यूपी विधान परिषद में उठा विश्वनाथ मंदिर में घोटालों का मुद्दा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट काशी विश्वनाथ धाम में करोड़ों के घपले का सनसनीखेज सवाल विधान परिषद में जोर-शोर से उठने के बाद बनारस में एक नई बहस छिड़ गई है। समाजवादी पार्टी के विधान परिषद सदस्य आशुतोष सिन्हा ने सबूत पेश करते हुए आरोप लगाया कि विश्वनाथ कारिडोर के निर्माण के दौरान तोड़े गए मंदिरों और पुराने भवनों के करोड़ों रुपये के मलबे बेच दिए गए। योगी सरकार ने जिन अफसरों को विश्वनाथ धाम की जिम्मेदारी सौंपी थी, उन्होंने बाबा को ही गिरवी रख दिया और नियम विरुद्ध तरीके से करोड़ों का लोन लिया। इसके लिए सरकार से अनुमति लेने की जरूरत तक नहीं समझी गई। एमएलसी की ओर से पूछे गए सनसनीखेज सवालों का जवाब न मिलने पर विधान परिषद के सभापति कुंवर मानवेंद्र सिंह ने सरकार को समूचे मामले की जांच कराने का आदेश दिया है।
एमएलसी आशुतोष सिन्हा कहते हैं, "विश्वनाथ धाम के निर्माण में घपलों और घोटालों का कोई ओर-छोर नहीं है। बनारस के पूर्व कमिश्नर अग्रवाल के पास पहले से ही एक सरकारी गाड़ी थी, लेकिन वो विश्वनाथ मंदिर के दान के पैसे से प्राइवेट गाड़ी हायर कर मनमाना धन खर्च करते रहे। साल 2017 से पहले काशी विश्वनाथ मंदिर के आय-व्यय का सारा ब्योरा विधिवत वेबसाइट पर डाला जाता था। भाजपा के सत्ता में आने के बाद नौकरशाही ने घपले-घोटाले छिपाने शुरू कर दिए। साथ ही बैलेंसशीट को सार्वजनिक करना पूरी तरह बंद कर दिया। विश्वनाथ कारिडोर के ढेरों काम बाबा को मिलने वाले दान के पैसे से कराए गए, जबकि वाहवाही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लूटी। काशी विश्वनाथ मंदिर पहले आस्था का केंद्र था, जिसे अब पर्यटन केंद्र के रूप में बदला जा रहा है?"
एमएलसी आशुतोष सिन्हा ने बीते 23 फरवरी 2023 को उत्तर प्रदेश विधान परिषद के पहले सत्र में काशी विश्वनाथ मंदिर के लिए नियम के विरुद्ध तरीके से लिए गए लोन और कॉरिडोर निर्माण में हुई वित्तीय भारी अनियमितता पर ध्यान आकृष्ट कराया। उन्होंने सदन में सवाल पूछा कि श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास के नाम से साल 2019 से 2020 तक एचडीएफसी बैंक से किस नियम के तहत लोन लिया गया? क्या इसके लिए यूपी सरकार से नियमानुसार अनुमति मांगी गई थी? दान के पैसे का इस्तेमाल किस मद में और कब किया गया? मंदिर में दर्शन-पूजन के लिए आने वाले आला अफसरों और मंत्रियों को सुख साधन मुहैया कराने पर कितनी धनराशि खर्च की गई? काशी विश्वनाथ मंदिर की नियमावली के नियम 30 में इस बात का साफ-साफ हवाला दिया गया है कि मंदिर के लिए कोई भी धन राज्य सरकार की पूर्व अनुमति के बिना किसी व्यक्ति अथवा संस्था से उधार नहीं लिया जाएगा? मुख्य कार्यपालक अधिकारी सुनील कुमार वर्मा ने कायदा-कानून ताक पर रखकर बाबा को गिरवी क्यों रख दिया? मंदिर का खर्च चलाने के लिए लोन लेने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार से अनुमति क्यों नहीं ली गई? विश्वनाथ कारिडोर के निर्माण के समय कई मकानों को ढहाया गया और करोड़ों का मलबा बेच दिया। आखिर उसका कहीं लेखा-जोखा क्यों नहीं रखा गया?
