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मध्य प्रदेश : मंत्री ने माना, आदिवासी कल्याण कोष के पैसों को मोदी की रैली पर खर्च किया 

कांग्रेस के आदिवासी विधायक अलावा का आरोप है कि राज्य सरकार के पास न तो आदिवासी मनरेगा मजदूरों का बकाया चुकाने के लिए धन है और न ही छात्रवृत्ति की प्रतीक्षा कर रहे आदिवासी छात्रों को देने के लिए। लेकिन इस तरह की रैलियों पर खर्च करने के लिए करोड़ों रुपये हैं। 
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मध्य प्रदेश सरकार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 15 नवम्बर को आदिवासी गौरव दिवस रैली कार्यक्रम में भाग लेने के लिए दो लाख से अधिक आदिवासियों को लाने में विकास एवं कल्याण मद में आवंटित बजट में से 15 करोड़ रुपये से अधिक से अधिक धन खर्च कर दिया। यह सारा तामझाम आदिवासी मतदाताओं को लुभाने के लिए भाजपा के आदिवासी आउटरीच कार्यक्रम के तहत किया गया था। 

राज्य के 52 से अधिक कलेक्टरों ने अपने-अपने जिले से आदिवासियों को प्रधानमंत्री की रैली में लाने और फिर उन्हें घर पहुंचाने, रैली के दौरान उनको ठहराने एवं उनके खाने-पीने पर 15 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए थे। इस बात को खुद जनजातीय मामलों की मंत्री मीना सिंह ने हालिया संपन्न विधानसभा के शीतकालीन सत्र में स्वीकार किया। 

हालांकि, सरकार ने तब कांग्रेस के आदिवासी विधायक हीरालाल अलावा के इस दावे को खारिज कर दिया था, जब उन्होंने प्रधानमंत्री की रैली के आयोजन से कुछ ही दिन पहले भाजपा के आदिवासी आउटरीच कार्यक्रम के लिए आदिवासी विकास एवं कल्याण कोष के दुरुपयोग का मुद्दा उठाया था। विधायक अलावा ने आरोप लगाया कि यह फंड राज्य की 1.53 करोड़ (21.90 फीसदी) आदिवासी आबादी के विकास एवं कल्याण के लिए रखा गया था। 

कांग्रेस के दिग्गज नेता और भोपाल उत्तर के मौजूदा विधायक आरिफ अकील द्वारा विधानसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 15 नवंबर की रैली के लिए इस्तेमाल किए गए धन का विवरण मांगे गए सवाल का जवाब देते हुए जनजातीय कार्य मंत्री मीना सिंह ने कहा कि इस आयोजन के लिए राज्य भर से आदिवासियों को दो किस्तों में लाने के लिए 14.86 करोड़ रुपये खर्च किए गए। इसके लिए 9 नवम्बर को सभी जिलों में कुल मिलाकर 12.92 करोड़ रुपये से अधिक धन राशि जारी की गई और इसके बाद,1.94 करोड़ रुपये 11 जिलों की अतिरिक्त धन राशि की मांग पर निर्गत किए गए थे। 

आदिवासी गौरव दिवस मनाने और भारत के पहले विश्व स्तरीय रेलवे स्टेशन हबीबगंज का नाम बदलकर भोपाल की पूर्व गोंड जनजाति की रानी ‘रानी कमलापति’ के नाम पर रखने का आयोजन भाजपा के आदिवासी आउटरीच कार्यक्रम का हिस्सा थे। यह कार्यक्रम भाजपा ने 2018 चुनाव में आदिवासी सीटें गंवाने के बाद राज्य की 21 फीसदी आदिवासी मतदाताओं को लुभाने के लिए बनाया है। इसलिए प्रधानमंत्री ने 15 नवम्बर को आदिवासी पोशाक में भोपाल में सभा को संबोधित किया और इसके बाद रानी कमलावती के नाम से हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नामकरण किया तथा उसका उद्घाटन किया।

मध्य प्रदेश में भाजपा 2003 से ही सत्ता में है, 2018-19 के मात्र 15 महीने के कांग्रेस शासन को छोड़कर। भाजपा ने न केवल मध्य प्रदेश में बल्कि छत्तीसगढ़, राजस्थान और झारखंड में विधानसभा चुनावों में आदिवासी सीटों पर कड़े मुकाबले में शिकस्त मिलने के बाद बड़े पैमाने पर आदिवासी आउटरीच कार्यक्रम को शुरू किया है। 2018 के चुनावों में, मध्य प्रदेश की कुल 47 रिजर्व सीटों पर भाजपा की झोली में महज 16 सीटें ही आईं थीं जबकि 2003 के चुनावों में उसे 31 सीटें मिलीं थीं। राज्य विधानसभा की कुल 230 सीटों में से 47 सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए रिजर्व हैं और इनमें से भाजपा को 2008 में 29 सीटें मिलीं थीं। 

