Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

दिल्ली चुनाव: 'आप' बनाम 'बीजेपी', लेकिन बीजेपी मुश्किल में

हर चुनावों में मतदाता अपना पाला बदल रहे हैं जो विशेषज्ञों को चौंका देते हैं, लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त स्पष्ट तौर पर इशारा करती है।
delhi elections

21 जनवरी को नामांकन की आख़िरी तारीख़ के साथ दिल्ली विधानसभा चुनावों की लड़ाई के लिए मंच तैयार हो गया है। चुनाव 8 फरवरी को होगा। इस लड़ाई में तीन दावेदार हैं एक तो आम आदमी पार्टी (आप) जिसकी वर्तमान में सरकार है दूसरा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस (आईएनसी)। अन्य दल भी इस मैदान में होंगे लेकिन आमतौर पर उनकी मौजूदगी से फ़र्क़ नहीं पड़ता है।

ये चुनाव कई मायने में बेहद अहम है। आम आदमी पार्टी जिसने 2013 में राजनीति में क़दम रखा था और और कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई थी जो कुछ ही दिन टिक पाई। इसने साल 2015 में पिछला चुनाव अभूतपूर्व तरीके से जीता। उसे 70 में से 67 सीटों पर जीत मिली और उसे 54% वोट मिले। याद रहे कि इस चुनाव से कुछ महीने पहले ही बीजेपी केंद्रीय सत्ता में आई थी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी काफी लोकप्रिय थे।

2014 के लोकसभा चुनावों मे बीजेपी को 47% वोट मिले थे। बीजेपी ने दिल्ली की सभी सात सीटों पर क़ब्ज़ा कर लिया था। लेकिन 2015 के विधानसभा चुनावों में दिल्ली में भाजपा के धुआंधार प्रचार के बावजूद इसका वोट शेयर केवल 32% रहा। इस चुनाव में इसका वोट प्रतिशत 14 प्रतिशत तक गिर गया।

2015 के चुनाव का दूसरा महत्वपूर्ण पहलू कांग्रेस का पतन था जिसने इससे पहले 15 साल तक दिल्ली पर शासन किया था। इसका वोट शेयर मात्र 10% तक रहा और इसको एक भी सीट नहीं मिल पाया।

Graph.JPG

पाला बदलते मतदाता

लेकिन दिल्ली में पाला बदलने का एक लंबा इतिहास है। यह भविष्यवाणी करना अजीब और कठिन हो सकता है, लेकिन लब्बोलुआब यह है कि दिल्लीवासी अलग-अलग चुनावों में अलग-अलग तरीक़े से मतदान करते हैं, जैसा कि ऊपर दिए गए चार्ट में देखा जा सकता है।

इसलिए, 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा को पटखनी देने के बाद वे पलट गए और 2015 में राज्य सरकार के लिए आप को वोट दिया। ऐसा लगा कि वे लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की तुलना में भाजपा को पसंद कर रहे थे लेकिन वे राज्य सरकार के लिए बीजेपी को नकारते हुए आम आदमी पार्टी को वोट दे रहे थे।

लेकिन ये कहानी और आगे बढ़ जाती है। साल 2017 में दिल्ली में तीन नगर निगमों के लिए चुनाव हुए। यह इस राज्य (जो तकनीकी रूप से विधानसभा वाला केंद्रशासित प्रदेश है) में शासन का न्यूनतम स्तर है। इन निगम चुनावों में भाजपा ने तीनों निगमों में बहुमत हासिल किया और उनका संयुक्त वोट प्रतिशत लगभग 36% था। दो साल से दिल्ली पर राज करने वाली आप को अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा। उसे केवल 26% वोट मिले जबकि कांग्रेस ने 21% वोट प्राप्त करके पहले से अपनी हालत सुधार लिया।

वास्तव में 2017 के निगम चुनावों में कांग्रेस के वोटों में यह उछाल हुआ लेकिन इससे उसे कोई फायदा नहीं हुआ और उधर बीजेपी को तीनों निकायों में ज़्यादा सीटें मिली। यह पिछले दो चुनावों (लोकसभा और विधानसभा) के विपरीत त्रिकोणीय लड़ाई थी।

अंत में 2019 के लोकसभा चुनावों में ये समय पूरी तरह लौट गया और बीजेपी फिर से सभी सात सीटों पर क़ब्ज़ा कर लिया और 56.9% वोट मिले जो कि कांग्रेस के पिछले रिकॉर्ड से थोड़ा कम है। कांग्रेस ने 2009 में 57% से जीत दर्ज किया था।

2019 चुनावों की एक और विशेषता यह थी कि आप का वोट शेयर कांग्रेस के 22.6% की तुलना में घटकर सिर्फ 18% रह गया। ज़ाहिर है 2017 के निगम चुनाव और फिर 2019 के लोकसभा चुनावों से कांग्रेस का पुनरुद्धार शुरू हुआ।