विश्वनाथ कारिडोर के लिए ऐसे तोड़े गए मंदिर
छिपाए जा रहे घपले-घोटाले
सरकार के जवाब से असंतुष्ट विधान परिषद सदस्य आशुतोष सिन्हा ने सदन में खुलेआम आरोप लगाया, "योगी सरकार ने बाबा विश्वनाथ को कर्जदार बना दिया, जबकि कई अधिकारियों के निजी खर्च विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट की ओर से उठाया जाता रहा। साल 2017 से भाजपा सरकार सत्ता में आई तो उसने सबसे पहले विश्वनाथ मंदिर की बैलेंसशीट को सार्वजनिक करना बंद कर दिया।" सिन्हा ने सदन को अवगत कराया कि जुलाई 2021 में टैक्सी किराये के भुगतान के लिए मेसर्स अभिषेक इंटरप्राइजेज, एन.12/237, एल-5-आर, जज कालोनी महमूरगंज-वाराणसी ने एक इन्वाइस बिल ब्योरा पेश किया। इस बिल में वाहन संख्या यूपी 65 डीई 1979 और यूपी 65 एचटी 4647 का बिल क्रमशः 60,796 और 63,406 रुपये दर्शाया गया है। जीएसटी मिलाकर कुल एक लाख 30 हजार 412 रुपये की वित्तीय स्वीकृति गई थी। सिन्हा के मुताबिक, यह बिल सिर्फ एक महीने का था। जिन अफसरों के पास पहले से ही सरकारी वाहन हैं, वो विश्वनाथ धाम के दान के पैसे से निजी हितों को पूरा करने के लिए भाड़े की गाड़ी क्यों मंगा रहे हैं?
विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट के इस नियम को अफसरों तोड़ दिया
समाजवादी पार्टी के एमएलसी आशुतोष सिन्हा के आरोपों पर सरकार का बचाव करते जल शक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह ने सदन को बताया, "मंदिर की एफडी नहीं तोड़ी गई। सिर्फ जरूरतों को पूरा करने के लिए एक फीसदी की दर से बैंक लोन लिया गया था। मंदिर के निर्माण, पुनर्वास, अन्न क्षेत्र, सेवईत और दूसरे मदों में 108.7 करोड़ रुपये खर्च किए गए। वैश्विक महामारी में कॉरिडोर का निर्माण कार्य चलता रहा, जबकि आम श्रद्धालुओं के लिए विश्वनाथ मंदिर छह महीने के लिए बंद था। इस अवधि में मंदिर की व्यवस्था, अन्न क्षेत्र, दैनिक पूजा-पाठ, कर्मचारियों का वेतन, मानदेय के भुगतान के अलावा परियोजना के समयबद्ध निर्माण के लिए ध्वस्तीकरण और पुनर्वासन के लिए धन की जरूरत थी। इसके लिए एचडीएफसी बैंक में सावधि जमा के सापेक्ष ओवर ड्राफ्ट के आधार पर धनराशि 4,75,20,000 (चार करोड़ पचहत्तर लाख बीस हजार रुपये) लोन लिया गया। बाद में 17 सितंबर 2020 को इस लोन का समायोजन कर दिया गया।"
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से यह भी अवगत कराया गया की काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास बोर्ड ने जनवरी 2017 से माह दिसंबर 2020 तक छह बैंकों में 106 सावधि जमा कराई थी, जिससे 78.9 करोड़ की आय हुई। मंदिर के निर्माण, पुनर्वास और अन्य में 108.7 करोड़ खर्च हुए। सरकार की ओर से इस सवाल का जवाब नहीं दिया