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विडंबना : माफ़ी के बहाने मोदी जी अपनी ग़लतियों को सही बता गए!

29 मार्च को भारत के प्रधानमंत्री अपने पुराने अवतार ‘मन की बात’ में आते हैं और जनता से माफ़ी मांगते हैं। उन्होंने लॉकडाउन में हो रही परेशानियों के लिए माफ़ी मांगी लेकिन इसकी तैयारियों की कमियों का ज़िक्र नहीं किया।
Lockdown
Image courtesy: Deccan Herald

दुनिया भर में कोरोना वायरस का कहर जारी है। दुनिया भर में कोरोना के मरीजों की संख्या लगभग 7 लाख  है और लगभग 35 हजार के आसपास लोगों की मौत हो चुकी है। कोरोना जिस देश से शुरू हुआ वहां पर काफी हद तक नियंत्रण पाया जा चुका है। इस बीमारी से निपटने के लिए चीन का अनुभव दूसरे देशों में मददगार साबित हो सकता है। दुनिया में इस फैलने से रोका जा सकता था लेकिन पूंजीपतियों की धनपिपासु भावनाएं इस बीमारी को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार हैं। भारत भी अब मुश्किल दौर में है और देश के प्रधानमंत्री का 9 दिन के अन्दर देश को दो बार संबोधन (20 और 24 मार्च, 2020) और एक बार (29 मार्च, 2020) मन की बात बताता है स्थति कितनी नाज़ुक है।

प्रधानमंत्री ने मन की बात की शुरुआत में ही कहा कि ‘‘मैं सभी देशवासियों से क्षमा मांगता हूं, मेरी आत्मा कहती है कि आप मुझे जरूर क्षमा करेंगे।’’ यह सुनकर लगा कि प्रधानमंत्री अपनी गलतियों को दुरूस्त करेंगे और अभी तक जो  20 मार्च और 24 मार्च, 2020 को देश के सम्बोधन में नहीं बोले हैं, वह कहेंगे। लेकिन अगले ही वाक्य में वह अपने आप को सही साबित करने की कोशिश की और कहा- ‘‘क्योंकि कुछ ऐसे निर्णय लेने पड़े हैं जिसकी वजह से आप को कई तरह की कठिनाइयां उठानी पड़ी हैं। खासकर, गरीब भाई-बहनों को देखता हूं तो जरूर लगता है कि उनको लगता होगा कि कैसा प्रधानमंत्री है कि हमको इस मुसीबत में डाल दिया। उनसे भी विशेष रूप से क्षमा मांगता हूं। मैं आपकी दिक्कतों, परेशानियों को समझता हूं। लेकिन भारत जैसे 130 करोड़ आबादी वाले देश को कोरोना के खिलाफ लड़ने के लिए यह कदम उठाए बिना कोई रास्ता नहीं था।’’

इस बात से मुझे लगा कि प्रधानमंत्री जी का क्षमा वला वाक्य हास्यास्पद है, क्योंकि उन्होंने सही काम किया है और जिस गलती के लिए क्षमा मांग रहे हैं वह बात लॉकडाउन तक सीमित रह गई। हमारा मानना है कि लॉकडाउन सही कदम है बल्कि लॉकडाउन करने में देरी हो गई जो कि जनवरी के अंतिम सप्ताह या फरवरी की पहली ही तारीख को करना चाहिए था। 30 जनवरी को भारत में पहला केस था 2 और 3 फरवरी को दूसरा तथा तीसरा, लेकिन प्रधानमंत्री जी फरवरी माह में ट्रम्प के कार्यक्रम को लेकर व्यस्त  थे।

