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ख़बरों के आगे-पीछे : भाजपा पर भारी पड़ सकती है मोरबी की मार

गुजरात चुनाव में मोरबी हादसा किस तरह भीतर-भीतर भाजपा को डरा रहा है, क्यों प्रचार में उतारे गए यूपी के मुख्यमंत्री योगी अपना बुलडोज़र मॉडल मोरबी में दिखा रहे थे। साथ ही राहुल गांधी और केजरीवाल की राजनीति का फ़र्क़ भी इन दिनों साफ़ हो रहा है। बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन
morbi bridge collapse
फ़ोटो साभार: पीटीआई

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की गुजरात में पहली चुनावी सभा मोरबी में हुई। मोरबी वह जगह है, जहां मच्छू नदी पर बना अंग्रेजों के जमाने का एक पुल पिछले दिनों टूट कर गिर गया, जिसमें करीब 135 लोग मारे गए थे। भारतीय जनता पार्टी ने इस सीट पर अपने उस पूर्व विधायक को टिकट दी है, जिसने नदी में कूद कर लोगों की जान बचाई थी। भाजपा के उम्मीदवार अपने चुनाव प्रचार में नदी में कूद कर लोगों को बचाने के वीडियो दिखा कर वोट मांग रहे हैं। इसके बावजूद योगी की पहली सभा मोरबी में कराई गई और वहां उत्तर प्रदेश का बुलडोजर मॉडल दिखाया गया। आसपास के इलाकों से लोगों को बुलडोजरों पर बैठा कर योगी की सभा में लाया गया।

योगी ने स्थानीय उम्मीदवार या राज्य सरकार के कामकाज को छोड़ कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट मांगा। स्थानीय लोगों का कहना है कि पुल टूटने और लोगों के मरने का असर सिर्फ यहां पर ही नहीं बल्कि मोरबी के बाहर दूसरी सीटों पर पर भी हो सकता है। असल में मोरबी टाइल्स निर्माण का हब है इसलिए यहां काफी लोग बाहर के रहते हैं। दूसरे, उस पुल पर घूमने या फोटो खिंचवाने के लिए सिर्फ मोरबी के लोग नहीं आते थे, बल्कि राजकोट और दूसरे इलाकों के लोग भी पहुंचते हैं। इसलिए मरने वालों में राजकोट और दूसरे शहरों के लोग भी हैं। यह भी कहा जा रहा है कि मरने वालों की संख्या जितनी बताई जा रही है उससे ज्यादा लोग मरे हैं। इसे लेकर आसपास के इलाकों में बड़ी नाराजगी है और लोग चुपचाप विरोध की तैयारी कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि जिस मोहल्ले या गांव में किसी की मौत हुई है वहां भाजपा का विरोध हो रहा है। पार्टी के नेता बगैर किसी शोरशराबे के वहां जाकर लोगों को समझा रहे हैं।

फ़ेल हो रहे हैं भाजपा के ऑपरेशन लोटस

कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा जिस राज्य में पहुंचने वाली होती है, वहां भाजपा के ऑपरेशन लोटस की चर्चा शुरू हो जा रही है। यात्रा जब तेलंगाना में थी तो अखबारों में खबर छपी और टेलीविजन चैनलों पर दिखाया गया कि राहुल की यात्रा जब महाराष्ट्र पहुंचेगी तो ऑपरेशन लोटस होगा और कांग्रेस के कई विधायक टूट कर भाजपा में शामिल होंगे। उससे पहले जब यात्रा केरल से कर्नाटक पहुंची थी तब भी यही कहा गया था। अभी जब 23 नवंबर को यात्रा ने मध्य प्रदेश में प्रवेश किया तो उससे पहले कहा जा था कि कांग्रेस के विधायक भाजपा शामिल होंगे। हालांकि हकीकत यह है कांग्रेस न कर्नाटक में टूटी और न महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में उसका कोई विधायक टूट कर भाजपा में शामिल हुआ। गौरतलब है कि भाजपा महाराष्ट्र में लंबे समय से कांग्रेस के विधायक तोड़ने का प्रयास कर रही है। शिव सेना से टूट कर जब एकनाथ शिंदे गुट अलग हुआ और भाजपा के समर्थन से नई सरकार बनी तो उसके विश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग के समय कांग्रेस के कई विधायक नहीं पहुंचे थे। नहीं पहुंचने वाले विधायकों ने कहा कि वे ट्रैफिक में फंस गए थे लेकिन प्रचारित यह हुआ कि ये विधायक भाजपा में जाने वाले हैं। दो पूर्व मुख्यमंत्रियों अशोक चव्हाण और पृथ्वीराज चव्हाण के बारे में भी कहा जा रहा था कि वे कांग्रेस छोड़ेंगे। लेकिन जब राहुल की यात्रा महाराष्ट्र पहुंची तो ये दोनों नेता यात्रा के साथ रहे। सो, जैसे कर्नाटक में ऑपरेशन लोटस फेल हुआ वैसे ही महाराष्ट्र और अब मध्य प्रदेश में भी फेल हो गया।