गया कि किस वजह से काशी विश्वनाथ मंदिर की बैलेंसशीट संस्था की वेबसाइट पर नहीं डाली जा रही है? विश्वनाथ कॉरिडोर बनाने के लिए ढहाए गए मंदिरों और पुराने मकानों के मलबे को बेचने के लिए टेंडर क्यों नहीं जारी किया गया? मलबे से मिली करोड़ों की धनराशि आखिर कहां चली गई? समूचे मामले की जांच के लिए एमएलसी आशुतोष सिन्हा ने विधान परिषद के सभापति मानवेंद्र सिंह से कहा तो उन्होंने आग्रह स्वीकार कर लिया। सभापति के निर्देश को सरकार ने भी मंजूरी दे दी है।
वाहवाही लूट रही सरकार
काशी विश्वनाथ धाम के निर्माण के बाद लोकार्पण के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बनारस में मेगा इवेंट किया था। भाजपा सरकार ने कॉरिडोर को अपनी उपलब्धि बताते हुए देश भर में डंका पीटा था। कई राज्यों में काशी विश्वनाथ धाम की उपलब्धियों वाली होर्डिंग भी लगाई थी। बनारस के वरिष्ठ पत्रकार अमित मौर्य कहते हैं, "विश्वनाथ धाम की उपलब्धियों का बखाने करने में जुटी गोदी मीडिया, भाजपा सरकार का इस कदर बखान कर रही है कि कॉरिडोर दान और टैक्सपेयर के पैसे से नहीं, भाजपा नेताओं की जेब के पैसे से बनवाया गया है। आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर यह मुहिम चलाई जा रही है, ताकि जनता सत्तारूढ़ दल पर लहालोट हो जाए।"
काशी विश्वनाथ मंदिर के मुख्य कार्यपालक अधिकारी सुनील कुमार वर्मा कहते हैं, "काशी विश्वनाथ धाम के नव्य और भव्य स्वरूप में आने के बाद से यहां पर्यटकों के आने में रिकॉर्ड वृद्धि हुई है। मंदिर में दान का नया रिकार्ड बन रहा है। साथ ही हजारों लोगों को रोजगार के अवसर भी मिले हैं। धाम में लक्ष्मी की कृपा जमकर बरस रही है। मंदिर अब पूरी तरह से स्वर्णमयी स्वरूप में नजर आने लगा है। गर्भगृह के बाद अब बाहरी दीवारों को भी सोने से मढ़ दिया गया है। जमीन से आठ फीट की ऊंचाई तक शिखर से लेकर चौखट तक सोना लगाया गया है। दिलचस्प बात यह है कि विश्वनाथ मंदिर को गुप्त दान के जरिये 60 किलो सोना मिला था। उसी सोने को मंदिर में जड़ा गया है। भाजपा सरकार और सत्तारूढ़ दल के नेता दान के सोने को भी अपनी अपनी उपलब्धियों में गिना रहे हैं।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, विश्वनाथ धाम के निर्माण और मुआवजा बांटने में तकरीबन 900 करोड़ रुपये खर्च हुए। जिस तरह से श्रद्धालुओं का रेला बाबा का दर्शन करने के लिए उमड़ रहा है उससे पांच सालों में पूरी लागत निकल आएगी। धाम के लोकार्पण के बाद बनारस के राजस्व में 65 फीसदी का इजाफा हुआ है। दीगर बात है कि साल 2017 के बाद यूपी की सत्ता पर काबिज हुई भाजपा सरकार ने जनता को यह बताने की जरूरत ही नहीं समझी कि विश्वनाथ मंदिर को कितना दान मिला और दान में क्या-क्या मिला?
