Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

लॉकडाउन: कोई जाकर किसानों का हाल भी पूछे, राहत पैकेज में भी नहीं दिखी उम्मीद

पिछले दिनों मौसम की मार से परेशान किसानों के सामने 21 दिन के लॉकडाउन ने कई चुनौतियां तो खड़ी कर ही दी हैं साथ ही राहत पैकेज के नाम पर भी उनके हाथ कुछ नहीं लगा।
किसानों का हाल
फाइल फोटो

“देश के किसानों को परेशानी न हो इसके लिए पीएम सम्मान निधि के तहत किसानों के खातों में 2000 रुपये की किस्त अप्रैल के पहले सप्ताह में डाल दी जाएगी। इससे करीब 8.70 करोड़ किसानों को लाभ मिलेगा।”

ये ट्वीट केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री राम विलास पासवान ने गुरुवार, 26 मार्च को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना’ के ऐलान के बाद किया। इस योजना को देश भर में लागू 21 दिनों के लॉकडाउन के बीच एक ‘राहत पैकेज’ के तौर पर सरकार की ओर से पेश किया गया। इसमें 1.75 लाख करोड़ रुपये के योजनाओं की घोषणा हुई है। हालांकि जानकारों का कहना है कि ये धनराशि गरीब तबके के लोगों के लिए नाकाफी है, ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। इस पैकेज में किसानों के साथ एक बड़ा छलावा भी है।

twitt.JPG

भारत का एक बड़ा तबका खेती-किसानी से अपना गुजर-बसर करता है। किसानों के लिए मार्च-अप्रैल का महीना बेहद अहम माना जाता है। इस दौरान खेतों में रबी फसलों की कटाई के साथ उन्हें मंडियों तक पहुंचाने के सारे काम निपटाए जाते हैं। अभी गेहूं, सरसों समेत कई फसलों की हार्वेटिंग कुछ राज्यों में शुरू हो चुकी हैं तो कहीं-कहीं शुरु होने वाली है। इसके साथ ही सब्जी (खीरा, लौकी, तरोई, कद्दू, जैसी फसलें) फलों (खरबूज, तरबूज) खेतों में लगी हैं, जिन्हें कीटशानक और उर्वरक की ज़रूरत है। पिछले दिनों मौसम की मार से परेशान किसानों के सामने 21 दिन के लॉकडाउन ने कई चुनौतियां तो खड़ी कर ही दी हैं साथ ही राहत पैकेज के नाम पर भी उनके हाथ कुछ नहीं लगा।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि पीएम-किसान योजना के तहत अप्रैल के पहले हफ्ते में किसानों के खाते में 2,000 रुपये डाले जाएंगे। हालांकि ये कोई नई बात नहीं है और न ही सरकार किसानों को कोई अतिरिक्त पैसा देने जा रही है। पीएम किसान योजना के तहत अप्रैल में वैसे भी किसानों को पांचवीं किस्त के रूप में ये राशि दी जानी थी।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पीएम-किसान योजना के तहत अभी भी बड़ी संख्या में किसानों को पूरी चार किस्त ही नहीं मिली हैं। अगर सरकार अतिरिक्त राशि नहीं भी देना चाहती थी तो वे ये सुनिश्चित कर सकते थे कि जिन किसानों को पूरी पांच किस्त अभी तक नहीं दी गई है, वो दे दी जाएगी। हालांकि वित्त मंत्री ने ऐसी कोई घोषणा नहीं की।

बीते कई दशकों से खेती-किसानी से जुड़े पत्रकार अखिलेश सिंह कहते हैं, “पीएम किसान योजना में अभी तक सभी लाभार्थी किसानों को सभी किस्ते नहीं मिली। कृषि मंत्रालय की मानें तो पीएम किसान योजना के तहत देश में कुल 14.5 करोड़ अनुमानित लाभार्थी हैं। जबकी पीएम किसान योजना के तहत अभी तक 8.82 करोड़ किसानों को पहली किस्त दी गई है। वहीं 7.82 करोड़ किसानों को दूसरी किस्त और 6.51 करोड़ किसानों को तीसरी किस्त दी गई है। सिर्फ 3.41 करोड़ किसानों को ही चौथी किस्त दी गई है और पांचवीं किस्त अप्रैल में दी जाएगी।”