24-25 फरवरी में अमेरिकी राष्ट्रपति अपने सैकड़ों लाव-लश्कर के साथ भारत आते हैं और अहमदाबाद के मोटेरा स्टेडियम में लाखों गुजरातियों द्वारा ट्रम्प का स्वागत किया जाता है। इसके बाद दो मार्च की कोरोना मरीजों की संख्या 5 होती है और 20 मार्च को मरीजों की संख्या 258 होती है (स्रोत : पत्रिका समाचार पत्र 29 मार्च)। देश के सम्बोधन (20 मार्च) को प्रधानमंत्री कहते हैं कि 22 मार्च ‘जनता कर्फ्यू’ होगा और शाम के समय आप ताली, थाली बजाकर स्वास्थ्यकर्मियों का आभार प्रकट करें। प्रधानमंत्री के आह्वान पर लोग गाजे-बाजे, शंख-घड़ियाल, थाली-ताली बजाते सड़क पर आ जाते हैं। उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में तो पुलिस अधीक्षक और जिला मजिस्ट्रेट ऐसी भीड़ की अगुवाई करते हैं।

23 मार्च को मरीजों की संख्या 505 हो जाती है। प्रधानमंत्री जी को 24 मार्च के देश के सम्बोधन में ही इस सब के लिए माफी मांगनी चाहिए थी कि उन्होंने समय से लॉकडाउन नहीं किया, बल्कि अमेरिकी राष्ट्रपति का स्वागत करते रहे। 22 मार्च को लोगों से शाम को थाली और ताली बजाने को कहना गलती थी, लेकिन मोदी 24 तारीख को अपनी गलती नहीं मानते हैं। वह देश के सम्बोधन में कहते हैं कि आज मध्यरात्रि 12 बजे से 21 दिन के लिए पूरे देश को लॉकडाउन किया जाता है। उसका नतीजा यह हुआ कि प्रधानमंत्री के सम्बोधन खत्म होते ही राशन दुकानों, मेडिकल स्टोर पर लम्बी कतारें लग गईं। कोरोना में जो एक फिजिकल दूरी रखनी थी, वह खत्म हो गई क्योंकि प्रधानमंत्री जी द्वारा लिया गया निर्णय अचानक और बिना तैयारी की थी और 25 मार्च को कोरोना मरीजों की संख्या 657 हो जाती है।

मोदी जी ने उसके बाद भी देश से माफी नहीं मांगी और लोगों के लिए कोई व्यवस्था नहीं की। लोगों में अफरा-तफरी का माहौल इसलिए बना कि सरकार की तरफ से यह नहीं बताया गया कि उनकी रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए सरकार क्या करेगी। 28 मार्च को दिल्ली-यूपी बॉर्डर, आनन्द विहार में इतने लोग इकट्ठे हो गये कि भारत की पूरी दुनिया में जग हंसाई हुई। इसी बीच रास्तें में लोगों की मौत की खबरें भी आने लगी। सामचार पत्रों, टीवी चैनलों, सोशल साइटों में पैदल यात्रियों जिसमें बूढ़े, बच्चे, बीमार, महिलाओं की तस्वीरें आने लगीं। लॉकडाउन और भारत की तैयारी की पोल खोल गई।

29 मार्च को भारत के प्रधानमंत्री अपने पुराने अवतार ‘मन की बात’ में आते हैं और जनता से माफ़ी मांगते हैं। उन्होंने लॉकडाउन के लिए माफ़ी मांगी लेकिन इसकी तैयारियों की कमियों का जिक्र नहीं किया। 25 मार्च, 2020 को कोरोना से लड़ने के लिए वित्त मंत्री द्वारा 1.70 लाख करोड़ रुपये की राहत पैकेज की घोषण तो की लेकिन वह राहत पैकेज दिख नहीं रहा है। लोग भूख के डर से शहर छोड़ कर भाग रहे हैं लेकिन उनको खाना नहीं दिया जा रहा है। लोगों को डर है कि कोरोना से मरें या नहीं मरें लेकिन भूख से जरूर मर जायेंगे।

प्रधानमंत्री बोलते हैं कि ‘‘करोना के खिलाफ लड़ाई जीवन और मृत्यु की बीच की लड़ाई है। इस लड़ाई को हमें जीतना है इसलिए यह कठोर कदम उठाने आवश्यक थे। किसी को मन नहीं करता है ऐसे कदमों के लिए, लेकिन दुनिया की हालत देखने के बाद लगता है कि यही एक रास्ता बचा है। आपको-आपके परिवार को सुरक्षित रखना है। मैं फिर एक बार आपको जो भी असुविधा हुई है, कठिनाई हुई है क्षमा मांगता हूं।’’

