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ख़बरों के आगे-पीछे: ‘अनिवार्य’ वैक्सीन से सिद्धू-चन्नी के ‘विकल्प’ तक…

देश के 5 राज्यों में चुनावों का मौसम है, इसलिए खबरें भी इन्हीं राज्यों से अधिक आ रही हैं। ऐसी तमाम खबरें जो प्रमुखता से सामने नहीं आ पातीं  “खबरों के आगे-पीछे” नाम के इस लेख में उन्हीं पर चर्चा होगी।
channi sidhu
फ़ोटो साभार: ट्विटर

चौबीस घंटे चलने वाले न्यूज़ चैनलों के बावजूद ऐसी तमाम खबरें हैं जो पीछे छूट जाती हैं। चलिए ऐसी ही खबरों पर चर्चा करते हैं।

बेगानी शादी में कांग्रेस का दीवानापन

उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार के मंत्री और विधायक पार्टी छोड़ कर समाजवादी पार्टी में जा रहे हैं। इस घटनाक्रम से जितना खुश सपा के नेता हैं उससे ज्यादा खुश कांग्रेस के नेता नजर आ रहे हैं। भाजपा विधायकों के टूटने का जश्न कांग्रेस खेमे में मनाया जा रहा है। ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस नेता इसे ईश्वरीय न्याय मान कर खुश हो रहे हैं कि चलो भाजपा ने कांग्रेस को तोड़ा है तो कोई भाजपा को भी तोड़ रहा है। 

कांग्रेस के प्रवक्ताओं ने न्यूज चैनलों की बहस में इस पर खुशी जताई। पार्टी के कई नेताओं और प्रदेश कमेटियों के ट्विटर हैंडल से इसे लेकर ट्विट किया गया। हैरानी की बात है कि कांग्रेस के अपने नेता पार्टी बदल रहे हैं। वे राष्ट्रीय लोकदल और समाजवादी पार्टी में जा रहे हैं, उस पर निराशा की बजाय कांग्रेस के नेता भाजपा विधायकों के टूटने पर जश्न मना रहे हैं। पिछले दिनों कांग्रेस के नेता इमरान मसूद ने पार्टी छोड़ दी और समाजवादी पार्टी में चले गए। कांग्रेस के चार बार विधायक रहे गजराज सिंह ने राष्ट्रीय लोकदल का दामन थाम लिया और रालोद ने उनको टिकट भी दे दी।

कांग्रेस को ये दोनों झटके पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लगे हैं, जहां पहले चरण में मतदान होना है। ध्यान रहे सपा और रालोद में गठबंधन है और भाजपा छोड़ने वाले विधायक भी इन्हीं दोनों पार्टियों में जा रहे हैं। जैसे भाजपा छोड़ने वाले पूर्व कांग्रेसी अवतार सिंह भड़ाना रालोद में गए हैं। ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस के नेता जैसे भाजपा छोड़ कर विधायकों के रालोद और सपा में जाने पर खुश हैं वैसे ही अपनी पार्टी छोड़ कर भी इन दोनों पार्टियों में नेताओं के जाने से खुश हैं। ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस पार्टी अपने नेताओं को सपा और उसकी सहयोगी पार्टियों में अपनी पार्टी के नेताओं को खुद भेज रही है और उसकी खुशी मना रही है। कांग्रेस को लग रहा है कि वह भाजपा को नहीं हरा पा रही है तो कोई पार्टी तो है, जो उसे हराती दिख रही है।