हिमाचल को लेकर चिंतित है भाजपा

हिमाचल प्रदेश में चुनाव खत्म होने के बाद भाजपा में जो विचार-विमर्श हुआ है उसका लब्बोलुआब यह है कि भाजपा जीत तो जाएगी लेकिन जीत का अंतर बहुत मामूली होगा। अंदरुनी हिसाब-किताब में पार्टी ने 35 से ज्यादा सीट मिलने के अनुमान लगाया है। सीटों के आकलन के साथ-साथ पार्टी ने बागी उम्मीदवारों को लेकर भी मंथन किया है। पार्टी के आला नेताओं को इनके बारे में कई चौंकाने वाली जानकारी भी मिली है। याद करें कि कैसे चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बागी प्रत्याशी को मनाने के लिए फोन किया था और उसने सीधे पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की शिकायत की थी। तब प्रधानमंत्री ने कहा था कि उन्हें सब पता है।

भाजपा से जुड़े सूत्रों के मुताबिक कई बागी उम्मीदवार पार्टी के बड़े नेताओं की शह पर ही मैदान में उतरे थे। बताया जा रहा है कि इस बारे में भी मोदी और अमित शाह को सब मालूम है कि किसी ने बिलासपुर के इलाके में बागी उम्मीदवार खड़े करा दिए तो किसी ने हमीरपुर के इलाके में बागियों को शह दी। एक दूसरे को कमजोर करने की राजनीति के तहत बागी उम्मीदवार उतारे गए, जिसका नुकसान पार्टी के अधिकृत उम्मीदवारों को हुआ। इसके बावजूद भाजपा के आला नेतृत्व को फीडबैक यही मिला है कि पार्टी जैसे-तैसे चुनाव जीत जाएगी। बहरहाल, चुनाव का नतीजा चाहे जो हो लेकिन नतीजों के बाद पार्टी में कुछ नेताओं से जवाब तलब किया जाएगा।

राहुल और केजरीवाल का फ़र्क़

राहुल गांधी सचमुच जोखिम उठा रहे हैं। राजनीति की जो टैक्टिकल लाइन होती है उसे छोड़ कर वे भारत जोड़ो यात्रा कर रहे हैं। जिस दिन उन्होंने विनायक दामोदर सावरकर पर हमला करके महाराष्ट्र में कांग्रेस को बैकफुट पर ला दिया उसके एक दिन बाद ही उनकी यात्रा में सामाजिक कार्यकर्ता और नर्मदा बचाओ आंदोलन का चेहरा रहीं मेधा पाटकर शामिल हुईं। राहुल उनके कंधे पर हाथ रख कर चलते दिखे। भाजपा ने इसे बड़ा मुद्दा बना दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात की चुनावी सभा में कहा कि मेधा पाटकर ने गुजरात और गुजरातियों को देश भर में बदनाम किया और उनके साथ कांग्रेस नेता यात्रा कर रहे हैं। अब सोचने वाली बात है कि क्या राहुल गांधी को पता नहीं था कि मेधा पाटकर के साथ यात्रा करने पर गुजरात में पार्टी को नुकसान हो सकता है? उनको पता था फिर भी उन्होंने अपनी विचारधारा की वजह से जोखिम लिया।

