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मणिपुर: भीतरी कलह के कारण मुख्यमंत्री बीरेन सिंह पड़ सकते हैं कमज़ोर!

ऑफिस ऑफ़ प्रॉफिट (लाभ के पद) पर काबिज़ भाजपा के 32 विधायकों में से अब तक चार ने इस्तीफ़ा दे दिया है। पार्टी के कई वरिष्ठ नेता भी मुख्यमंत्री के ख़िलाफ़ शिकायत कर रहे हैं।
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फ़ोटो साभार: PTI

मध्य मार्च से, मणिपुर में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली दूसरी (भाजपा) मिनिस्ट्री भीतर से विद्रोह का सामना कर रही है। हालांकि मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को पूर्वोत्तर में एक मजबूत भाजपा नेता के रूप में जाना जाता है, जिन्हें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का आशीर्वाद और समर्थन प्राप्त है।

फरवरी/मार्च, 2022 की शुरुआत में विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार करते हुए, शाह ने घोषणा की कि अगर पार्टी सत्ता बरकरार रखती है, तो बीरेन सिंह मुख्यमंत्री बने रहेंगे, उनकी यह घोषणा अन्य उम्मीदवारों के लिए एक तरह से चेतावनी थी।

इस पूरे घटनाक्रम ने मणिपुर में कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्ष, इसके अलावा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और जनता दल (यूनाइटेड) को प्रेरित किया है कि वे अपने कार्यकर्ताओं को सक्षम बनाएं ताकि वे जन-केंद्रित मुद्दों पर आंदोलन कर सकें और दो लोकसभा सीटों वाले राज्य में 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव का सामना करने के लिए खुद को तैयार करें।

उन्होंने (विपक्ष) बुधवार, 26 अप्रैल को इंफाल में एक बैठक की, इसके अलावा वे 29 अप्रैल को सत्याग्रह करेंगे और उनकी दूसरी बैठक 4 मई को होगी। सीपीआई (एम) के राज्य सचिव क्षेत्रीमयूम शांता ने न्यूज़क्लिक को बताया कि वे लोगों को भाजपा की सांप्रदायिक राजनीति के बुरे प्रभावों और आंदोलनों के माध्यम से संविधान की रक्षा करने और संसदीय लोकतंत्र को बचाने की आवश्यकता के बारे में बताएंगे।

ऑफिस ऑफ़ प्रॉफिट (लाभ के पद) पर काबिज़ भाजपा के 32 विधायकों में से अब तक चार ने इस्तीफ़ा दे दिया है। पार्टी के कई वरिष्ठ नेता भी मुख्यमंत्री के ख़िलाफ़ शिकायतें कर रहे हैं। इसकी वजह, सामान्य और जातीय समूह/पहाड़ी जनजाति-विशिष्ट, दोनों हैं।

आम वजह यह हैं कि मुख्यमंत्री ने उन्हें पद तो दिए लेकिन ज़िम्मेदारी नहीं दी; वह मंत्रियों सहित विधायकों की अनदेखी करते हैं। विशिष्ट कारण पहाड़ी-आधारित पूर्व विद्रोहियों- कुकी (Kuki)- और उनके विधायकों का गुस्सा है।

भाजपा के कुल 32 विधायकों में से 11 कुकी (Kuki) विधायक हैं। वे मणिपुर कैबिनेट के 10 मार्च को लिए गए उस फैसले से नाराज़ हैं जिसमें 'सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन' (एसओओ) से राज्य सरकार को विड्रा किया गया, जोकि 22 अगस्त, 2008 से लागू एक प्रकार का त्रिपक्षीय युद्धविराम समझौता है।

इस समझौते (जो आमतौर पर एक वर्ष के लिए बढ़ाए जाते हैं) के हस्ताक्षरकर्ता, केंद्र सरकार, मणिपुर सरकार और कुकी-अल्ट्रा के दो अंब्रेला ग्रुप हैं।

राज्य प्रशासन ने यह कहते हुए कैबिनेट के फैसले का बचाव किया है कि कड़ी कार्रवाई की मांग की गई थी क्योंकि जंगलों पर अतिक्रमण किया गया था और मणिपुर, चुराचंदपुर, कांगपोकपी और तेंगनौपाल ज़िलों में बेदखली के नोटिस जारी किए गए थे, जिसके ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन किया गया था।

प्रशासन ने स्पष्ट किया है कि वनों की रक्षा की जाएगी और अफीम की खेती को ख़त्म किया जाएगा। लेकिन, क्लैम्पडाउन के लिए राज्य के कारणों को जातीय समूह पर नहीं गिना गया है, और नई दिल्ली में "उपचारात्मक" कार्रवाई की मांग करने वालों में कुछ कुकी विधायक शामिल थे।

मणिपुर में, अन्य उत्तर-पूर्व राज्यों की तरह, भाजपा 2017 से सभी राजनीतिक मानदंडों की धज्जियां उड़ा रही है और किसी भी कीमत पर अपनी सरकार बनाने के लिए पैंतरेबाज़ी कर रही है। साल 2017 में, भाजपा की 21 सीटों के मुकाबले कांग्रेस 28 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी। 60 सदस्यीय विधानसभा की बाक़ी बची 11 सीटों पर नागा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) और मेघालय के कोनराड संगमा की नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) ने जीत हासिल की।