सिद्धू नहीं समझ रहे हैं पार्टी का संदेश

पंजाब में कांग्रेस पार्टी ने बहुत साफ संदेश दिया है कि मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ही चुनाव में पार्टी का चेहरा हैं और अगर फिर कांग्रेस की सरकार बनती है तो वे ही मुख्यमंत्री बनेंगे। इसके बावजूद सिद्धू समझ नहीं रहे हैं या नहीं समझने का नाटक कर रहे हैं। मुख्यमंत्री पद के दूसरे दावेदार सुनील जाखड़ इस बात को समझ गए हैं इसीलिए उन्होंने अबोहर सीट से इस बार चुनाव नहीं लड़ा। उनके कहने पर उनके भतीजे संदीप जाखड़ को उस सीट से टिकट दी गई है। उप मुख्यमंत्री सुखजिंदर रंधावा चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन उनको पता है कि वे मुख्यमंत्री पद की रेस से बाहर हो गए हैं। अकेले सिद्धू हैं, जो जिद किए हुए हैं। वैसे कांग्रेस कभी भी मुख्यमंत्री का दावेदार घोषित करके चुनाव नहीं लड़ती है। इसीलिए पिछले दिनों एक टेलीविजन चैनल के कार्यक्रम के बाद पत्रकारों से अनौपचारिक बातचीत में कांग्रेस के मीडिया प्रभारी रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि कांग्रेस की ओर से दो चेहरे होते हैं एक जो मुख्यमंत्री है उसका और दूसरा प्रदेश अध्यक्ष का। इस लिहाज से पंजाब में दो चेहरे हैं चन्नी और सिद्धू। लेकिन अब कांग्रेस ने एक वीडियो के जरिए सिद्धू को बाहर कर दिया है।

कांग्रेस के ट्विटर हैंडल से जारी इस वीडियो में फिल्म अभिनेता सोनू सूद लोगों से कह रहे हैं कि ऐसा आदमी मुख्यमंत्री नहीं हो सकता है, जो खुद ही रोज कहे कि मुझे मुख्यमंत्री बनाओ। उसकी बजाय ऐसे आदमी को मुख्यमंत्री बनाया जाए जो बैकबेंचर हो, जो पीछे हो उसे लाकर सीएम की कुर्सी पर बैठा दिया जाए तो अच्छा होता है। इस पूरी वीडियो में अकेले चरणजीत सिंह चन्नी को दिखाया जा रहा है। वे बैकबेंचर भी रहे हैं और अचानक उनको पीछे से लाकर सीएम की कुर्सी पर बैठाया गया है। इसलिए संदेश साफ है। पर सिद्धू इतने स्पष्ट संदेश को नहीं समझ रहे हैं। वे यह भी नहीं समझ रहे हैं कि पार्टी आलाकमान वोट के गणित के हिसाब से आगे बढ़ रहा है और उसमें सिद्धू की महत्वाकांक्षा का कोई मतलब नहीं है। पंजाब में कांग्रेस की एकमात्र उम्मीद चन्नी हैं। दूसरे, कांग्रेस नेता इस बात को समझ रहे हैं कि अगर एक बार वहां आम आदमी पार्टी के पांव जम गए तो फिर दिल्ली की तरह पंजाब से भी कांग्रेस साफ होगी। इसलिए भी कांग्रेस सिद्धू या दूसरे किसी जाट या जाट सिख नेता के दबाव में नहीं आ रही है।

