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केरल सरकार ने CAAको सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, असंवैधानिक घोषित करने की मांग

संशोधित नागरिकता कानून को न्यायालय में चुनौती देने वाली मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व वाली केरल सरकार पहली राज्य सरकार है। केरल विधानसभा ने ही सबसे पहले इस कानून के खिलाफ प्रस्ताव भी पारित किया था।
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दिल्ली : केरल सरकार ने मंगलवार को संशोधित नागरिकता कानून (CAA) को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी। इस याचिका में केरल सरकार ने न्यायालय से अनुरोध किया है कि इस कानून को संविधान में प्रदत्त समता, स्वतंत्रता और पंथनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन करने वाला करार दिया जाये।

संशोधित नागरिकता कानून को न्यायालय में चुनौती देने वाली मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व वाली केरल सरकार पहली राज्य सरकार है। केरल विधानसभा ने ही सबसे पहले इस कानून के खिलाफ प्रस्ताव भी पारित किया था।

शीर्ष अदालत में दायर अपने वाद में केरल सरकार ने न्यायालय से अनुरोध किया है कि संशोधित नागरिकता कानून, 2019 को संविधान के अनुच्छेद 14 (समता), अनुच्छेद 21 (जीने का अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 25 (अंत:करण की स्वतंत्रता और धर्म को अबाध रूप से मानने और उसका आचरण करने की स्वतंत्रता) का उल्लंघन करने वाला घोषित किया जाये।

शीर्ष अदालत ने संशोधित नागरिकता कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली करीब पांच दर्जन याचिकाओं पर 18 दिसंबर, 2019 को केन्द्र सरकार को नोटिस जारी किया था। न्यायालय ने केन्द्र को इन याचिकाओं पर जनवरी के दूसरे सप्ताह तक अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था।

संशोधित नागरिकता कानून 10 जनवरी को राजपत्र में अधिसूचित किये जाने के साथ ही देश में लागू हो गया है। इस कानून में 31 दिसंबर, 2014 तक पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आये हिन्दू, सिख, ईसाई, पारसी, जैन और बौद्ध समुदाय के सदस्यों को भारत की नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है।

शीर्ष अदालत ने इन याचिकाओं पर सुनवाई के लिये 22 जनवरी की तारीख निर्धारित की है।

शीर्ष अदालत ने इस कानून को चुनौती देने वाली कुल 59 याचिकाओं पर केन्द्र सरकार को नोटिस जारी किया है।

शीर्ष अदालत में नागरिकता संशोधन कानून की वैधता को चुनौती देने वालों में कांग्रेस के जयराम रमेश, तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा, राजद नेता मनोज झा, एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, पीस पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, गैर सरकारी संगठन ‘रिहाई मंच’ और ‘सिटीजंस अगेन्स्ट हेट’, जमीयत उलेमा-ए-हिन्द, आल असम स्टूडेन्ट्स यूनियन (आासू) , अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा और कानून के कई छात्र शामिल हैं।


NPR को भी चुनौती
आपको बता दें कि इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (National Population Register : NPR) के लिए अधिसूचना को चुनौती देने वाली एक याचिका भी दायर की गई है। 'माइनॉरिटी फ्रंट' नाम के एक एनजीओ ने सीएए के साथ साथ एनपीआर को भी चुनौती दी है। कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि एनपीआर, नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजंस (NRC) के लिए पहला कदम है। याचिका के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले ही 22 दिसंबर को अपने भाषण में NRC के साथ आगे न बढ़ने की घोषणा कर चुके हैं तो NPR की तैयारी "राष्ट्र के समय, ऊर्जा और मूल्यवान संसाधनों की बर्बादी" के अलावा कुछ भी नहीं है।
(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)
 

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