काशी विश्वनाथ मंदिर की वेबसाइट पर दर्ज आंकड़े बताते हैं कि पिछले दो सालों में दर्शनार्थियों की भीड़ में जबर्दस्त इजाफा हुआ है और दान में भी। हालांकि साल 2017 से पहले के आंकड़ों की रफ्तार का आकलन करने से पता चलता है कि ज्यादा शुल्क न होने के बावजूद यह मंदिर पहले मालामाल था। पहले अनाप-शनाप खर्च कम थे, जिसके चलते हर साल करोड़ों रुपये की एफडी की जाती थी। विश्वनाथ मंदिर के कोष में करीब 450 करोड़ रुपये जमा थे। भाजपा सत्ता में आई तो अफसरों ने इस धन को मनमाने ढंग से खर्च कर दिया।
भाजपा सरकार के सत्ता में आने से पहले के तीन साल के आंकड़ों पर गौर कीजिए। साल 2014 में विश्वनाथ मंदिर को 71 करोड़ 34 लाख 10 हजार 224 रुपये 33 पैसे दान में मिले। अगले साल 2015 में मंदिर की आय बढ़कर 82 करोड़ 34 लाख 7 हजार 579 रुपये 87 पैसा हो गई। साल 2016 में विश्वनाथ मंदिर के खाते में एक अरब 3 करोड़ 10 लाख 39 हजार 504 रुपया 07 पैसा आया। उस समय मंदिर में मंगला आरती, भोग आरती और मध्यान आरती का टिकट सस्ता था और वीआईपी दर्शन के नाम मनमानी वसूली भी नहीं होती थी। इस समय आम दर्शनार्थियों को झांकी दर्शन करने के बाद लौटा दिया जाता, लेकिन पहले ऐसा नहीं था। हर कोई मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करता था और विधिवत दर्शन कर बाहर निकलता था।
हाल में हुई श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास की 104वीं बैठक में मंगला आरती का टिकट 350 की वजह 500 रुपये कर दिया है। इसी तरह सप्त ऋषि आरती, श्रृंगार भोग आरती और मध्यान भोग आरती का टिकट 180 की जगह 300 रुपये करने का प्रस्ताव पास किया है। ये दरें एक मार्च 2023 से लागू कर दी जाएंगी। पिछले साल ही सरकार ने वीआईपी दर्शन की धनराशि 251 से बढ़ाकर तीन सौ रुपये कर दी थी। मुख्य कार्यपालक अधिकारी सुनील कुमार वर्मा ने साल 2022-23 के लिए कुल 105 करोड़ की आय और 40 करोड़ के खर्च का लक्ष्य रखा है। बैठक में न्यास के अध्यक्ष प्रो.नागेंद्र पांडेय, मंडलायुक्त कौशल राज शर्मा, डीएम एस. राजलिंगम के अलावा मंदिर के सभी ट्रस्टी मौजूद थे।
खड़े हुए तल्ख सवाल
श्री विश्वनाथ मंदिर में घपलों-घोटालों और अनियमितताओं का मामला उछलने के बाद से बनारस की सियासत गरमा गई है। विश्वनाथ मंदिर की देख-रेख और धाम के विकास के पर्यवेक्षण के लिए तैनात अफसरों पर उंगलियां उठनी शुरू हो गई है। सपा एमएलसी आशुतोष सिन्हा ‘न्यूजक्लिक’ से कहते हैं, "बाबा को मिलने वाले दान के लूटा जा रहा है। घपला करोड़ों का है। बड़ा सवाल यह है कि अधिगृहित भवनों को गिराने के लिए के टेंडर क्यों जारी नहीं किए गए? ढहाए गए मकानों और मंदिरों के ईंट-पत्थर, पटिया, गाटर, मिट्टी और जो भी चीजें निकली वो कहां गईं? मलबा बेचने का टेंडर क्यों नहीं जारी किया गया? इससे मिलने वाली एक बड़ी धनराशि कहां और किसके पास चली गई? कोरा सच यह है कि