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मध्यप्रदेश : पिक्चर अभी बाक़ी है, कांग्रेस ही नहीं भाजपा के माथे पर भी पसीना!

मध्यप्रदेश में चल रही सियासी उठापटक अभी जारी है। फिलहाल फ्लोर टेस्ट टल गया लेकिन अभी पिक्चर में कई ट्विस्ट बाकी हैं। कमलनाथ अपने दांव खेल रहे हैं तो बीजेपी अपने।
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कांग्रेस विधायकों को तोड़कर मध्यप्रदेश में सत्ता हासिल करने को आतुर भाजपा की परेशानी बढ़ती जा रही है। बेंगलुरु के होटल में रखे गए कांग्रेसी विधायकों को लंबे समय तक अपने पाले में रखना भी उसके लिए मुश्किल होता जा रहा है, जबकि दूसरी ओर कांग्रेस ज्यादा से ज्यादा समय लेकर न केवल अपने विधायकों से संपर्क करने की जुगत में लगी हुई है, बल्कि भाजपा विधायकों को अपने पाले में लाकर सरकार बचाने का प्रयास कर रही है।

भाजपा लगातार राजभवन की ओर आस लगाकर देख रही है कि वहां से उसके पक्ष में कोई निर्णय हो जाए, लेकिन राज्यपाल लालजी टंडन के दो पत्रों के बावजूद मध्यप्रदेश विधानसभा में आज विश्वमत पेश नहीं किया गया और इस तरह से फ्लोर टेस्ट टल गया। 26 मार्च को सुबह 11 बजे तक के लिए सत्र स्थगित होने के बाद भी पहले तो विधानसभा में सभी भाजपा विधायक बैठे रहे, फिर बाद में वे हाउस से निकल कर सीधे राज्यपाल के पास गए और वहां उन्होंने अपने विधायकों की परेड कराई और कहा कि वर्तमान सरकार बहुमत खो चुकी है। इसके बाद भाजपा जल्द फ्लोर टेस्ट की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट चली गई। इस मसले पर कल, 17 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी। राज्यपाल ने भी कमलनाथ को  एक और पत्र लिखकर  17  मार्च को बहुमत सिद्ध करने को कहा है।  

कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया द्वारा भाजपा में शामिल होने के बाद उनके समर्थक 22 विधायकों ने भी लिखित इस्तीफा दिया है। इनमें से 6 वर्तमान सरकार में मंत्री थे। भाजपा द्वारा बेंगलुरु के एक होटल में पिछले 10 दिनों से इन विधायकों को रखा गया है। उनसे किसी को मिलने नहीं दिया जा रहा है। उनके पास मोबाइल भी नहीं है। वे बाहरी दुनिया से कटे हुए हैं। उनके लिखित इस्तीफे भाजपा के नेता ला रहे हैं। विधानसभा अध्यक्ष एन.पी. प्रजापति का कहना है कि विधायकों को अपना इस्तीफा स्वयं लाना चाहिए, जिससे पता चल सके कि वे बिना किसी दबाव के इस्तीफा दे रहे हैं। इनमें से 6 विधायक सरकार में मंत्री थे। पहले मुख्यमंत्री कमलनाथ ने उन्हें मंत्रिमंडल से निकाल दिया और उसके बाद विधानसभा अध्यक्ष ने उनके आचरण को आधार बनाते हुए उनके इस्तीफे को स्वीकार कर लिया।

इस तरह से तकनीकी रूप से अभी भी 16 विधायक कांग्रेस में है। इस आधार पर कांग्रेस का कहना है कि सरकार बहुमत में है और सरकार पर कोई खतरा नहीं है। मुख्यमंत्री सहित सभी वरिष्ठ कांग्रेसी यह कह रहे हैं कि सरकार फ्लोर टेस्ट से पीछे नहीं हट रही है, लेकिन जबतक भाजपा द्वारा बंधक बनाए गए कांग्रेसी विधायक भोपाल नहीं आ जाते, तबतक इसका कोई मायने नहीं है। इस संदर्भ में मुख्यमंत्री ने राज्यपाल को एक और पत्र दिया है। इसके पहले मुख्यमंत्री ने केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह को भी एक पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने कहा है कि उनके विधायकों को भाजपा ने बंदी बनाकर रखा है। मध्यप्रदेश के राज्यपाल ने कमलनाथ को दो पत्र लिखे हैं, जिसमें उन्होंने आज, सोमवार, 16 मार्च को फ्लोर टेस्ट कराने को कहा था। उस पत्र में राज्यपाल ने सरकार को अल्पमत में होने का हवाला दे दिया है, जिसे तकनीकी रूप से सही नहीं माना जा रहा है।