लॉकडाउन के बाद एक तरफ़ जहां गरीब, दिहाड़ी मजदूरों का पलायन बढ़ा है, तो दूसरी तरफ गरीब किसान अपनी फसल को खेतों में सड़ते हुए देख रहा है। फिलहाल मंडियों का काम ठप्प हो गया है, तो वहीं इसकी वजह से फसलों की खरीद भी बंद है। किसान संगठनों द्वारा मांग उठाए जाने के बाद उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, बिहार, हरियाणा समेत कई राज्यों सरकारों और जिला प्रशासन ने फसल कटाई, मंडी, खाद, बीज, कीटनाशक, राशन, मंडी तक सामान ले जाने के संबंध में आदेश जारी किए हैं। लेकिन किसानों का आरोप है कि सरकार की छूट के बावजूद घर से बाहर निकलने पर किसानों के साथ पुलिस बर्बरता कर रही है।

उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में किसानों की हालात खराब है। जहां एक ओर छोटे किसानों को साधन ना मिलने के कारण सब्जियां सड़ने को मज़बूर हैं तो वहीं जो किसान मंडी तक पहुंच रहे हैं वो भी खरीदार ना मिलने से बरबादी की कगार पर हैं।

यहां के किसान राम नारायण ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहा, "हम छोटे किसान हैं, थोड़ी अपनी जमीन है और कुछ दूसरे से लेकर सब्जी का खेती करते हैं। 24 मार्च को हमने टमाटर और खीरा तुड़वाया था जो करीब 40-50 किलो था, अगर वो मंडी पहुंचता तो मुझे अच्छे- खासे रुपये मिल जाते। लेकिन पुलिस गाड़ियों को आगे जाने नहीं दे रही है, ट्रेन भी बंद हो गई है। मजबूरी में हमें खीरा और टमाटर सड़ने के बाद फेंकना पड़ा।"

पूर्वांचल के ही एक अन्य किसान हरि शंकर मंडी तक पहुंचने में आ रही दिक्कतों के बारे में बताते हैं, " हमने सुना है कि सरकार किसानों के लिए मंडियां खुली रखेगी लेकिन फिलहाल पूरे इलाके में पुलिस का इतना खौफ है कि ट्रांसपोर्टर गाड़ी नहीं चलवा रहे, हम मंड़ी तक पहुंचेंगे कैसे? हमने तो किराये पर खेत और ग्रीन हाउस लिया है, पैसा कहां से देंगे।”

देश के गन्ना किसानों की हालत वैसे ही खस्ता है ऊपर से लॉकडाउन उन पर दोहरी मार साबित हुआ है। गन्ने की खेती के लिए मशहूर बागपत जिले के किसान बंदी की वजह से अपने गन्नों को चीनी मिलों तक पहुंचा नहीं पा रहे हैं।

गन्ना किसान रमेश के अनुसार पुलिस किसी भी परिवहन के साधन को इजाजत नहीं दे रही है। सरकारी आदेश के बावजूद बहुत सारी चीनी मिले पूरी तरह से बंद हैं। बंदी के कारण गन्ने खेतों में पड़े खराब हो रहे हैं।

हरियाणा के किसान भी खेतों में खड़ी अपनी फसल की कटाई को लेकर खाफी परेशान हैं। बेमौसमी बारिश, ओलावृष्टि और आंधी की मार से पहले ही आधी फसल खराब हो गई है तो वहीं खेतों में खड़ी सरसों और गेहूं की फसल की कटी उनके सामने बड़ी समस्या है।