ऐसे रूकी सीईएल की बिक्री 

चाहे जैसे भी रूकी लेकिन अच्छी बात यह है कि सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, सीईएल की बिक्री रूक गई है। सरकार ने इसे बेचने का फैसला कर लिया था और नंदल फाइनेंस एंड लिजिंग कंपनी प्राइवेट लिमिटेड ने 210 करोड़ रुपए की बोली लगा कर इसे खरीद किया था। दिल्ली से सटे साहिबाबाद में स्थित इस सरकारी उपक्रम को खरीदने के लिए दो कंपनियों ने बोली लगाई थी। दूसरी कंपनी की बोली 190 करोड़ रुपए की थी इसलिए नंदल की 210 करोड़ की बोली को सबसे बड़ी बोली मान कर उसे कंपनी बेचने का फैसला हो गया था। लेकिन कर्मचारी संगठनों ने इसका विरोध किया, विपक्षी सांसदों ने चिट्ठियां लिखीं, सोशल मीडिया में मुहिम चली और कांग्रेस के प्रवक्ता गौरव वल्लभ ने प्रेस कांफ्रेंस करके इसकी बारीकियां समझाईं। इन सबके बाद सरकार ने इसकी बिक्री पर रोक लगा दी है और कम बोली पर कंपनी को बेचे जाने के आरोपों की जांच कर रही है। हैरानी की बात है कि बेचने से पहले इस बात का आकलन क्यों नहीं किया गया था कि इसकी कीमत कितनी है? इस कंपनी के पास साहिबाबाद में 50 एकड़ जमीन है, जिसकी कीमत पांच सौ करोड़ के करीब है। यानी जितने में कंपनी बेची जा रही थी उससे दो गुने से ज्यादा की जमीन कंपनी के पास है। ऊपर से कंपनी मुनाफा कमा रही है। 1974 में बनी भारत सरकार की इसी कंपनी ने पहला सोलर सेल और पहला सोलर पैनल बनाया था और पहला सोलर प्लांट स्थापित किया था। तीसरी बात यह है कि जिसको कंपनी बेची गई उसका काम फर्निचर और इंटीरियर का है। जिस नंदल फाइनेंस ने इसे खरीदा था उसमें 99.96 फीसदी हिस्सेदारी प्रीमियर फर्निचर एंड इंटीरियर प्राइवेट लिमिटेड का है।

पंजाब की लड़कियां क्यों नहीं लड़ सकतीं?

कांग्रेस पार्टी ने उत्तर प्रदेश में ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं’ का नारा दिया है और उसी नारे पर चुनाव लड़ रही है। प्रियंका गांधी वाड्रा ने यह नारा दिया है और अपने वादे के मुताबिक 40 फीसदी टिकट भी महिलाओं को देने की शुरुआत की है। हालांकि वे खुद चुनाव नहीं लड़ रही हैं इसलिए सोशल मीडिया में यह सुझाव भी दिया जा रहा है कि कांग्रेस को नारा बदल कर ‘लड़की हूं लड़ा सकती हूं’ कर देना चाहिए। बहरहाल, सवाल है कि उत्तर प्रदेश की लड़कियां लड़ सकती हैं तो क्या पंजाब की लड़कियां नहीं लड़ सकती हैं? कांग्रेस पार्टी पंजाब में यह नारा क्यों नहीं दे रही है और वहां भी लड़कियों को उसी अनुपात में टिकट क्यों नहीं दे रही है? पंजाब में कांग्रेस पार्टी ने 117 सीटों में से 86 सीटों पर उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं। इनमें सिर्फ आठ फीसदी टिकट ही महिलाओं को दी गई है। कहां तो उत्तर प्रदेश में 40 फीसदी और कहां पंजाब में आठ फीसदी! अगर कांग्रेस को लग रहा है कि महिलाएं एक अलग मतदाता समूह के रूप में उभर रही हैं और प्रियंका गांधी वाड्रा का चेहरा उनको जाति, धर्म आदि की बाध्यताओं से मुक्त करके कांग्रेस के साथ ला सकता है तो पंजाब में भी इसे आजमाना चाहिए।

कांग्रेस ऐसा नहीं कर रही है तो इसका सीधा मतलब यहीं है कि वह इस तरह के प्रयोग सिर्फ उन्हीं राज्यों में करेगी, जहां उसको इन प्रयोगों की विफलता तय दिख रही हो। उत्तर प्रदेश में चुनाव जीतने की कोई संभावना नहीं है तो लड़कियों को लड़ा दो। लेकिन जहां चुनाव जीतने की संभावना है वहां समीकरण के हिसाब से टिकट दो।

