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एमपी : आंकड़ों में खुलासा, बीजेपी के 39%, कांग्रेस के 34% विधायकों के 3 से ज़्यादा बच्चे

वर्ष 2000 में मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने नौकरियों और पंचायती राज चुनावों में 2 चाइल्ड पॉलिसी को अपनाया था। मगर 2005 में बीजेपी सरकार ने पंचायत चुनावों से इस नीति को हटा दिया था।
एमपी : आंकड़ों में खुलासा, बीजेपी के 39%, कांग्रेस के 34% विधायकों के 3 से ज़्यादा बच्चे
सांकेतिक तस्वीर. सौजन्य: टाइम्स ऑफ़ इंडिया

12 जुलाई को उत्तर प्रदेश की जनसंख्या नियंत्रित करने के उद्देश्य से सरकार ने जनसंख्या नियंत्रण बिल-2021 का मसौदा पेश किया, उसी की तर्ज पर मध्य प्रदेश में बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार के एक मंत्री और विधायक ने राज्य में समान विधेयक की मांग की।

यूपी के जनसंख्या नियंत्रण क़ानून के पेश होने के कुछ घंटों बाद ही मध्य प्रदेश के स्वास्थ्य एवं शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग ने एक समान विधेयक की मांग कर दी।

एक कदम आगे बढ़ते हुए, पूर्व प्रोटेम स्पीकर और भोपाल के हुजूर निर्वाचन क्षेत्र के विधायक रामेश्वर शर्मा ने 13 जुलाई को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को एक पत्र लिखकर जनसंख्या नियंत्रण विधेयक की तत्काल आवश्यकता की मांग करते हुए कहा कि राज्य की जनसंख्या जर्मनी, इंग्लैंड, फ्रांस, इटली और स्पेन जैसे विकसित देशों की जनसंख्या को पार कर गई है और राज्य के विकास को "बाधित" कर रही है।

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यह पहली बार नहीं है कि बीजेपी के नेतृत्व वाली मध्य प्रदेश सरकार उत्तर प्रदेश सरकार के नक़्शेक़दम पर चल रही है। हाल ही में मध्य प्रदेश सरकार से उत्तर प्रदेश की कई नीतियों को अपनाया है, जिसमें धर्मांतरण विरोधी क़ानून, पत्थरबाजों के ख़िलाफ़ क़ानून और आरोपित व्यक्तियों की संपत्ति जब्त करने जैसे क़ानून शामिल हैं।

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उत्तर प्रदेश जनसंख्या (नियंत्रण, स्थिरीकरण और कल्याण) विधेयक 2021 के प्रस्तावित प्रावधानों के अनुसार, दो से अधिक बच्चों वाले व्यक्ति को स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने, सरकारी नौकरी पाने, सरकारी सेवा में पहले से रहने पर पदोन्नति पाने और सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के लाभ प्राप्त करने से रोक दिया जाएगा।

विडंबना यह है कि 227 मौजूदा विधायकों में से, भाजपा के 39% से अधिक विधायक, जिनमें 13 मंत्री शामिल हैं, साथ ही 34.8% कांग्रेस विधायक इसके शिकार हो सकते हैं क्योंकि उनके तीन और उससे अधिक बच्चे हैं।

सत्तारूढ़ भाजपा के पास 125 मौजूदा विधायक हैं जबकि कांग्रेस के पास 95 और सात अन्य विधायक बहुजन समाजवादी पार्टी, समाजवादी पार्टी और चार निर्दलीय हैं।

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मध्य प्रदेश विधान सभा की वेबसाइट पर मौजूद डाटा के अनुसार, सत्तारूढ़ बीजेपी के 125 विधायक हैं जिनमें से 49 के 3 या 3 से ज़्यादा बच्चे हैं, जिसमें 13 मंत्री भी शामिल हैं। 1 बीजेपी विधायक के 9 बच्चे हैं, 1 के 8 जबकि 4 विधायकों के 6 बच्चे हैं और 14 विधायकों के 4 से ज़्यादा बच्चे हैं।

इसके अलावा बीजेपी के सिंगरौली(जनरल सीट) से विधायक के 9 बच्चे हैं, और पड़ोसी विधानसभा क्षेत्र सिधी के विधायक के 8 बच्चे हैं।

बीजेपी के 125 विधायकों में से 31 मंत्री हैं। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 13 के 3 या 3 से ज़्यादा बच्चे हैं। 3 मंत्री- बिसाहूलाल सिंह, प्रेम सिंह पटेल और भूपेंद्र सिंह के 5 से ज़्यादा बच्चे हैं।

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विपक्षी पार्टी कांग्रेस के 95 विधायक हैं, इनमें से 16 विधायकों के 3 बच्चे हैं, 12 के 4, 3 के 5 और 1 विधायक के 9 बच्चे हैं। कांग्रेस के पेतलावाड़(अनुसूचित जाति सीट) से विधायक और उदयपुर(जनरल सीट) से विधायकों के क्रमशः 9 और 6 बच्चे हैं।

जहाँ तक सांसदों की बात है, मध्य प्रदेश से लोक सभा में 28 सांसद हैं और राज्य सभा में 10 सांसद हैं जिनमें 6 केंद्रीय मंत्री भी शामिल हैं। 40 में से लोक सभा और राज्य सभा में एक-एक सीट ख़ाली है।

लोकसभा और राज्यसभा की वैबसाइट पर मौजूद डाटा के अनुसार, राज्य से 38 सांसदों में से 13 के 3 और 3 से ज़्यादा बच्चे हैं जिनमें से 12 बीजेपी के हैं।

