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लेडी हार्डिंग: एक तरफ फूल बरसाकर सम्मान, दूसरी तरफ़ नौकरी से निकालने का फ़रमान

राजधानी दिल्ली स्थित ‘लेडी हार्डिंग अस्पताल व मेडिकल कॉलेज’ में कोरोना संकट के दौरान अपनी जान जोखिम में डालकर काम करनेवाले स्वास्थ्य कर्मचारियों को नौकरी से निकालने से आक्रोशित कर्मचारियों अस्पताल के गेट पर प्रदर्शन किया।
लेडी हार्डिंग

दिल्ली : कोरोना संकट के दौरान सबसे बहादुरी से लड़ने वाले स्वास्थ्य कर्मचारियों के साथ दुर्व्यवहार, गैरकानूनी रूप से वेतन में कटौती, काम से निकालना और सुरक्षा उपकरण उपलब्ध नहीं कराना इत्यादि जैसी कई बाते सामने आ रही हैं। मोदी सरकार ने कर्मचारियों के ऊपर फूल ज़रूर बरसाये, पर उनके वेतन, सुरक्षा, नौकरी की गारंटी इत्यादि जैसी बातों के लिए कुछ भी नहीं किया। लेडी हार्डिंग अस्पताल व मेडिकल कॉलेज के कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों ने काम से निकाले जाने के खिलाफ 30 जुलाई को अस्पताल गेट पर कर्मचारियों ने प्रदर्शन किया।

इस प्रदर्शन का नेतृत्व आल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ़ ट्रेड यूनियंस (ऐक्टू ) के दिल्ली राज्य सचिव, सूर्य प्रकाश ने किया, जिसमें कई कर्मचारियों ने हिस्सा लिया। इससे पहले केंद्र सरकार के अधीन आने वाले राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भी ठेका कर्मचारी वेतन न मिलने के कारण विरोध प्रदर्शन कर चुके हैं।

गौरतलब है कि तमाम दावों के बावजूद सरकार कोरोना से लड़ने में पूरी तरह असफल साबित हुई है – न तो कोरोना संक्रमण का रोकथाम हो पाई है और न ही स्वास्थ्य कर्मचारियों को उनके अधिकार मिल रहे हैं। लेडी हार्डिंग अस्पताल व मेडिकल कॉलेज केंद्र सरकार के अधीन है, बावजूद इसके इन कर्मचारियों की समस्याओं पर केंद्र सरकार ने ध्यान नहीं दिया। देशभर में स्वास्थ्य कर्मचारी लगातर ‘पीपीई’ और अन्य सुरक्षा उपकरणों की कमी की शिकायत कर रहे हैं। ऐसे कई मामले सामने आए हैं जहाँ कर्मचारियों, विशेषकर कॉन्ट्रैक्ट पर काम कर रहे कर्मचारियों को ठीक से वेतन तक नहीं दिया जा रहा है। दिल्ली और आसपास के कुछ अस्पतालों में तो डॉक्टरों को भी वेतन का भुगतान समय से नहीं हो पा रहा है।

ठेका कर्मचारी से नौकरी पर रखने के नाम पर अवैध वसूली!

लेडी हार्डिंग अस्पताल के ठेका कर्मचारी, वही कार्यरत परमानेंट कर्मचारियों के जितना ही काम करते हैं परन्तु उनका वेतन पक्के कर्मचारियों के मुकाबले काफी कम है। हर बार कॉन्ट्रैक्ट बदलने के वक़्त इन कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों से नौकरी पर रखने के नाम पर अवैध वसूली भी की जाती है। इस तरह का भ्रष्टाचार ठेकेदार और सरकारी अफसरों की मिलीभगत के बिना संभव नहीं है। पीड़ित कर्मचारियों में से कुछ से 15,000 रुपये तक की अवैध वसूली की गई है। पिछले दिनों कई कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों को अस्पताल प्रबंधन और ठेकेदार ने नौकरी से निकालने की बात कही है – जिससे कोरोना के खिलाफ ‘फ्रंटलाइन वर्कर्स’ कहे जानेवाले स्वास्थ्य कर्मचारी काफी परेशान हैं।

मंगलवार, 28 जुलाई को जब प्रबंधन ने कथिततौर पर कई कर्मचारियों को नौकरी से निकालने का मौखिक आदेश दिया तब अस्पताल प्रबंधन के खिलाफ गुस्सा बढ़ गया।

ऐसे ही एक कर्मचारी कविता विनोद है जिनकी उम्र 35 वर्ष है इन्हे भी नौकरी से निकाल दिया गया है। इस आदेश के बाद उन्होंने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा था कि कर्मचारियों को फरवरी के महीने में धमकी दी गई और साथ ही नौकरी के लिए पैसों की मांग की गई मैंने 15,000 रुपये का भुगतान किया था। ऐसा न करने पर नौकरी से निकालने की बात कही गई। पांच महीने के भीतर फिर से इसी तरह की मांग की जा रही है। अब मैं उन्हें पैसे कहाँ से दूंगा? ” 