सिर्फ मकानों के मलबे में अरबों का घोटाला हुआ है। इस पर हमने सरकार से सवाल किया था, लेकिन आज तक जवाब नहीं मिला है। पुराने जमाने में भवनों के निर्माण के समय सोने-चांदी के कलश, मुद्राएं आदि नींव में रखने का चलन था। कारिडोर के निर्माण के समय होने वाली खुदाई में किसी भी मकान की नींव में कोई गाड़ा हुआ पात्र क्यों नहीं मिला? अगर मिला तो उसे कौन हजम कर गया? सरकार तो यह भी बताने के लिए तैयार नहीं है कि विश्वनाथ मंदिर के सौन्दर्यीकरण के नाम पर काशी खंडोत्व के कितने पुराने मंदिरों और विग्रहों को तोड़ा गया? कितनी मूर्तियों को धार्मिक मान्यताओं व प्रावधानों के तहत निकाला गया और इसके लिए किन ब्राह्मण विद्वानों की सेवाएं ली गईं? मंदिर के आसपास की गलियां बाबा की जटाएं मानी जाती थीं। इन गलियों का स्थापत्य को देखने के लिए बड़ी तादाद में विदेशी पर्यटक बनारस आते थे। ये गलियां गर्मियों में शिमले का मजा देती थीं और बिना एसी लगाए ही तरावट रखती थीं? आखिर इस ऐतिहासिक स्थापत्य को क्यों तहस-नहस कर दिया गया? विश्वनाथ मंदिर का सारा काम जब दान के पैसे से हुआ तो भाजपा सरकार अपनी उपलब्धियों का ढोल क्यों पीट रही है? "
डबल इंजन की सरकार पर सवाल उठाते हुए आशुतोष सिन्हा यह भी कहते हैं, "अगर कोई सुंदर सा घर बनाता है तो वाहवाही उसके पड़ोसी कैसे लूट सकते हैं? विश्वनाथ मंदिर का सौन्दर्यीकरण सारा खर्च दान के पैसे से हुआ हिन्दू समुदाय के लोगों के बीच झूठा नगाड़ा क्यों पीटा जा रहा है? शर्मनाक बात यह है कि विश्नाथ मंदिर परिसर में अब विदेशी कंपनियां होटल और फ़ूड प्लाजा बना रही हैं। पहले मंदिर परिसर में विदेशियों का प्रवेश पूरी तरह तक प्रतिबंधित था। भाजपा के सत्ता में आने के बाद नया चलन यह शुरू हुआ है कि मंदिर का ज्यादातर ठेका विदेशी कंपनियों के हवाले किया जा रहा है।
---पहले मंदिर की बैलेंसशीट वेबसाइट पर रहती थी। साल 2017 से उसे सार्वजनिक करने से क्यों रोका गया और इसके पीछे किसकी क्या मंशा थी और किसने दिमाग लगाया था? हिन्दू श्रद्धालु बाबा के मंदिर में दान दे रहे हैं और अफसर उस पैसे से मौज ले रहे हैं? समूचा मामला विधान परिषद में उठाए जाने के बावजूद सरकार की चुप्पी गंभीर सवाल खड़ा करती है।
काशी विश्वनाथ मंदिर में घपला-घोटाले का खेल कोई नया नहीं है। लूटपाट का आलम यह है कि यहां मनीआर्डर के जरिये मिलने वाला चंदा तक डकारा जाता रहा है। साल 2022 में श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास के एक कर्मचारी शशिभूषण द्वारा मनीआर्डर राशि में 1.42 लाख रुपये घपला किए जाने की पुष्टि हुई तो अपर मुख्य कार्यपालक अधिकारी निखलेश मिश्रा ने उसके खिलाफ तीन अगस्त 2022 में चौक थाने में धोखाधड़ी और हेराफेरी का केस दर्ज कराया। कंप्यूटर सहायक पद पर तैनात इस कर्मचारी को सस्पेंड कर कारण बताओ नोटिस भी जारीकिया गया, लेकिन वह लापता हो गया।