धार के बीजेपी के लोकसभा सांसद और कांग्रेस के एक राज्य सभा सांसद के 5 बच्चे हैं। बीजेपी के 4 सांसद, जिसमें से 2 केंद्रीय मंत्री हैं के 4-4 बच्चे हैं।

मध्य प्रदेश क्षेत्रफल की दृष्टि से देश का दूसरा और जनसंख्या की दृष्टि से पाँचवाँ सबसे बड़ा राज्य है। 2011 की जनगणना के अनुसार, राज्य की जनसंख्या 7.27 करोड़ है, जिसकी विकास दर 20% से अधिक है। हालांकि, 2001 और 2011 के बीच विकास दर में 24.34 प्रतिशत से 20 प्रतिशत की भारी गिरावट देखी गई। 2001 की जनगणना के अनुसार राज्य की जनसंख्या 6.03 करोड़ थी।

यह पहली बार नहीं है जब मध्य प्रदेश की जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए कोई कानून प्रस्तावित किया गया है। 2000 में, कांग्रेस के नेतृत्व वाली दिग्विजय सिंह सरकार ने कानूनों में संशोधन करके सरकारी सेवाओं और पंचायती राज चुनावों में दो-बाल नीति का विकल्प चुना। हालांकि, 2005 में बीजेपी सरकार ने पीआरआई चुनावों से 2 चाइल्ड पॉलिसी को वापस ले लिया था।

2005 में बीजेपी ने वापस ली पंचायत चुनाव में 2 चाइल्ड पॉलिसी

मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकार ने लगभग दो दशक पहले, 2000 में सरकारी नौकरियों और पंचायती राज चुनावों में 2 चाइल्ड पॉलिसी को अपनाया था।

राज्य ने मध्य प्रदेश सिविल सेवा (सेवा की सामान्य शर्त) नियम 1961 में संशोधन किया था। मप्र सरकार के सामान्य प्रशासनिक विभाग द्वारा जारी आदेश के अनुसार, दिनांक 10 मार्च, 2000: “कोई भी उम्मीदवार किसी सेवा में नियुक्ति के लिए पात्र नहीं होगा या पद जिनके दो से अधिक जीवित बच्चे हैं जिनमें से एक का जन्म 26 जनवरी 2001 को या उसके बाद हुआ है।"

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मध्य प्रदेश ने पंचायती राज और ग्राम स्वराज अधिनियम, 1993 की धारा 36 (डी) में संशोधन करके पंचायती राज और ग्राम स्वराज अधिनियम, 1993 की धारा 36 (डी) में संशोधन करके पंचायती राज चुनावों में 2 चाइल्ड पॉलिसी का विकल्प चुनकर जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए एक और कदम उठाया और इसके आवेदन की कट-ऑफ तिथि निर्धारित की गई 26 जनवरी, 2001। यह प्रावधान पंचायती राज संस्थाओं, स्थानीय निकायों, मंडियों और सहकारी समितियों के सदस्यों पर लागू किया गया था। इस प्रावधान को लागू करने के लिए ज़िला कलेक्ट्रेट को ज़िम्मेदार बनाया गया था।

हालांकि, निर्णय उलटा पड़ गया और निम्नलिखित पीआरआई चुनावों में, कुल 2,122 अयोग्य उम्मीदवारों में से, 54% (1,140) ने 2 चाइल्ड पॉलिसी का उल्लंघन किया था। इसके बाद इसे मप्र हाईकोर्ट में चुनौती दी गई।

उच्च न्यायालय ने 17 मई, 2002 के अपने फ़ैसले में, एमपी पंचायती राज और ग्राम स्वराज अधिनियम 1973 के प्रावधान पर रोक लगा दी और अंत में, भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार ने 2005 में प्रावधानों को वापस ले लिया।

सुप्रीम कोर्ट में याचिका

चीन के जनसंख्या नियंत्रण मॉडल की तर्ज पर जनसंख्या नियंत्रण कानून की मांग करते हुए पिछले साल दिसंबर में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी। अपने जवाब में, केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि भारत विभिन्न स्वैच्छिक जन्म नियंत्रण उपायों के माध्यम से प्रजनन दर 2.1 के प्रतिस्थापन स्तर को प्राप्त करने के कगार पर है। इसमें कहा गया है कि चीन मॉडल की तरह अंतरराष्ट्रीय अनुभव से पता चलता है कि बच्चों की एक निश्चित संख्या के लिए कोई भी जबरदस्ती प्रतिकूल थी और इससे जनसांख्यिकीय विकृति होगी।

अदालत को समझाते हुए, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने प्रस्तुत किया कि 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 25 ने पहले ही 2.1 या उससे कम के प्रतिस्थापन स्तर की प्रजनन क्षमता हासिल कर ली है। लेकिन सात राज्यों - उत्तर प्रदेश (57), बिहार (37), मध्य प्रदेश (25), राजस्थान (14), झारखंड (9), छत्तीसगढ़ (2) और असम (2) में 146 जिलों में प्रजनन दर 3 से ऊपर थी। जनगणना कार्यालय के अनुसार, 2001-11 पिछले 100 वर्षों में पहला दशक था जिसमें भारत ने अपनी जनसंख्या में पिछले दशक की तुलना में कम वृद्धि की थी।

डाटा और ग्राफ़िक : पीयूष शर्मा

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें।

MP: 39 % of BJP, 34 % of Congress MLAs, Including 13 Ministers, Have Three and Above Children, Shows Data

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