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लखीमपुर खीरी किसान हत्याकांड, योगी-मोदी सरकार के लिए भारी पड़ सकता है

किसानों को भाजपाई मंत्री की गाड़ी से कुचले जाने का जो वीडियो वायरल हुआ है, उसने हर संवेदनशील इंसान को, जिसने भी उसे देखा, वह चाहे जिस जाति-धर्म या दल का समर्थक हो, उसे हिला कर रख दिया है। वह दृश्य अहंकारी सत्ता द्वारा आम जनता के रौंदे जाने का रूपक (metaphor) बन गया है और लोगों के दिलों पर हमेशा के लिए अंकित हो चुका है।
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लखीमपुर जनसंहार के मुख्य सूत्रधार गृह राज्यमंत्री अजय टेनी की मोदी मंत्रीमंडल से बर्खास्तगी और 120b के तहत आपराधिक षड्यंत्र में गिरफ्तारी तथा पूरे मामले की सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी में जांच की मांग को लेकर किसान आंदोलन जोर पकड़ता जा रहा है। किसान नेता राकेश टिकैत लखनऊ के आसपास के जिलों को लगातार मथ रहे हैं। लखीमपुर और बहराइच के बाद वे सीतापुर और बाराबंकी में किसानों की बैठकें कर रहे हैं।

दशहरे के दिन पूर्वांचल और अवध के तमाम किसान नेताओं तथा राजनीतिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी हुई, कोतवाली और थानों में निरुद्ध किया गया, (रिपोर्ट लिखे जाने तक धर-पकड़ जारी है ) उन्हें घरों, पार्टी कार्यालयों पर हाउस अरेस्ट किया गया ताकि 16 अक्टूबर के पुतला दहन और 18 अक्टूबर को रेल रोको आंदोलन को बाधित किया जा सके। 

इन आंदोलनात्मक कार्यक्रमों की परिणति 26 अक्टूबर को लखनऊ की विराट किसान महापंचायत में होनी है। ज़ाहिर है गिरफ्तारी और दमन का सिलसिला आने वाले दिनों में जारी रहेगा और इसके प्रतिरोध में आंदोलन समूचे प्रदेश में फैलता, गहराता, नई ऊंचाईयों की ओर बढ़ता जाएगा।

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दरअसल, किसानों को भाजपाई मंत्री की गाड़ी से कुचले जाने का जो वीडियो वायरल हुआ है, उसने हर संवेदनशील इंसान को, जिसने भी उसे देखा, वह चाहे जिस जाति-धर्म या दल का समर्थक हो, उसे हिला कर रख दिया है। वह दृश्य अहंकारी सत्ता द्वारा आम जनता के रौंदे जाने का रूपक (metaphor) बन गया है और लोगों के दिलों पर हमेशा के लिए अंकित हो चुका है।

उत्तर प्रदेश के तमाम इलाकों से ऐसी रिपोर्ट हैं कि स्वयं भाजपा के अपने आधार के लोग कह रहे हैं कि यह तो हद हो गयी है, अब यह बर्दाश्त के बाहर है, ऐसे आपराधिक चरित्र के व्यक्ति को आखिर मंत्री बनाया क्यों गया है और मोदी उसे हटा क्यों नहीं रहे हैं ?

तमाम तबकों में भाजपा से अलगाव और किसान आंदोलन के प्रति सहानुभूति और जुड़ाव बढ़ता जा रहा है। यह कितना वोटों में तब्दील होगा, यह किसानों की बढ़ती नाराजगी को राजनीतिक दिशा दे पाने की विपक्ष की रणनीति और कौशल पर निर्भर करेगा।

किसान नेतृत्व संघ-भाजपा द्वारा पूरे मामले को साम्प्रदयिक रंग देने की साजिश के प्रति बेहद सतर्क है, मोदी-शाह-योगी का पुतला जलाने के कार्यक्रम से उन्होंने सिख आबादी वाले तराई इलाके को तो अलग रखा ही था, बाद में इस कार्यक्रम को दशहरे के दिन की बजाय देश भर में आज 16 अक्टूबर को करने का ऐलान कर दिया है, हालांकि कल भी किसानों ने तमाम जगह पुतले जलाये।

