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विडंबना: अब गोडसे ही नहीं आप्टे को भी ‘पूजने’ की तैयारी, मेरठ में लगेगी मूर्ति?

महात्मा गांधी के हत्यारों में से एक नारायण आप्टे की मूर्ति लगाने की कोशिशों के पीछे कौन-सी ताकतें हैं, उनका क्या राजनीतिक मकसद है और मूर्ति लगाने के लिए मेरठ शहर का ही चयन क्यों किया गया है, इन सारे सवालों की पड़ताल कर रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन
महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे (दाएं) और नारायण दत्तात्रय आप्टे (बाएं)।
महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे (दाएं) और नारायण दत्तात्रय आप्टे (बाएं)।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को महिमामंडित करने की जो परियोजना कुछ वर्षों पहले शुरू की हुई थी, अब उसमें और तेजी आ गई है। इस सिलसिले में अब गांधी हत्याकांड में गोडसे के सहयोगी रहे अन्य अभियुक्तों को भी 'शहीद’ के तौर पर स्थापित करने की मुहिम शुरू हो गई है। ताजा मामला है नाथूराम गोडसे के मुख्य सहयोगी रहे नारायण दत्तात्रय आप्टे की मूर्ति तैयार किए जाने का। आप्टे को भी गोडसे के साथ ही फांसी हुई थी। उसकी यह मूर्ति मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर में बन कर तैयार हुई है और इसे अगले महीने मेरठ में स्थापित करने की योजना है।

नारायण आप्टे की मूर्ति लगाने की कोशिशों के पीछे कौन-सी ताकतें हैं, उनका क्या राजनीतिक मकसद है और मूर्ति लगाने के लिए मेरठ शहर का ही चयन क्यों किया गया है, इन सारे सवालों की पड़ताल करने से पहले यह जान लेना दिलचस्प होगा कि नारायण आप्टे महात्मा गांधी की हत्या के मामले में सिद्धदोष अपराधी होने के अलावा क्या था और किस चरित्र का व्यक्ति था!

गांधी हत्या के मुकदमे के दौरान की तस्वीर (फाइल)

दरअसल महात्मा गांधी की हत्या में नाथूराम गोडसे सहित 9 आरोपी थे, जिनमें विनायक दामोदर सावरकर और नारायण आप्टे भी शामिल थे। सावरकर को पर्याप्त सबूतों के अभाव में संदेह का लाभ देकर बरी कर दिया गया था, जबकि नारायण आप्टे को नाथूराम के साथ ही फांसी की सजा सुनाई गई थी। अन्य 6 आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा हुई थी, जिनमें नाथूराम का छोटा भाई गोपाल गोडसे भी शामिल था। एक अन्य आरोपी दिगंबर रामचंद्र बड़गे था जो सरकारी गवाह बन क्षमा पा गया था। अदालत में उसने ही अपनी गवाही में सावरकर को महात्मा गांधी की हत्या की साजिश का सूत्रधार बताया था।

नारायण आप्टे पुणे के संस्कृत विद्वानों के परिवार में जन्मा था। उसने बॉम्बे यूनिवर्सिटी से विज्ञान में स्नातक की डिग्री ली थी। वह 1939 में हिंदू महासभा से जुड़ गया था और उसने गोडसे के साथ मिल कर अग्रणी नामक अखबार भी निकाला था। ब्रिटिश वायुसेना में नौकरी कर चुका आप्टे पहले गणित का शिक्षक भी रह चुका था और उसने अपनी एक ईसाई छात्रा मनोरमा सालवी को कुंवारी मां बनाने का दुष्कर्म भी किया था। हालांकि उसकी पत्नी और एक विकलांग बेटा भी था।

30 जनवरी 1948 यानी महात्मा गांधी की हत्या से एक दिन पहले 29 जनवरी को नाथूराम गोडसे अपने जिन दो साथियों के साथ दिल्ली पहुंचा था उनमें एक नारायण आप्टे था और दूसरा था मदनलाल पाहवा। तीनों दिल्ली में एक होटल में ठहरे थे। तीनों ने 29 जनवरी की रात को एक ढाबे में खाना खाया था। आप्टे शराब पीने का शौकीन था और उसने उस दिन भी शराब पी थी। खाना खाने के बाद गोडसे सोने के लिए होटल के अपने कमरे में चला गया था। पाहवा गया था सिनेमा नाइट शो देखने और आप्टे पहुंचा था पुरानी दिल्ली स्थित वेश्यालय में रात गुजारने। वह रात आप्टे के जीवन की यादगार रात रही, ऐसा खुद उसने अपनी उस डायरी में लिखा था, जो बाद में गांधी हत्या के मुकदमे के दौरान दस्तावेज के तौर पर पुलिस ने कोर्ट में पेश की थी।