प्रधानमंत्री जी केवल लॉकडाउन से कोरोना से नहीं लड़ सकते कोरोना से लड़ने के लिए मेडिकल सुविधओं की जरूरत है, जो कि भारत में नहीं है। भारत में कुल मिलाकर चालीस हजार वेंटिलेटर है जो कि 35 हजार लोगों पर एक है। डॉक्टरों के लिए पीपीई, मास्क, दस्ताने नहीं हैं। लोगों को टेस्ट करने के लिए किट नहीं है। 31 जनवरी को विदेश व्यापार निदेशालय हर प्रकार के पीपीई के निर्यात पर रोक लगा देता है लेकिन भारत सरकार उस रोक को संशोधित कर 19 मार्च तक पीपीई निर्यात करती रहती है।

जबकि 27 फरवरी को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा था कि कई देशों में पीपीई की सप्लाई बाधित हो सकती है। यह बीमारी जब चीन तक ही सीमित थी, विश्व स्वास्थ्य संगठन की दक्षिण-पूर्व एशिया के क्षेत्रीय डायरेक्टर पूनम खेत्रपाल ने स्वास्थ्य मंत्री को तीन बार पत्र लिखकर कोरोना से निपटने के लिए जरूरी कदम उठाने को कहा था लेकिन उसके बावजूद की सरकार ने कदम नहीं उठाया। प्रधानमंत्री जी आपको माफी मांगनी चाहिए तो इस पर कि आप चेतावनी के बावजूद भी लोगों की जीवन बचाने का काम नहीं किया। 23 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों पर प्रतिबंध लगाये जाते हैं, जबकि 18 जनवरी से 23 मार्च तक 15 लाख लोग विदेश से भारत आ चुके होते हैं।

आप ने मन की बात में दो मरीजों से बात करते है, जिसमें एक आईटी प्रोफेशनल हैं और दुबई से इस बीमारी को लेकर आये थे। दूसरे अशोक कपूर आगरा के हैं जो कि फैक्ट्री मालिक हैं और वह अपने दमाद, बेटे के साथ इटली जाकर यह बीमारी लाये थे। बीमारी लाने वाले तो जहाज से लाये गये और बीमारी भोगने वाले को पैदल छोड़ दिया गया। इन दो मरीजों में से एक का हैदराबाद के सरकारी अस्पताल में इलाज हुआ और दूसरे को सफदरजंग अस्पताल, दिल्ली में। देश के संकट की इस घड़ी में सरकारी अस्पताल ही मददगार हैं तो देश में प्राइवेट अस्पताल की क्या जरूरत है। क्यों नहीं इन प्राइवेट अस्पतालों का सरकारीकरण किया जा रहा है जब यह देश में संकट की घड़ी में काम नहीं आ सकते?

आपने पुणे के डॉ. बोरसे से और दिल्ली के डॉ. नितेश गुप्ता से बात की। नितेश गुप्ता कह रहे थे- ‘‘अस्पताल में  सबकुछ आपने  कर दिया, जो भी हम मांग रहें हैं आप प्रोवाइड करा रहे हैं।’’ आप नरेश गुप्ता की जगह बिहार के एनएमसीएच के उन 83 डॉक्टरों में से किसी एक से बात कर लेते जिन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय, बिहार स्वास्थ्य विभाग और मुख्यमंत्री कार्यालय को पत्र लिखकर कहा है- ‘‘अस्पताल में पीपीई और एन-95 मास्क डॉक्टरों को नहीं मिल रहा है तो मरीजों को कहां से मिलेगा।’’ डॉक्टरों ने संक्रमित होने से बचने के लिए खुद से क्वांटरीन में जाने की मांग की है।

एनएमसीएच के जूनियर डॉक्टर्स एसोएशन के अध्यक्ष रवि रमन ने कहा कि- ‘‘हम लोग पिछले कई दिनों से कोरोना के संदिग्ध मरीजों का इलाज बिना पीपीई और मास्क के कर रहे हैं क्योंकि हमें प्रबंधन द्वारा दिया ही नहीं गया है।’’ आप इन डॉक्टरों से माफी मांगे?

