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MCD चुनाव: निगम में भ्रष्टाचार कितना बड़ा मुद्दा, क्या कहती है जनता?

निगम के सभी कार्य आमजन की बेसिक सुविधा से जुड़े हैं, लेकिन भ्रष्टाचार के चलते सबसे ज्यादा दिक्कतें उन्हें यहीं झेलनी पड़ती है। लोगों के मुताबिक यहां हर छोटे-बड़े काम को लेकर रेट फिक्स है, यदि कोई पैसे नहीं देता, तो एमसीडी और पुलिस उसका काम नहीं होने देते।
MCD
दिल्ली नगर निगम

इन चुनावों में सीएम केजरीवाल जहां एमसीडी को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने की बात कर रहे हैं, तो वहीं बीजेपी उनकी सरकार और मंत्रियों को ही भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घेर रही है। ऐसे में निगम चुनाव 2022 के मद्देनजर आम जनता इस पूरे भ्रष्टाचार को कैसे देखती है हमने कोशिश की दिल्लीवासियों से समझने की।

बता दें कि एमसीडी के जिम्मे अलग-अलग क्षेत्रों में जन्म और मृत्यु का रिकॉर्ड रखना और प्रमाणपत्र जारी करने से लेकर ई-रिक्शा, रिक्शा और ठेलों को लाइसेंस देना और उनका नियमन करना, हाउस टैक्स से लेकर दूसरे तरह के टैक्सों की वसूली करना आदि करने के साथ ही टाउन प्लानिंग, प्राइमरी स्कूलों का संचालन, सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं के तहत अस्पतालों को चलाना, साफ़-सफाई सुनिश्चित करना, जल संसाधनों के विकास के साथ जल निकासी को भी सुनिश्चित करना है। हालांकि ये सभी कार्य आमजन की बेसिक सुविधा से जुड़े हैं, लेकिन भ्रष्टाचार के चलते सबसे ज्यादा दिक्कतें उन्हें यहीं झेलनी पड़ती हैं।

सोनिया विहार के पुश्ता साढ़े चार में रहने वाले प्रदीप ने न्यूज़क्लिक को बताया कि उन्हें अपने 50 गज के मकान की छत की ढलाई के लिए एमसीडी को 25 हजार रुपये तो वहीं पुलिस को 10 हज़ार रुपये देने पड़े। उनके मुताबिक निगम के पार्षद का यहां हर छोटे-बड़े काम को लेकर रेट फिक्स है, यदि कोई पैसे देने में ना-नुकुर करता है, तो एमसीडी और पुलिस उसका काम नहीं होने देते।

प्रदीप की तरह ही वैद्यनाथ चौधरी ने हमें बताया कि उन्हें भी अपने घर को लेकर एमसीडी की कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा। घर बनवाने के दौरान उनसे बार-बार पैसे की मांग की गई, जब उन्होंने पैसे नहीं देने का फैसला किया तो एमसीडी ने उनके कई काम अटका दिए, बार-बार दफ्तर के चक्कर लगवाए, बिना बात के नोटिस चस्पा कर जुर्माने की वसूली की।

हर एक काम के लिए एमसीडी में लगती है घूस!

वैद्यनाथ के मुताबिक पूर्वी दिल्ली के ज्यादातर इलाकों में हर छोटे-बड़े काम जैसे नाली साफ करवाने से लेकर सार्वजनिक इलाकों से कूड़ा हटाने तक हर एक काम के लिए एमसीडी को घूस देनी पड़ती है। कई सालों से निगम में भ्रष्टाचार एक बहुत बड़ा मुद्दा बना हुआ है, जिसे लेकर कई बार शिकायत भी की गईं, लेकिन इसके बावजूद कोई ठोस कार्रवाई देखने को नहीं मिली।

लक्ष्मीनगर के रहने वाले राजू पेशे से ठेका कर्मचारी हैं। वे बताते हैं कि नगर निगम में छोटे-छोटे काम कराने के लिए भी गलत रास्ते का इस्तेमाल करना पड़ता है। घरों के निर्माण के लिए नगर निगम अधिकारियों के द्वारा लाइसेंस देने का अनुचित लाभ लिया जाता है। ऑनलाइन नक्शा पास करवाने के बावजूद आप बिना पैसे दिए घर नहीं बनवा सकते। किसी प्रमाण पत्र के बनवाने के लिए भी कर्मचारियों को घूस देनी पड़ती है। वो कहते हैं कि इस पर हर हाल में रोक लगनी चाहिए, भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों पर कार्रवाई होनी चाहिए नहीं तो ये लोग आमलोगों के मेहनत की कमाई ऐसे ही लूटते रहेंगे।

