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ख़बरों के आगे-पीछे: अब हर योजना का नाम “पीएम-बीजेपी”

केंद्र सरकार की ज्यादातर योजनाओं में अभी तक तो सिर्फ प्रधानमंत्री का नाम ही जोड़ा गया था लेकिन अब उनमें पार्टी का नाम जोड़े जाने के रास्ते खोजे जा रहे हैं।
ख़बरों के आगे-पीछे: अब हर योजना का नाम “पीएम-बीजेपी”

भाजपा और उसकी सरकार का सारा जोर काम से ज्यादा प्रचार पर होता है और वे इसके लिए कुछ भी कर सकते हैं। केंद्र सरकार की ज्यादातर योजनाओं में अभी तक तो सिर्फ प्रधानमंत्री का नाम ही जोड़ा गया था लेकिन अब उनमें पार्टी का नाम जोड़े जाने के रास्ते खोजे जा रहे हैं। ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने वाली योजनाओं में पीएम और बीजेपी दोनों को जोड़ा जा रहा है। सबको पता है कि पीएम कौन है और बीजेपी क्या है। अब इन दोनों को हर योजना के साथ जोड़ दिया जा रहा है। ताजा मामला 'वन नेशन, वन फर्टिलाइजर’ योजना का है। इस योजना का नाम 'पीएमबीजेपी’ रखा गया है, यानी प्रधानमंत्री भारतीय जन उर्वरक परियोजना। यह योजना है लेकिन इसे परियोजना इसलिए कहा गया है ताकि अंत में पी अक्षर आ जाए ताकि बीजेपी बनाने में आसानी हो।

सरकार ने किसानों को आसानी से और समय पर खाद उपलब्ध कराने के लिए इस योजना की शुरुआत की है। इस योजना के शुरू होने के बाद अब खाद की हर बोरी पर खाद बनाने वाली कंपनियां सिर्फ एक तिहाई हिस्से में ही कंपनी का नाम और लोगो लगा सकती है। बाकी दो तिहाई हिस्से मे पीएमबीजेपी के बारे में जानकारी दी जाएगी। उस पर लिखा होगा कि सरकार उस एक बोरी पर कितनी सब्सिडी दे रही है। इससे पहले सरकार ने रेलवे की टिकटों पर भी लिखना शुरू किया था कि एक यात्रा टिकट पर कितनी सब्सिडी दी जा रही है। इसके जरिए लोगों को बताया जाता है कि सरकार उन पर कितनी कृपा कर रही है।

बहरहाल, इस पीएमबीजेपी से पहले एक और पीएमबीजेपी योजना आई थी, जिसका मतलब है प्रधानमंत्री जन औषधि परियोजना। सरकारी योजनाओं के राजनीतिक इस्तेमाल की ऐसी बेशर्मी की मिसाल दुनिया में शायद ही कहीं और मिलेगी।

कांग्रेस की यात्रा से परेशान हैं केजरीवाल

आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल दिल्ली में भले ही भाजपा से लड़ते दिख रहे हैं लेकिन उनका असली निशाना कांग्रेस है। केजरीवाल असल में भाजपा के 'कांग्रेस मुक्त भारत’ अभियान में अपनी सबसे महत्वपूर्ण भूमिका मान रहे हैं। इसीलिए वे सिर्फ उन्हीं राज्यों में राजनीति करते हैं, जहां भाजपा और कांग्रेस का सीधा मुकाबला है। जिस राज्य में कोई मजबूत प्रादेशिक पार्टी है वहां वे लड़ने नहीं जाते। वे कांग्रेस विरोध में इतने बेचैन हैं कि कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा से उन्हें परेशानी होने लगी है। इसीलिए उन्होंने सात सितंबर से 'मेक इंडिया नंबर वन’ अभियान की यात्रा निकालने का ऐलान किया है। ध्यान रहे कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा भी राहुल गांधी की अगुवाई में सात सितंबर को शुरू हो रही है। इसकी शुरुआत सुदूर दक्षिण मे कन्याकुमारी से हो रही है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री भी इसकी शुरुआत के कार्यक्रम में शामिल होंगे। उसी दिन अरविंद केजरीवाल अपने गृह प्रदेश हरियाणा से 'मेक इंडिया नंबर वन’ यात्रा शुरू करेंगे।

सात सितंबर कोई ऐतिहासिक तारीख नहीं है और न कोई धार्मिक महत्व की तिथि है लेकिन केजरीवाल ने अपनी यात्रा की शुरुआत के लिए वही दिन चुना है। इसके पीछे उनका मकसद कांग्रेस की यात्रा को फीका करना है। केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं और दिल्ली के मीडिया को अपने सरकारी विज्ञापनों के दम पर उन्होंने साध रखा है। इसलिए जब से हरियाणा से उनकी यात्रा शुरू होगी तो उसकी बड़ा मीडिया कवरेज होगा और कुछ हद तक कांग्रेस की यात्रा से ध्यान हटेगा। उनकी यह यात्रा पहले दो ही दिन चलेगी। उसके बाद आगे फिर कांग्रेस के कार्यक्रम के हिसाब से वे अपना प्रोग्राम बनाएंगे।

भगवानों की जाति का निर्धारण हो रहा है!

भाजपा की विभाजनकारी राजनीति समाज को बांटते-बांटते अब भगवानों को भी जाति में बांट रही है। भाजपा के नेता और उच्च शैक्षणिक पदों पर नियुक्त किए गए लोग पिछले कुछ समय से आए दिन किसी न किसी भगवान की जाति बताते रहते हैं। हाल ही में जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी की वाइस चांसलर शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित ने बताया कि हिंदुओं के कोई भी भगवान सवर्ण जाति के नहीं हैं। उन्होंने यह भी कहा कि भगवान शिव दलित या आदिवासी हो सकते हैं। अपने दावे को प्रमाणित करने के लिए उन्होंने कहा कि भगवान शिव श्मशान में निवास करते हैं और गले में नाग धारण करते हैं इसलिए दलित या आदिवासी हो सकते है। कुछ समय पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भगवान राम की जाति बताई थी। उन्होंने अपने जातीय गौरव का बखान करते हुए कहा था कि वे उस जाति से आते हैं, जिसमें भगवान पैदा होते हैं। इसका मतलब है कि राम राजपूत हैं। भगवान विष्णु के एक अन्य अवतार कृष्ण को पहले ही यादव घोषित किया जा चुका है। उससे पहले भाजपा के नेताओं ने हनुमानजी की जाति का विवाद खड़ा किया था। किसी ने उनको पिछड़ा तो किसी ने दलित बताया था। इसमें उत्तर प्रदेश से लेकर राजस्थान तक के कई नेता शामिल थे। बाद में कई नेताओं ने हनुमान चालीसा की चौपाई पढ़ कर बताया कि तुलसीदास ने लिखा है कि 'कांधे मूंज जने साजे’ इसका मतलब है कि वे ब्राह्मण थे।

सोचने वाली बात है कि भारत का समाज इस तरह जातियों में बंटा है और सरकार जाति जनगणना कराने से कतरा रही है।

दिल्ली के शिक्षा मॉडल की हक़ीक़त

दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया नई शराब नीति में कथित गड़बड़ियों को लेकर विवादों में फंसे हैं लेकिन उनके बचाव में उतरे आम आदमी पार्टी के सारे नेता एक सुर में कह रहे हैं कि सिसोदिया दुनिया के सबसे अच्छे शिक्षा मंत्री हैं। मगर सूचना के अधिकार कानून के तहत मांगी गई जानकारी से जो बातें सामने आई है, उनसे दिल्ली के शिक्षा मॉडल पर भी सवाल खड़े हो गए हैं।

आरटीआई से मिली जानकारी में पता चला है कि दिल्ली सरकार के 66 फीसदी उच्चतर माध्यमिक स्कूलों में 11वीं और 12वीं कक्षा में विज्ञान की पढ़ाई नहीं होती है। दिल्ली सरकार से आरटीआई के जरिए मांगी गई जानकारी और शिक्षा विभाग की वेबसाइट से जुटाए गए आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली के 838 उच्चतर माध्यमिक स्कूलों में से 279 स्कूलों में ही विज्ञान पढ़ाया जाता है। बचे हुए 559 स्कूलों में विज्ञान की पढ़ाई नहीं होती है। इसी तरह 674 स्कूलों में 11वीं और 12वीं में कॉमर्स पढ़ाया जाता है। बाकी 19 फीसदी स्कूल कॉमर्स नहीं पढ़ाते। इतना ही नहीं आरटीआई के जरिए यह भी पता चला है कि दिल्ली में पिछले सात साल में सिर्फ 63 नए स्कूल बने है। आम आदमी पार्टी ने 2015 के चुनावी घोषणापत्र में पांच सौ स्कूल खोलने का वादा किया था, लेकिन फरवरी 2015 से मई 2022 के बीच 63 स्कूल खुले हैं।

अध्यक्ष चुनाव के लिए शुभ दिन का इंतजार!

कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव की तारीख आगे बढ़ाए जाने के पीछे कई कारण बताए जा रहे है। कोई नेता कह रहा है कि सात सितंबर से कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा शुरू हो रही है, जिसकी तैयारियां चल रही है इसलिए चुनाव की तारीख आगे बढ़ाई गई। कुछ नेताओं का कहना है कि राहुल गांधी को मनाने के लिए कुछ और समय की जरूरत है इसलिए तारीख आगे बढ़ाई गई। दोनों कारण हो सकते है, जिनकी वजह से तारीख आगे बढ़ी है। लेकिन इसके अलावा एक कारण यह भी है कि पार्टी ने अध्यक्ष के चुनाव के लिए शुभ दिन का इंतजार किया है। पिछली बार राहुल गांधी हिंदू पंचांग के मुताबिक अशुभ माने जाने वाले मलमास में 17 दिसंबर को अध्यक्ष बने थे और दो साल पूरा होने से पहले ही उनको इस्तीफा देना पड़ा था। हिंदू पंचांग के हिसाब से 16 दिसंबर से 14 जनवरी तक का समय शुभ कार्यों के लिए अच्छा नहीं माना जाता है। इस बार भी कांग्रेस की ओर से चुनाव का जो कार्यक्रम घोषित किया गया था वह 20 अगस्त से 21 सितंबर के बीच का था, जबकि 11 सितंबर से पितृपक्ष शुरू हो रहा है। इस दौरान कोई शुभ काम नहीं किया जाता है। इसीलिए पार्टी के चुनाव अधिकारी ने 24 सितंबर से प्रक्रिया शुरू करने का ऐलान किया है। उस समय नवरात्रि शुरू हो जाएगी और दशहरा-दिवाली के बीच 17 अक्टूबर को कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव होगा। वोटों की गिनती 19 अक्टूबर को होगी और जो भी नया अध्यक्ष चुना जाएगा वह दिवाली के आसपास कामकाज संभालेगा। इसे हर शुभ काम के लिए अच्छा समय माना जाता है।

केजरीवाल और भाजपा के बीच पाखंड की होड़

दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली और पंजाब के सभी सरकारी दफ्तरों से महात्मा गांधी की तस्वीरें हटवा दी हैं। उन्होंने अपनी कुर्सी के पीछे भी शहीद भगत सिंह और भीमराव आंबेडकर की तस्वीर लगाई है। उन्होंने ऐलान किया कि सभी सरकारी दफ्तरों में सिर्फ इन्हीं दो महापुरुषों की तस्वीरें लगेंगी। लेकिन जब उन्होंने दिल्ली में ऑपरेशन लोटस का ड्रामा रचा और उस काल्पनिक लड़ाई को जीत लेने का दावा किया तो महात्मा गांधी की समाधि पर गए और अपने विधायकों के साथ थोड़ी देर तक मौन रह कर गांधी को श्रद्धांजलि दी। जब केजरीवाल और उनके विधायक राजघाट से लौट गए तो भाजपा के नेता वहां पहुंचे और उन्होंने गंगाजल से सफाई करके राजघाट का 'शुद्धिकरण’ किया। उन्होंने कहा कि झूठ बोलने वाले केजरीवाल ने गांधी समाधि को अपवित्र किया है। हैरानी की बात है कि जिस भाजपा की एक सांसद प्रज्ञा ठाकुर की नजर में गांधी की हत्या करने वाला नाथूराम गोडसे सबसे बड़ा राष्ट्रभक्त है। जिस भाजपा की एक सांसद मीनाक्षी लेखी को 'दे दी हमे आजादी बिना खड़ग बिना ढाल, साबरमती के संत तुने कर दिया कमाल’ पर कोई आस्था नहीं है। जिस भाजपा के नेता देश के बंटवारे के लिए खुल कर गांधी को दोषी ठहराते हैं। जिस भाजपा के शासन में हर साल गांधी जयंती के मौके पर गोडसे की महानता का ट्विट ट्रेंड करता है, उस भाजपा के लोग गांधी समाधि को शुद्ध करने गए थे!

जारी है मनीष तिवारी की बदज़ुबानी

कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी अपनी बदजुबानी के लिए कुख्यात हैं। उन्होंने गुलाम नबी आजाद के खिलाफ बयान दे रहे पार्टी नेताओं को चपरासी करार दिया है। गुलाम नबी आजाद ने सोनिया गांधी को लिखी चिट्ठी में कहा है कि राहुल गांधी का अध्यादेश फाड़ना 2014 में कांग्रेस की हार की बड़ी वजह बना। लेकिन उन्होंने यह नहीं लिखा कि मनीष तिवारी जैसे नेताओं की अहंकार में डूबी बदजुबानी भी कांग्रेस की हार सबसे बड़ा कारण थी। मनीष तिवारी ने अन्ना हजारे के आंदोलन के चरम के समय एक प्रेस कांफ्रेंस मे कहा था- ''तुम अन्ना हजारे, तुम सर से पांव तक भ्रष्टाचार में डूबे हो।’’ मनीष तिवारी का यह बयान कांग्रेस के ताबूत में आखिरी कील साबित हुआ था।

मजेदार बात यह है कि कांग्रेस के ताबूत में कील ठोंकने के बाद तिवारी को समझ में आ गया था कि पार्टी बुरी तरह से हारने जा रही है तो चुनाव लड़ने से ही इनकार कर दिया था। अगले चुनाव में यानी 2019 में जब लगा कि अब वे जीत सकते हैं तो चुनाव लड़े और जीत गए। मनीष तिवारी जब अन्ना हजारे को गाली दे रहे थे तब वे चपरासी नहीं थे लेकिन आज कोई नेता आजाद के खिलाफ बयान देता है तो वह चपरासी है! राजनीति में इस किस्म की हिप्पोक्रेसी भी सफलता की गारंटी बनती है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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