कांग्रेस के रैंकों में दलबदल करके और एनपीएफ और एनपीपी के समर्थन को सूचीबद्ध करके, भाजपा ने बीरेन सिंह के साथ सरकार का गठन किया।

2022 के विधानसभा चुनावों में, भाजपा ने 32 सीटों के साथ बहुमत हासिल किया, कांग्रेस और एनपीएफ को पांच-पांच, एनपीपी को सात, जेडी-यू को छह, नवगठित कूकी पीपुल्स अलायंस को दो और तीन निर्दलियों को जीत मिली।

हालांकि एनपीपी ने भाजपा को समर्थन देने का वादा किया था, लेकिन पहले कार्यकाल में भाजपा के नाखुश अनुभव को देखते हुए इसे बाहर से मंत्रालय का समर्थन करने के लिए बनाया गया है, जब इसने कुछ कांग्रेस विधायकों और असंतुष्ट भाजपाईयों की मदद से मंत्रालय को गिराने की कोशिश की। इस बीच, बीरेन सिंह ने और अतिरिक्त पोर्टफोलियो फेरबदल के साथ मंत्रालय में बदलाव किया है।

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि बीरेन सिंह के लिए पिछले तीन-चार महीनों से मुश्किलें खड़ी हो रही हैं, क्योंकि बीरेन सिंह के दामाद, विधायक राजकुमार इमो सिंह ने अड़ियल तत्वों को सख्त शब्दों में चेतावनी दी थी। एक बार फिर, यह मुख्यमंत्री के विरोधियों को अच्छा नहीं लगा, जिन्होंने इसे उनके मास्टर की आवाज़ करार दिया।

भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने आखिरकार अपने वरिष्ठ नेता संबित पात्रा को हस्तक्षेप करने और मुद्दों को सुलझाने के लिए भेजा है।

जब मणिपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एन. बिजेन मीतेई जो बहुसंस्कृतिवाद, चुनावी राजनीति, राजनीतिक सिद्धांत और एन-ई राज्यों में विशेषज्ञता रखते हैं, से उनके आकलन के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने न्यूज़क्लिक को बताया, “अभी टिप्पणी करना जल्दबाज़ी होगी। जिन पदों पर विधायकों की नियुक्ति की गई थी, उन्हें छोड़ने वालों की संख्या अभी ज़्यादा नहीं है। और फिर, जैसा कि आपने उल्लेख किया, मुख्यमंत्री को केंद्रीय गृह मंत्री का समर्थन प्राप्त है। कुछ और समय के लिए स्थिति पर नज़र रखने की ज़रूरत है। आखिर 2024 को भी सत्ता पक्ष के नेता की नज़रों में ही रखना होगा।"

विपक्ष, विद्रोह के कारणों को ज़्यादा महत्व नहीं देता; आखिरकार, लोगों के मुद्दे तस्वीर में कहीं नहीं हैं।

सीपीआई (एम) नेता सांता ने कहा, "यह सब पद, कार्यालय और सत्ता के लिए है। हम इसे इसी तरह देखते हैं।" सीपीआई के राज्य सचिव एल थोरेन उनके साथ थे।

दोनों ने स्थानीय और पंचायत चुनाव कराने में देरी की ओर इशारा किया, जो क्रमशः मई 2021 और अक्टूबर 2022 में होने वाले थे। मुख्यमंत्री ने कुछ समय पहले विधानसभा में घोषणा की थी कि निकाय और नगर पंचायत के चुनाव इस साल 6 जून को होंगे और पंचायत चुनाव 26 जून को होने हैं। मणिपुर में दो स्तरीय पंचायत संरचना है – ग्राम पंचायत और जिला परिषद। द्वितीय श्रेणी के रूप में कोई पंचायत समिति नहीं है।

चूंकि लोकसभा चुनाव एक साल दूर हैं, इसलिए सरकार को गिरने से बचाने के लिए भाजपा हर संभव प्रयास करेगी क्योंकि इस गिरावट का असर शाह की राजनीतिक हैसियत पर भी पड़ेगा, जिन्होंने असम के सरमा की सलाह पर बीरेन सिंह को चुना था। लेकिन राजनीतिक पर्यवेक्षकों का यह भी कहना है कि अब से केंद्रीय भाजपा नेतृत्व बीरेन सिंह को नियंत्रण में रखेगा और शायद उनसे कुछ असंतुष्ट तत्वों को समायोजित करने के लिए कहेगा जो राजनीतिक रूप से सरकार में मायने रखते हैं। लेकिन असल में मुख्यमंत्री, केंद्रीय नेतृत्व के समर्थन पर ज़्यादा निर्भर रहेंगे जिसका मतलब यह है कि वे मौजूदा समय के मुक़ाबले कमज़ोर होंगे।

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित ख़बर को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें :

Manipur: Revolt Likely to Leave Chief Minister Biren Singh Weak

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