वरिष्ठ पत्रकार लज्जाशंकर हरदेनिया का कहना है, ‘‘तकनीकी रूप से कांग्रेस अपना पक्ष मजबूत करती जा रही है। पहले राज्यपाल को पत्र लिखना, फिर केंद्रीय गृह मंत्री को पत्र लिखना और उसमें यह हवाला देना कि कांग्रेस के विधायकों को बंदी बनाकर रखा गया है। तीन दिन पहले एक विधायक को अपने पिता से मिलने नहीं दिया गया और मध्यप्रदेश के मंत्री के साथ कर्नाटक पुलिस ने दुर्व्यवहार किया, उसका भी जिक्र पत्र में किया गया है। कोर्ट में ये सारे पत्र कांग्रेस के पक्ष में आधार बनेंगे। इसके साथ ही कांग्रेस ने कोरोना के कारण विधानसभा का सत्र आगे बढ़ाने के लिए मंत्रिपरिषद् से निर्णय नहीं कराकर अपना बेहतर बचाव किया है।

अब विधानसभा का सत्र 25 मार्च तक विधानसभा अध्यक्ष के निर्णय के आधार पर कोरोना का हवाला देते हुए स्थगित किया गया है। ऐसे में कांग्रेस को अभी और वक्त मिल जाएगा। दूसरी ओर भाजपा को इतने लंबे समय तक कांग्रेसी विधायकों को अपने पाले में रखने में मुश्किलें होंगी और अपना कुनबा संभालने में दिक्कत होगी। संभावना के आधार पर कहा जाए, तो कोर्ट यदि भाजपा के पक्ष में निर्णय दे, तो भी 26 मार्च या उसके बाद ही फ्लोर टेस्ट कराने को कहेगा। स्थितियां अभी ऐसी है कि कांग्रेस के पास मध्यप्रदेश में खोने के लिए कुछ नहीं होने के बावजूद कांग्रेस का मनोबल ऊंचा है और दूसरी ओर भाजपा द्वारा सरकार गिराने के प्रयासों में सफलता दिखने के बावजूद उसके नेता परेशान हैं।’’

पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह का कहना है, ‘‘यदि भाजपा को अपने संख्या बल पर इतना भरोसा था, तो वह कोर्ट क्यों गई? समय आने पर सदन में कांग्रेस अपना बहुमत साबित कर देगी।’’ मध्यप्रदेश के पंचायत मंत्री कमलेश्वर पटेल का कहना है, ‘‘कांग्रेस ने सरकार बनने के बाद कई मौके पर सदन में अपना बहुमत साबित किया है। भाजपा लगातार हमारी सरकार को अल्पमत की सरकार कहती आ रही है, लेकिन ऐसा नहीं है।’’ कांग्रेस भाजपा को दूसरे मोर्चे पर भी घेर रही है। राज्यसभा के चुनाव में भाजपा की ओर से प्रत्याशी के रूप में नामांकन दाखिल किए हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया और सुमेर सिंह की उम्मीदवारी पर आपत्ति जताई है।

विधानसभा अध्यक्ष ने भले ही विधानसभा सत्र को 26 मार्च तक के लिए टाल दिया है, लेकिन मध्यप्रदेश का यह सियासी उठापटक लगातार जारी है। एक ओर मामला सुप्रीम कोर्ट में है, तो दूसरी ओर विधानसभा अध्यक्ष के अधिकार के आधार पर सदन की कार्यवाही का है, तो तीसरी धुरी बने मध्यप्रदेश के राज्यपाल के रूख का भी है। अभी एक बार फिर मध्यप्रदेश के राज्यपाल ने अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए मुख्यमंत्री कमलनाथ को पत्र लिखा है। इसमें उन्होंने लिखा है कि कमलनाथ सरकार 17 मार्च तक सदन में बहुमत सिद्ध करें अन्यथा यह माना जाएगा कि वास्तव में सरकार को विधानसभा में बहुमत हासिल नहीं है।
पत्र पढ़ने के लिए क्लिक करें।

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इस पत्र के बाद इस मसले का कोर्ट जाना तय है। क्योंकि वहीं यह तय होगा कि चालू सत्र को कुछ दिन स्थगित करने के विधानसभा अध्यक्ष के अधिकार के ऊपर क्या राज्यपाल कोई आदेश दे सकते हैं?

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