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झारखंड: दल बदलते ही नेता जी के बदल गए सुर-ताल, उठ रहे हैं सवाल 

चम्पई सोरेन के भाजपा में जाने पर इंडिया गठबंधन के नेताओं, झारखंड के आंदोलनकारी, एक्टिविस्ट आदि ने कई सवाल खड़े किए हैं।
champai soren

सत्ता-सियासत में जब कतिपय नेता विशेष अपने “स्व हित” का ग़ुलाम बन जाता है तो अपनी ही कही बातों से वह किस क़दर पलट जाता है, इसका साक्षात् नज़ारा झारखंड प्रदेश की मौजूदा सियासत में किया जा सकता है। 

मसलन, “भाजपा नेता आरोप लगाते हैं कि झारखंड में घुसपैठिये आकर डेमोग्राफी चेंज कर रहे हैं, ये घुसपैठिये आते कहाँ से हैं? और उस अंतर्राष्ट्रीय बार्डर पर चौकीदारी का जिम्मा झारखंड सरकार को कब से मिला? राजनीति करने की जगह उस सीमा को “सील” क्यों नहीं किया जाता? यह गलती किसकी है?” 

महज चन्द दिन पहले ही प्रदेश के मुख्यमंत्री पद पर आसीन नेता जी (चम्पई सोरेन) अपने ट्वीट  के जरिये विपक्ष पर हमलावर होकर यह सवाल पूछे थे। 

आज जब उन्होंने दल-बदल कर लिया तो फ़ौरन अपने सुर में बदलाव लाते हुए मीडिया संबोधन में कह रहे हैं कि- बांग्लादेशी घुसपैठ निश्चित रूप से रुकेगा। इतना ही नहीं वे यह भी दलील देते हैं कि- बंगलादेशी घुसपैठ के कारण संताल आदिवासी डेमोग्राफी में गिरावट को रोकने के लिए नयी पार्टी में गए हैं। 

अचम्भा तो यह भी कि चंद दिनों पूर्व ही जिस INDIA गठबंधन की ओर से राज्य के मंत्री और फिर  मुख्यमंत्री पद की शोभा बढ़ा रहे थे, पाला बदलते ही ज़ोरदार शब्दों में उसी गठबंधन और उसके घटक दल कांग्रेस को आदिवासियों का सबसे बड़ा दुश्मन बताने लगते हैं। 

राष्ट्रीय मीडिया संबोधन के अनुसार ये “अनुभवी नेता” हैं माननीय चम्पई सोरेन जी, जो हाल हाल तक अपने सोशल मीडिया पोस्ट में सफाई देते फिर रहे थे कि- मैं कहीं नहीं जा रहा हूँ। लेकिन अचानक से राजधानी रांची में आयोजित भारतीय जनता पार्टी के “मिलन समारोह” के भव्य मंच पर अवतरित हो जाते हैं। भाजपा में शामिल होने की घोषणा करते हुए न सिर्फ पार्टी का “प्रतीक चिह्न वाला पट्टा” धारण करते हैं बल्कि पूरे उत्साह से “जय श्री राम” का नारा भी लगाते हैं।

देखा जाय तो अभी यही प्रकरण झारखंड की राजनीति में सबसे अधिक “ब्रेकिंग न्यूज़” का मीडिया-मसाला बना हुआ है। 

जाहिर है कि इस पर सियासी क्रिया-प्रतिक्रिया होगी ही। जिसमें उक्त “अनुभवी नेता जी” द्वारा सोशल मीडिया और मीडिया संबोधनों के साथ साथ मंच संबोधनों में जो दलीलें दी जा रहीं हैं, उसे लेकर आदिवासी समुदाय के प्रतिनिधियों और सोशल एक्टिविस्ट द्वारा उठाये जा रहे सवालों पर वे कुछ नहीं बोल रहे हैं। 

चर्चित आदिवासी आन्दोलनकारी दयामनी बारला ने मीडिया संबोधन के माध्यम से चम्पई सोरेन जी पर अपने विधान सभा क्षेत्र और झारखंडी आदिवासी-मूलवासी जनता के साथ धोखा देने का आरोप लगाया है। साथ ही उनसे पूछा है कि- आपके मन में “पीड़ा” है तो सबके मन में भी “पीड़ा” है कि जिन उम्मीदों से लोगों ने आपको पिछले कई वर्षों से क्षेत्र के विधायक के रूप में निर्वाचित किया, आप उनकी जिम्मेवारियों को पूरे करने से क्यों मुकर गए? आपकी पीड़ा है कि आपको उचित सम्मान नहीं मिला, तो महागठबंधन की सरकार ने आपको महत्वपूर्ण मंत्री और मुख्यमंत्री भी बनाया, यह किसका सम्मान था? जिसकी जवाबदेही से क्यों पीछे हटे? जबकि आज भाजपा से कह रहे हैं कि- एक कार्यकर्त्ता के रूप में जो भी जिम्मेवारी मिलेगी, पूरी निष्ठा से पूरी करूँगा।

संताल परगना क्षेत्र में आदिवासियों की घटती डेमोग्राफी पर बहुत चिंता दिखा रहें हैं, तो क्या बतायेंगे कि पिछले सात बार से जिस क्षेत्र के आप विधायक रहे उस खरसाँवा क्षेत्र समेत पूरे कोल्हान और आदिवासी बाहुल्य इलाको में आदिवासियों की संख्या तेज़ी से क्यों घटती जा रही? आपके विधान सभा क्षेत्र के और पूरे कोल्हान इलाके में आजादी के पहले से ही आदिवासी समाज के संरक्षण के लिए ‘विल्किल्सन रूल’ लागू है, फिर भी जब बाहरी समाज और कंपनियों द्वारा आदिवासी ज़मीनों की धड़ल्ले से जारी लूट जो आपकी आँखों के सामने ही हो रही है, इस पर अब तक क्या किया? 