पाला बदलने की प्राथमिकता के कारण

साल 2013 में आप के उदय के बाद से लेकर इन चुनाव परिणामों के अनुसार ऐसा लगता है कि दिल्ली में लोग आम तौर पर दो राष्ट्रीय पार्टियों जैसे भाजपा और कांग्रेस को पसंद करते हैं, लेकिन राज्य विधानसभा के लिए वे आप को पसंद करते हैं। एकमात्र इस निगम चुनाव में यह तीनों दलों के बीच बंटे थे।

यहां एक और पहलू पर ध्यान देने की आवश्यकता है। 2017 के निगम चुनाव में नुकसान के बाद आप ने पूरी तरह से तरीका बदल दिया है। तब तक यह केंद्र सरकार से लड़ने के लिए बहुत ताक़त लगा चुका था क्योंकि मोदी के अधीन भाजपा 2015 की चुभती हार की कभी भी भरपाई नहीं कर सकती थी। इसने आप सरकार पर हथौड़ा चलाया और उसे दिल्ली से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर अपनी शक्तियों के माध्यम से और इसे रोकने के लिए केंद्रीय नौकरशाही का इस्तेमाल करके परेशान करना किया। इसके जवाब में अरविंद केजरीवाल की अगुवाई में आप पूर्ण राज्य के लिए लड़ाई लड़ रही थी। इसको लेकर ड्रामा और ख़ूब जुमलेबाजी हुई।

लेकिन निगम की हार ने केजरीवाल को जगा दिया। उन्होंने ’विकास’ की तरफ ध्यान दिया जो लोकलुभावन थे लेकिन इसने दिल्ली के निम्नवर्ग की विशाल आबादी को काफी राहत पहुंचाई जो चकाचौंध की दुनिया से ग़ायब रहे। सत्ता संभालने के तुरंत बाद पानी और बिजली की दरों में भारी कटौती की घोषणा की गई, शिक्षा के लिए आवंटन में भारी वृद्धि से स्कूल शिक्षा को सुधारा गया और बाद में स्वास्थ्य सेवा, परिवहन आदि जैसे अन्य प्रमुख मुद्दों को सुलझाने का प्रयास किया गया।

'आप' को लाभ

हालांकि, आप ने राजधानी के विभिन्न अन्य गंभीर मुद्दों को नज़रअंदाज़ कर दिया है जिसमें श्रमिकों के लिए मज़दूरी और सामाजिक सुरक्षा के साथ विशाल असंगठित श्रम शामिल है जो इस महानगर में मौजूद है। मेट्रो किराए में 2018 में बढ़ोतरी करते हुए इसने सस्ते परिवहन में इज़ाफ़ा नहीं किया है और ख़ासतौर पर इसने महिलाओं के लिए बसों में किराया मुफ्त करके इसकी भरपाई करने की कोशिश की। यह आम तौर पर पिछली कांग्रेस सरकारों की तुलना में बेहतर वित्त का प्रबंधन भी करता है।

इन सबने बड़े पैमाने पर ग़रीब और निम्न मध्यम वर्ग के लोगों को इकट्ठा किया, हालांकि पूरी तरह से वे आप के साथ नहीं हैं। राष्ट्रीय स्तर पर मोदी के साथ रहने वाले इन लोगों के वर्गों का राज्य स्तर पर समर्थन हासिल करने की उम्मीद में पार्टी ने मोदी और केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ अपनी बयानबाजी से बचने में सावधानी बरती है।

हालांकि सीएए-एनआरसी-एनपीआर(नागरिकता संशोधन अधिनियम, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर, राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर) विरोध प्रदर्शनों के लिए उदासीन प्रतिक्रिया के चलते आप ने दिल्ली में मुस्लिम समुदाय के दिलों में ज़्यादा जगह नहीं बना पाई है। फिर भी ये समाज संभवतः केजरीवाल को समर्थन करेगा क्योंकि उनके पास बीजेपी को हराने का सबसे अच्छा मौका है।

एक मुख्य मुद्दा कांग्रेस का प्रदर्शन है। अगर इस पार्टी का वोट शेयर बढ़ जाएगा तो बीजेपी और खुश होगी क्योंकि आप के कई मतदाताओं खिसक जाएंगे। लेकिन यह संभावना नहीं है और पिछले निगम और लोकसभा परिणामों को एक संकेतक के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।

इस बीच, मोदी और शाह की मेहनत के बावजूद भाजपा खुद दिल्ली में असहाय है। उनके पास राज्य में कोई एकीकृत नेतृत्व नहीं है, कोई योजना नहीं है और सीएए-एनआरसी-एनपीआर के प्रति शत्रुता के मौजूदा माहौल में युवा पीढ़ी के बीच से समर्थन भी खिसक रहा है। तो, अब, इससे आप का फ़ायदा है।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Delhi Elections: It’s AAP vs BJP, But BJP Has its Back to the Wall

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest