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क्या योगी सरकार हाथरस की मासूम बेटी के न्याय के रास्ते मे दीवार बन कर खड़ी है?

सरकार ने जांच की पूरी दिशा ही उलट दी है। वह पूरी ऊर्जा एक नया नैरेटिव खड़ा करने पर लगा रही है कि बलात्कार हुआ ही नहीं है, जैसे कि 19 साल की मासूम का इस तरह मर जाना कोई कम गंभीर बात हो! क्या इसके लिए तमगा चाहती है सरकार अपने लिये?
हाथरस
Image courtesy: New Indian Express

हाथरस जाते पत्रकार सिद्दीकी कप्पन और उनके तीन अन्य साथियों को गिरफ्तार कर राष्ट्रद्रोह तथा UAPA और अन्य धाराओं में जेल भेजते पुलिस सब-इंस्पेक्टर ने मामला दर्ज करते हुए कहा कि उनके पास "Jusice for Hathras Victim" जैसा पर्चा बरामद हुआ जो बड़ी साजिश का हिस्सा है!

उन्होंने इंटरनेट प्लेटफॉर्म तथा वेबसाइट बनाया था ताकि विदेश से फ़ंड जुटाया जा सके और दंगे भड़काए जा सकें! उनके द्वारा " Am I not India's daughter " जैसी बातें लिखी गईं जिनसे सामाजिक वैमनस्य फैल सकता था और जन विद्रोह भड़क सकता था!

सस्ती फिल्म स्क्रिप्ट लगती यह कहानी एक मासूम बेटी के दर्दनाक अंत जैसे अतिसंवेदनशील मामले में, देश के सबसे बड़े राज्य उप्र में मोदी-योगी जी के रामराज्य की न्याय-व्यवस्था की शोकांतिका है।

योगी सरकार हाथरस की मासूम बेटी के न्याय के रास्ते मे तो दीवार बन कर खड़ी ही है,  सबसे बड़ा अपराध यह कर रही है कि हाथरस कांड के माध्यम से इस प्रश्न पर जो एक गंभीर enlightened राष्ट्रीय विमर्श हो सकता था, बलात्कार, विशेषकर ग्रामीण दलित महिलाओं के ऊपर लगातार जारी यौन हमलों पर लगाम लगाने के लिए जरूरी कदमों पर चर्चा हो सकती थी, उस सब की भ्रूणहत्या कर रही है।

वह पूरे विमर्श को एक ऐसी दिशा में मोड़ना चाहती है, जहां ये सारे सवाल बेमानी हो जाए, इन अपराधों में अपनी जवाबदेही से वह बच जाए और उसकी नाकामियों पर पर्दा पड़ जाय।

दरअसल, मासूम बेटी के त्रासद अंत ने पूरे देश की आत्मा को झकझोर कर रख दिया है। 70 साल के गणतंत्र का कुल जमा हासिल यही है, परिवार को घर में बंद कर रात अंधेरे जलाई गई मृत बेटी!

आज दिल्ली से लेकर कोलकाता तक संवेदनशील नागरिक समाज, राजनैतिक कार्यकर्ता सड़कों पर उतरे हुए हैं। UN के भारत स्थित प्रतिनिधि ने इस पर गम्भीर चिंता जाहिर की है।

6 अक्टूबर को सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि यह extraordinary मामला है। पीड़िता के साथ जो हुआ वह horrible और shocking है। परिजनों और गवाहों की सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु राज्य सरकार को एफिडेविट दाखिल करने का निर्देश दिया।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने स्वतः संज्ञान लेते हुए 12 अक्टूबर को सूबे के आला अफसरों को तलब किया है।

इस जबरदस्त हलचल ने 8 साल पुराने निर्भया आंदोलन की याद ताजा कर दिया है। लेकिन पूरे समाज को, देश और दुनिया को संवेदित करने वाले इस मामले पर सरकार की प्रतिक्रिया से लोग भौंचक हैं।

प्रधानमंत्री ने तो अब तक अपनी संवेदना तक प्रकट करना उचित नहीं समझा है। हादसे के बाद वाले Sunday को भी मासूम की दर्दभरी चीखें और मौत उनके मन की बात का हिस्सा न बन सकी। शायद किसी उचित अवसर के इंतज़ार में हों!