आप किसे भ्रम में डाल रहें हैं कि- भाजपा में आदिवासियों के हित के लिए ही गए हैं, तो क्या आप नहीं जानते रहें हैं कि झारखंड से लेकर पूरे देश स्तर पर सबसे बड़ी आदिवासी विरोध की राजनीतिक पार्टी है तो वो भाजपा ही है। जिसने आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों पर हमेशा से खुलकर हमला बोला है। आदिवासियों के रक्षा कवच- सीएनटी/ एसपीटी/विल्किल्सन रूल और संविधान कि पांचवी अनुसूची के नियम कानूनों की धज्जियां उड़ाने का काम तो सब अधिक भाजपा ने ही किया है, फिर किस आदिवासी हित की बात उठा रहें हैं?  

कई आदिवासी संगठनों के युवा एक्टिविस्ट में इस घटना से गहरा क्षोभ है। जो अपने सोशल मीडिया पोस्ट में तीखे आरोप लगाते हुए सवाल पूछ रहे हैं कि- जब आपको पार्टी से कोई शिकायत थी तो इतने दिनों तक क्यों ख़ामोश रहे? जबकि सरकार तक में आपका दर्जा काफी महत्वपूर्ण रहा।  

मुख्यमंत्री पद से मुक्त किये जाने पर भी जारी चर्चाओं में सवाल पूछे जा रहे हैं कि- आप तो अच्छी तरह से जान रहे थे कि किस तरह के राजनीतिक षड्यंत्र के तहत प्रदेश की सरकार को अस्थिर करने के लिए हेमंत सोरेन जी को जेल भेजा गया। आपको मुख्यमंत्री की जिम्मेवारी देने का निर्णय महागठबंधन का था और जब हेमंत सोरेन रिहा होकर बाहर आये तो उन्हें फिर से मुख्यमंत्री बनाने का फैसला भी महागठबंधन ने ही लिया, फिर इसमें आपको अपमानित करने का सवाल कहाँ से आ गया? 

कुछेक आदिवासी एक्टिविस्ट भाजपा में जाने के फैसले पर कड़ा विरोध जताते हुए झामुमो की भी आलोचना की है।

वहीं वाम दलों कि ओर से भाकपा माले राज्य सचिव ने प्रतिक्रया दी है कि माननीय चम्पई सोरेन जी, पहले आपकी ज़ुबान से झारखंड बोलता था अब आपकी ज़ुबान से कॉर्पोरेट कंपनीपरस्त भ्रष्ट नेता बोल रहे हैं। आप झारखंड के साथ विश्वासघात कर रहें हैं, कोल्हान कैसे आपके साथ हो सकता है? 

उक्त टिपण्णी में काफी दम है। क्योंकि कोल्हान का इलाका अरसे से झामुमो का मजबूत गढ़ कहा जाता है। जहां कुल 14 विधान सभा की सीटों में से 11 पर झामुमो का कब्जा है शेष 2 पर भी इंडिया गठबंधन के तौर पर कांग्रेस की जीत हुई है। एक सीट पर निर्दलीय के रूप में भाजपा प्रत्याशी के तत्कालीन मुख्यमंत्री को सरयू राय ने शिकस्त दी थी। 

फिलहाल, इस प्रकरण का अंतिम निष्कर्ष तो आसन्न विधान सभा चुनाव के परिणाम ही तय करेंगे। इस बीच कोल्हान क्षेत्र के वरिष्ठ झारखंड आन्दोलाकारी व ‘गुवा-आन्दोलन’ के चर्चित नायक रहे पूर्व विधायक बहादुर उराँव द्वारा घूम-घूम कर लोगों में बांटा जा रहा ‘मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और चम्पई सोरेन के नाम जारी खुला-पत्र’ भी चर्चाओं में है। जिसमें उन्होंने काफी कड़े शब्दों का इस्तेमाल करते हुए लिखा है कि- झारखंड मुक्ति मोर्चा जैसी जुझारू ज़मीनी पार्टी छोड़कर लालच में आकर भाजपा जैसी सांप्रदायिक पार्टी में जाना झारखंड की जनता कभी बर्दाश्त नहीं करेगी। वहीं हेमंत सोरेन पर भी सवाल उठाया है कि- पार्टी का पारिवारिक झगड़ों का चुपचाप तमाशा देखना भी कहाँ तक उचित है? 

झारखंड की जनता और नेताओं को आज यह सोचने की ज़रूरत है कि उन्हें झारखंड के मुद्दों के साथ रहना है या इसके विरोधियों के साथ? 

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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