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झारखंड: सोरेन सरकार के सामने क्या हैं चुनौतियां?

नई सरकार गठन के महज तीन घंटों के अंदर ही प्रदेश के नए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने नवगठित कैबिनेट की बैठक बुला ली। इस बैठक में तत्काल फैसला लेते हुए पत्थलगड़ी अभियान में शामिल होने तथा सीएनटी/ एसपीटी एक्ट संशोधन का विरोध करने वालों पर पिछली सरकार द्वारा दर्ज़ सभी मुकदमे वापस लेने, महिला उत्पीड़न व यौन शोषण की सुनवाई के लिए हर ज़िले में फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने की घोषणा की गई।
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Image Courtesy: NDTV

झारखंड विधान सभा चुनाव 2019 के दौरान मीडिया से प्रचारित ‘वोट करें राज्य गढ़ें’ नारे को राज्य के मतदाताओं ने गंभीरता से लिया। उन्होंने नई सरकार बनाकर सचमुच में राज्य को नए सिरे से गढ़ने की चुनौती दे दी है। आपको बता दें कि 29 दिसंबर को राजधानी स्थित मोरहाबादी मैदान में भारी तादाद में लोगों की उपस्थित में हेमंत सोरेन ने शपथ लिया था।

सबसे अहम रहा कि नई सरकार गठन के महज तीन घंटों के अंदर ही प्रदेश के नए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने नवगठित कैबिनेट की बैठक बुला ली। इस बैठक में तत्काल फैसला लेते हुए पत्थलगड़ी अभियान में शामिल होने तथा सीएनटी/ एसपीटी एक्ट संशोधन का विरोध करने वालों पर पिछली सरकार द्वारा दर्ज़ सभी मुकदमे वापस लेने, महिला उत्पीड़न व यौन शोषण की सुनवाई के लिए हर ज़िले में फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने की घोषणा की गई। साथ ही राज्य के सभी पारा शिक्षक, आंगनबाड़ी सेविका/सहायिका व पेन्शनधारियों के बकाए की राशि के भुगतान करने और झारखंड सरकार के प्रतीक चिन्ह को बदलने का भी निर्णय लिया गया।

सरकार के इस त्वरित फैसले पर जहां राज्य के हर कोने से लोगों ने नई सरकार को बधाई दी वहीं पिछली भाजपा सरकार के राज्य दमन के शिकार हुए आंदोलनकारी और विशेषकर ग्रामीण आदिवासियों ने राहत की सांस ली।

हालांकि शपथग्रहण से एक दिन पहले मीडिया को दिये विशेष साक्षात्कार में हेमंत सोरेन ने अपनी सरकार की प्राथमिकताओं के संदर्भ में उक्त फैसलों की ही दिशा में कहा था कि सिर्फ कोई एक प्राथमिकता तय करने की बात नहीं है। ब्रांड–विजन और बड़े विचार के साथ आगे बढ़ना होगा। जिसके लिए मैं खुद को भी मानसिक रूप से तैयार कर रहा हूँ। हरेक काम पर सरकार की निगाह रहेगी और हम लोगों का काम होर्डिंग्स–बैनर और अखबारों में कम, लोगों के चेहरे पर ज़्यादा दिखेगा।

जल–जंगल–ज़मीन, सीएनटी/एसपीटी/ पत्थलगड़ी से जुड़े मामलों पर उनकी सरकार जन भावना के अनुरूप काम करेगी। सड़क पर महिलाएं अब दारू– हँड़िया नहीं बेचेंगी, उन्हें रोजगार से जोड़ा जाएगा। शहीदों के परिजनों से लेकर राज्य के सभी खिलाड़ियों तक को रोजगार से जोड़ा जाएगा। जल्द ही पूरे देश में झारखंड की एक अलग पहचान बनेगी .... इत्यादि।  

संभवतः ये पहला अवसर था जब 2014–2019 के बाद 29 दिसंबर के दिन नई सरकार के शपथग्रहण समारोह के मंच पर सभी प्रमुख विपक्षी दलों के राष्ट्रीय प्रतिनिधियों का एकसाथ जुटान हुआ हो। जिसमें एक दिन पहले ही पहुंची पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री के अलावा राजस्थान व छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भी विशेष रूप से शामिल हुए। इसके अलावा राहुल गांधी, राजद नेता तेजस्वी यादव, सीपीएम के सीताराम येचुरी व सीपीआई के डी राजा समेत कई अन्य विपक्षी दलों के वरिष्ठ नेतागण भी शामिल हुए।