भाजपा का प्रचार अयोध्या, मथुरा और काशी के भरोसे

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को अपने चुनाव क्षेत्र वाराणसी में भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ वर्चुअल संवाद किया तो उन्होंने कहा कि भाजपा विकास के लिए प्रतिबद्ध है। प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बार-बार विकास की बात जरूर कर रहे हैं लेकिन पार्टी का चुनाव प्रचार विकास के नाम पर नहीं हो रहा है। पार्टी का प्रचार अयोध्या, काशी, मथुरा और भगवा के नाम पर ही हो रहा है। पार्टी ने प्रचार के लिए जो गीत तैयार कराए हैं उनमें एक गीत पार्टी के सांसद मनोज तिवारी ने गाया है, जिसके बोल हैं- मंदिर बनने लगा है, भगवा रंग चढ़ने  लगा है। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण पर यह गाना आधारित है और इसे बजा कर लोगों से वोट मांगा जा रहा है। इस गाने में मनोज तिवारी के साथ दूसरे गायक कन्हैया मित्तल हैं, जिन्होंने अपना एक अलग गाना बनाया है, जिसे उन्होंने एक टेलीविजन चैनल के कार्यक्रम में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मौजूदगी में गाया। उस गाने के बोल हैं- जो राम को लाए हैं, हम उनको लाएंगे। यूपी में फिर से हम भगवा लहराएंगे। इस गाने में आगे कहा जा रहा है- अयोध्या भी सजा दी है, काशी भी सजा दी है, घनश्याम कृपा कर दो मथुरा भी सजा देंगे। भाजपा का एक तीसरा गाना काशी और भगवान शिव को लेकर है, जिसके बोल हैं- डमरू जब बजने लगेगा, तब देखना नजारा क्या होगा। जाहिर है इन गानों का मकसद बहुसंख्यक हिंदू आबादी को उद्वेलित करके ध्रुवीकरण का प्रयास कराना है।

पंजाब के चुनाव में डेरों की भी भूमिका रहेगी

पंजाब का चुनाव शुरू होते ही डेरों की भूमिका बढ़ने लगती है और डेरा प्रमुख सक्रिय हो जाते हैं। पंजाब और उससे सटे हरियाणा के इलाकों में सैकड़ों डेरे हैं। लेकिन डेरा सच्चा सौदा और राधास्वामी सत्संग के सदस्यों की संख्या सबसे ज्यादा है और इसलिए सबसे अहम भूमिका भी इन्हीं की होती है। पंजाब और हरियाणा दोनों के चुनावों में डेरा सच्चा सौदा ने भाजपा की मदद की थी लेकिन इस समय डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम जेल में बंद हैं। पिछले दिनों उनको कई बार राहत दी गई और उन्हें जेल से निकाल कर गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में भी रखा गया, जहां उनकी मुलाकात हनीप्रीत से भी होने की खबर है। इसलिए कहा जा रहा है कि डेरा सच्चा सौदा की ओर से इस बार भाजपा और अकाली दल की मदद का संदेश जा सकता है। ध्यान रहे पिछले चुनाव में कांग्रेस की ओर से कैप्टन अमरिंदर सिंह ने गुरमीत राम रहीम से बात की थी। इस बार कैप्टन भाजपा के साथ हैं। सो, कैप्टन भी बात कर सकते हैं। बताया जा रहा है कि पंजाब के नेताओं का डेरा सच्चा सौदा के सिरसा स्थित मुख्यालय में आना-जाना शुरू हो गया है। पार्टियों के अलावा अकेले उम्मीदवार पहुंच रहे हैं। जिन इलाकों में डेरा भक्तों की ज्यादा संख्या है वे माथा टेक रहे हैं। लेकिन फैसला चुनावों से ऐन पहले होगा।

आप की रायशुमारी में सिद्धू का नाम क्यों?

कोई भी पार्टी जब अपनी ओर से मुख्यमंत्री पद के लिए दावेदार के नाम पर लोगों की राय लेगी तो दूसरी पार्टी के किसी नेता का नाम उसमें क्यों शामिल करेगी? लेकिन आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पंजाब में मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी पार्टी के दावेदार का नाम तय करने के लिए कराई गई रायशुमारी में पंजाब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू का नाम शामिल किया। सवाल है कि जब सिद्धू का किया तो कैप्टन अमरिंदर सिंह और बादल पिता-पुत्र का नाम क्यों नहीं शामिल किया? या संयुक्त समाज मोर्चा की ओर से चुनाव लड़ रहे किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल का नाम क्यों नहीं शामिल किया?