दान के पैसे के घपले का आलम यह है कि यहां मामूली वेतन पर काम करने वाले कुछ ऐसे घोटालेबाज कर्मचारी हैं, जिनकी कई-कई कोठियां हैं। जानकारों का कहना है कि विश्वनाथ मंदिर की सुरक्षा में तैनात जवान वहां लगाई जाने वाली ड्यूटी को पहले कालापानी की सजा मानते थे। अब यहां ड्यूटी लगवाने के लिए खाकी वर्दी के जवान जुगाड़ भिड़ाते हैं। विश्वनाथ मंदिर पर ड्यूटी करने के लिए पुलिसकर्मियों के लिए कोई तय मानक नहीं है। कई सिपाही और दरोगा तो ऐसे हैं जो सोर्स-सिफारिश लगाकर कई सालों से यहां जमे हुए हैं।
आस्था से खिलवाड़
काशी विश्वनाथ मंदिर के समीप सड़क के किनारे श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर का न्यास सुविधा केंद्र है। यहां एक हेल्प डेस्क है, जिसके बाहर कांच के गेट पर 300 रुपये में सुगम दर्शन का पोस्टर चस्पा किया गया है। 300 रुपये का टिकट लेने पर मुफ्त शास्त्री, लॉकर, प्रसाद का ऑफ़र है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 21 दिसंबर 2018 को दर्शनार्थियों को सुगम दर्शन कराने के लिए हेल्प डेस्क का उद्घाटन किया था। मौजूदा समय में विश्वनाथ मंदिर में कई तरह की आरती के लिए रेट तय है, जिसके लिए ऑनलाइन बुकिंग की व्यवस्था भी की गई है। सावन, शिवरात्रि और अन्य पर्वों पर वीवीआईपी पूजा और आरती से लिए श्रद्धालुओं से मोटी रकम वसूली जाती है।
काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का कुल क्षेत्रफल पांच लाख वर्ग फीट है, जिसमें मंदिर का परिसर सिर्फ पांच फीसदी हिस्से में है। बाकी में होटल, फ़ूड कोर्ट, म्यूज़ियम, शो-रूम, मिठाई की दुकान, कपड़े, लकड़ी का खिलौना, खादी के शोरूम खोले जाने हैं। यह सब उन स्थानों पर खोला जाना है जहां इस कॉरिडोर को बनाने के लिए करीब 300 से अधिक मकानों को अधिगृहित किया गया था। साथ ही काशी खण्डोक्त के 27 और 127 दूसरे मंदिरों को जमींदोज कर दिया गया था।
काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत पंडित राजेंद्र तिवारी कहते हैं, "शासन ने दावा किया था कि कॉरिडोर के सभी मंदिरों का संरक्षण किया जा रहा है, जो मजाक बनकर रह गया है। मंदिर प्रशासन ने यहां बिजनेस मॉडल विकसित करने के लिए ब्रिटेन की कंपनी ईवाई को ठेका दिया है। इस कंपनी में उद्योगपति मुकेश अंबानी पार्टनर हैं। जिस मंदिर में विदेशियों का प्रवेश वर्जित था, उस मंदिर परिसर में बिजनेस मॉडल विकसित करने के लिए यह विदेशी कंपनी कैसा घुस गई? पीएम नरेंद्र मोदी ने जब से विश्वनाथ कॉरिडोर का लोकार्पण किया है तभी से आम श्रद्धालुओं को मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करने पर प्रतिबंध है, लेकिन आला अफसरों और वीवीआईपी के लिए तो विश्वनाथ मंदिर के दरवाजे हमेशा के लिए खुले रहते हैं। आम श्रद्धालुओं को रोककर वीआईपी को मंदिर के गर्भगृह में बिठाकर काफी देर तक पूजा-अर्चना कराई जाती है। आम श्रद्धालुओं को सड़कों पर लाइन लगानी पड़ रही है और उन्हें सिर्फ झांकी दर्शन कराया जा रहा है। जब भी कोई वीवीआईपी आता है तो मंदिर के गर्भगृह में कब्जा करके पूजा-पाठ शुरू कर दिया जाता है।"
