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MCD चुनाव: झुग्गी-झोपड़ी से नदारद है स्वच्छ भारत मिशन, शौचालय अब भी दूर की कौड़ी

दिल्ली नगर निगम चुनावों के मद्देनजर न्यूज़क्लिक की टीम ने कुछ ऐसी ही झुग्गी-झोपड़ी इलाकों का दौरा किया और वहां के लोगों से उनकी शौचालय को लेकर समस्याओं को जानने की कोशिश की।
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देश को ओडीएफ यानी खुले में शौच से मुक्त हुए 3 साल पूरे हो चुके हैं। लेकिन दिल्ली एमसीडी चुनाव में स्वच्छता से जुड़ा ये मुद्दा एक बार फिर नए टारगेट के साथ झुग्गी-झोपड़ी इलाकों में ज़ोर पकड़ रहा है। निगम प्रत्याशी भले ही इसे लेकर तमाम वादे कर रहे हों लेकिन ये सच्चाई है कि दशकों से रेलवे पटरियों और यमुना किनारे झुग्गियों में गुजर बसर करने वाले लोग आज़ादी के अमृत महोत्सव में भी खुले में शौच को मजबूर हैं।

बता दें कि देश में स्वच्छ भारत मिशन को शुरू हुए लगभग 8 साल हो चुके हैं। इस मिशन के तहत केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने साल 2019 तक पूरे भारत को स्वच्छ करने का टारगेट रखा थे। इसमें सभी लोगों को पर्सनल और सामुदायिक शौचालय की सुविधा देना भी शामिल था। इसी को ध्यान में रखते हुए अपनी उपलब्धि के तौर पर आनन-फानन में साल 2019 में मोदी सरकार में पूरे देश को ओडीएफ फ्री घोषित कर दिया। देश के सुदूर इलाकों की तो बात छोड़िए, राजधानी में ही सरकार शौचालयों की पूरी तरह से स्थिति ठीक नहीं करवा पाई। कई जगह सार्वजनिक शौचालय बेकार पड़े हैं, तो कई इलाकों में इनका निर्माण अधूरा है और कहीं-कहीं तो वे बने ही नहीं घोटालों की भेंट चढ़ गए।

दिल्ली नगर निगम चुनावों के मद्देनजर न्यूज़क्लिक की टीम ने कुछ ऐसी ही झुग्गी-झोपड़ी इलाकों का दौरा किया और वहां के लोगों से उनकी शौचालय को लेकर समस्याओं को जानने की कोशिश की। यहां लोगों ने हमें शौचालय के साथ ही साफ-सफाई, पानी निकासी और गंदगी को लेकर भी कई दिक्कतें बताईं, जो स्वच्छ भारत मिशन के लिए निश्चित तौर पर शर्मनाक है।

बिना शौचालय संक्रमण का खतरा

दिल्ली के शाहदरा के मानसरोवर पार्क के निकट लाल बाग झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाली सीमा बताती हैं कि उनके आस-पास के इलाके में कोई शौचालय की सुविधा नहीं है। एक-दो जो सार्वजनिक हैं, वो भी घर से दूर हैं और बार-बार लोगों के इस्तेमाल से गंदे पड़े रहते हैं। ऐसे में खुले में जाने के अलावा उनके पास कोई चारा नहीं है।

सीमा के मुताबिक सबसे ज्यादा यहां महिलाओं को समस्या माहवारी के दिनों में होती है। डॉक्टर साफ-सफाई का ध्यान रखने को कहते हैं, लेकिन घर में शौचालय की व्यवस्था नहीं होने के कारण हमें इस दौरान भी खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है। जहां संक्रमण का खतरा तो होता ही है, साथ ही गंदगी से मन भी खराब हो जाता है। कई बार इसके बाद खाने-पीने का मन तक नहीं करता, लेकिन ये यहां रहने वालों की मजबूरी है।

झुग्गियां टूटने के कगार पर हैं, हम शौचालय का क्या ही सोचें?