विनोद 2015 से लेडी हार्डिंग में मल्टी-टास्किंग स्टाफ के रूप कार्यरत हैं, जो रोगी देखभाल कामों में लगे हुए थे और मेडिकल वार्डों को साफ सुथार बनाए रखते थे, जिनमें COVID-19 संक्रमित मरीज भी शामिल थे, जिसे वह "रेड ज़ोन " कहते है ।

कर्मचारियों का कहना है कि “इन सभी दिनों (कोरोना काल) में, हमने छुट्टियों के बिना, दिन में आठ घंटे से अधिक काम किया। हमने मुश्किल समय में भी अपने कर्तव्यों का पालन किया, यह आशा करते हुए कि भविष्य में ऐसी कोई भी अवैध माँग नहीं की जाएगी।"

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यूनियन के माध्यम से इन कर्मचारियों ने दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाज़ा भी खटखटाया है। इसके साथ ही ऐक्टू स्वास्थ्य और परिवार कल्याण (MoHFW) को इस पुरे मामले पर 26 जुलाई को एक पत्र लिखा था। जिसमे उन्होंने बतया कि केंद्रीय स्वस्थ्य मंत्रालय के अधीन अस्पतालों में कर्मचारियों का किस तरह शोषण किया जा रहा है।

इसके साथ ही कर्मचारियों ने सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी आवाज़ उठाई। अधिकारियों को पत्र लिखने के बाद 26 जुलाई को ऐक्टू ने अपने ट्विटर पर एक वीडियो पोस्ट किया। जिसमें कर्मचारी बता रहे है कि उन्हें वेतन नहीं मिला है। इसके साथ ही उसमें लिखा है कि "फूल बरसाने से FOOL बनाने तक की कथा - एक ओर तो केंद्र की सरकार फूल बरसाकर 'कोरोना वारियर्स' के सम्मान और उत्साहवर्धन की बात कर रही है, दूसरी ओर केंद्र सरकार के अपने संस्थान- लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल, नई दिल्ली में ठेका कर्मचारियों को वेतन तक नही मिल रहा।"

प्रदर्शन में मौजूद ऐक्टू के दिल्ली राज्य सचिव सूर्य प्रकाश ने बताया कि अस्पताल प्रबंधन और केंद्र सरकार को कर्मचारियों की स्थिति से अवगत कराने के बावजूद दोनों ने कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाया। अस्पताल प्रबंधन ने जिन कर्मचारियों से कोरोना संकट के दौर में काम करवाया उनको सरासर गैर कानूनी तरीके से निकाल रही है।

आगे उन्होंने कहा कि "आसमान से फूल बरसाने की सच्चाई आज सबके सामने है – मोदी सरकार द्वारा लगातार श्रम कानूनों को कमजोर किए जाने और ठेकेदारी को बढ़ावा देने के चलते आज देश की राजधानी में कर्मचारियों की बहुत बुरी स्थिति है। स्वास्थ्य कर्मचारियों के साथ ऐसा बर्ताव सरकार के मजदूर विरोधी रवैये को साफ़ तौर पर प्रकट करता है।"

ऐक्टू ने कहा कि सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों और स्वास्थ्य कर्मचारियों के प्रति उदासीनता बहुत ही चिंताजनक हैं, इससे न सिर्फ कर्मचारियों का नुकसान है बल्कि कोरोना से परेशान आम जनता को भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। ऐक्टू ने कहा कि वो इन कर्मचारियों के अधिकारों के लिए लगातार संघर्षरत रहेगी।

न्यूज़क्लिक ने लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज के डिप्टी डायरेक्टर (एडमिनिस्ट्रेशन) सोनू कुमार को इस पूरी घटना पर कई बार फोन किया और ईमेल के माध्यम से सचिव, MoHFW से संपर्क करने की भी कोशिश की परन्तु अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है। अगर इस मामले में कोई जबाबा आएगा तो खबर को अपडेट किया जाएगा।

तीसरे पक्ष के ठेकेदार, जय बालाजी सिक्योरिटी सर्विसेज के एक पर्यवेक्षक, जिनके तहत 2016 के बाद से 275 मल्टी टास्किंग स्टॉफ को काम पर रखा गया था, ने पुष्टि की कि कुछ कर्मचारियों को अनुबंध अवधि के बाद काम छोड़ने के लिए कहा गया है, क्योंकि कंपनी का कार्यकाल समाप्त होने वाला है।

ठेकेदार ने पुष्टि कि "कर्मचारियों को मई महीने के लिए इन कर्मचारियों का वेतन इस माह जुलाई में भुगतान किया गया है, जबकि जून का वेतन अभी भी नहीं दिया गया है क्योंकि हमें एटेंडेंस रिकॉर्ड भेजने में अस्पताल प्रबंधन ने देरी की थी। " जबकि उन्होंने कर्मचारियों से पैसे वसूली पर कोई ज़बाब नहीं दिया।

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