"विश्वनाथ मंदिर पर अब भाजपा, आरएसएस और विहिप वालों का कब्जा हो गया है। लोकार्पण के बाद मंदिर का प्रसाद और मोदी के गुणगान वाली पुस्तिका भी भाजपा और उसके अनुषांगिक संगठनों के लोगों ने ही शहर भर में बांटी थी। विश्वनाथ मंदिर में अब वही टिक पाएगा जो पीएम मोदी की डफली बजाएगा। मंदिर हम लोगों का था और हमें तो पूछा ही नहीं जा रहा है।"
"विश्वनाथ कॉरिडोर का श्रेय लूटने वालों का चरित्र दोहरा है। वो एक ओर मंच से गांधी का नाम लेते हैं और दूसरी ओर गोलवरकर की पूजा करते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि रावण अपने दौर में काल को भी चारपाई में बांधकर रखता था, लेकिन जब काल आया तो रावण खुद को नहीं बचा सका। अंग्रेज भी यहां आए, लेकिन उन्होंने विश्वनाथ मंदिर के साथ किसी तरह का छेड़छाड़ नहीं किया। मोदी ने विश्वनाथ कॉरिडोर को लेकर इस तरह का प्रचार किया जैसे वो खुद ही शिव के अवतार हों। मंदिर के स्थापत्य के साथ जिस तरह का छेड़छाड़ किया गया है उसे बनारस के लोग हमेशा याद रखेंगे।"
बनारसियों से दूर हो रहे बाबा
वरिष्ठ पत्रकार एवं चिंतक प्रदीप कुमार कहते हैं, "काशी विश्वनाथ मंदिर अब काशी के लोगों से दूर होता जा रहा है। नेमी दर्शनार्थी खुद को खोया हुआ महसूस कर रहे हैं। बाजारीकरण के शोर के बीच स्थानीय नागरिक अब शहर के दूसरे शिवालयों की ओर मुड़ गए हैं। बाहर से आने वाले लोगों की भीड़ में श्रद्धालु कम, पर्यटक ज्यादा हैं जो भव्यता निहरने आ रहे हैं। विश्वनाथ मंदिर के आसपास की सड़कों पर लगने वाली कतारें सरकारी दावों की पोल खोलती नजर आ रही हैं। मंदिर का रेवेन्यू बढ़ने के पीछे की कहानी यह है कि सरकारी पैसे देकर दक्षिण के लोगों को बनारस भेजा जा रहा है। चाहे वो पर्यटक कर्नाटक के हों अथवा तामिलनाडु के। विश्वनाथ धाम को होने वाली कमाई का कितना हिस्सा अर्न्स्ट एंड यंग को दिया जा रहा है, इसका खुलासा करने के लिए कोई अफसर तैयार नहीं है।"
दरअसल, बनारस के मंदिरों और तीर्थों के कॉरपोरेटीकरण का पहला चरण माना जा रहा है। ईवाई कंपनी की वित्तीय घोटाले के तमाम आरोप हैं। धोखाधड़ी के आरोप में उस पर अमेरिका में मुकदमा भी चल रहा है। दरअसल, देश के कुछ पूंजीपति घरानों को पुख्ता यकीन हो गया है कि धर्म ही ऐसा धंधा है जिसमें मंदी कभी नहीं आती। पूंजी ने सारे कारोबार को अपने हाथ में ले लिया है। सिर्फ यही एक हिस्सा बचा हुआ था जिस पर धर्माचार्यों और महंतों के हाथ में यह कारोबार था। जिस तरह कारपोरेट की पैठ हो रही है उससे यह संकेत साफ है कि आने वाले दिनों में धर्माचार्यों और मठ के महंतों की भूमिका सिर्फ चंदन-टीका लगाने भर रह जाएगी। इसकी सबसे बड़ी प्रयोगशाला काशी विश्वनाथ कॉरिडोर बनता जा रहा है। विस्तारीकरण की योजनाएं जब पूरी तरह मूर्त रूप ले लेंगी तो उनके नफा-नुकसान का ठेका इन्हीं कंपनियों के हवाले कर दिया जाएगा। लगता है कि मोदी सरकार एक लगाओ चार पाओ के प्रचलित मुहावरे को तेजी से प्रचलित कर रही है।"