लखीमपुर हत्याकांड ने प्रधानमंत्री मोदी को जिस तरह नंगा किया है, शायद ही इसके पहले किसी और मामले ने किया हो। उनकी बची खुची नैतिक आभा की भी यहां से लेकर अमेरिका तक, पूरी दुनिया में धज्जियां उड़ रही हैं और लोकतांत्रिक शासन दे पाने की उनकी योग्यता और क्षमता सवालों के घेरे में है।

अमेरिका के आधिकारिक दौरे पर गईं वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को अमेरिका के पूर्व वित्त मंत्री (Treasury Secretary) की उपस्थिति में हार्वर्ड केनेडी स्कूल में अपने कलीग मंत्री पिता-पुत्र द्वारा अंजाम दिए गए लखीमपुर जनसंहार को "extremely condemnable" कहना पड़ा। वे इस सवाल का कोई जवाब नहीं दे पाईं कि मोदी जी किसानों की नृशंस और क्रूर हत्या पर अपना मुंह क्यों नहीं खोल रहे हैं, उल्टे उन्होने यह जरूर पूरी दुनिया को बता दिया कि ऐसी घटनाएं भारत के दूसरे राज्यों में भी हो रही हैं, दरअसल यह लखीमपुर में किसानों के जनसंहार के सामान्यीकरण और trivialisation करने की निरर्थक कोशिश है। विदेश से लेकर देश के अंदर तक यह सवाल सबको मथ रहा है और लोग पूछ रहे हैं कि मोदी आखिर अपने आरोपी मंत्री को हटा क्यों नहीं रहे हैं ? दरअसल, यह मामला अब मोदी सरकार के गले की हड्डी बन गया है, जिसे न निगलते बन रहा है, न उगलते। 

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अजय टेनी की मोदी मंत्रीमंडल में उपस्थिति किसानों को हमेशा भाजपाई मंत्री पुत्र द्वारा किसानों के जनसंहार की याद दिलाती रहेगी और आरोपी मंत्री को संरक्षण देने वाले मोदी के शासन करने के नैतिक प्राधिकार पर प्रश्नचिह्न लगाती रहेगी। किसान आंदोलन की आग धधकती रहेगी और मासूम किसानों का लहू उस आग में घी का काम करता रहेगा तथा मोदी-योगी की हत्यारी राजनीति का पीछा करता रहेगा।

दरअसल, मोदी जी आपदा में अवसर के अपने कुख्यात सिद्धांत को UP के लखीमपुर कांड में भी लागू कर रहे हैं। वे आपराधिक रिकॉर्ड वाले टेनी को ब्राह्मण चेहरे के नाम पर जिस उद्देश्य से ले आये थे, परिस्थिति बदल जाने के बाद भी, उसी पर मूर्खता और अहंकार पूर्वक डटे हुए हैं और उसके माध्यम से सिख विरोधी ध्रुवीकरण और ब्राह्मण समूहों को खुश करने की उम्मीद पाले हुए हैं। भाजपा दरअसल टेनी के इस्तीफे की मांग को उन सब पार्टियों को ब्राह्मण विरोधी साबित करने के लिए इस्तेमाल करना चाहती है, जो पिछले दिनों प्रबुद्ध सम्मेलन, परशुराम आदि के माध्यम से भाजपा से ब्राह्मणों की कथित नाराजगी को अपने पक्ष में भुनाने में लगे थे।

पर किसानों की हत्या में षड्यंत्र के आरोपी मंत्री के साथ अतीत के दूसरे मामलों जैसा  "हमारी सरकार में इस्तीफे नहीं होते " की तर्ज़ पर ट्रीटमेंट का दाव अबकी बार उल्टा पड़ेगा क्योंकि किसान इस राष्ट्र की आत्मा हैं, वे ही राष्ट्र हैं।

सत्ता की हवस में मानवता, नैतिकता, लोकतन्त्र जैसे मूल्यों की तो तिलांजलि दे ही दी गयी है, संवैधानिक दायित्वों को भी पूरी तरह ताक पर रख दिया गया है। घटना के बाद से पहली बार सरकार के प्रतिनिधि के बतौर प्रदेश के कानून मंत्री ब्रजेश पाठक जब क्षेत्र के दौरे पर गए, तो वहां वे मृत भाजपा कार्यकर्ताओं हरिओम मिश्र और शुभम मिश्र से मिलकर ही लौट आये, मृत किसानों के परिजनों से मिले तक नहीं गए, सांत्वना और मदद तो दूर की बात है। यहाँ तक कि पत्रकार रमन कश्यप के परिवार से भी नहीं मिले। 

बेशर्मी की हद यह है कि कहा गया कि कश्यप परिवार से मिलने कोई मौर्या जी आएंगे, मिश्रा परिवार से मिलने पाठक जी और कश्यप परिवार से मिलने मौर्या जी, मृतकों का भी जाति के आधार पर बंटवारा?  यह है सामाजिक समरसता, "सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास", की चैंपियन भाजपा का घिनौना सियासी चेहरा!