अगर इन नामों को भी कुछ वोट मिले हैं तो वह बताया क्यों नहीं? क्यों सिर्फ मान और सिद्धू को मिले वोट का प्रतिशत जाहिर किया गया? केजरीवाल ने बताया कि मान को 93 फीसदी से ज्यादा लोगों ने चुना है, जबकि सिद्धू को 3.60 फीसदी वोट मिले हैं। खुद केजरीवाल को भी कुछ लोगों ने वोट दिया था, लेकिन उन्होंने इसका खुलासा नहीं किया। असल में सिद्धू को साढ़े तीन फीसदी वोट दिखाने का एक मकसद तो उनको अपमानित करना था। दूसरा राज्य के मतदाताओं को मैसेज देना था कि सिद्धू और मान दोनों भले कॉमेडी शो से जुड़े रहे हैं पर सिद्धू से ज्यादा लोकप्रिय मान हैं।

तीसरा मैसेज जाट सिख मतदाताओं के लिए है। केजरीवाल को लग रहा था कि उनके बीच सिद्धू की लोकप्रियता ज्यादा है और चूंकि कांग्रेस ने सीएम का दावेदार घोषित नहीं किया है इसलिए जाट सिख मतदाताओं का एक समूह सिद्धू के नाम पर कांग्रेस के साथ जा सकता है। सिद्धू एकदम जाट सिख मतदाताओं के मुताबिक डंके की चोट वाली राजनीति करते हैं और मुख्यमंत्री को अपने सामने कुछ नहीं मानते। उनकी यह ब्रांडिंग युवा जाट सिख मतदाताओं को आकर्षित कर सकती है। उसे कम करने के लिए झूठी-सच्ची रायशुमारी के जरिए सिद्धू का कद कमतर करने का प्रयास किया गया।

वैक्सीन अनिवार्य नहीं फिर भी जबरदस्ती

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर कहा है कि किसी को कोरोना रोकने की वैक्सीन लगाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। इसके साथ ही सरकार ने यह भी कहा है कि किसी भी काम के लिए किसी नागरिक से कोराना वैक्सीनेशन का सर्टिफिकेट नहीं मांगा जा सकता है। सवाल है किजब न वैक्सीन अनिवार्य है और न वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट अनिवार्य है, फिर भी पूरे देश में राज्य सरकारों की मनमानी चल रही है। असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा है कि जिन लोगों ने वैक्सीन नहीं लगवाई है वे घर में बंद रहें। उन्होंने कहा कि बिना वैक्सीन लगवाए लोग न तो होटल में जा सकते हैं और न पार्क में जा सकते हैं।

इसी तरह हरियाणा में ऐसे बच्चे स्कूल नहीं जा सकेंगे, जिन्होंने वैक्सीन नहीं लगवाई है। चंडीगढ़ में तो प्रशासन इससे भी एक कदम आगे बढ़ गया है। वहां बिना वैक्सीन लगवाए लोगों के बाहर निकलने पर जुर्माना लगाया जा रहा है। यह भी कहा गया है कि अगर वैक्सीन नहीं लगवाई है तो सरकारी कर्मचारियों को वेतन नहीं मिलेगी। ये बात सोचने की है कि क्या केंद्र सरकार की नजर में ये बातें नहीं हैं? क्या अदालत को यह स्थिति नहीं दिख रही है? जब वैक्सीन अनिवार्य नहीं है या वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट अनिवार्य नहीं है तो लोगों के साथ जबरदस्ती क्यों की जा रही है? क्यों नहीं सरकार छूट की कुछ श्रेणियां बना रही है, जैसे दुनिया के दूसरे देशों में बनाई गई है?

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