उत्तर-पूर्वी दिल्ली के सीलमपुर इलाके के पास झुग्गी में रहने वाले हनी खान कहते हैं कि उन्होंने अपनी ज्यादातर ज़िन्दगी झुग्गी-झोपड़ी की गंदगी में ही निकाली है। शुरुआत में मंडी स्टेशन के पास रेल की पटरियों पर रहते थे और फिर सीलमपुर में आ गए। हनी मछलियाँ बेचकर जीविका चलाते हैं और शौचालय को अपने लिए सपने के तौर पर देखते हैं।

ध्यान रहे कि भारतीय रेलवे, जिसकी जमीन पर झुग्गियां बनी हुई हैं, ने कई बार यहां से लोगों को निकालने की कोशिश की। हालाँकि उनके मंसूबे सफ़ल नहीं हो पाए और कई बार राजनीति के पैर में फंस कर रह गए। यहां के लोग चुनाव के दौरान राजनेताओं के खोखले वादों से दु:खी हैं, जो चुनाव के तुरंत बाद भुला दिए जाते हैं।

हनी बताते हैं, “जहाँ झुग्गी वहीं मकान कब से सुन रहे हैं लेकिन हमारी कहीं सुनवाई नहीं हो रही। यहां तो झुग्गियाँ टूटने के कगार पर हैं, हम शौचालय का क्या ही सोचें। प्रशासन जब चाहें, जैसे चाहें और जहाँ चाहें, बिना किसी सुविधा के हमें उखाड़ कर फेंक देता है। फिर चाहें उस जगह पर नाली का पानी उफन रहा हो, या कूड़े का पहाड़ हो, हमारी जिंदगी की किसी को क्या परवाह है।”

सरकार और एमसीडी के बेपरवाही की कहानी चिल्ला मछली अड्डा की भूतनी देवी भी खूब सुनाती हैं। वो यमुना किनारे बिना किसी सुविधा के अस्थाई टेंट जैसे घर में अपने परिवार के साथ रह रही हैं और सरकार से कागज़ों की जगह जमीन पर स्वच्छ भारत मिशन चलाने की बात करती हैं।

भूतनी देवी के अनुसार अंधेरे में रात-बिरात खुले में शौच जाने में डर तो लगता ही है। इसके अलावा गंदे पानी से शरीर साफ करने में और भी डर लगता है। क्योंकि इस इलाके में सरकार के पानी के टैंकर भी बामुश्किल ही पहुंचते हैं। भूतनी देवी और उनकी बच्ची कई बार इंफैक्शन का शिकार हो चुकी हैं, लेकिन उनके पास शौचालय और पानी के इंतज़ार के अलावा फिलहाल कोई विकल्प नहीं है।

पॉश इलाकों में भी सफाई की समस्या

दक्षिणी दिल्ली का पॉश इलाका माने जाने वाले मालवीय नगर से ठीक सटे बेगमपुर में भी अतिक्रमण और झुग्गी-झोपड़ी वाले इलाके हैं। हालांकि यहां रहने वाले कई लोगों को केंद्र सरकार की सबसे बड़ी योजना स्वच्छ भारत मिशन के काम और नाम से कोई लेना-देना नहीं है। यहां बरसातों में सीवर उफनने की गंभीर समस्या है। शौचालय तो कई जगह बने हैं, लेकिन इतने गंदे पड़े हैं कि कोई उन्हें इस्तेमाल नहीं करना चाहता। लोगों को वो शौचालय से ज्यादा बीमारियों का घर लगता है।

यहां रहने वाली अनम के अनुसार मालवीय नगर के खास इलाकों को छोड़ दें, तो हौजरानी, जहाँपनाह और खिड़की एक्सटेंशन रोड पर हर जगह तंग गलियां, सीवर निकासी, कूड़े औऱ अवैध कब्ज़ों की समस्या है। अनम का मानना है कि इन इलाकों की परेशानियां मालवीय नगर की चकाचौंध में कहीं खो गई हैं। यहां आवारा पशुओं की भी एक अलग समस्या रहती है, जो लोगों का जीना मुहाल किए हुए है। एमसीडी का काम तो मालवीय नगर में ही दिखता है, ये इलाके तो ऐसे ही अनदेखे रह जाते हैं।

गौरतलब है कि पीएम मोदी की ओर से हाल ही में झुग्गी पुनर्वास परियोजना के तौर पर में दिल्ली में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 3,024 नवनिर्मित फ्लैटों का उद्घाटन किया गया। इसे दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी की ओर से एमसीडी चुनाव से पहले का सियासी स्टंट करार दिया, तो वहीं एमसीडी ने इसे अपने चुनाव का मुख्य मुद्दा बना लिया है। कुल मिलाकर देखें तो यहां बीजेपी और आप में सीधी टक्कर तो है ही, इसके अलावा बेसिक मुद्दों को लेकर एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप भी हैं।

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