दिलचस्प पहलू ये है कि नई सरकार के सुझाव से इस बार गठित हुई विधान सभा का पहला सत्र इसके पुराने भवन में ही 6 से 8 जनवरी तक आहूत होगा। जिसमें नए विधायकों का शपथग्रहण और राज्यपाल का अभिभाषण कार्यक्रम होगा। इस सत्र के प्रोटेम स्पीकर वरिष्ठ झामुमो नेता व विधायक स्टीफन मरांडी होंगे। इस बार एक और नयी बात हुई कि हेमंत सोरेन के मुख्यमंत्री बनते ही झारखंड देश का पहला ऐसा प्रदेश बन गया जिसके राज्यपाल और मुख्यमंत्री दोनों ही आदिवासी (संथाल आदिवासी) हैं।

हेमंत सरकार के गठन की संभावना बनते ही राज्य की सोशल मीडिया में जो मुद्दा सबसे अधिक वायरल हुआ वो था– पत्थलगड़ी मामले में पिछली भाजपा सरकार द्वारा थोपे गए हजारों निर्दोष आदिवासियों पर देशद्रोह के मुकदमे की फौरन वापसी की मांग करते हुए आदिवासियों पर हो रहे भीषण राज्य दमन पर रोक लगाने की अपील की गयी थी। नयी सरकार ने शपथग्रहण के तत्काल बाद ही उस पर फैसला ले लिया।

हेमंत सरकार के वरिष्ठ मंत्री और देश के जनजातीय मामलों के विभाग के पूर्व अध्यक्ष रहे डा. रामेश्वर उरांव ने तो मंत्रीपद की शपथ लेने के दूसरे ही दिन प्रेस वार्ता बुलाकर साफ तौर पर कह दिया कि झारखंड का जिस आदिवासी समाज के लोगों ने देश की आज़ादी में बढ़ चढ़कर भाग लिया और अनगिनत कुर्बानियाँ दीं, वे देशद्रोही हो ही नहीं सकते।

प्रधानमंत्री ने रविवार को हेमंत सोरेन को बधाई देते हुए केंद्र की ओर से राज्य के विकास के लिए बधाई देते हुए हर संभव सहायता दिये जाने का आश्वशन दिया है। केंद्रीय आदिवासी मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा ने भी अपने मंत्रालय की ओर से अपेक्षित सहयोग देने का वादा किया है । जबकि कॉंग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पत्र लिखकर हेमंत सरकार को बधाई देते हुए विकास की गतिशीलता को बहाल करने पर ज़ोर दिया है।
     
मीडिया से जारी बयान में हेमंत सोरेन व उनके साथी मंत्रियों ने स्पष्ट तौर पर कह दिया है कि झारखंड में एनआरसी व CAA नहीं लागू होने दिया जाएगा। झारखंड राज्य की परिकल्पना के अनुरूप काम करने का समय आ गया है। पत्थलगड़ी मामले पर हेमंत सरकार के फैसले ने गेंद अब राज्य की हाईकोर्ट के पाले में डाल दिया है जो काफी दिलचस्प है। क्योंकि हेमंत सरकार केस वापसी के लिए हाईकोर्ट में तो आवेदन देगी तो कोर्ट उसे मान ही लेगा ये ज़रूरी नहीं है। केस के गुण–दोष के आधार पर ही कोर्ट उस पर निर्णय देगा। इसलिए अब सबकी निगाहें माननीय हाईकोर्ट की ओर ही लगी हुई है।

दूसरी ओर सोमवार को हेमंत सोरेन ने यह भी घोषणा की है कि पूर्व की सरकार उनकी सरकार के लिए क्या सौंप कर गयी है तथा राज्य की वित्तीय स्थिति समेत अन्य सभी मामलों पर उनकी सरकार श्वेत–पत्र जारी करेगी। साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया है कि कैबिनेट की पहली बैठक के फैसले से पता चल गया होगा हमारा रुख क्या है!

निस्संदेह अबुआ दिशुम अबुआ राज का नारा लंबे समय से आदिवासी समाज का सर्वप्रिय नारा रहा है। माना जाता है कि संथाल–हूल से इसकी उत्पत्ति हुई थी। लेकिन आज के समकालीन संदर्भों में यह किस प्रकार से साकार किया जा सकेगा नयी सरकार के लिए यह एक चुनौतीपूर्ण कार्यभार है। खासकर तब जब हम सब चाहे अनचाहे एक ग्लोबल आर्थिक चेन में आबद्ध होकर चल रहें हैं तो ऐसे में जनआकांक्षाएँ लोकल हो ही सकती हैं लेकिन जमीनी स्तर पर उन्हें भी एक व्यापक फ़लक पर ले जाना ज़रूरी है। तभी हमारी संवैधानिक मान्यताओं के वास्तविक लोकतान्त्रिक परंपरा की स्थापना हो सकेगी। साथ ही सबसे बढ़कर आज जिस संविधान को बचाने की जंग लड़ी जा रही है, उसकी भी मर्यादाओं की स्थापना हो सकेगी ..... !  

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