अलबत्ता उनके चहेते उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जरूर दावा किया कि प्रधानमंत्री ने उनसे फोन पर बात किया है। अब क्या बात हुई, यह तो वे दोनों ही जानें। लेकिन सरकार के तमाम कदमों से ऐसा लग रहा है कि मोदी जी के दिखाए आपदा को अवसर में बदलने के उसूल पर अमल करते हुए, मुख्यमंत्री ने एक मासूम की त्रासद मौत को भी अपनी कुटिल राजनीति के लिए इस्तेमाल करने का फैसला किया है।

निर्भया आंदोलन के दौरान भी तत्कालीन सरकार ने उसके खिलाफ उठ खड़े हुए आंदोलन का दमन करने का प्रयास किया था, पर अंततः उसे झुकना पड़ा था, किसी भी स्टेज पर बलात्कारियों-हत्यारों को बचाने की बात वह न कर सकी, उन्हें अपने किये की सजा मिली, जस्टिस जे सी वर्मा कमेटी बनी जिसने बलात्कार के प्रश्न पर महत्वपूर्ण recommendations किए, नया कानून बना, POSCO Act अस्तित्व में आया।

पर आज की मोदी-योगी सरकार बलात्कार और हत्या के इस मामले को जिस तरह हैंडल कर रही है, वह अभूतपूर्व है।

आज सरकार अभियुक्तों को बचाने और पीड़िता के परिजनों को ही फ़र्ज़ी मामलों में फंसाने तथा उसके लिए न्याय की मांग करने वालों को ही दंगा और हिंसा भड़काने की ग्रैंड साजिश के आरोप में फंसाने की रणनीति पर काम कर रही है, यह बेमिसाल है।

सरकार ने जांच की पूरी दिशा ही उलट दी है। वह पूरी ऊर्जा एक नया नैरेटिव खड़ा करने पर लगा रही है कि बलात्कार हुआ ही नहीं है, जैसे कि 19 साल की मासूम का इस तरह मर जाना कोई कम गंभीर बात हो! क्या इसके लिए तमगा चाहती है सरकार अपने लिये? बहरहाल, यह तय करना तो न्यायालय का काम है, आप अपना काम न करके जज बन कर फैसला सुनाने को क्यों बेचैन हैं?

तो नैरेटिव यह गढ़ा जा रहा है कि बलात्कार तो हुआ ही नहीं, बल्कि योगी जी का जो विकास और प्रगति का राज चल रहा है उसे अस्थिर करने और उन्हें बदनाम करने के लिये विरोधियों की यह बहुत बड़ी साजिश है।

इस कोशिश में सरकार इतनी desperate हो गयी है कि अमेरिका में चले Black lives matter आंदोलन की किसी पोस्ट को कट-पेस्ट करके हूबहू साजिश के प्रमाण के बतौर पेश कर दिया गया, यह भी सावधानी नहीं बरती गई कि न्यूयॉर्क पुलिस की जगह हाथरस पुलिस या यूपी पुलिस कर दिया जाता! स्वयं मुख्यमंत्री योगी ने यह नैरेटिव लांच किया जिसे उनके आला अधिकारियों ने लपक लिया और इसी आशय का एफिडेविट सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया गया।

इसी Conspiracy Theory के प्रमाण के बतौर पत्रकार सिद्दीकी कप्पन को उनके साथियों के साथ गिरफ्तार किया गया। कप्पन कई मीडिया हाउसेज के लिए काम करते हैं और KUWJ (Kerala Union of Working Journalist ) के पूर्व सचिव हैं।

इस तरह योगी सरकार के खिलाफ दंगा भड़काने की साजिश में जिन 4 लोगों को अब तक गिरफ्तार किया गया है, वे सब मुसलमान हैं। सरकार ने उनके खिलाफ PFI ( Popular Front Of India ) से जुड़े होने का आरोप लगाया है, जिससे उन्होंने स्वयं और PFI ने भी इंकार किया है।

वैसे अब तक पीड़िता के लिये न्याय की मांग कर रहे लोगों के खिलाफ उपरोक्त आरोपों में कुल 27 FIR दर्ज हो चुके हैं।

जाहिर है भाजपा राज में यह पैटर्न अब बहुत कुछ जाना पहचाना सा है। लोग भूले नहीं हैं कि ठीक यही भीमा कोरेगांव और दिल्ली दंगों की जांच का पैटर्न था, जिसमे असली अभियुक्तों को बचा लिया गया और उल्टे grand conspiracy theory गढ़ कर पीड़ितों और उनके पक्ष में बोलने वाले व अन्य लोकतांत्रिक सामाजिक-राजनैतिक कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवियों को फ़र्ज़ी धाराओं में जेल में ठूंस दिया गया।