भीवानी के किसान रविंद्र सिंह के मुताबिक हरियाणा की सीमाएं सील होने से अब किसानों के सामने मजदूरों को खेतों तक लाने की समस्या है। फसल कट भी गई तो इन्हें मंडियों में कैसे पहुंचाएंगे, इसको लेकर भी यहां के किसान चिंतित हैं।

रविंद्र सिंह कहते हैं, “इस बार पूरे प्रदेश में लगभग 62.5 लाख एकड़ जमीन पर गेहूं बोया गया है। इसकी कटाई का पूरा दारोमदार दूसरे प्रदेशों से आने वाले मजदूरों पर टिका है। हर साल गेहूं की कटाई के लिए उत्तर प्रदेश और बिहार से लाखों मजदूर यहां आते हैं। लेकिन लॉक डाउन के चलते न तो बसें चल रही और न ही ट्रेन। बार्डर भी सील हो गए हैं, ऐसे में इस बार कटाई के लिए मजदूरों का इंतजाम कैसे होगा। हरियाणा में इतनी तो कंबाईन मशीनें भी नहीं हैं और अब दूसरे राज्यों से लाना भी आसान नहीं है।”

भारतीय किसान यूनियन के गुरनाम सिंह का कहना है कि मजदूरों की मदद के बगैर किसान फसलों को नहीं काट सकते। मजदूरों की कमी से उठान और लदान का काम भी प्रभावित होना तय है। ये किसानों के लिए बहुत कठिन समय है। फसलों की कटाई किसी अकेले के वश की बात नहीं है। मौसम भी खराब हो रहा है अगर ऐसे में फसल काटकर सुरक्षित नहीं किया जाएगा तो आगे खाद्यान्न का संकट भी हो सकता है।”

किसान संगठनों के समूह, कंसोर्टियम के मुख्य सलाहकार पी. चेंगल रेड्डी ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा, “केंद्र सरकार बार-बार यह बात कह रही है कि लोगों को जरूरी सेवाएं मुहैया कराई जाएंगी। जबकि किसानों की खेती खड़ी है और राज्यों की ओर से किसानों को फसलों की कटाई नहीं करने दी जा रही, बाजार नहीं पहुंचने दिया जा रहा है और खरीददारों को खरीददारी से रोका जा रहा है। यदि सरकार ने इस मसले पर समय पर ध्यान न दिया तो हालात नोटबंदी से भी बुरे हो सकते हैं।”

डेयरी, पाल्ट्री जैसे व्यवसाय से जुड़े किसान भी बड़े शहरों के बंद होने संकट में आ गए हैं। जो किसान गांवों से शहरों में कच्चा माल सप्लाई करते हैं वो काफी प्रभावित हो रहे हैं और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर भी इसका बुरा असर पड़ है।

पंजाब के राजपुरा में डेयरी व्यवसाय से जुड़े गुरप्रीत सिंह चंड़ीगढ़ और आस-पास के बड़े शहरों में दुध स्पलाई किया करते हैं। अब लॉकडाउन के कारण उन्हें दूध पहुंचाने में काफी दिक्कतें आ रही हैं और नुकसान भी हो रहा है।

उन्होंने बताया, ‘चंडीगढ़ और आसपास के शहरों में मेरे ज्यादातर ग्राहक मिठाई की दुकान वाले हैं जो मावा बनाने के लिए दूध का इस्तेमाल करते हैं, कुछ पनीर बनाते हैं लेकिन अब न तो मिठाई वाले और न ही राशन वाले दूध खरीद रहे हैं।

गौरतलब है कि शुक्रवार 27 मार्च को केंद्र सरकार द्वारा जारी नए आदेशों में किसानों को कई छूट देने संबंधी बातें कही गई हैं लेकिन जानकारों का कहना है कि लॉकडाउन से फसलों के लिए मजदूरों का मिलना मुश्किल होगा तो वहीं बाजार में भी बिक्री आसान नहीं होगी। बाज़ार में मंदी के बने रहने के आसार हैं, जिससे डिमांड में कमी आएगी और किसानों को उनकी फसल का सही दाम नहीं मिल पाएगा।

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest