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झारखंड चुनाव : क्या रोज़गार का मसला बीजेपी की जीत को कठिन बनाएगा?

एनएसएसओ की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ झारखंड में वर्ष 2011-12 में बेरोज़गारी दर 2.5 प्रतिशत थी। वर्ष 2017-18 में यह बढ़कर 7.7 प्रतिशत हो गई।
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झारखंड की एक चुनावी रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, "बीजेपी सरकार के ईमानदार प्रयास की वजह से ही झारखंड के गांव-गांव में सड़कें पहुंची हैं, गांव-गांव में बिजली पहुंच रही है। बदलते हुए हालात में यहां रोज़गार के नए साधन तैयार हो रहे हैं। नई बसें, ट्रक, टेम्पो के माध्यम से तो रोज़गार मिल ही रहा है, अब यहां एक नया स्टील प्लांट भी जल्द ही तैयार होने वाला है।”

अब राज्य में ट्रक, टेम्पो के माध्यम से कितना रोज़गार मिल रहा है इसकी बानगी उसी रैली में मिल जाती है। उसी चुनावी रैली में शामिल होने वाले बीजेपी कार्यकर्ता आतिश कुमार सिंह रोज़गार के मोर्चे पर सरकार को असफल मानते हैं। वे कहते हैं, "बीजेपी सरकार के शासनकाल में रोज़गार नहीं मिल पा रहा है। हम युवाओं की सबसे बड़ी उम्मीद रोज़गार की है क्योंकि हम देश का भविष्य हैं लेकिन हमारे पास नौकरियां नहीं हैं।"

यह सिर्फ़ आतिश की ही बात नहीं है। झारखंड चुनाव में रोज़गार और व्यापार करने की स्थितियां मुख्य मुद्दे हैं। कुछ मतदाताओं का मानना है कि राज्य सरकार और मुख्यमंत्री इसके लिए ज़िम्मेदार हैं। यह बात आईएएनएस और सी-वोटर झारखंड जनमत सर्वेक्षण में भी सामने आई है।

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हमने मतदाताओं से पूछा कि इस समय उनके लिए सबसे बड़ा मुद्दा क्या है? इस पर लगभग 25 फ़ीसदी योग्य मतदाताओं ने कहा कि इस चुनाव में उनके लिए रोज़गार और व्यवसाय करने से संबंधित मामले सबसे महत्वपूर्ण हैं।

ग़ौरतलब है कि देश के सभी राज्यों में बड़े पैमाने पर सर्वे कराने वाली सरकारी संस्था राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक़ झारखंड समेत देश के 11 राज्यों में बेरोज़गारी की दर सबसे ज़्यादा है। झारखंड में वर्ष 2011-12 में बेरोज़गारी दर 2.5 प्रतिशत थी। वर्ष 2017-18 में यह बढ़कर 7.7 प्रतिशत हो गई।

आपको बता दें कि 3.30 करोड़ आबादी वाले इस राज्य में 50 फ़ीसदी लोग खेती-बाड़ी पर निर्भर हैं। वहीं बाक़ी आधी आबादी माइनिंग, सर्विस सेक्टर, निर्माण व वित्तीय कार्यों के ज़रिये जीवनयापन करती है। अगर ग़रीबी की बात करें तो राज्य के 39.1% लोग ग़रीबी रेखा से नीचे हैं जबकि राष्ट्रीय स्तर पर ये दर 29.8 % है। ग़ौरतलब है कि ग़रीबी और बेरोज़गारी की मार झेल रहे झारखंड में पिछले पांच साल से भाजपा की सरकार है। इसके अलावा केंद्र में भी बीजेपी की सरकार है। इसका प्रचार यहां डबल इंजन वाली सरकार के रूप में किया जा रहा है लेकिन रोज़गार के मोर्चे पर यह सरकार बुरी तरह असफल दिख रही है।

इसका नज़ारा पूरे प्रदेश में दिख जा रहा है। बड़े बड़े होर्डिंगों और बैनरों से पटे झारखंड की राजधानी रांची में ज़्यादातर लोग नौकरी न मिल पाने के लिए रघुवर सरकार को ज़िम्मेदार मान रहे हैं।

बंद होते उद्योग, बढ़ती बेरोज़गारी

रांची में रह कर पढ़ाई करने वाले युवा राकेश कहते हैं, "पूरे झारखंड में नौकरी नहीं है। नौकरी के लिए पलायन यहां का सबसे बड़ा मसला था जिसे सरकार पिछले पांच साल में रोक नहीं पाई है। यहां जो सरकारी नौकरियां मिल भी रही हैं उसमें बड़ा हिस्सा कांट्रैक्ट पर मिलने वाली नौकरियों का जिनका कोई भविष्य नहीं होता, जिनको यह नौकरियां मिल गई हैं वह भी यहीं रांची में आपको प्रदर्शन करते हुए मिल जाएंगे। इसके अलावा इंडस्ट्री में जो नौकरियां थीं वह भी मंदी के चलते चली गई हैं। पिछले महीने से अख़बार में इंडस्ट्री से सिर्फ़ नौकरियाँ जाने की ख़बरें आ रही हैं।"

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झारखंड के इंडस्ट्रियल हब जमशेदपुर के आदित्यपुर में काम करने वाले शिवशंकर का भी यही कहना है। गाड़ियों में काले डस्ट की लोडिंग करने वाले शिवशंकर के परिवार में तीन बेटियां, पत्नी, मां और भाई हैं। वो कहते हैं, "पहले काम ज़्यादा होता था तो कमाई बेहतर होती थी लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब किसी दिन 300 रुपये तक की कमाई हो पाती है। ज़्यादातर कंपनियां बंद हो गई हैं तो कई दिन तक ख़ाली बैठना पड़ रहा है।"

वहीं, आटो मोबाइल इंडस्ट्री में काम करने वाले अशोक सिंह कहते हैं, "मंदी के चलते मज़दूरों को काम नहीं मिल रहा है। कंपनियां उन्हें घर बैठा दे रही हैं लेकिन उनका घर कैसे चल रहा है इसके बारे में कोई बात नहीं कर रहा है। लेकिन सरकार को इससे कोई लेना देना नहीं है।"

आपको बता दें कि स्टील, ऑटोमोबाइल और रियल इस्टेट को अर्थव्यवस्था का आधार कहा जाता है। लेकिन, देशभर में आर्थिक मंदी का जो माहौल बना है, उसमें झारखंड में भी इन तीनों सेक्टर की हालत ख़स्ता है।

मीडिया में आई ख़बरों के मुताबिक़ पिछले पांच महीने (मार्च से जुलाई 2019) में राज्य में 125 से ज़्यादा स्टील प्लांट बंद हो चुके हैं। ये इकाइयां स्मॉल स्केल इंडस्ट्रीज़ और एमएसएमई से जुड़ी हैं। जमशेदपुर, गिरिडीह, कोडरमा, रामगढ़ और रांची के कई स्टील प्लांटों में ताले लटक रहे हैं। जहां उत्पादन हो रहा है, वहां भी स्टील की क़ीमतें कम होने से हालत ख़राब है।

एक अनुमान के मुताबिक़ लागत से 20 फ़ीसदी तक स्टील की क़ीमत कम हुई है। इधर, बड़ी कंपनियों ने भी अपने अस्थायी कर्मचारियों की छंटनी की है। कुल मिलाकर लाखों लोग प्रत्यक्ष तौर पर बेरोज़गार हुए हैं।

इसे लेकर विपक्षी पार्टियों ने सरकार को चुनाव के पहले से ही घेरना भी शुरू कर दिया था। सबसे तीखा हमला पूर्व सीएम एवं झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सरकार को अब यह बताना चाहिए कि विगत पांच वर्षों में निवेश इवेंट के नाम पर कितने ख़र्च हुए, कितने उद्योग एवं फ़ैक्ट्री लगीं, कितनों को रोज़गार मिला और कितने उद्योग बंद हुए। उद्योग विभाग को इस पर श्वेत पत्र जारी करना चाहिए।

उन्होंने आरोप लगाया कि केवल मोमेंटम झारखंड के नाम से 900 करोड़ रुपये जनता की गाढ़ी कमाई के ख़र्च हुए, 300 कंपनी आई मगर एक न तो फ़ैक्ट्री खुली और न ही लोगों को रोज़गार मिला। बदले में सैकड़ों फ़ैक्ट्री एवं उद्योग में ताले लग गए।