गोडसे और आप्टे को 15 नवंबर 1949 को अंबाला जेल में फांसी दी गई थी। उस दिन का अंबाला जेल के दृश्य का आंखों देखा हाल गांधी हत्याकांड के मुकदमे का फैसला सुनाने वाले जस्टिस जीडी खोसला ने अपने संस्मरणों में लिखा है, जिसके मुताबिक गोडसे और आप्टे को उनके हाथ पीछे बांध कर फांसी के तख्ते पर ले जाया जाने लगा तो गोडसे लड़खड़ा रहा था। उसका गला रुंधा था और वह भयभीत तथा विक्षिप्त दिख रहा था। आप्टे उसके पीछे चल रहा था और उसके माथे पर भी डर तथा शिकन साफ दिख रही थी।

तो ऐसे 'चरित्रवान’ और 'बहादुर’ हत्यारों को अब हिंदू महासभा के जरिए महिमामंडित करने की कोशिशें की जा रही हैं। उन्हें महान देशभक्त, स्वतंत्रता सेनानी, चिंतक और शहीद बताते हुए उनकी मूर्तियां स्थापित करने और उनके मंदिर बनवाने के प्रयास किए जा रहे हैं। इन सारे प्रयासों का पिछले पांच-छह सालों से शुरू होना महज संयोग नहीं बल्कि सोचा-समझा और सुनियोजित प्रयोग है।

गौरतलब है कि गोडसे का संबंध राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से बताया जाता रहा है और इसके पुख्ता सबूतों के आधार पर ही महात्मा गांधी की हत्या के बाद तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया था। हालांकि संघ का हमेशा कहना रहा है कि गोडसे बहुत थोड़े समय ही आरएसएस से जुड़ा रहा और उससे वह गांधीजी की हत्या के बहुत पहले ही अलग हो गया था। अपनी इस सफाई को पुख्ता करने के लिए आरएसएस के शीर्ष पदाधिकारी गोडसे को औपचारिक तौर पर गांधी का हत्यारा भी मानते हैं, उसके कृत्य को निंदनीय करार भी देते हैं और महात्मा गांधी को अपना प्रात: स्मरणीय भी बताते हैं।

लेकिन सवाल है कि आखिर क्या वजह है कि केंद्र में भारतीय जनता पार्टी के सत्तारूढ़ होने के बाद ही गोडसे और उसके साथियों को महिमामंडित करने का सिलसिला शुरू हुआ? ऐसा क्यों होता है कि भाजपा और संघ से जुड़ा कोई पदाधिकारी, केंद्र सरकार के मंत्री, सांसद और विधायक खुलेआम गोडसे को देशभक्त बताते हैं और संगठन उनके बयान को उनकी निजी राय बता कर अपना पल्ला झटक लेता है? यही नहीं, राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद पर बैठे लोग भी गोडसे का स्तुति गान करते हैं और उन्हें कोई रोकता-टोकता नहीं है।

गौरतलब है कि चार साल पहले 15 नवंबर 2017 को अखिल भारतीय हिंदू महासभा ने ग्वालियर में अपने कार्यालय में ही नाथूराम गोडसे का मंदिर बना कर उसमें उसकी मूर्ति स्थापित कर दी थी। ग्वालियर के दौलतंगज में स्थित हिंदू महासभा यह कार्यालय पिछले करीब 80 वर्षों से मौजूद है। इस कार्यालय में नाथूराम गोडसे ने 1947 में भी एक सप्ताह बिताया था। इस कार्यालय में उसकी मूर्ति स्थापित किए जाने का कृत्य स्थानीय पुलिस प्रशासन की जानकारी में अंजाम दिया गया था, लेकिन इसे रोकने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की गई थी।

जब इस कृत्य की खबरें देशभर के अखबारों में छपी। इसे लेकर सोशल मीडिया में मध्य प्रदेश सरकार की आलोचना हुई और ग्वालियर में वरिष्ठ पत्रकार और गांधीवादी कार्यकर्ता डॉ. राकेश पाठक ने अपने साथियों के इस मुद्दे को लेकर प्रशासन का ध्यान आकर्षित करने के लिए प्रदर्शन किया और धरने पर बैठे तब कहीं जाकर प्रशासन हरकत में आया था और उसने गोडसे मूर्ति को जब्त कर उसे पुलिस थाने के मालखाने में जमा करा दिया था।