"जिस तरह से मंदिर की आय बढ़ रही है और उस धन जिस मद में खर्च किया जा रहा है वो यह बताने के लिए पर्याप्त है कि इसके पीछे सोशल वेलफेयर कतई नहीं है। होना यह चाहिए था कि बढ़ती हुई आय स्कूल, कालेज और अस्पतालों पर खर्च हो। जैसा कि देश के दूसरे प्रमुख मंदिरों और ट्रस्टों द्वारा किया जा रहा है। अगर काशी विश्वनाथ कॉरिडोर की प्रयोगशाला अपने मकसद में सफल होती है तो यही माडल देश भर के दूसरे प्रमुख मंदिरों और मठों पर भी जल्द ही लागू हो सकता है। इसकी शुरुआत बनारस के पड़ोसी जिले विंध्याचल में शुरू हो गई है। इन हथकंडों से धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, लेकिन उससे होने वाला मुनाफा किस-किस कारपोरेट की तिजोरी में जाएगा, यह कह पाना अभी कठिन है। किसी भी सनातन धर्म व संस्कृति के लिए चिंता और खतरे की बात है।"
काशी विश्वनाथ मंदिर में नियमित पूजा-अर्चना करने वाले वैभव कुमार त्रिपाठी कहते हैं, "श्रद्धालुओं की दिक्कतों को धता बताकर कॉरिडोर बनाया गया था, फिर सड़क पर लाइन लग रही है, यह शर्म का विषय है। मंदिर का एक चौथाई हिस्सा न्यास के पास है जो गर्भगृह के समीप है। बाकी तीन चौथाई हिस्सा गंगा के किनारे तक का है, जिसे होटल की तर्ज पर विकसित किया जा रहा है। अगर ऐसा होता है तो ये मौज-मस्ती का अड्डा बन जाएगा। अश्लीलता आएगी और फूहड़ता भी आएगी। मौजमस्ती में काशी की पवित्रता खंडित हो जाएगी। बनारस के लोग भले ही चुप हैं, लेकिन उन्हें पता है कि इस शहर को कौन लूट रहा है? मूल सवाल उन पहरेदारों से है जिन्हें बनारसियों ने अपनी चौकीदारी सौंपी थी।"
विश्वनाथ मंदिर के समीप रहने वाले मनीष मर्तोलिया कहते हैं, "धर्म का मूल स्वभाव सेवा है, लेकिन विश्वनाथ कॉरिडोर में धर्म अब धंधा हो गया है। परिसर को धर्मशाला मुक्त करके होटल युक्त कर दिया। अन्नक्षेत्र की जगह फ़ूड कोर्ट बना दिया गया है। मंदिर का सेवा भाव खत्म हो गया है। पहले अमीर-गरीब एक साथ खाना खाते थे। अब अमीर फ़ूड कोर्ट में बैठकर खाना खाएंगे, और गरीब भक्त ललचाते हुए देखेंगे। यह धर्म और आस्था की विचारधारा पर चोट है। हमारे धर्म में अमीरी-गरीबी के लिए भेदभाव नहीं था। अमीरों के लिए यहां धार्मिक मॉल बना दिया है। बनारस के किसी मंदिर में फूड कोर्ट नहीं है। अन्नपूर्णा मंदिर के अन्न क्षेत्र में आज भी मुफ्त में भोजन की व्यवस्था है। विश्वनाथ कॉरिडोर की डोर आखिर गलत हाथों में क्यों सौंपी जा रही है? "
(लेखक बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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