड़े को आकर्षक बनाने के लिए सरकार इन प्राइवेट कॉलेजों को भी सरकार की उपलब्धियों के आंकड़ें में शामिल कर रही है। क्या ये उचित है?

मेडिकल पढ़ाई का खर्च

यूक्रेन और रूस के युद्ध के दौरान हमने देखा कि यूक्रेन में फंसे 18,095 भारतीयों में से लगभग 90% छात्र थे जो यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई करने गये थे। इसका एक प्रमुख कारण भारत में सरकारी संस्थानों में सीमित सीट होना और प्राइवेट संस्थानों की भारी-भरकम फीस है। गौरतलब है कि कुल सीटों में से लगभग 48% सीटें प्राइवेट संस्थानों में हैं। जहां सरकारी कॉलेज में औसत वार्षिक फीस लगभग दो लाख रुपये है वहीं प्राइवेट कॉलेज में 10-15 लाख प्रति वर्ष है। यानी कोर्स पूरा करने तक कुल खर्च सरकारी कॉलेज में लगभग 14 लाख और प्राइवेट कॉलेज में 60-70 लाख है। ये अत्यंत महंगी शिक्षा मेडिकल की पढ़ाई में सबसे बड़ा रोड़ा है। जिस तरफ सरकार कोई ध्यान नहीं दे रही है बल्कि निजीकरण की ही तरफ तेजी से बढ़ती जा रही है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं ट्रेनर हैं। आप सरकारी योजनाओं से संबंधित दावों और वायरल संदेशों की पड़ताल भी करते हैं।)

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