इस सब झूठ फरेब के चलते सरकार की छवि में जबर्दश्त गिरावट आयी है, इसमें सुधार के लिए सरकार ने एक एजेंसी-Concept-PR को ठेका दिया है जो सरकार के लिए मीडिया मैनेजमेंट करेगी, यानी गोदी मीडिया की मदद में PR कम्पनी।

जनता के पैसे से जनता को झूठ परोसने का ठेका! जाहिर है सरकार को न जनता पर भरोसा है, न अपने सूचना विभाग पर जो आधिकारिक तौर पर सरकार की ओर से मीडिया संभालता है।

बहरहाल, इन सब साजिशों से अथवा PR कम्पनियों द्वारा प्लांटेड फ़र्ज़ी कहानियों से उत्तर प्रदेश में दलितों पर भाजपा राज में हमलों की जो बाढ़ आई हुई है उसके बदनुमा दाग को मिटाया नहीं जा सकता।

केवल 2019 के आंकड़े देख लिए जाएं, तो जिस उत्तर प्रदेश की आबादी देश की कुल आबादी का 16 % है, वहां SC/ST अत्याचार निवारण अधिनियम ( IPC सहित ) के 22.6%, SC/ST ( IPC के बिना ) मामले 58%, SC/ST (अन्य अपराध ) के मामले 63% आये !

वैसे तो ग्रामीण भारत में जड़ जमाये गहरे सामन्ती अवशेषों के कारण दलित हमेशा से उत्पीड़न के शिकार रहे हैं। आज़ादी के बाद भी स्थितियों में गुणात्मक बदलाव नहीं हुआ। सुप्रसिद्ध अम्बेडकरवादी बुद्धिजीवी और लोकतांत्रिक आंदोलनों की प्रमुख आवाज एस आर दारापुरी कहते हैं कि " आज़ादी के बाद भी उत्तर प्रदेश की सामाजिक, राजनीतिक  तथा आर्थिक व्यवस्था का लोकतंत्रीकरण नहीं हो सका है। इसके विपरीत आज़ादी के बाद विकास की प्रक्रिया के अंतर्गत पूँजी का जो निवेश हुआ है उसने नये माफिया को जन्म दिया है जिसने सामंती ताकतों से गठजोड़ करके राजनीतिक सत्ता में अपना दखल बढ़ा लिया है। यह सर्वविदित है कि सामंती- माफिया -पूँजी गठजोड़ की उपस्थिति सभी राजनीतिक दलों में रहती है और वे ज़रूरत के मुताबिक दल भी बदलते रहते हैं। इसी लिए सरकार बदलने के बाद भी उनकी राजनीतिक पकड़/पहुँच कमज़ोर नहीं होती। यही तत्व दलितों तथा अन्य कमज़ोर वर्गों एवं महिलाओं पर अत्याचार के लिए ज़िम्मेदार होते हैं। "

दरअसल, भाजपा शासन में इन ताकतों को ऊपर से लेकर नीचे तक सत्ता का सीधा संरक्षण प्राप्त है क्योंकि ये ही भाजपा राज का मुख्य आधार हैं, योगी इनके सबसे विश्वस्त प्रतिनिधि हैं। यह अनायास नहीं है कि राज्य मशीनरी हर कदम पर इन अपराधियों के गुनाहों पर पर्दा डालने और इन्हें बचाने के लिए खड़ी है, इसलिये आज योगी राज में उत्तर प्रदेश में दलितों-गरीबों पर हमलों की बाढ़ आ गयी है।

उसमें भी दलित की बेटी भारतीय समाज की सबसे कमजोर इकाई है, पितृसत्ता, वर्ग और जाति तीनों की चक्की में पेरी गयी! स्वाभाविक रूप से समाज के आखिरी पायदान पर खड़ी  दलित महिलाएं सबसे अधिक vulnerable हैं, वे सबसे आसान चारा हैं।

इस बर्बरता से लड़ने का रास्ता कभी बिहार के क्रांतिकारी किसान आंदोलनों ने दिखाया था।
आज पितृसत्ता तथा सामन्ती-माफिया-पूंजी गठजोड़ की ताकतों के खिलाफ प्रतिरोध के बड़े जनांदोलन की जरूरत है जो महिला, दलित विरोधी इन ताकतों की कमर तोड़ सके तथा इनकी संरक्षक राजनीति का अंत कर सके।

(लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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