मध्य प्रदेश के 21 फीसदी आदिवासी मतदाताओं को लुभाने के लिए, केंद्र की भाजपा की अगुवाई वाली सरकार ने झारखंड के सेनानी बिरसा मुंडा के जन्मदिन 15 नवम्बर को आदिवासी गौरव दिवस के रूप में मनाने की हालिया घोषणा की है। इसने मध्य प्रदेश के आदिवासियों के लिए म्यूज़ियम बनाने, उनके नाम पर रेलवे स्टेशन का नामाकरण करने और आदिवासियों के आइकन के नाम पर कॉलेज की स्थापना की गई है। 

आदिवासी आयुक्त द्वारा सभी जिला कलेक्टरों को 9 नवंबर से 12 नवंबर के बीच भेजे गए पत्रों का जिक्र करते हुए मंत्री ने कहा कि इस धनराशि का उपयोग भोपाल में आदिवासी गौरव दिवस समारोह में भाग लेने आए दो लाख से अधिक आदिवासियों के परिवहन के लिए 5000 बसों के प्रबंध पर, उनके भोजन पर, मास्क, सैनिटाइजर और उनके रात्रि प्रवास के लिए किया गया था। 

इस कोष से निर्गत राशि के खर्च का बिंदुवार लेखा-जोखा देते हुए मंत्री ने सदन को बताया कि 9.7 करोड़ रुपये आदिवासियों के परिवहन मद में, 2.62 करोड़ उनके रात्रि प्रवास में, 2.35 करोड़ रुपए उनके दोपहर के भोजन पर, 97 लाख रुपये नाश्ते पर, 50 लाख सैनिटाइजर, मॉस्क एवं बैनर इत्यादि पर खर्च किए गए थे। 

यह सारा खर्च तब किया गया जब केंद्र सरकार ने मध्य प्रदेश के करोड़ों के आदिवासी बजट में 2017-18 की तुलना में वित्तीय वर्ष 2020-21 में 937 करोड़ रुपये से अधिक की कटौती की है। इसके अलावा, धन की कमी के कारण सरकार द्वारा छात्रवृत्ति का भुगतान करने में विफल रहने के बाद इंदौर संभाग के हजारों आदिवासी छात्रों को निस्सहाय छोड़ दिया गया था।

इसके अलावा, आदिवासी बहुल जिलों जैसे श्योपुर, खरगोन, शहडोल, अलीराजपुर, मंडला में मनरेगा के तहत कुशल एवं अकुशल श्रमिकों का भी करोड़ों का भुगतान लंबित है।

आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, इन जिलों में अकुशल मजदूरों की 377.4 लाख रुपये और कुशल मजदूरों की 321.71 लाख रुपये बकाया है। मनरेगा को इस मकसद से चलाया गया था कि प्रत्येक ग्रामीण परिवार के ऐसे वयस्क, जो स्वेच्छा से अकुशल शारीरिक श्रम करना चाहते हैं, उनको एक वित्तीय वर्ष में कम से कम 100 दिनों का गारंटीशुदा रोजगार मिले। 

मनावर के कांग्रेस विधायक और जय आदिवासी युवा शक्ति (JAYS) के संयोजक हीरालाल अलावा ने कहा “आदिवासी गौरव दिवस समारोह से कुछ दिन पहले जब मैंने पीएम मोदी की रैली के लिए आदिवासी धन के दुरुपयोग का मुद्दा उठाया, तो भाजपा नेताओं ने इसे भ्रामक बताते हुए इस दावे को खारिज कर दिया। अब, यह आधिकारिक तौर पर सिद्ध हो गया है,"

कांग्रेस विधायक अलावा ने कहा कि "मनरेगा के तहत काम करने वाले हजारों आदिवासी मजदूरों के भुगतान के लिए राज्य सरकार के पास फंड नहीं है। कई आदिवासी छात्र छात्रवृत्ति के भुगतान का इंतजार कर रहे थे। लेकिन सरकार के पास ऐसी रैलियों के लिए करोड़ों रुपये हैं।"

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अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

MP: Over Rs 15 Crores Tribal Welfare Funds Used for PM Modi's Tribal Pride Day Rally in Bhopal, Admits BJP Minister

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