इसी मामले में बिना विचारधारा वाली आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल और राहुल गांधी का फर्क दिखता है। जब गुजरात के चुनाव की घोषणा नहीं हुई थी तब कहीं से यह खबर मीडिया में प्लांट की गई कि आम आदमी पार्टी मेधा पाटकर को गुजरात में मुख्यमंत्री का चेहरा बना सकती है। इस बात पर केजरीवाल इस तरह भड़के कि सारी मर्यादा भूल गए। उन्होंने इसे झूठी खबर बताते हुए कहा कि उन्होंने भी सुना है कि भाजपा सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री का चेहरा बनाने जा रही है। देखने वाली बात है कि मेधा पाटकर का नाम जोड़े जाने भर से केजरीवाल कितना भड़के थे और राहुल उनके कंधे पर हाथ रख कर चल रहे थे।

सांप्रदायिक नफ़रत इस तरह अक्ल से अंधा कर देती है!

इस समय भारत जोड़ो यात्रा पर निकले कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी दाढ़ी बढ़ा रखी है, जिस पर तंज करते हुए असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा कि राहुल का चेहरा सद्दाम हुसैन की तरह हो गया है। दरअसल हिमंता जब से भाजपा में गए हैं तब से वे हिंदुत्व के पोस्टर ब्वॉय के तौर पर अपनी पहचान बनाने में लगे हैं इसलिए वे कांग्रेस और मुसलमानों के खिलाफ बढ़-चढ़ कर नफरत भरे बयान देते रहते हैं। उन्होंने सद्दाम से राहुल की तुलना सिर्फ इस वजह से की क्योंकि सद्दाम हुसैन मुसलमान थे। जाहिर है कि हिमंता का मकसद सद्दाम हुसैन से तुलना करके राहुल और कांग्रेस को मुसलमानों जैसा या मुस्लिमपरस्ती करने वाला बताना था।

लेकिन ऐसा करके अपने को संघ के हिंदुत्व का अग्रदूत साबित करने के चक्कर में हिमंता राजनीतिक रूप से अपने जाहिल होने का परिचय दे बैठे, क्योंकि हकीकत यह है कि सद्दाम हुसैन भारत के परम मित्र थे। उन्होंने इराक का राष्ट्रपति रहते हुए हर अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत का साथ दिया था। जब पाकिस्तान की तत्कालीन प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो कश्मीर मसले पर इस्लामिक देशों का समर्थन जुटाने के अभियान पर निकली थी तो इराक अकेला मुल्क था, जिसने बेनजीर को खाली हाथ लौटाया था। जब ओआईसी यानी इस्लामिक देशों के अंतरराष्ट्रीय सहयोग संगठन ने कश्मीर पर पाकिस्तान के पक्ष में प्रस्ताव पास किया था तब भी सद्दाम हुसैन इकलौते नेता थे, जिन्होंने इराकी राष्ट्रपति की हैसियत से उस प्रस्ताव के खिलाफ भारत की लाइन का समर्थन किया था। बांग्लादेश युद्ध के समय भी सद्दाम ने भारत का साथ दिया था। इतना ही नहीं, जब बाबरी मस्जिद ध्वस्त किए जाने के खिलाफ समूचे इस्लामिक जगत में भारत विरोधी प्रदर्शन हो रहे थे तब सद्दाम ने इराक में इस मसले पर कोई प्रदर्शन नहीं होने दिया था। इसलिए सद्दाम न तो भारत विरोधी थे और न हिंदू विरोधी। मगर यह बात अक्ल के अंधों की समझ में नहीं आ सकती है।