इसी मसले पर न्यूज़क्लिक से बातचीत करते हुए जहांगीर पुरी वार्ड के पूर्व पार्षद अश्वनी बागड़ी कहते हैं कि भ्रष्टाचार को दो श्रेणियों में बाँटा जा सकता है। “एक भ्रष्टाचार में लोग सीधे शामिल नहीं होते जबकि दूसरे भ्रष्टाचार में लोगों से सीधे पैसे की उगाही होती है. अगर आप सैनिटेशन विभाग की बात करें तो एक वार्ड में तक़रीबन 300 सफ़ाई कर्मचारी होते हैं लेकिन काम पर आपको आधे कर्मचारी भी नहीं मिलेंगे। इसी कारण सफ़ाई की पर्याप्त व्यवस्था नहीं हो पाती। दरअसल ये कर्मचारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों को घूस देकर अक्सर काम से ग़ायब रहते है। इसी तरह मलेरिया के लिए छिड़काव की दवा की काला बाज़ारी की जाती है। अगर वर्क्स विभाग के कामकाज को देखें तो पता चलेगा कि व्यापारियों की दुकानों पर नोटिस चस्पा कर बीस लाख तक जुर्माना माँगा जाता है। जब घबराया व्यापारी इनसे रहम की अपील करता है तो जुर्माने की रक़म को कम कर भारी मात्रा में रिश्वत ली जाती है। उन्होंने जब इसकी शिकायत तत्कालीन निगम आयुक्त से की तो वे मुझे कर्मचारियों से पैसे लेने के लिए दबाव बनाने लगे। मुझे समझाया जाने लगा कि अगर पैसे नहीं लिए तो मेरे वार्ड में निगम की कार्रवाई तेज हो जाएगी और मेरी ही छवि लोगों के बीच धूमिल होगी। जब यह मुद्दा सदन में उठाया गया तो निगम आयुक्त ने दबे शब्दों में माना कि पैसा मेयर और अन्य अधिकारियों तक निर्बाध रूप से पहुँचता है।”

भ्रष्टाचार के कई मामले हो चुके हैं उजागर

ध्यान रहे कि इसी साल एक सफाई कर्मचारी से पांच हजार रुपये की रिश्वत मांगने के मामले में दिल्ली सरकार की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा (एसीबी) ने सहायक स्वच्छता निरीक्षक (एएसआई) को रंगे हाथ गिरफ्तार किया था। इसी तरह पूर्वी दिल्ली में जूनियर इंजीनियर और बेलदार को सीबीआई ने सात हजार की रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार किया था। इसके अलावा दिल्ली नगर निगम पर आरोप लगते रहे हैं कि वो हर साल पार्किंग फीस के नाम पर ग्रामीण सेवा और आरटीवी (रैपिड ट्रांजिट व्हिकल) वालों से लाखों रुपये की वसूली करती है। साथ ही ठेके के सफाई कर्मचारियों, छोटे व्यापारियों और रेहड़ी-पटरी वालों से भी अवैध वसूली के मामले सामने आए हैं।

निगम में भ्रष्टाचार के मामले को लेकर एमसीडी के एक बड़े अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर न्यूज़क्लिक को बताया कि निगम के लगभग हर विभाग या यूं कहें कि कमेटियों में गड़बड़ी है, आमतौर पर जेई से लेकर बेलदार तक सब जांच के घेरे में रहते हैं, लेकिन ये बातें अंदर की अंदर ही खत्म कर दी जाती हैं, क्योंकि कहीं न कहीं यही लोग पार्षद की कमाई का जरिया होते हैं।

अधिकारी के मुताबिक जब पानी सिर से ऊपर चढ़ गया और लोग रंगे हाथों पकड़े जाने लगे, तब इस साल जून में निगम ने स्वयं की भ्रष्टाचार निरोधक सेल का गठन किया। इससे पहले तक निगम में कर्मचारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार की आने वाली शिकायतों को सीधे निगम के ही सतर्कता विभाग में भेजा जाता था, जो आमतौर पर वहीं खत्म भी हो जाती थीं और नागरिकों को इसकी ज्यादा जानकारी तक नहीं होती थी। लेकिन अब इस सेल के जरिए आमजन तक इस जानकारी को साझा करना बाध्य बनाया गया है।

15 साल से एमसीडी में बीजेपी और निगम में फलता-फूलता भ्रष्टाचार

गौरतलब है कि कि निगम एकीकरण और परिसीमन के बाद इस बार एमसीडी का चुनाव 250 वार्डों के लिए लड़ा जा रहा है और इससे चुनकर आने वाले पार्षद इस बार केवल एक ही मेयर का चुनाव करेंगे, जो दिल्ली एमसीडी का मेयर कहलाएगा। यानी इस पद पर बैठने वाले व्यक्ति के पास काफी शक्तियां होंगी, जो लोगों के स्थानीय मुद्दों के साथ ही हजारों करोड़ रुपये के बजट से भी जुड़ी हुई हैं। ऐसे में भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा होना चाहिए था।

बीते दिनों आम आदमी पार्टी के नेता राघव चड्ढा ने भी बीजेपी पर आरोप लगाते हुए कहा था कि एमसीडी का मतलब आज सबसे ज्यादा भ्रष्ट डिपार्टमेंट है। दिल्ली नगर निगम में इतना भ्रष्टाचार है कि विदेश में बड़े बड़े विश्वविद्यालय इस बात पर रिसर्च कर रहे है। एमसीडी के पार्षद हफ्ते की वसूली करते हैं। लेंटर डलवाने, छत बनवाने तक सभी का रेट फिक्स है। यहां सभी को स्थानीय पार्षद को रिश्वत देनी पड़ती है। हालांकि बीजेपी भी आप पर इसे लेकर पलटवार कर रही है और उसके नेताओं के नाम का आईना दिखा रही है।

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