आपने नर्सों को बधाई दी लेकिन आप ने उस खबर को नहीं देखा होगा जहां झांसी रानी लक्ष्मी बाई अस्पताल में नर्सों के 7 माह से तनख्वाह नहीं मिली है। आप इसी सम्बोधन में ठीक हुए मरीजों से सोशल मीडिया पर वीडियो डालने और इसका प्रचार करने की बात कर रहे थे। आप का ध्यान सोशल मीडिया के उस वीडियो पर नहीं गया होगा जहां संजय गांधी अस्पताल, रीवा की नर्सों ने जारी करते हुए कहा है कि- ‘‘दस्ताने नहीं हैं, कहा जाता है कि एक गलब्स को धो-धो कर पूरी रात यूज करो। अगर आपने नाराजगी दिखाई तो अबसेंट (अनुपस्थित) दिखाया जायेगा। हैंड सेनीटाइजर और मास्क की भी व्यवस्था नहीं है। सीएमओ को बोला लेकिन कुछ भी नहीं मिला। हम लोग अपने कपड़े मुंह पर बांध कर दवा दे रहे हैं।’’

आपने डॉ. राम मनोहर लोहिया इंस्ट्च्युट, लखनऊ की उत्तर प्रदेश नर्सेज एसोसिएशन के प्रदेश महामंत्री सुजे सिंह का फेसबुक लाइव भी नहीं देखा होगा, जिसमें सुजे सिंह ने बताया कि ‘‘एन-95 मास्क नहीं है। प्लेन मास्क से मरीज की देख-भाल कर रही हैं। हमें बेसिक चीजें नहीं दी जा रही हैं और कहा जा रहा है कि बोलिये मत। हमें पीपीई किट नहीं मिल सकती। क्या यह देश इतना गरीब हो गया है? नौकरियां ठेके पर हैं सात, दस, पन्द्रह हजार पर नर्सें काम कर रही हैं, पेंशन नहीं दे रहे हैं। धमकी देते हैं कि बोलने पर निकाल दिया जायेगा।’’

प्रधानमंत्री जी यह डॉक्टर या नर्सों का आरोप नहीं है बल्कि यह असलियत है जिसका उदाहरण डॉ. राममनोह लोहिया अस्पताल, दिल्ली के 6 डॉक्टर और 4 नर्सों को क्वांटरीन में जाना पड़ा है। प्रधानमंत्री जी आप को माफी मांगनी है तो इन नर्सों से मांगिए, आप नर्सों की बेसिक जरूरतों को पूरा कीजिए तभी कोरोना से लड़ा जा सकता है। 3 फरवरी, 2020 को डॉ. हर्षवर्धन की अगुवाई में जीओएम की बैठक हुई। उसके बाद आपकी सरकार ने क्या एक्शन लिया?

प्रधानमंत्री जी ने कहा कि- ‘‘मैं यह भी जानता हूं कि कोई कानून नहीं तोड़ना चाहता, नियम नहीं तोड़ना चाहता, लेकिन कुछ लोग ऐसा कर रहे हैं। अभी भी स्थिति की गम्भीरता को नहीं समझ रहे हैं। ऐसे लोगों को यहीं कहेंगे कि लॉकडाउन की नियम तोड़ेंगे तो कोरोना वायरस से बचना मुश्किल हो जायेगा।’’ सही कह रहे हैं कि लोग नियम नहीं तोड़ना चाहते हैं लेकिन आप भी जानते हैं कि भूखे पेट भजन भी नहीं होता। आपने बिना तैयारी के ‘नोटबंदी’ के कठोर निर्णय से भी नहीं सीखा और अब कोरोना से बचाने के लिए कठोर निर्णय लेते हुए आनन-फानन में देशबंद और लोगों की ‘घरबंदी’ कर दी। 

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