दरअसल, जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है, किसान आंदोलन को घेरने, बदनाम करने और कुचल देने की कोशिशें नए सिरे से तेज हो गयी हैं क्योंकि किसान आंदोलन महंगाई, बेकारी के साथ जुड़कर पंजाब, यूपी, और उत्तराखंड में चुनाव का निर्णायक तत्व बनता जा रहा है।

14-15 अक्टूबर की रात सिंघू बॉर्डर पर हुई हत्या को लेकर भाजपा IT सेल और गोदी मीडिया ने किसान नेताओं के ख़िलाफ़ बेहद जहरीला और भड़काऊ अभियान छेड़ दिया है। अमित मालवीय ने तो इस हत्या के लिए परोक्ष रूप से राकेश टिकैत और योगेंद्र यादव को जिम्मेदार ठहरा दिया। उनके अनुसार, "बलात्कार, हत्या,वेश्यावृत्ति, हिंसा और अराजकता-किसान आंदोलन के नाम पर ..! किसानों के नाम पर हो रही अराजकता का पर्दाफाश होना चाहिए।"

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किसानों के खिलाफ भाजपा नेतृत्व कितना चरम नफरत से भरा हुआ है और आंदोलन को बदनाम करने और कुचलने के लिये झूठ और साजिश की किस सीमा तक चला गया है, उनके प्रचार-प्रमुख का बयान इसका नमूना है।

बहरहाल, संयुक्त किसान मोर्चा ने इस पूरे घटनाक्रम पर सटीक, सुस्पष्ट, लोकतान्त्रिक स्टैंड लेकर इस मिथ्या-अभियान की हवा निकाल दी है। संयुक्त मोर्चा नेतृत्व की आपात बैठक के बाद जारी बयान में कहा गया है,  "संयुक्त किसान मोर्चा इस नृशंस हत्या की निंदा करते हुए यह स्पष्ट कर देना चाहता है कि इस घटना के दोनों पक्षों, निहंग समूह या मृतक व्यक्ति,का संयुक्त किसान मोर्चा से कोई संबंध नहीं है। "

"हम किसी भी धार्मिक ग्रंथ या प्रतीक की बेअदबी के खिलाफ हैं, लेकिन इस आधार पर किसी भी व्यक्ति या समूह को कानून अपने हाथ में लेने की इजाजत नहीं है, हम यह मांग करते हैं कि इस हत्या और बेअदबी के षड़यंत्र के आरोप की जांच कर दोषियों को कानून के मुताबिक सजा दी जाए। संयुक्त किसान मोर्चा किसी भी कानून सम्मत कार्यवाही में पुलिस और प्रशासन का सहयोग करेगा। लोकतांत्रिक और शांतिमय तरीके से चला यह आंदोलन किसी भी हिंसा का विरोध करता है। "

किसान आंदोलन मोदी-शाह के लिए जितनी बड़ी चुनौती बनता जाएगा, फासिस्ट सत्ता के साथ उसका टकराव उतना ही तीखा होता जाएगा। लखीमपुर इसकी एक बानगी है। कृषि पर कॉर्पोरेट कब्जे के पक्ष में खड़ी मोदी सरकार और किसानों के बीच द्वंद्व बुनियादी और रणनीतिक है। इस द्वंद्व में बीच का रास्ता नहीं है। यह लड़ाई कॉर्पोरेट राज के विरुद्ध देश बचाने और लोकतन्त्र की रक्षा की लड़ाई बनती जा रही है। किसान-आंदोलन में फासीवाद के ध्वंस और हमारे गणतंत्र के पुनर्जीवन के बीज पल रहे हैं।

(लाल बहादुर सिंह, इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं, व्यक्त विचार निजी हैं

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