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गुजरात में अब जिग्नेश मेवानी विपक्ष का बड़ा चेहरा होंगे

जिग्नेश मेवानी की जीत बहुत मायने रखती है। उन्हें हराने के लिए सिर्फ भाजपा ने ही नहीं बल्कि आम आदमी पार्टी और असदउद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने भी पूरी ताक़त लगा दी थी।
Jignesh Mevani

गुजरात विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस को ऐतिहासिक हार का सामना करना पड़ा है। उसके कई दिग्गज नेता बुरी तरह हार गए हैं। ऐसे में मेहसाणा जिले के वडगाम निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस के उम्मीदवार जिग्नेश मेवानी की जीत बहुत मायने रखती है। उन्हें हराने के लिए सिर्फ भारतीय जनता पार्टी ने ही नहीं बल्कि आम आदमी पार्टी और असदउद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने भी पूरी ताकत लगा दी थी।

मेवानी ने वडगाम सीट 4928 वोटों से जीती है। चुनाव आयोग के मुताबिक जिग्नेश मेवानी को 94765 वोट मिले जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी भाजपा के मणिभाई जेठाभाई वाघेला को 89837 वोट मिले। मेवानी को 48 फीसदी और भाजपा उम्मीदवार को 45.51 फीसदी वोट मिले हैं।

वडगाम के आंकड़े यह बताने को काफी है कि यहां पर जीत कितनी मुश्किल से मिली है लेकिन यह जिग्नेश मेवानी की अपनी जीत है और इस विधानसभा सीट पर दलित-मुस्लिम मतदाताओं का जो गठजोड़ 2017 में बना था, वह अभी भी कायम है। 2017 में यहां से जिग्नेश मेवानी निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीते थे। कांग्रेस ने उस चुनाव में इस सीट पर अपना उम्मीदवार नहीं उतारा था और जिग्नेश को समर्थन दिया था। उस चुनाव में प्रधानमंत्री ने अपनी चुनावी रैलियों में उन्हें हार्दिक पटेल और अल्पेश ठाकोर के साथ निशाना बनाते हुए बहुत ही छिछले सांप्रदायिक कटाक्ष भी किए थे। हार्दिक पटेल और अल्पेश ठाकोर इस बार भाजपा के टिकट पर विधानसभा में पहुंचे हैं। उस चुनाव में जिग्नेश को हराने के लिए भी हर मुमकिन हथकंडा अपना गया था लेकिन वे जीत गए थे। जीतने के बाद उन्होंने सत्ता पक्ष के साथ जाने की बजाय विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस का साथ दिया।

पेशे से वकील जिग्नेश ने विधानसभा में और विधानसभा के बाहर भी गुजरात के दलितों और अल्पसंख्यकों के मुद्दे उठाना शुरू किए। गुजरात के ऊना जिले में जब दलित युवकों को नंगा कर पीटा गया तो मेवानी उनके लिए भी उठ खड़े हुए और एक आंदोलन छेड़ दिया। अपने निर्वाचन क्षेत्र के गांवों में पानी की भीषण समस्या को लेकर भी उन्होंने लंबा जनांदोलन चलाया और सरकार को समस्या हल करने के लिए बाध्य किया। छात्र आंदोलन के दौरान उन्होंने जेएनयू में पहुंचकर कन्हैया कुमार और उमर खालिद का समर्थन किया। नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ आंदोलन शुरू होने पर जामिया मिलिया के मंच पर भी आंदोलनकारियों को समर्थन देने पहुंचे।

अपनी इसी सक्रियता की वजह से जिग्नेश भाजपा सरकार की नजरों में खलनायक बन गए। भाजपा के नेताओं ने उन्हें अर्बन नक्सल भी कहा। गुजरात में उन पर तरह-तरह के फर्जी मुकदमे लाद दिए गए। गिरफ्तार किया गया। यहां तक कि असम पुलिस भी उन्हें उठा ले गई, लेकिन अदालत ने पुलिस को फटकार लगाते हुए उन्हें बरी कर दिया।