केजरीवाल की सरकार, केजरीवाल का पार्षद

अरविंद केजरीवाल का दावा है कि वे राजनीति को बदलने के लिए राजनीति में आए हैं। वे लोकतंत्र, और संविधान की बातें भी खूब करते हैं लेकिन उनके राजनीति करने के तौर-तरीके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे ही हैं। वे भी वन मैनशिप में भरोसा करते हैं। उनकी पार्टी और सरकार में सब कुछ उनके नाम से ही होता है। आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल एकाकार हो गए है। जिस तरह केंद्र में मोदी सरकार कहा जाता है उसी तरह दिल्ली में केजरीवाल सरकार कहा जाता है। विधायक आम आदमी पार्टी के नहीं, बल्कि केजरीवाल के विधायक कहे जाते हैं। चुनाव में वोट पार्टी के नाम पर नहीं, बल्कि केजरीवाल के नाम पर मांगे जाते हैं। खुद वे भी खुले तौर पर कहते हैं कि लोग उम्मीदवार को न देखें, सीधे केजरीवाल को वोट दें। प्रचार की इसी तर्ज पर आम आदमी पार्टी दिल्ली में नगर निगम का चुनाव लड़ रही है।

पार्टी के सुप्रीमो और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में पार्टी का प्रचार अभियान लांच किया तो इस मौके पर निगम चुनाव के लिए जो नारा उछाला गया, वह है- 'केजरीवाल की सरकार, केजरीवाल के पार्षद।’ हैरानी की बात है कि केजरीवाल प्रधानमंत्री मोदी की इस बात के लिए आलोचना करते रहे हैं कि वे डबल इंजन की सरकार की बात करते हैं। अब खुद केजरीवाल बिल्कुल उसी तरह की बात कर रहे हैं। उनकी पार्टी ने प्रचार शुरू किया है कि राज्य में केजरीवाल की सरकार है और अगर नगर निगम में भी उनकी सरकार बनती है तो दिल्ली का विकास ज्यादा तेजी से होगा। लोगों से वोट मांगते हुए कहा जा रहा है कि वे आम आदमी पार्टी को जिताएं तो उनके सारे काम हो जाएंगे। यह स्पष्ट रूप से मतदाताओं को धमकी है कि अगर उन्होंने आम आदमी पार्टी को नहीं जिताया तो उनके काम नहीं होंगे।

हिंदी पट्टी में प्रियंका का इस्तेमाल

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा मध्य प्रदेश में भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हुईं। बताया गया कि चार दिन तक वे भी पदयात्रा करेंगी। सवाल है कि आधी यात्रा बीत जाने के बाद क्यों प्रियंका को राहुल के साथ चलने के लिए उतारा गया? जब यात्रा दक्षिण भारत में चल रही थी तब वहां उन्हें क्यों नहीं भेजा गया था? आखिर सोनिया गांधी भी तो कर्नाटक जाकर यात्रा में शामिल हुई थीं। जिस तरह मध्य प्रदेश कांग्रेस के लिए अहम है वैसे ही कर्नाटक का भी महत्व है। यह चर्चा भी हुई थी कि प्रियंका भी मांड्या में यात्रा ज्वाइन करेंगी लेकिन वे वहां नहीं गईं और मध्य प्रदेश में यात्रा में शामिल हुई हैं।

असल में यात्रा का संयोजन कर रहे कांग्रेस नेताओं को लग रहा है कि प्रियंका गांधी की पहचान और आकर्षण हिंदी पट्टी में ज्यादा है। जबकि दक्षिण भारत में सोनिया और राहुल गांधी ज्यादा सक्रिय रहे हैं। इस सोच के साथ प्रियंका को बचा कर रखा गया था। वे मध्य प्रदेश से यात्रा में शामिल हुई हैं, जहां अगले साल चुनाव होने वाला है। इसके बाद संभव है कि हर राज्य की यात्रा में वे थोड़े-थोड़े दिन के लिए शामिल हों। उत्तर प्रदेश में यात्रा बहुत थोड़े समय के लिए जानी है। इसके बावजूद वे वहां भी पदयात्रा कर सकती हैं, क्योंकि वे उत्तर प्रदेश की प्रभारी हैं। राजस्थान, हरियाणा और पंजाब में भी उनका यात्रा का कार्यक्रम बन सकता है। हालांकि गुजरात में चुनाव प्रचार के लिए वे नहीं गई हैं और वहां जाने का उनका कार्यक्रम भी नहीं है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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