स्थानीय प्रशासन ने मूर्ति भले ही जब्त कर ली, लेकिन इससे हिंदू महासभा की आपत्तिजनक गतिविधियों पर कोई असर नहीं पडा। मूर्ति जब्त कर लिए जाने के बाद भी हिन्दू महासभा के कार्यालय में हर साल 19 मई को गोडसे का जन्मदिन और उसकी फांसी वाले दिन 15 नवंबर को उसका 'बलिदान दिवस’ मनाया जाता है। इन कार्यक्रमों में उसे 'चिंतक’ और यहां तक कि 'देशभक्त’, 'स्वतंत्रता सेनानी’ और 'शहीद’ भी बताया जाता है।

दरअसल ग्वालियर शहर शुरू से ही हिंदू महासभा की गतिविधियों का प्रमुख केंद्र रहा हैं। उसे देश की आजादी से पहले आजादी के बाद भी कई वर्षों तक ग्वालियर राजघराने का आश्रय मिलता रहा। कहा यह भी जाता है कि महात्मा गांधी की हत्या में इस्तेमाल की गई पिस्तौल की आपूर्ति भी ग्वालियर के राजमहल से ही हुई थी। आजादी के पहले तक मुस्लिम लीग के बरअक्स हिंदूवादी राजनीतिक संगठन के तौर पर हिंदू महासभा को ही जाना जाता था। लेकिन आजादी के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजनीतिक इकाई के तौर पर जनसंघ का उदय होने और उसके साथ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के जुड़ जाने से हिंदू महासभा राजनीतिक तौर पर बहुत जल्दी ही हाशिए पर चली गई। आज भी हिंदू महासभा कहने को तो अखिल भारतीय संगठन है, लेकिन उसकी गतिविधियां आमतौर पर सिर्फ मध्य प्रदेश और उसमें भी सिर्फ ग्वालियर तक ही सीमित रहती हैं।

ऐसे में सवाल है कि आप्टे की मूर्ति लगाने के लिए उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर का ही चयन क्यों किया गया? दरअसल मेरठ से नारायण आप्टे या नाथूराम गोडसे का कभी कोई नाता नहीं रहा, लेकिन समझा जाता है कि कुछ महीनों बाद होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को ध्यान में रख कर मूर्ति स्थापित करने के लिए मेरठ का चयन किया गया है। मेरठ पश्चिमी उत्तर प्रदेश का प्रमुख शहर है।

पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के बूते अच्छी खासी कामयाबी हासिल की थी। यह ध्रुवीकरण सांप्रदायिक दंगों के चलते हुआ था। इन दंगों की वजह से जाट और मुस्लिम समुदाय की पारंपरिक एकता टूट गई थी, जिसका लाभ भाजपा को मिला था। लेकिन इस बार कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले नौ महीने से जारी किसान आंदोलन के चलते वह ध्रुवीकरण अब पूरी तरह खत्म हो गया है। ऐसे में भाजपा को इस इलाके में अपनी जमीन खिसकती नजर आ रही है। संभवतया इसी स्थिति को ध्यान में रखते हुए हिंदू महासभा को मोहरा बना कर महात्मा गांधी के हत्यारे की मूर्ति के बहाने माहौल गरमाने और ध्रुवीकरण करने की कोशिश की जाएगी।

डॉ. राकेश पाठक के मुताबिक हिंदू महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. जयवीर भारद्वाज ने ग्वालियर में पिछले दिनों अपने संगठन की बैठक में जानकारी दी थी कि आप्टे की मूर्ति तैयार हो चुकी है और उसे उचित समय पर, उचित स्थान पर स्थापित कर दिया जाएगा।

नारायण दत्तात्रय आप्टे की मूर्ति

बैठक में आप्टे को 'हुतात्मा’ कह कर संबोधित किया गया था। डॉ. पाठक के मुताबिक आप्टे की मूर्ति मेरठ भेजी जा चुकी है। इस मूर्ति को मेरठ में या तो अगले महीने महात्मा गांधी की जयंती 2 अक्टूबर को या फिर 15 नवंबर को स्थापित करने की कोशिश की जाएगी।

हालांकि भाजपा जाहिरा तौर पर हिंदू महासभा की इस कवायद से दूरी बनाए रखेगी और स्थानीय पुलिस प्रशासन भी औपचारिक तौर पर आप्टे की मूर्ति लगाने के कोशिशों को रोकता दिखेगा। वह रोकेगा भी लेकिन इस पूरी कवायद के दौरान महात्मा गांधी को खलनायक और देश विभाजन का जिम्मेदार ठहराने और उनके हत्यारों को महान देशभक्त के रूप मे प्रचारित करते हुए हिंदू वोटों को एकजुट करने की कोशिश भी छोड़ी नहीं जाएगी।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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