इसलिए वडगाम से जिग्नेश मेवानी की जीत को कई संदर्भों में देखा जा सकता है। यह सही मायने वंचित और पीड़ित तबकों की जीत है, जिनके अधिकारों के लिए जिग्नेश संघर्ष करते हैं। यह उस अल्पसंख्यक समुदाय की जीत है, जो उनके हर आंदोलन में कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा होता रहा है।

हालांकि वडगाम से मेवानी को हराने के लिए व्यूह रचना सिर्फ भाजपा ने ही नहीं की थी, बल्कि उसका साथ देने के लिए आम आदमी पार्टी और ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम भी मौजूद थी। तमाम नागरिक संगठनों ने आम आदमी पार्टी और ओवैसी से अनुरोध किया था कि वडगाम से वे अपने उम्मीदवार नहीं उतारें और मुकाबला कांग्रेस-भाजपा के बीच होने दें, लेकिन उन्होंने अपने उम्मीदवार उतारे। कुल मिला कर वडगाम सीट पर कुल 11 उम्मीदवार मैदान में उतरे।

वडगाम विधानसभा क्षेत्र बनासकांठा जिले का हिस्सा है और पाटन लोकसभा क्षेत्र के तहत आता है। यह सीट अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित है। यह गुजरात के ऐसे निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है जहां मुस्लिम मतदाता भी बहुतायत में हैं। निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जिग्नेश मेवानी ने 2017 का चुनाव 19,696 वोटों से जीता था। इस बार उनका मुकाबला कांग्रेस से भाजपा में गए मणिलाल वाघेला के अलावा आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार दलपत भाई दया भाई भाटिया और एआईएमआईएम के उम्मीदवार कल्पेश सुंधिया रमेश भाई से भी था।

वडगाम कांग्रेस और सत्तारूढ़ भाजपा के लिए एक पारंपरिक युद्ध का मैदान रहा है। 2017 में निर्दलीय उम्मीदवार जिग्नेश मेवानी ने भाजपा के विजयकुमार चक्रवर्ती को हराया था। इस बार भाजपा ने कांग्रेस से आए पूर्व विधायक और कारोबारी मणिलाल वाघेला को टिकट दिया था ताकि चुनाव लड़ने वाले के पास संसाधनों की कमी न रहे। लेकिन भाजपा का यह टोटका भी कारगर नहीं हुआ।

2012 में कांग्रेस के टिकट पर मणिलाल वाघेला विजयी हुए थे, जबकि 2007 में भाजपा के फकीर वाघेला ने कांग्रेस के दौलतभाई परमार को हराया था। 2022 में जिग्नेश मेवानी ने प्रतिकूल हालात में यह सीट निकाली है। आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार दलपत भाई दया भाई भाटिया को 4194 वोट मिले हैं। यानी अगर यहां आम आदमी पार्टी का उम्मीदवार नहीं होता तो मेवानी की जीत का अंतर और बढ़ जाता। इसी तरह ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के प्रत्याशी कल्पेश सुंधिया को 1899 मिले, जो एक फीसदी से कुछ ज्यादा रहे।

इस सीट पर एक निर्दलीय प्रत्याशी भी एक हजार से ज्यादा वोट ले गया। इसलिए जिग्नेश मेवानी की जीत का अंतर इस बार कम रहा। मेवानी के मुकाबले जो प्रत्याशी मैदान में थे, वे बाकायदा पूरी ताकत से चुनाव लड़ते हुए दिखे। पूरे निर्वाचन क्षेत्र में शराब और पैसा पानी की तरह बहाया गया। यानी मेवानी को हराने के लिए पूरी तैयारी योजनाबद्ध तरीके से की गई थी लेकिन उन्हें हराने का भाजपा का मंसूबा पूरा नहीं हो सका। अब मेवानी फिर विधानसभा में होंगे और सत्ता पक्ष की आंखों में फिर चुभेंगे। चूंकि इस बार कांग्रेस की ज्यादा सीटें नहीं आई हैं, लिहाजा भाजपा सरकार को घेरने का बड़ा दारोमदार जिग्नेश पर ही होगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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