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पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि केवल आदित्यपुर जो मुख्यमंत्री के गृह क्षेत्र में है, एक हज़ार से अधिक फ़ैक्ट्री बंद हो गई। 20 लाख से अधिक लोग बेरोज़गार हो गए। टेल्को जैसी कंपनी पर ख़तरा मंडरा रहा है। रामगढ़ में कई फ़ैक्ट्री बंद हो गई। हिंडाल्को की स्थिति अच्छी नहीं है। 5000 से अधिक लोगों की छंटनी हो गई। गिरिडीह में स्पंज आयरन का उत्पादन अब आधे से अधिक रह गया है। माइनिंग इंडस्ट्रीज़ भी बंद होने की कगार पर हैं। मतलब पांच वर्षों में एक भी उद्योग एवं फ़ैक्ट्री नहीं लगे मगर हज़ारों बंद हो गए।

चुनावी वादे

आपको बता दें कि रोज़गार के मसला झारखंड के सभी चुनावी पार्टियों के घोषणापत्र में प्रमुखता से उठाया गया है। सत्तारूढ़ भाजपा ने अपने चुनाव घोषणापत्र में वादा किया है कि फिर से सत्ता में आने पर वह झारखंड को 2024 तक पूर्वी भारत का ‘लॉजिस्टिक हब’ बना देगी और प्रत्येक ग़रीब परिवार के एक सदस्य को नौकरी देगी, जबकि विपक्षी कांग्रेस ने हर परिवार के कम से कम एक सदस्य को नौकरी देने का वादा किया है।

कांग्रेस ने सरकार बनने के 6 माह के भीतर सभी सरकारी रिक्तियों को भरने और प्रत्येक परिवार से एक व्यक्ति को नौकरी देने की बात कही है। कांग्रेस ने यह भी कहा है कि जब तक नौकरी का यह वादा पूरा नहीं कर पायेगी, तब तक वह परिवार के एक सदस्य को बेरोज़गारी भत्ता देगी।

वहीं, झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने अपने ‘निश्चय पत्र’ में निजी क्षेत्र में राज्य के 75 प्रतिशत लोगों को रोज़गार सुनिश्चित कराने और सरकारी नौकरियों में झारखंड के पिछड़े समुदाय को 27 प्रतिशत, आदिवासियों को 28 प्रतिशत एवं दलितों को 12 प्रतिशत आरक्षण देने का वादा किया है। पार्टी ने रिक्त पड़े सभी सरकारी पदों पर दो वर्ष के भीतर भरने और स्नातक बेरोजगारों को 5,000 रुपये तथा स्नातकोत्तर बेरोज़गारों को 7,000 रुपये प्रति माह बेरोज़गारी भत्ता देने का भी वादा किया है।

रोज़गार के सवाल पर झामुमो के प्रवक्ता और महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य न्यूज़क्लिक से कहते हैं, "अगर हमारी सरकार आती है तो हम लोग छह महीने के भीतर पांच लाख खाली सरकारी पद भरेंगे। इसका अलावा जो बच जाएंगे उन्हें बेरोज़गारी भत्ता मिलेगा। जितने ठेके हैं उसमें स्थानीय लोगों को प्राथमिकता दी जाएगी।"

वहीं, बीजेपी नेता रघुवर दास द्वारा सवा लाख युवाओं को रोज़गार दिए जाने की बात की गई है। पार्टी के प्रवक्ता दीनदयाल वर्णवाल कहते हैं, "लिम्का बुक रिकॉर्ड में दर्ज किया गया है कि एक दिन में 26 हज़ार युवाओं को निजी कंपनियों में रोज़गार दिया गया है। इसके अलावा सरकार की तमाम नीतियां ऐसी रही हैं जिनसे बड़े पैमाने पर रोज़गार का सृजन हुआ है। हर तरह के रोज़गार में स्थानीय लोगों को प्राथमिकता दी गई है। इसका परिणाम यह हुआ है कि जनता का भरपूर समर्थन हमें मिल रहा है।"

ग़ौरतलब है कि झारखंड विधानसभा चुनाव पांच चरणों में हो रहा है। राज्य में 30 नवंबर को पहले चरण और सात दिसंबर को दूसरे चरण के लिए मतदान हुआ। वहीं, 12 दिसंबर को तीसरे चरण, 16 दिसंबर को चौथे और 20 दिसंबर को पांचवें एवं आख़िरी चरण का मतदान होगा। मतगणना एक साथ 23 दिसंबर को होगी।

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