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महाराष्ट्र: प्याज़ निर्यात पर रोक से किसान और कारोबारी मुश्किल में, 5000 करोड़ के नुकसान की आशंका

दरअसल, लगातार तीन महीनों से जारी बरसात के कारण सब्जियों के दाम आसमान छू रहे हैं। लेकिन प्याज़ की कीमत अपेक्षाकृत कम है। हालांकि, पिछले पंद्रह दिनों में प्याज़ की कीमतों में बढ़ोतरी शुरू हुई है। इसके बावजूद, किसानों को प्याज़ में पिछले साल हुए नुकसान की भरपाई संभव नहीं दिख रही है।
महाराष्ट्र

पुणे: केंद्र की भाजपानीत नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा प्याज़ के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के निर्णय के कारण राज्य के नासिक, नगर, पुणे और सोलापुर जिलों में प्याज़ उत्पादक किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है।

इस क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि प्याज़ के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने से संबंधित मोदी सरकार का निर्णय अपेक्षा से उलट है। इनका मानना है कि इससे अंतर्राष्ट्रीय बाजार में चीन और पाकिस्तान को लाभ होगा। वहीं, इस कारोबार से जुड़े कई जानकार बताते हैं कि केंद्र के इस निर्णय से राज्य के किसानों और कारोबारियों को 5,000 करोड़ रुपये का घाटा उठाना पड़ेगा।

बता दें कि केंद्र की मोदी सरकार ने प्याज़ को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटा दिया है। साथ ही, यह दावा भी किया जा रहा था कि प्याज़ उत्पादक किसान अब 'एक देश, एक बाजार' नीति के तहत लाभान्वित होंगे। लेकिन, केंद्र द्वारा अचानक प्याज़ निर्यात पर प्रतिबंध लगाने का फैसला उत्पादक और कारोबारियों के लिए कुठाराघात है।

बता दें कि महाराष्ट्र के बाजारों में आलू की कीमत 40-50 रुपये, ग्वार की कीमत 100 रुपये, सीताफल की कीमत 100-150 रुपये, टमाटर की कीमत 80 रुपये, मटर की कीमत 80-100 रुपये, बैगन की कीमत 50-60 रुपये और लहसुन की कीमत 200 रुपये प्रति किलोग्राम है।

दरअसल, लगातार तीन महीनों से जारी बरसात के कारण सब्जियों के दाम आसमान छू रहे हैं। दूसरी तरफ, प्याज़ की कीमत अपेक्षाकृत कम है।

बताया जा रहा है कि इन दिनों प्याज़ की कीमत अपेक्षा से 15 से 20 रुपये प्रति किलोग्राम तक कम है।

इससे पहले यदि प्याज़ की 50 से 60 रुपये से अधिक हो जाती थी तो सरकार तो निर्यात को कम करने के लिए निर्यात मूल्य में वृद्धि करती थी। इसके बावजूद, यदि प्याज़ की कीमत में वृद्धि होती थी तो सरकार आम जनता को राहत देने के लिए प्याज़ का निर्यात रोक देती थी। लेकिन, इस बार केंद्र सरकार ने प्याज़ के निर्यात पर ऐसी कोई परिस्थिति न होते हुए भी अचानक प्याज़ के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है। इससे प्याज़ उत्पादन में आगे महाराष्ट्र के किसान सकते में हैं और केंद्र सरकार के खिलाफ जगह-जगह सड़कों पर आंदोलन कर रहे हैं।

गौर करने वाली बात यह है कि इस वर्ष फरवरी से अगस्त के अंतिम सप्ताह तक प्याज़ 800 रुपये प्रति क्विंटल के औसत मूल्य पर बेचा गया था। वहीं, पिछले साल हुई अति वृष्टि से प्याज़ की फसल बड़े पैमाने पर बर्बाद हुई थी। पिछले साल प्याज़ की फसल रोपण में रिकार्ड दर्ज करने के बावजूद उत्पादन में गिरावट आई थी। पूरे राज्य में ज्यादातर प्याज़ सड़ गया था।

हालांकि, पिछले पंद्रह दिनों में प्याज़ की कीमतों में बढ़ोतरी शुरू हुई है। इसके बावजूद, किसानों को प्याज़ में पिछले साल हुए नुकसान की भरपाई संभव नहीं दिख रही है। ऐसे में केंद्र का ताजा निर्णय किसान संगठनों द्वारा किसान विरोधी बताया जा रहा है।

हालांकि, कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए मोदी सरकार द्वारा घोषित लॉकडाउन के कारण प्याज़ के निर्यात में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था लेकिन पिछले दिनों फिर प्याज़ का निर्यात सुचारू रूप से शुरू हो गया था। बता दें कि अकेले महाराष्ट्र से पिछले आठ महीनों में सोलह से सत्रह लाख टन प्याज़ का निर्यात किया गया था। इस लिहाज से देखें तो राज्य से प्रति माह औसतन ढाई लाख टन प्याज़ का निर्यात होता था।

अप्रैल, मई और जून इन तीन महीनों में लगभग सात लाख टन प्याज़ का निर्यात किया गया था। पिछले साल राज्य से सवा ग्यारह लाख टन प्याज़ का निर्यात किया गया था। हालांकि, दो वर्ष पहले राज्य से साढ़े इक्कीस लाख टन प्याज़ का निर्यात किया गया था। इससे जाहिर होता है कि प्याज़ निर्यात के मामले में राज्य के किसान और कारोबारी पहले से ही जूझ रहे थे। वहीं, यह भी एक तथ्य है कि भारत का प्याज़ विश्व बाजार में पहले स्थान पर है। इसलिए, भले ही प्याज़ चीन, मिस्र, अफगानिस्तान और पाकिस्तान में बड़ी मात्रा में उगाया जाता है, लेकिन इसके बावजूद भारतीय प्याज़ की मांग सबसे अधिक रहती है। इसकी वजह भारतीय प्याज़ का मसालेदार होना बताया जाता है। भारतीय प्याज़ के आकार, रंग और स्वाद के कारण भी यह दुनिया भर में मशहूर है।

महाराष्ट्र में प्याज़ निर्यातक संघ के अध्यक्ष अजीत शाह बताते हैं कि दुनिया भर में भारतीय प्याज़ की सबसे अधिक मांग है। यहां तक कि प्याज़ उत्पादक चीन, मिस्र, पाकिस्तान और अफगानिस्तान को भारत प्याज़ बेचता है। लेकिन, अब केंद्र इसके निर्यात को अचानक रोक रहा है। केंद्र सरकार को प्याज़ निर्यात की नीति तय करनी चाहिए। अचानक प्याज़ निर्यात पर प्रतिबंध के कारण मुंबई के बंदरगाह में प्याज़ के 400 से अधिक कंटेनर खड़े हुए हैं। यह प्याज़ बरसात के कारण मुंबई में ही सड़ जाएगा। इसी तरह, बांग्लादेश की सीमा पर भी 33 वाहन खड़े हुए हैं।  यदि इसे निर्यात करने की अनुमति नहीं है तो प्याज़ निर्यातकों को करोड़ों का नुकसान होगा।

वहीं, किसान संघ के अध्यक्ष रघुनाथ पाटिल कहते हैं कि वर्तमान आर्थिक संकट के बावजूद जब देश प्याज़ निर्यात से डॉलर कमा रहा था तब केंद्र का यह निर्णय समझ से परे हैं। यही तो एक अवसर था, लेकिन इसे ही खोने दिया जा रहा है। यह एक मूर्खतापूर्ण निर्णय है। इससे चीन और पाकिस्तान को फायदा होगा।

इस बारे में कृषि व्यवसायी दीपक चव्हाण बताते हैं कि उत्पादन लागत को कवर करने के लिए कीमतें बढ़ने के तुरंत बाद निर्यात प्रतिबंध लगाए गए हैं। इससे किसानों को लागत निकालने तक में परेशानी हो सकती है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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